वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting growth and development)


vikas ko prabhavit karne wale karak likhiye
(बाल विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैंं):-

वृद्धि व्यक्ति के शरीर से संबंधित होता है हम वृद्धि को देख सकते है, उसे मापा जा सकता है। मानव शरीर की वृद्धि एक सीमित समय तक होता है 18 से 20 वर्ष की आयु तक मानव शरीर का वृद्धि होता है फिर रुक जाता है मानव शरीर के आकार, भार व कार्यक्षमता आदि में वृद्धि देखा जा सकता है। वृद्धि एक प्राकृतिक प्रक्रिया है।

वही विकास मानव शरीर से लेकर व्यक्ति के संपूर्ण हिस्सेदारी में विकास होता है चाहे वह शारीरिक हो, मानसिक हो, समाजिक हो, संवेगात्मक हो इन सभी में जो भी परिवर्तन होता है वह विकास कहलाता है। विकास के अंतर्गत सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक, मानसिक, शारीरिक एवं संवेगात्मक परिवर्तनों को सम्मिलित किया जाता है।

Read : वृद्धि और विकास (Growth and Development)

वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले कारक
(Factors affecting growth and development):-

१. ग्रंथियों का स्राव (Secretion of glands)

२. पोषण(nutrition)

३. शुद्ध वायु और सूर्य का प्रकाश(fresh air and sun light)

४. रोग और चोट (diseases and injuries)

५. लिंग भेद (sex difference)

६. बुद्धि (intelligence)

७. प्रजाति(Race)

८. परिवार में स्थिति(position in family)

९. संस्कृति(cultural)

 

१. ग्रंथियों का स्राव (Secretion of glands) :

बालक बालिकाओं के शारीरिक मानसिक विकास पर ग्रंथियों के स्राव का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है जैसे गले में थायराइड ग्रन्थि के पास पैरा थायराइड ग्रंथि ओ द्वारा व्रत में कैल्शियम का परिभ्रमण होता है इसके दोष से मांसपेशियों में अत्याधिक संवेदनशीलता आती हैं। शारीरिक तथा मानसिक प्रीति के लिए थायरॉक्सिन, जो कि थायराइड ग्रन्थि से निकलता है। किसकी कमी से बालक मूढ़ हो जाता है। इसी प्रकार यदि छाती के ग्रीवा ग्रंथि तथा मस्तिष्क की शीर्ष ग्रंथि अधिक सक्रिय हो तो बालक का सामान्य विकास रुक जाएगा और वह शारीरिक तथा मानसिक दोनों दृष्टि से बाद में भी बच्चों जैसी हरकतें करेगा लैंगिक ग्रंथियों की न्यूनता से किशोरावस्था देर से आएगी और इनके अधिक सक्रिय होने से लैंगिक विकास जल्दी होगा।

२. पोषण(nutrition): 

अच्छे पोषण से बालक के सर्वांगीण विकास एवं वृद्धि में सहायक होती है बाल विकास के लिए संतुलित एवं पौष्टिक भोजन की अत्याधिक आवश्यकता है क्योंकि इस प्रकार के भोजन में विटामिन्स, प्रोटीन, खनिज लवण, कार्बोहाइड्रेट और वसा जैसे तत्व शामिल होते हैं जो शरीर और मस्तिष्क दोनों के लिए लाभदायक होते हैं। अगर बच्चों को सही रूप में संतुलित एवं पौष्टिक भोजन न दिया जाए तो वृद्धि एवं विकास दोनों में कमियां नजर आती है; जैसे कमजोर दांत त्वचा संबंधित रोग आदि।

३. शुद्ध वायु और सूर्य का प्रकाश(fresh air and sun light)

हर मनुष्य के लिए शुद्ध वायु और सूर्य का प्रकाश आवश्यक होता है शुद्ध वायु से बालक के वृद्धि एवं विकास में सहायक होता है वह सूर्य के प्रकाश में विटामिन डी होता है। बालकों को शुद्ध वायु पर प्रकाश उपलब्ध नहीं होगा तो उनका शरीर अक्षम हो जाएगा परिश्रम करने की शक्ति कम हो जाएगी और वे कमजोर हो जाएंगे। शारीरिक विकास एवं वृद्धि रुक जाएगा। जिस तरह से पेड़ पौधों के लिए सूर्य का प्रकाश आवश्यक है उसी प्रकार मनुष्य के लिए भी सूर्य का प्रकाश आवश्यक हैं।

