भारतेंदु युग की विशेषताएं लिखिए।।भारतेंदु युग की प्रवृत्तियां बताइए

भारतेंदु युग की विशेषताएं लिखिए।।भारतेंदु युग की प्रवृत्तियां बताइए

भारतेंदु युग: आधुनिक हिंदी साहित्य का प्रथम युग

हिंदी साहित्य के इतिहास में भारतेंदु युग (1868-1900) को आधुनिक हिंदी साहित्य का प्रथम युग माना जाता है। यह वह समय था जब भारतीय समाज में नवजागरण (Renaissance) की लहर चल रही थी और हिंदी साहित्य में नए विचारों, नवीन विषयों और आधुनिक दृष्टिकोण का समावेश हो रहा था। इस युग का नेतृत्व भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने किया, जिनके योगदान के कारण इस युग को “भारतेन्दु युग” कहा जाता है।

इस युग में कवियों और लेखकों ने साहित्य को केवल मनोरंजन का साधन न मानकर, उसे समाज सुधार और राष्ट्रीय चेतना जागृत करने का एक प्रभावशाली माध्यम बनाया। साहित्य में नवीन विचारधाराओं का समावेश हुआ, जिससे सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक विषयों पर रचनाएँ लिखी जाने लगीं।

 

भारतेंदु युग की विशेषताएं
भारतेंदु युग की विशेषताएं

 

 भारतेंदु युग की विशेषताएं

भारतेंदु युग ही आधुनिककालीन साहित्यरूपी विशाल भवन की आधारशिला है। विद्वानों मैं भारत भारतेंदु युग की समय-सीमा सन् 1857 से सन् 1900 तक स्वीकार की है, भाव, भाषा, शैली आदि सभी दृष्टियों से इस योग में हिंदी साहित्य की उन्नति हुई । हिंदी साहित्य के आधुनिककालीन भारतेंदु युग प्रवर्तक के रूप में भारतेंदु हरिश्चंद्र का नाम लिया जाता है। यह राष्ट्रीय जागरण के अग्रदूत थे। उनके युग में रीतिकालीन परिपाटी की कविता का अवसान राष्ट्रीय एवं समाज सुधार भावना की कविता का उदय हुआ। उन्होंने कवियों का एक ऐसा मंडल तैयार किया, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से नवयुग की चेतना को अभिव्यक्ति प्रदान की। भारतेंदुयुगीन साहित्य की विशेषताएं निम्नलिखित है-

(1) राष्ट्रप्रेम का भाव

(2) जनवादी विचारधारा

(3) हास्य- व्यंग्य की प्रधानता

(4) प्राकृति- वर्णन

(5) गद्य एवं उनकी अन्य विधाओं का विकास

(6) छंद-विधान की नवीनता

(7) भारतीय संस्कृति का गौरवगान

(8) नवजागरण और सामाजिक चेतना

(9) देशभक्ति और राजभक्ति

(10) भाषा और शैली का विकास

(11) पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका

(1) राष्ट्रप्रेम का भाव :

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के परिणामस्वरुप भारतवासियों में सोई हुई आत्मशक्ति के जागरण के साथ ही राजनीतिक अधिकारों के प्रति लालसा बढ़ी, जिससे उनमें राष्ट्रीयता के भाव का उदय होना स्वाभाविक था। इसका प्रभाव इस युग की रचनाओं पर भी पड़ा। इस युग के रचनाकारों की रचनाओं में देशभक्ति का स्वर विशेष रूप से गुंजायमान है।

(2) जनवादी विचारधारा:

भारतेंदु युग का साहित्य पुराने ढांचे से संतुष्ट नहीं है वे उनमें बदलाव कर यह सुधार कर उसमें नयापन लाने का प्रयास किये है इस काल का साहित्य केवल राजनीतिक स्वाधीनता का साहित्य ना होकर मनुष्य की एकता, समानता और भाईचारे का भी साहित्य है।

(3) हास्य- व्यंग्य की प्रधानता :

