आसरा

कोरोना



                      

      कोरोना की इस तालाबंदी ने 
   हमें संवेदनशील बना दिया है।

हाल ही की बात है मैं और मेरा दोस्त बालकनी  में बैठे थे हम दोनों अपने बचपन के बारे में बात कर रहे थे कि हम अपने परिवार के सदस्यों को कैसे परेशान करते थे।

      तभी हमनें मोहल्ले के डस्टबिन के पास एक गरीब महिला को देखा पहले तो हमने उसे नजरअंदाज किया लेकिन पता नहीं क्यों मन किया कि देखे क्या बात है। मैंने अपने दोस्त से कहा ‘उन बूढ़ी अम्मा की मदद’ करते हैं फिर हम दोनों नीचे गए और उनसे उनकी परेशानी के बारे में पूछा। पूछा कि वे क्या तलाश रही है। वे बोली की उन्होंने 2 दिन से कुछ खाया नहीं है। उनका कोई घर नहीं और इस दुनिया में भी उनका कोई अपना नहीं है। यह सुनकर हमने तुरंत उसी बिल्डिंग में रहने वाले अपने अन्य मित्र को फोन किया और पूछा कि कुछ खाना रखा है या नहीं। मित्र के इंकार से मैं परेशान हो गया। मैंने अपने मित्र से कहा कि जल्दी से कुछ रोटियां बना दे।
           मित्र को लगा कि भूख मुझे लगी है तो उसने आलू के पराठे बनाकर मुझे फोन किया। मैंने सारे पराठों को एक पेपर में लपेटा और एक कटोरी में सब्जी रखकर नीचे के तरफ भागा तब तक मेरा दोस्त उन्हें पानी पिला रहा था मैंने उन्हें खाना दिया और साथ में एक मास्क भी दिया ताकि वह इस महामारी में सुरक्षित रह सके मैंने अपने मकान मालिक से बात की और उन्हें सारी बातें बताई उनसे निवेदन किया कि इन बुजुर्गों को हमारे ही अपार्टमेंट के नीचे रहने दे जब तक ये  लॉकडाउन खत्म ना हो जाए। वे मान गए और उन्हें रहने की जगह दे दी अब अपार्टमेंट के लोगों में प्रतिदिन कोई ना कोई उन्हें खाना देता है और वह खुश होकर सब को आशीर्वाद देती हैं।
                                                            – प्रतीक कलाल


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