माध्यमोपयोगी लेखन का स्वरूप एवं महत्व, जनसंचार माध्यमों में हिंदी का स्वरूप

माध्यमोपयोगी लेखन का स्वरूप एवं महत्व,माध्यम लेखन के महत्व पर प्रकाश डालिए। विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन (vibhinn madhyam ke liye lekhan)

लेखन अब सिर्फ मुद्रण के लिए नहीं होता।

साहित्य का सामना अब सूचना और संचार जगत से हो रहा है। साहित्य अब सिर्फ पुस्तकों तक सीमित नहीं है। उसे दृश्य और नृत्य माध्यमों का भी सामना करना है। आज जितने भी संचार माध्यम हैं उनमें साहित्य रचना का प्रयोग किस रूप में हो सकता है स्पष्ट सपाल अत्यंत जटिल है।
– राणेश मिश्र

विभिन्न जनसंचार माध्यमों के लिए लेखन अलग प्रकार का होता है। समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए लेखन की शैली अलग तरह ही होती है । रेडियो और TV से लिए लेखन क्रम में माध्यम का ध्यान रखना जरूरी होता है । इन माध्यमों के लिए लेखन एक अलग कला तो है लेकिन तकनीक समझने की भी आवश्यकता है। माध्यम अलग है इसलिए उनकी आवश्यकताएँ भी अलग है। इन माध्यमों के लिए लेखन क्रम में पाठकों-श्रोताओं-दशकों की गहरी समझ भी आवश्यक है। एक ओर माध्यम की आवश्यकताएँ सीमाएं और संभवनाएँ है दूसरी ओर पाठकों-श्रोताओं-दशकों की दोनों पक्षों समझता हुआ माध्यमों के अनुरूप लेखन की तकनीक समझकर इसका कलात्मक उपयोग करनेवाला लेखन होता है।

रेडियो TV, इंटरनेट और अखबार – जनसंचार के इन माध्यमों का उपयोग समाचारों की प्रस्तुति के लिए भी होता है। केवल समाचारों की बात करे तब भी हमारे सामने यह स्पष्ट होता चला जाता है कि इन माध्यमों से मुद्रित प्रसारित समाचारों के लेखन और प्रस्तुत है और देखे चुने गए समाचारों की बेसन शैली भाषा और इनकी प्रस्तुति में अंतर है। पढ़ें सुने और देखें सुने गए समाचारों की लेखन शैली भाषा और प्रस्तुति में इस अंतर की पहचान आवश्यक है। अखबार छुपे हुए शब्दों का माध्यम है। रेडियो बोले गए शब्दों का। TV  के लिए लेखन दृश्य आधारित होता है। इन जन माध्यमों की आवश्यकताएं अलग है। इन अलग-अलग आवश्यकता ओं को समझे बिना इनके लिए उपयोगी और सार्थक लेखन नहीं हो सकता।

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   मुद्रित माध्यमों के लिए लेखन क्रम में ध्यान देने योग्य कुछ बातें इस प्रकार है भाषा, व्याकरण और वर्तनी का ध्यान रखना समय सीमा और स्थान के अनुरूप लेखन प्रकाशन से पूर्व अशुद्धियों का निराकरण और प्रस्तुति क्रम सही रखना।

     समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में सामग्री की प्रस्तुति की यह प्रचलित विधाएं है- समाचार, फीचर, रिपोर्ताज, संपादकीय,विवरणात्मक लेख और साक्षात्कार। कहानियां, उपन्यास, कविताएं, नाटक, संस्मरण, यात्रावृत्त, साहित्य के विविध रूप समाचार पत्रों पत्रिकाओं के माध्यम से पहले से सामने आते रहे हैं।

       ध्वनि स्वर और शब्दों का खेल जिस माध्यम पर चलता है वह रेडियो। संगीत का इससे सहज जुड़ाव है। रेडियो पर किसी भी कार्यक्रम के प्रसारण का समय तय होता है। प्रसारण की अवधि भी निश्चित होती है। प्रसारित सामग्री श्रोता एक ही बार सुन सकता है, इसलिए अपेक्षित है कि भाषा सरल सहज हो अप्रचलित शब्दों का उपयोग न हो। वाक्य छोटे हो भ्रामक या अरुचिकर न हो। इसका कारण यह है कि अखबार की पाठक की तरफ पीछे लौटने की सुविधा श्रोता को नहीं है।

