कौन-सी घटना थी जिसने लेखक को कौसानी-यात्रा के लिए प्रेरित किया? ‘ठेले पर हिमालय’ शीर्षक रचना के आधार पर वर्णन करें
‘ठेले पर हिमालय’ हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध साहित्यकार धर्मवीर भारती द्वारा रचित एक भावप्रवण यात्रा-वृत्तांत है, जिसमें लेखक ने कौसानी की यात्रा के अनुभवों को अत्यंत संवेदनशीलता और सौंदर्यबोध के साथ प्रस्तुत किया है। यह यात्रा मात्र एक स्थान विशेष की भौगोलिक यात्रा नहीं है, बल्कि यह लेखक की अंतरात्मा की एक खोज, स्मृति और अनुभूति का दस्तावेज़ बन जाती है। लेखक को कौसानी की यह यात्रा करने की प्रेरणा एक सामान्य किन्तु भावनात्मक घटना से प्राप्त हुई थी, जिसका उल्लेख रचना की शुरुआत में मिलता है।
यह घटना उस समय घटी जब लेखक अपने एक उपन्यासकार मित्र के साथ एक पान की दुकान पर खड़े थे। अचानक एक ठेले पर बर्फ की सिलें लादे हुए एक बर्फ वाला वहाँ से गुज़रा। बर्फ की सिलें चमक रही थीं और उनसे ठंडी-ठंडी भाप उठ रही थी। यह दृश्य देखते ही लेखक के मित्र भाव-विभोर हो उठे, क्योंकि उनका जन्मस्थान अल्मोड़ा था, जहाँ उन्होंने हिमालय की सजीवता और शीतलता को बहुत निकट से अनुभव किया था। उस बर्फ को देखकर वे अचानक बोले –
“यही बर्फ तो हिमालय की शोभा है।”
इस सहज किंतु भावप्रवण वाक्य ने लेखक के मन में गहरी स्मृति को जगा दिया। उन्होंने उसी क्षण अपने भीतर कौसानी की यात्रा, वहाँ की पर्वत-श्रृंखलाएँ, बर्फ से ढके शिखर, नील आकाश में घुलती घाटियाँ और हिमालय की अनुपम छवि को पुनः जीवित होते महसूस किया।
लेखक के शब्दों में –
“तत्काल शीर्षक मेरे मन में कौंध गया – ‘ठेले पर हिमालय’।’’
इस साधारण घटना ने लेखक को तीव्र आत्मिक प्रेरणा दी, जिसने उन्हें अपनी पुरानी कौसानी यात्रा को स्मरण करने और उसे रचनात्मक रूप में प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित किया। यही वह क्षण था जहाँ से यह पूरी रचना जन्म लेती है।
यह भी उल्लेखनीय है कि लेखक की कौसानी यात्रा कोई योजनाबद्ध या पर्यटक जैसी यात्रा नहीं थी। बल्कि वे तो सिर्फ हिमालय की बर्फ को करीब से देखने की इच्छा से वहाँ पहुँचे थे। इस इच्छा ने ही उन्हें नैनीताल, रानीखेत, मझकाली होते हुए कौसानी तक पहुँचाया। लेकिन इस अनुभव ने उन्हें केवल बर्फ ही नहीं दिखाई, बल्कि उन्हें प्राकृतिक सौंदर्य, आध्यात्मिक गहराई, आत्मिक शांति और जीवन के रहस्य से भी परिचय कराया।
इस यात्रा में लेखक को हिमालय की जो छवि दिखती है, वह ठेले की बर्फ से भिन्न नहीं है, पर उसकी अनुभूति असाधारण है। जब लेखक पान की दुकान पर खड़ा होकर उस ठेले पर बर्फ को देखता है, तो वह जानता है कि यह वही बर्फ है, जिसे उसने कभी हिमालय की गोद में देखा था। पर अब वह बर्फ एक उपयोग की वस्तु बन चुकी है – बाजार में बिकने वाली, ठेले पर लदी हुई।
यहीं पर लेखक को यह एहसास होता है कि आज के भौतिकवादी युग में हमने ऊँचाइयों और दिव्य अनुभवों को भी बाज़ारू दृष्टि से देखना शुरू कर दिया है। उस ठेले पर लदी बर्फ को देखकर लेखक का मन पिरा उठता है, और उसी पीड़ा से उत्पन्न होता है यह रचनात्मक विचार –
क्या हिमालय जैसा महान और चिरंतन प्रतीक भी अब केवल एक वस्तु भर बनकर रह गया है?
