दृश्य श्रव्य माध्यम की पत्रकारिता,दृश्य-श्रव्य माध्यमों को स्पष्ट करते हुए दूरदर्शन पत्रकारिता को समझाइए
दृश्य श्रव्य माध्यम अर्थात् टेलिविजन प्रसारण भारत में कभी देर से आरंभ हुआ 15 सितम्बर 1959 में भारत में प्रयोगिक तौर पर टी०वी का प्रसारण शुरू किया गया। उस समय यह प्रसारण केवल दिल्ली और कलकत्ता से होता था। सप्ताह में एक दिन दस मिनट का हिन्दी और 10 मिनट का अंग्रेजी समाचार वाचन होता था और दूसरे दिन क फीचर फिल्म दिखाई जाती थी। 1965 तक टीवी प्रसारण की यही स्थिति रही पर प्रसारण दो और जगहो मुम्बई और चेन्नाई से भी किया जाने लगा सप्ताह में 20 मिनट के समाचार प्रसारण के बाद भी इस टीवी पत्रकारिता का आरम्भ नहीं माना जा सकता क्योंकि इस दौरान प्रसारित होने वाली समाचार, दरासल विभिन्न समाचार पत्रों के शिर्षक होते थे। किसी भी एक समाचार को 30 सेकेण्ड से अधिक समय नहीं मिलता था क्योंकि सप्ताह भर की खबरों को 10 मिनट में प्रस्तुत करना होता था हिन्दी और अंग्रेजी के समाचारों के प्रसारण में कई बार एक रूपता भी नहीं होती थी क्योंकि दोनों भाषाओं के समाचार पत्र अपने – अपने पाठको के रूचि और आवश्यकता के अनुसार अलग-अलग तरह के समाचार प्रकाशित करते थे।
1965 से दूरदर्शन का प्रसारण नियमित किया गया प्रतिदिन लगभग 25 मिनट के प्रसारण में समाचारों के प्रसारण की अवधि 5 मिनट कर दी गयी । प्रतिदिन 10 मिनट की समाचार समीक्षा भी प्रस्तुत की जाने लगी पर किसी भी प्रत्याक्ष रूप से दृश्य श्रव्य माध्यम की पत्रकारिता नहीं मानी गयी क्योंकि यह समीक्षा भी समाचार पत्रों पर निर्भर थी इसके अन्तर्गत किसी विशेष मुद्दे पर अलग-अलग अखबारों में प्रकाशित सम्पादकीय टिप्पणियों के अंश प्रसारित किये जाते थे उनके संकलन एवं सम्पादन को पत्रकारिता के कार्य से आवश्य जोड़ा जा सकता है।
अगले लगभग ढ़ेड़ दशकों तक दृश्य श्रव्य माध्यम की पत्रकारिता में ज्यादा बदलाव नहीं आया यद्यपि समाचारों की प्रसारण की अवधी बढ़ा दी गयी और समाचारों पर आधारित कुछ नये कार्यक्रम भी प्रसारित किये जाने लगे किन्तु इसके लिए दूरदर्शन आकाशवाणी का मुखापेक्षी था रेडियो पर प्रसारित होने वाली समाचार और समाचार आधारित कार्यक्रमो दूरदर्शन प्रसारित करता था । रेडियो प्रसारण के समय ही उसकी विडियो रिकॉडिन की जाती थी जिससे दर्शक टी०वी के पर्दे पर देखते थे।
1982 का वर्ष भारत दूरदर्शन क्रांति का वर्ष रहा जब भारत एशियाई खेलों का आयोजन हुआ और देश भर में उसके प्रसारण के लिए रिले केन्द्रों की स्थापना की रंगीन टीपी भी इस वर्ष भारत आया यही वह वर्ष था जब दूरदर्शन स्वतंत्र रूप से अपने कार्यक्रम तैयार लगा। इससे टी०वी पत्रकारिता को एक दिशा और गति मिली समाचार पत्र और रेडियो की सीमा से बाहर निकल टी. वी. पत्रकारिता ने घटनाओं और आयोजनो के सीधे प्रसारण से अपने लिए एक नये ऊंचाई हासिल की।
अगले एक दशक में टी.वी प्रसारण में इतनी प्रगति कर ली कि दूरदर्शन ने न केवल अपने अनेक नये चैनाला आराम्भ कर दिये बल्कि देश विदेश के अनेक नीजि चैनलों ने भी 24 घंटों के कार्यक्रम प्रसारित करना आरम्भ कर दिया आज केवल समाचार आधारित चैनल यानी न्यूज चैनलों की बढ़ती संख्या इस बात का संकेत है कि टीवी पत्रकारिता अपने सुनहारे दौड़ में है।
दृश्य श्रव्य माध्यमों की पत्रकारिता को आज पत्रकारिता का और सर्वश्रेष्ठ और शाश्वत माध्यम माना जाने लगा है। इसके निम्नलिखित कारण है।
1. नवीनतम घटनाओं की जानकारी देने में सक्षम है।
2. प्रमाण के तौर पर तात्काल दृश्य प्रस्तुत कर सकता है ।
3. सीधे प्रसारण द्वारा दर्शको घटना या स्थिति के साथ प्रत्याक्ष रूप से जोड़ पाता है ।
4. टेलिकॉफ्रेंसी के जरिये दर्शको या विज्ञयो से संवाद कर सकता है और चित्र के माध्यम से इसका प्रमाण भी प्रस्तुत कर सकता है।
5. भाषा की बाध्यता से परे जाकर दृश्य के माध्यम से पूरी दुनिया से सम्पर्क जोड़ सकता है।
नवीनतम जानकारियाँ त्वरित रूप से आम लोगों तक पहुंचाने के क्रम में कई महत्वपूर्ण पक्ष अछूते या अधूरे रह जाते हैं, जिन्हें दृश्य श्रव्य माध्यमों की कमियो के रूप में आंका जाता है ये है –
1.जानकारी को जल्द से जल्द प्रसारित करने की हड़बड़ी में गलत, भ्रमक या अधूरी जानकारी प्रसारित होने की अशांका रहती है।
2. समय की कमी के कारण घटना अथवा स्थिति के सभी पक्षों पर विचार कर पाना सम्भाव नहीं होता इस कारण कई बार समाचार एक पक्षिये बन कर रह जाती है।
3. घटना से जुड़े व्यक्ति या व्यक्तियों के निजाता का उल्लंघन हो सकता है अनेक बार ऐसी स्थिति में व्यक्ति के नाम पद या घटना से उनकी संकिलता के संबंध में गोपनियता वर्तने की अनिवार्य का पालन नहीं हो पाता।
4.प्रसारण योग्य नहीं होते पर अनेक दृश्य दिखा दिये जाते है।
5.किसी जिम्मेदार व्यक्ति द्वारा की गयी टिप्पणी की निहार्थ या की भाव की अन देखी की जाती है जो बाद में विवाद का कारण बन सकता है।