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     रेडियो प्रसारण के अंतर्गत ये विधाएं प्रमुखता से आती है-समाचार, वार्ता(Radio talk), साक्षात्कार, परिसंवाद (गोष्ठी), फीचर, नाटक, गीत, संगीत आधारित कार्यक्रम इसके अतिरिक्त गायन वादन फिल्म सुगम संगीत और शास्त्रीय संगीत का भी प्रसारण होता है। रेडियो समाचारों के अनेक बुलेटिन प्रसारित होते हैं। साहित्यिक संस्कृतिक वैज्ञानिक राजनैतिक आर्थिक सामाजिक विषयों पर वार्ताएं भी प्रसारित होती है। रेडियो, नाटकों, रूपकों और पहसनों का प्रसारण भी इस माध्यम से होता है।

रेडियो के लिए लेखन भाषा ध्वनिगत विशेषताओं की गहरी सार्थक और उपयोगी समय के बिना नहीं हो सकता। समाचारों के प्रसारण से पहले संकलन, चयन और लेखन होता है । तथ्यपरकता का ध्यान रखते हुए संतुलित भाषा का उपयोग किया जाता है । रेडियो नाटक भाषा चित्र निर्माण की शक्ति से संपन्न होती है।

सिद्धनाथ कुमार के अनुसार

रेडियो नाटक प्रत्यक्षता के बंधन से मुक्ति का नाटक है। यह मितब्ययी भी हैं। ये अपनी प्रकृति से अंतर्भन का नाटक हैं। इसमें गतिशीलता होती है। देशकाल की अनंत यात्रा इसके माध्यम से संभव है । संवादों के माध्यम से नाटकीय कार्यस्थल और कार्य व्यापार की मानसिक धरातल पर प्रतीति कराई जाती है। संवाद अदायगी की कला का विकास इस माध्यम से होता है।

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        फीचर घटना व्यक्ति, वस्तु या स्थान के बारे में लिखा गया ऐसा विशिष्ट आलेख है जो कल्पनाशीलता और रचनात्मक कौशल के साथ मनोरंजन और आकर्षक शैली में प्रस्तुत किया जाता है। फीचर में नाटक की तकनीक का उपयोग भी किया जा सकता है। ध्यातव्य है कि इसका शीर्षक आकर्षक हो । एक स्पष्ट उद्देश्य हो। एक निश्चित प्रभाव हो । रोचक आरंभ और निष्कर्षात्मक, प्रभावशाली अंत हो।

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          रेडियो वार्ता निबंध नहीं हैं। ये श्रोताओं से बातचीत के अंदाज में तैयार आलेख है। मुद्रित निबंध और प्रसारित वार्ता में अंतर है। इसका कारण भाषिक शब्दों की व्यक्ति है।
दृश्य श्रव्य माध्यम के लिए लेखन के क्रम में सबसे पहले लेखक दृश्यों की महत्ता को समझे। शब्द दृश्य के अनुकूल हो, इन दिनों TV पर खबरों के विभिन्न चरण होते हैं। जिनका आरंभ News flash या Breaking News से होता है । दृश्य बाद में आते हैं । शब्द का काम दृश्य को आगे ले जाना है। एक दृश्य को दूसरे दृश्य से जोड़ने के लिए भी शब्दों का उपयोग होता है।
TV पर समाचारों में सबसे पहले अचानक आने वाली खबर होती है जिसे News flash या Breaking News कहा जाता है। यह पहली बार अभी आई खबर है। इसमें कम शब्दों में सूचना होती हैं। इसके बाद का  चरण Dry anchor कहलाता है। Anchor Report से मिली जानकारी के आधार पर तब तक सूचनाएं देता है जब तक दृश्य नहीं आते। इसके बाद का चरण है  फोन इन। यह विस्तार होता है, Anchor प्रश्न करता है Reporter से और जानकारियां लेता है। इसके बाद जब दृश्य आ चुके हो तो एंकर का काम अपेक्षाकृत आसान हो जाता है। घटनास्थल के दृश्यों के साथ साथ समाचार वाचन चलता रहता है । इसके बाद Live प्रसारण (जीवंत प्रसारण ) की बारी आती है । दृश्य बाइट्स, ग्राफिक सूचनाएं TV की खबरों को पूर्ण बनाने के लिए होती है।
Tv पर धारावाहिक प्रसारित होते हैं। इसके लिए स्क्रिप्ट या पटकथा तैयार की जाती है। पटकथा में कहानी को दृश्यों में तोड़ा जाता है। दृश्य श्रृंखला के माध्याम से कथा विकास क्रम चलता है। दृश्यों के माध्यम से ही पात्रों का चरित्रांकन होता है। भारत के पहले सोप ओपेरा हमलोग के पटकथाकार मनोहर श्याम जोशी रामायण और महाभारत को चरित्रों का खजाना मानते हैं। मन्नू भंडारी ने बसु चटर्जी के निर्देशन में बने  धारावाहिक रजनी पटकथा लिखी थीं। हर कड़ी में समस्या एक सामाजिक समस्या उठाकर निर्भिकता से अपने समाज के अधिकारों के लिए संघर्ष करनेवाली लड़की रजनी का चित्रण प्रभावशाली दंग से किया गया थारामायण और महाभारत धारावाहिक महाकाव्यों पर आधारित थे लेकिन इनके लिए भी पटकथाएं तैयार की गई थी।महाभारत की पटकथा राही मासूम रजा ने लिखी थी । ‘मैं समय हूँ’ कहते हुए समय को एक किरदार के में नरेटर के रूप में रुप प्रस्तुत किया गया था। बुनियाद मनोहर श्याम जोशी द्वारा दूसरा सोप ऑपेरा था । इसमें 100 वर्षों के भारतीय इतिहास और समाज को समेटने की कोशिश की गई थी। इसमें सब कुछ शामिल करने की कोशिश का परिणाम था कि यह जैसा शुरू हुआ था वैसा ही नहीं गया, बहुत परिवर्तित हो गया।