इस योग में प्राय: सभी रचनाकारों की रचनाओं में हास्य- व्यंग्य का पुट मिलता है। अंधविश्वासों, रूढ़ियों, छुआछूत, अंग्रेजी शासन, पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण आदि पर व्यंग्य करने के लिए इन रचनाकारों ने विषय एवं शैली के नए-नए प्रयोग किए जो इनकी रचनाओं में लक्षित है ‌

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(4) प्राकृति- वर्णन:

इस योग के अधिकांश कवियों ने अपने काव्य में प्रकृति को विषय के रूप में ग्रहण किया है। उनके प्राकृतिक- वर्णन में श्रृंगारिक भावनाओं की प्रधानता है। भारतेंदु की ‘बसंत होली’,अंबिकादत्त व्यास की ‘पावन पचासा’तथा प्रेमधन की ‘मयंक महिला’ आदि इसी कोटि की रचनाएं हैं।

(5) गद्य एवं उनकी अन्य विधाओं का विकास:

भारतेंदु युग की सबसे महत्वपूर्ण देन है गद्य व उसके अन्य विधाओं का विकास। इस युग में पद्य के साथ गद्य विधा प्रयोग में आयी जिससे मानव के बौद्धिक चिंतन का भी विकास हुआ। कहानी, नाटक ,आलोचना आदि विधाओं के विकास की पृष्ठभूमि का भी यही योग रहा है।

(6) छंद-विधान की नवीनता:

भारतेंदु ने जातीय संगीत का गांवों में प्रचार के लिए ग्राम्य छंदों-कजरी, ठुमरी, लावनी, कहरवा तथा चैती आदि को अपनाने पर जोर दिया। कवित्त सवैया ,दोहा जैसे परंपरागत छंदों के साथ-साथ इनका भी जमकर प्रयोग किया गया।

(7) भारतीय संस्कृति का गौरवगान:

भारतीय सभ्यता और संस्कृति की अपेक्षा पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति को उच्च बताने वालों के विरुद्ध व्यंग्य और हास्यपूर्ण रचनाएं लिखी गयीं। भारत के गौरवमय अतीत को भी कविता का विषय बनाया गया।

(8) नवजागरण और सामाजिक चेतना

भारतेन्दु युग सामाजिक जागरूकता का युग था। इस काल के साहित्य में राष्ट्रप्रेम, सामाजिक सुधार, नारी शिक्षा, जातिवाद, कुरीतियों का विरोध, वैज्ञानिक सोच आदि विषयों को प्रमुखता दी गई। इस युग की रचनाओं में तत्कालीन समाज की समस्याओं को दर्शाने का प्रयास किया गया।

(9) देशभक्ति और राजभक्ति

इस युग में देशभक्ति और राजभक्ति को साहित्य का महत्वपूर्ण विषय बनाया गया। तत्कालीन कवियों और नाटककारों ने ब्रिटिश शासन के प्रति विरोध और राष्ट्रीय चेतना को अपनी रचनाओं में अभिव्यक्त किया। उदाहरण के लिए, भारतेन्दु हरिश्चंद्र की रचनाएँ देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत थीं।

(10) भाषा और शैली का विकास

  • काव्य में ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ, जो उस समय की लोकप्रिय काव्य भाषा थी।
  • गद्य लेखन के लिए खड़ी बोली हिंदी का प्रयोग बढ़ा, जिससे हिंदी गद्य का विकास हुआ।
  • इस युग में पत्रकारिता, नाटक, निबंध, कहानी और उपन्यास जैसी गद्य विधाओं को विशेष महत्व मिला।

(11) पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका

इस युग में अनेक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ, जिन्होंने हिंदी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन पत्रिकाओं के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को उठाया गया। प्रमुख पत्र-पत्रिकाएँ थीं:

  • हरिश्चंद्र मैगज़ीन (भारतेन्दु हरिश्चंद्र)
  • बाला बोधिनी (भारतेन्दु हरिश्चंद्र)
  • उचित वचन (बद्रीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’)
  • कवि वचन सुधा (प्रताप नारायण मिश्र)

