देवनागरी लिपि। देवनागरी लिपि की विशेषताएं। देवनागरी लिपि का मानकीकरण। देवनागरी लिपि(devanagari lipi in hindi)
प्रत्येक भाषा की अपनी एक लिपि होती है, जिसमें उस भाषा को लिखा जाता है लिपि का आधार लिखित संकेत होता है हिंदी की लिपि देवनागरी है। देवनागरी लिपि का आविष्कार ब्राह्मी लिपि से हुआ।
देवनागरी लिपि का सर्वप्रथम प्रयोग गुजरात के राजा जय भट्ट के एक शिलालेख में हुआ है। यह लिपि हिंदी प्रदेश के अतिरिक्त महाराष्ट्र व नेपाल में प्रचलित है गुजरात में सर्वप्रथम प्रचलित होने से वहां के पंडित वर्ग अर्थात नगर ब्रह्मांणों के नाम से इसे नागरे कहां गया। देव भाषा संस्कृत में इसका प्रयोग होने से इसके साथ जो शब्द जुड़ गया। देवताओं की उपासना के लिए जो संकेत बनाए जाते थे उन्हें देवनगर कहते थे। वे संकेत लिपि के समान थे वहीं से इसे देवनागरी कहा जाने लगा।
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=> सर्वप्रथम महादेव गोविंद रानाडे ने लिपि सुधार समिति का गठन किया काका कालेलकर ने ‘अ‘ की बारहखड़ी का सुझाव दिया तथा स्वर ध्वनियों के संख्या को कम कर दिया।
=> श्यामसुंदर दास पंचमाक्षर के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग करने का सुझाव दिया। जैसे हिन्दी-हिंदी, कण्ठ-कंठ।
=>हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग (5 अक्टूबर 1941) ने लिपि सुधार हेतु एक बैठक की, जिसमें मात्राओं को उच्चारण क्रम में लगाने तथा छोटी ‘इ‘ की मात्रा को व्यंजन के आगे लगाने का सुझाव पेश किया।
=>वर्ष 1947 प्रदेश सरकार द्वारा गठित समिति के अध्यक्षता नरेंद्र देव ने की जिसमें देवनागरी लिपि से संबंधित निम्न सुझाव पेश किए गए।
‘अ‘ की बारहखड़ी भ्रामक है।
मात्रा यथास्थान रहें, परंतु उन्हें थोड़ा दाहिनी ओर लिखा जाए।
अनुस्वार व पंचमाक्षर के स्थान पर बिंदी (ं) से काम चलाया जाए।
दो तरीकों से लिखें जाने वाले अक्षरों में निम्न अक्षरों को स्वीकार किया जाए। अ,
झ, न, भ, ल
संयुक्त वर्णों क्ष, त्र, ज्ञ, श्र को वर्णमाला में स्थान दिया जाए।
देवनागरी लिपि में
समय-समय पर सुधार होते रहते हैं फारसी की क़, ख़, ग़, ज़, फ़ ध्वनियां को भी देवनागरी लिपि में शामिल कर ली गई है तथा कुछ अंग्रेजी के शब्दों को भी शामिल किया। गया है।
देवनागरी लिपि की विशेषताएं (devnagri lipi ki visheshtaon ka ullekh kijiye)
देवनागरी लिपि की विशेषताएं निम्नलिखित है-
=> देवनागरी लिपि पर प्राय: दोषारोपण होता रहा है कि इस में वर्णों की संख्या अधिक है, परंतु वास्तविकता तो यह है कि यहां वर्णमाला का वर्गीकरण अत्यंत वैज्ञानिक है। इसके वर्ण सभी ध्वनियों को प्रस्तुत करने में सक्षम हैं। पूरी वर्णमाला पहले स्वर, फिर व्यंजन में वर्गीकृत हैं। स्वरों का वर्गीकरण भी एक स्वर वर्ण के पश्चात दीर्घ वर्ण निश्चित है;