 

Read: वृद्धि और विकास के सिध्दांत(Principles of growth and development)

 

४. रोग और चोट (diseases and injuries)

रोग और चोट मानव शरीर के लिए घातक सिद्ध होते हैं ठीक उसी प्रकार यदि माता गर्भकाल में धूम्रपान, शराब तथा औषधि आदि का अत्याधिक सेवन करती है तो बच्चों का इसका प्रभाव पड़ता है विषैले रोग जैसे आंत्र ज्वर तथा गंभीर चोटें जैसे सिर की चोट आदि से बालक का शारीरिक विकास रुक जाता है और उनके मानसिक विकास पर गहरा असर पड़ता है।

५. लिंग भेद (sex difference)

लिंग भेद बालक बालिकाओं के विकास को बहुत प्रभावित करता है। जन्म के समय बालक बालिकाओं से कुछ बड़े होते हैं लेकिन बात में बड़ी कराएं बालकों की अपेक्षा जल्दी बढ़ती है। किशोरावस्था में बालकों की तुलना में बालिकाओं का विकास तीव्र गति से होता है। वह जल्दी ही परिपक्वता को प्राप्त करती है। मानसिक विकास में भी बालिकाएं बालकों की अपेक्षा आगे होती है।

६. बुद्धि (intelligence)

बालक बालिकाओं के विकास में बुद्धि का अत्यधिक महत्व होता है तीव्र बुद्धि वाले बालक बालिकाओं का विकास भी तीव्र गति से होता है वही सामान्य बुद्धि वाले बालक बालिकाओं का विकास सामान्य गति से और मंद बुद्धि वाले बालक बालिकाओं का विकास भी धीमी गति से होता है। टरमन के अनुसार बालक के चलने फिरने और बोलने के संबंध में यह बात बताई है कि कुशाग्र बुद्धि के बालक 13 महीने की आयु में चलना सीखता है सामान्य बुद्धि के बालक 14 महीने की आयु में मन बुद्धि के बालक 22 महीने के अंतर्गत में और मोर बुद्धि के बालक 30 माह की आयु में चलना सीखता है वही बोलने के संबंध में टरमन ने कहा कि कुशाग्र बुद्धि के बालक 11वें महीने में सामान्य बुद्धि वाले बालक 16 महीने में मन बुद्धि वाला बालक 34 वे माह में और मूढ़ बुद्धि वाला बालक 51 माह में बोलना सीखता है।

७. प्रजाति(Race)

बालक के वृद्धि एवं विकास में प्रजाति का भी प्रभाव अत्यधिक मात्रा में देखने को मिलता है युंग ने इनका परीक्षण करते हुए कहा कि प्रजातीय प्रभाव बालक के विकास के लिए महत्वपूर्ण तत्व है जैसे भूमध्यसागरीय पर रहने वाले बालक बालिकाओं का शारीरिक विकास यूरोप के बालक बालिकाओं की अपेक्षा जल्दी होता है  नीग्रो बालक शेष बालकों की तुलना में 80% विकास जल्दी कर लेते हैं।

८. परिवार में स्थिति(position in family)

बालक के विकास एवं वृद्धि में परिवार की भूमिका भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं परिवार का रहन सहन भरण पोषण अच्छा होता है वहां के बालक एवं बालिकाओं का विकास भी तीव्र गति से होता है एवं जिस परिवार का भरण पोषण एवं रहन सहन ठीक प्रकार से नहीं हो पाता वहां के बालक का विकास भी उसी प्रकार से धीमी गति से होता है।

 

Read: वृद्धि और विकास में अंतर ( difference between growth and development)

 

९. संस्कृति(cultural)

बालक बालिकाओं के विकास पर संस्कृति का काफी प्रभाव पड़ता है स्वामी दयानंद, अरविंद, लोकमान्य तिलक, डॉ राधाकृष्णन आदि दर्शनिकों का कहना है कि एक देश और उनके समाज की संस्कृति बालकों के विकास को बहुत शीघ्र प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए आध्यात्मिकता ही भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है इसे हम श्रेष्ठ मानते हैं और इस पर गर्व करते हैं

Leave a Comment