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भारतेंदु युग के प्रमुख साहित्यकार एवं उनकी रचनाएँ

1. भारतेन्दु हरिश्चंद्र (1850-1885)

भारतेन्दु हरिश्चंद्र इस युग के प्रमुख कवि, नाटककार और पत्रकार थे। उन्होंने हिंदी गद्य और नाटक को समृद्ध किया। उनकी रचनाएँ सामाजिक जागरूकता, देशभक्ति और समाज सुधार से जुड़ी थीं।

  • काव्य रचनाएँ: प्रेम फुलवारी, प्रेम सरोवर, वेणु गीति, प्रेम मल्लिका
  • नाटक: भारत दुर्दशा, अंधेर नगरी
  • निबंध एवं गद्य: नाटक

2. प्रताप नारायण मिश्र (1856-1894)

प्रताप नारायण मिश्र एक प्रसिद्ध कवि, पत्रकार और नाटककार थे। उनकी भाषा सरल, प्रवाहमयी और व्यंग्यात्मक थी।

  • काव्य संग्रह: श्रृंगार विलास, प्रेम पुष्पावली, मन की लहर
  • पत्रिका: ‘ब्राह्मण’ पत्रिका का संपादन

3. बद्रीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ (1856-1927)

इनकी रचनाओं में समाज सुधार, राष्ट्रप्रेम और आध्यात्मिकता का समावेश मिलता है।

  • रचनाएँ: आनन्द अरुणोदय, जीर्ण जनपद, लालित्य लहरी

4. जगमोहन सिंह

जगमोहन सिंह इस युग के प्रसिद्ध कवि थे, जिन्होंने भक्ति, श्रृंगार और सामाजिक विषयों पर रचनाएँ लिखीं।

  • रचनाएँ: देवयानी, प्रेम सम्पत्ति लता, श्यामा सरोजिनी

5. राधाचरण गोस्वामी

राधाचरण गोस्वामी धार्मिक और भक्ति काव्य के लिए प्रसिद्ध थे।

  • रचनाएँ: नवभक्त माल

6. अम्बिका दत्त व्यास

अम्बिका दत्त व्यास ने धार्मिक और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने वाली कविताएँ लिखीं।

  • रचनाएँ: भारत धर्म, हो हो होरी, पावस पचासा

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भारतेंदु युग का प्रभाव और द्विवेदी युग से संबंध

  • भारतेंदु युग ने द्विवेदी युग (1900-1920) की नींव रखी।
  • इस युग के साहित्यकारों ने समाज सुधार, राष्ट्रप्रेम और खड़ी बोली गद्य को विकसित किया, जिसे द्विवेदी युग में आगे बढ़ाया गया।
  • द्विवेदी युग के लेखक जैसे महावीर प्रसाद द्विवेदी ने भारतेंदु युग की परंपराओं को अपनाकर साहित्य को नई दिशा दी।

निष्कर्ष

भारतेंदु युग हिंदी साहित्य का प्रथम आधुनिक युग था, जिसने भाषा, शैली, विचारधारा और विषय-वस्तु में क्रांतिकारी बदलाव किए। यह युग केवल साहित्य तक सीमित नहीं था, बल्कि इसने सामाजिक और राजनीतिक चेतना को भी जागरूक किया। इस युग की देन हिंदी साहित्य के विकास में मील का पत्थर साबित हुई और इसी के आधार पर आगे के साहित्य युगों का निर्माण हुआ। भारतेंदु युग की रचनाओं की सबसे बड़ी विशेषता है प्राचीन और नवीन का समन्वय। भारतेंदुयुगीन साहित्यकार कविता ब्रजभाषा और गद्य में खड़ी बोली के पक्षपाती थे। ब्रज भाषा में वे एक साथ भक्ति और श्रृंगार की कविता लिखकर प्राचीन कवियों की कोटी मैं पहुंचते हैं और नवीन ढंग की देशभक्ति तथा समाज सुधार की कविताएं लिखकर नहीं कवियों का नेतृत्व करते हैं।


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