जैसे अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अ:
=> व्यंजन वर्णों का वर्गीकरण कण्ठ्य, तालव्य, मूर्धन्य, दंत्य, ओष्ठ्य, अन्त:स्थ, ऊष्म, संयुक्त व्यंजन व द्विगुण व्यंजनों के रूप में वर्गीकृत हैं। पुनः व्यंजनों को अल्पप्राण महाप्राण अघोष व सघोष में वर्गीकृत किया गया है ऐसी विशेषता किसी अन्य लिपि में नहीं पाई जाती है।
=> स्वर ध्वनियों के उच्चारण में किसी अन्य ध्वनि की सहायता नहीं लेनी पड़ती परंतु व्यंजन के उच्चारण में अन्य ध्वनि की सहायता लेनी पड़ती है।
=> इस लिपि में शब्दों को लिखने के क्रम में स्वर और व्यंजन वर्ण अलग-अलग नहीं लिखे जाते हैं बल्कि संयुक्त होकर पूर्ण अक्षर का निर्माण करते हैं जैसे कमल, कलम।
=> अक्षरा तमक लिपि में वर्ण के ऊपर नीचे दाएं बाएं कहीं भी मात्राओं का प्रयोग हो सकता है परंतु उच्चारण पहले वर्ण का होगा और उसके पश्चात मात्राएं उच्चारित होगी जैसे: कोमल, कुम्हार, कोयल, किताब
=> देवनागरी लिपि में सभी ध्वनियों को अंकित करने की क्षमता है परंतु रोमन लिपि में ऐसा नहीं है जैसे ण, न के लिए N अक्षर द ड के लिए D अक्षर
=> देवनागरी लिपि में प्रत्येक ध्वनि के लिए एक निश्चित वर्ग है तथा प्रत्येक वर्ग से एक निश्चित ध्वनि भी निकलती है। ऊष्म व्यंजन श, ष, से को लेकर सजग रहे तो अंतर स्पष्ट है की तालव्य ‘श‘ मुर्धन्य ‘ष‘ व दंत्य ‘स‘ का प्रयोग अलग-अलग है।
=> राजधानी के लिए 4 व प्रतीक एक ही वर्ण के चार कॉर्नीय परिवर्तन मात्र है राम, कृति, कर्म, ग्राम
=> C से ‘क‘ , A से ‘अ‘ तथा आ ए तीनों ध्वनि निकलती है जैसे;- Cake, Cat, Car, Bat.
=>देवनागरी लिपि में प्रत्येक वर्ण के लिए निश्चित उच्चारण है परंतु रोमन लिपि में एक ही वर्ण अलग-अलग शब्दों के साथ अलग-अलग उच्चारण देता है;
जैसे Call – कॉल में C ‘क‘ का उच्चारण देती है।
City – सिटी में C ‘स‘ का उच्चारण देती है।
=> देवनागरी लिपि में साइलेंट लेटर जैसे समस्या नहीं है परंतु रोमन लिपि में ऐसी समस्या है। रोमन लिपि में शब्द कुछ और लिखते हैं तथा उच्चारित कुछ और होते हैं;
जैसे Knowledge में K साइलेंट लेटर W व D भी साइलेंट लेटर है
Knife में K साइलेंट है।
=> देवनागरी लिपि के सभी वर्णों को लिखना आसान है। देवनागरी लिपि के वर्णों को लिखने के लिए एक पड़ी रेखा, एक खड़ी रेखा और एक अर्धवृत्त का सहारा ही काफी होता है।
=>देवनागरी लिपि एक वैज्ञानिक लिपि है शिरोरेखा के कारण भी देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता स्पष्ट होती है क्योंकि इसके कारण वर्ण व शब्दों के बीच अंतर किया जा सकता है।
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देवनागरी लिपि का मानकीकरण (devnagri lipi ka mankikaran in hindi)