साहित्यिक कृतियों पर भी धारावाहिकों निर्माण होता रहा है । ( कालाजल- उपन्यास शानी), निर्मला ( प्रेमचन्द्र ) कबतक पुकारु (रांगेय राघव / तमस (भीष्म साहनी ) श्रीकांत (शरद चन्ह) पचपन खंभे दीवारें (उषा प्रियंवदा ) ऐसे ही धावाहिक है।

रियलिटी शो की रूपरेखा तय करना उसके लिए (एंकर के लिए भी) स्क्रिप्ट तैयार करना एक अलग प्रकार का लेखन है। मास्टर शेफ जैसे कार्यक्रमों के लिए भी एक पटकथा होती है । चित्रहार और चित्रमाला जैसे फिल्मी गीत आधारित कार्यक्रमों को प्रस्तुति भी एंकर एंकर द्वार स्क्रिप्ट के आधार पर ही होता है।

जनमाध्यम किसी मुद्दे को अत्यधिक महत्व देते हैं और किसी मुद्दे का उपेक्षा करते हैं। इसका जनता की राय पर प्रभाव पड़ता है। TV पर शैक्षणिक कार्यक्रम भी आते हैं। पहली शर्त यह है कि ये रोचक ढंग से प्रस्तुत किए जाए। शिक्षाविद, जनसंचार विशेषज्ञ और व्यवसायिक निर्माता शैक्षणिक कार्यक्रमों को रोचक प्रस्तुति के सहभागी होते हैं। साइंस ऑफ स्टूपिड ऐसा ही कार्यक्रम है।

Tv के कार्यक्रमों पारंग और अंत प्रभावशाली होना चाहिए। कहानियां फ्लेश बैंक में की जात है। इसके बावजूद प्रवाह सहज हो।

TV पर वृत्तचित्रों का भी प्रसारण होता हैं। ये विभिन्न विषयों पर निर्मित होते हैं। विजुअल (दृश्य श्रृंखला ) पुरानी लाइब्रेरी से लिये जा सकते हैं। शूटिंग स्क्रिप्ट के आधार पर होती है। वृत्तचित्र में भी एक कथासूत्र या विचार सूत्र होता है ।

टेलीड्रामा, कहानी, उपन्यास, रेडियो, नाटक के आधार पर रचा जा सकता है। धारावाहिक लम्बा होता है। टेलीड्रामा छोटा
आकार का अंतर मुख्य है । फीचर में स्थितियों और घटनाओं को नाटकीय रूप में ढाला जाता है।

साक्षात्कार प्रसारित होता है। विषय और प्रश्न निर्धारित होते हैं। प्रश्न उत्तर क्रम चलता है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से भी विचार विमर्श क्रम चलता है।
इस प्रकार श्रव्य दृश्य माध्यम के लिए उपयोगी लेखन कई प्रकार का होता है। कई विधाओं में होता है। मध्यम की तकनीकी विशेषताओं और सीमाओं की गहरी समझ बेहतर लेखन के लिए आवश्यक और अपेक्षित हैं। ऐसा लेखन मुद्रित माध्यमों के लिए के जाने वाले पारंपारिक लेखन से भिन्न होता है। या आवश्यक नहीं है कि एक अच्छा साहित्यकार इन माध्यमों के लिए भी अच्छा नहीं लेखन कर सकें। इसके लिए अभ्यास जरूरी है। मध्यम की मांग की समझ आवश्यक है। भाषा और स्क्रिप्ट के माध्यम से श्रोताओं दर्शकों से सहज जुड़ाव की क्षमता का विकास आवश्यक है। माध्यमों के लिए सार्थक उपयोगी प्रभावशाली लेखन की क्षमता का विकास अभ्यास आधारित ही हो सकता है।

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