इस प्रकार, यह घटना न केवल एक यात्रा की स्मृति को पुनः जागृत करती है, बल्कि एक दर्शनात्मक चेतना को भी जन्म देती है। यही क्षण लेखक की संवेदनशीलता, स्मृति और रचनाशीलता का मिलन-बिंदु बन जाता है, जो हमें ‘ठेले पर हिमालय’ जैसी अद्भुत रचना देता है।
निष्कर्ष:
इसलिए स्पष्ट है कि लेखक को कौसानी-यात्रा के लिए प्रेरित करने वाली मुख्य घटना पान की दुकान पर ठेले पर बर्फ को देखना और उस पर मित्र की टिप्पणी थी, जिसने लेखक की पुरानी स्मृतियों को जागृत कर दिया। यह दृश्य साधारण था, पर उसकी भावनात्मक गहराई ने लेखक के भीतर छिपी हिमालय की पुकार को पुनः जीवंत कर दिया और यही प्रेरणा बनी इस अनोखी यात्रा-वृत्तांत की नींव।
कौन-सी घटना थी जिसने लेखक को कौसानी-यात्रा के लिए प्रेरित किया? (संक्षेप में )
धर्मवीर भारती द्वारा रचित यात्रा-वृत्तांत ‘ठेले पर हिमालय’ में लेखक ने हिमालय की एक गहरी और आत्मिक स्मृति को साझा किया है। इस रचना में लेखक ने उस विशेष घटना का उल्लेख किया है, जिसने उन्हें कौसानी-यात्रा के लिए प्रेरित किया।
यह घटना एक सामान्य-सी परिस्थिति में घटी, जब लेखक अपने एक उपन्यासकार मित्र के साथ एक पान की दुकान पर खड़ा था। उसी समय वहाँ एक ठेले पर बर्फ की सिलें लादे हुए बर्फ वाला आया। उन बर्फ की सिल्लियों से ठंडी भाप उठ रही थी। बर्फ की चमक और ठंडक देखकर लेखक के मित्र की आँखों में स्मृति और भावुकता तैर उठती है, और वे स्वतः ही कह बैठते हैं:
“यही बर्फ तो हिमालय की शोभा है।”
इस साधारण से वाक्य ने लेखक के भीतर कौसानी यात्रा की गहरी स्मृतियाँ और अनुभूतियाँ जगा दीं। उन्हें वह क्षण याद आया जब उन्होंने पहली बार हिमालय के बर्फीले शिखरों को देखा था। लेखक के अनुसार, यह वही बर्फ थी, जिसने कभी उन्हें हिमालय की दिव्यता, शांति और आत्मिक ऊँचाई का अनुभव कराया था।
इसी क्षण लेखक के मन में कौंधा यह अनोखा और प्रतीकात्मक शीर्षक –
‘ठेले पर हिमालय’
यह घटना केवल एक स्मृति की जागृति नहीं थी, बल्कि एक आंतरिक यात्रा की शुरुआत थी, जहाँ लेखक फिर से अपने भीतर छिपे उस सौंदर्य और अनुभव से जुड़ने को विवश हो गया।
इस प्रकार, पान की दुकान पर बर्फ की सिल्लियों को देखकर लेखक के मित्र द्वारा कही गई एक टिप्पणी ही वह मुख्य घटना थी, जिसने लेखक को कौसानी-यात्रा की प्रेरणा दी और साथ ही ‘ठेले पर हिमालय’ जैसा प्रतीकात्मक शीर्षक भी दिया। यही क्षण इस रचना की आत्मिक और रचनात्मक नींव बन गया।
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