देवनागरी नागरी लिपि विश्व के अन्य देशों की तुलना में वैज्ञानिक है।किसी भी लिपि के आदर्श होने के लिए निम्नलिखित शर्ते होना अनिवार्य हैं।
१. वह लिपि दुनिया के किसी भी भाषा को अंतरित करने की क्षमता रखती हो।
२. प्रत्येक ध्वनि के लिए स्वतंत्र वर्ण प्रतीक हो।
३. किसी वर्ण प्रतीक से एक से अधिक ध्वनि उच्चारित न हो।
४. शब्दों को लेकर लिपि अर्थभेद ना हो।
५. उस लिपि में भूमंडल की नीति होने की अर्हता हो।
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर देवनागरी लिपि निश्चित तौर पर वैज्ञानिक है, परंतु कुछ समस्याओं के कारण यह मानकीकरण की दिशा में उलझी हुई है इसकी मानकता के लिए कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं –
१. शिरोरेखा के प्रयोग को अनिवार्य कर देना चाहिए। इससे वर्णों के बीच भेद किया जा सकेगा। शिरोरेखा के अभाव में ध-घ, ख-व, र-व, म-भ का अंतर स्पष्ट नहीं हो पाता।
२. ध्वनियों के उच्चारण में एकरूपता अति आवश्यक हैं। इस लिपि के वनों की द्विरूपता को समाप्त कर देना चाहिए जैसे; अ श्र था ण झ ट ल क्त त त्र आदि।
३. संयुक्त वर्णों का प्रयोग संयोग लेखन उच्चारण लाघवता व तीव्रता को दर्शाता है। इसे भी बनाए रखा जाए जैसे क्ष त्र ज्ञ आदि
४. वर्णों को संयुक्त करने की प्रक्रिया चाहे आस-पास हो या ऊपर नीचे दोनों ही स्थितियों में वैज्ञानिक है जैसे मिट्टी ,लट्टू
५. ‘र‘ ध्वनि के चारों प्रयोग वस्तुतः अलग-अलग न होकर ‘र‘ के को कोणीय परिवर्तन मात्र है। इनका प्रयोग हुबहू किया जाए।
६. ‘र‘ का चौथा प्रयोग मूर्धन्य वर्णों में किया जाता है राष्ट्र ट्रक ड्रम आदि
७. संज्ञा शब्दों के अंत में ‘ई‘का प्रयोग होना चाहिए यी का नहीं; जैसे भलाई पिटाई कमाई पढ़ाई आदि।
८. नासिक ध्वनियों एवं उन में प्रयुक्त वर्ण प्रतीकों के संयोग को लेकर यदि सजग रहा जाए तो इनमें से किसी प्रयुक्त को हटाने की जरूरत नहीं है। ये सभी प्रतीक एक दूसरे से अलग हुआ अर्थभेदक हैं। नासिक वर्णों को अनुस्वार तथा अनुनासिक में बांटा जाता है। अनुस्वार ध्वनियों के उच्चारण में नाक की भूमिका होती है जबकि अनुनासिक ध्वनियों के उच्चारण में नाक और मुख दोनों का सहयोग होता है।
९. अनुस्वार ध्वनियों के उच्चारण में बिंदी या बिंदु के प्रतीक का उपयोग होता है जबकि अनुनासिक ध्वनियों के लिए अर्थ चंद्रबिंदु का प्रयोग होता है।
१०. अनुस्वार धनिया प्रत्येक वर्ण के पंचम अक्षरों के रूप में ही जानी जाती है जबकि अनुनासिक ध्वनियां अलग-अलग होती है। अनुस्वर ध्वनियों या पंचम अक्षरों के लिए प्रति स्थापक प्रतीक बिंदी या बिंदु के अतिरिक्त कहीं कहीं अर्द्ध पंचमाक्षर का प्रयोग भ्रम का कारण हो सकता है परंतु या प्रयोग वैज्ञानिक है।
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