बालक के विकास में वंशानुक्रम का प्रभाव (Effect of Heredity on Child Development ) balak ke vikas mein vanshanukram ka prabhav


बालक के विकास में वंशानुक्रम का प्रभाव
(Effect of Heredity on Child Development)

परिचय:
बाल विकास एक जटिल प्रक्रिया है, जो कई कारकों पर निर्भर करती है। इनमें प्रमुख हैं – पर्यावरण (Environment) और वंशानुक्रम (Heredity)। वंशानुक्रम वह जैविक प्रक्रिया है जिसके द्वारा माता-पिता के गुण बालक में स्थानांतरित होते हैं। बालक के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और भावनात्मक विकास पर वंशानुक्रम का गहरा प्रभाव होता है। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि बालक के विभिन्न पहलुओं के विकास में वंशानुक्रम की क्या भूमिका होती है।

बालक के विकास को प्रभावित करने वाले अनेक कारक होते हैं, जिनमें वंशानुक्रम (Heredity) एक अत्यंत महत्वपूर्ण कारक है। वंशानुक्रम वह जैविक प्रक्रिया है जिसके द्वारा माता-पिता के गुण, विशेषताएँ और प्रवृत्तियाँ संतान में स्थानांतरित होती हैं। यह प्रक्रिया जन्म के समय ही तय हो जाती है और बालक के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और व्यवहारिक विकास पर गहरा प्रभाव डालती है।

बालक के विकास पर वंशानुक्रम का प्रभाव / बालक के विकास में वंशानुक्रम का महत्व:-

१. मूल शक्तियों पर प्रभाव:-

थार्नडाइक का मत है कि बालक के मूल शक्तियों का प्रधान कारण उसका वंशानुक्रम है वंशानुक्रम के कारण जन्मजात क्षमताओं में अंतर होता है। शिक्षक इस बात को ध्यान में रखकर कम प्रगति करने वाले बालकों को अधिक प्रगति करने में सहयोग दे सकते हैं।

२. शारीरिक लक्षणों (गुणों) पर प्रभाव:-

वंशानुक्रम के कारण बालकों में शारीरिक विभिन्नताएं होती है जैसे बच्चों की लंबाई, हड्डियां, दांत, रंग चेहरा, बालों का स्वरूप तथा आंखों का रंग।
शिक्षक इस ज्ञान को जानकर उनके शारीरिक विकास में सहयोग दे सकते हैं।

३. बुद्धि पर प्रभाव:-

मनोवैज्ञानिकों का मत है कि बुद्धि के सृष्टिता का कारण प्रजाति है। यही कारण है कि अमेरिका के श्वेत प्रजाति अफ्रीका के नीग्रो प्रजाति से श्रेष्ठ हैं इसी प्रकार भारतीय समाज में भी ब्राह्मण प्रजाति में अध्ययन शीलता क्षत्रियों में युद्ध प्रियता का गुण अधिक दिखाई देता है। वंशक्रम पूर्वजों के बुद्धि तत्व का हस्तांतरण भी बालक में करता है। प्रतिभा संपन्न साधारण एवं निम्न तथा हीन बुद्धि के लोग जन्मजात होते हैं। ऐसे बालको में वातावरण कम ही संशोधन करता है।
शिक्षा वंशक्रम के ज्ञान से अवगत होकर बालक के विकास में योगदान दे सकता है।

४. व्यवसायिक योग्यता पर प्रभाव:-

कैटल का मत है की वंशानुक्रम के कारण बालक में विशेष प्रकार की योग्यताओं का विकास होता है जिसके कारण विभिन्न विषयों में उसकी योग्यता कम क्या अधिक दिखाई देती है। जैसे ब्राह्मण पूजा पाठ करने में निपुण होते हैं मड़वाड़ी व्यवसाई में निपुर्ण होते हैं।
अतः वंश क्रम के ज्ञान से शिक्षक बालकों की विभिन्न व्यवस्थाओं में रुचि का अध्ययन करके इन के अनुरूप शिक्षा व्यवस्था कर इनके विकास में सहयोग कर सकता है।

५. व्यक्तिगत विभिन्नता पर प्रभाव:-

वंशानुक्रम व्यक्तिगत विभिन्नता का सबसे महत्वपूर्ण कारण है रूसो पीयरसन एवं डाल्टन ऐसा मानना है कि व्यक्तियों की शारीरिक मानसिक एवं चारित्रिक विभिन्नता का एकमात्र कारण उसका वंशानुक्रम है।
शिक्षक इन विभिन्नताओं का अध्ययन करके इन के अनुरूप शिक्षा का आयोजन कर सकता है।

६. सामाजिक विकास पर प्रभाव:-

विनशिप का मत है कि गुणवान प्रतिष्ठित माता-पिता की संतान प्रतिष्ठा प्राप्त करती है उदाहरण के रूप में हम देख सकते हैं नेता, अभिनेता ऐसे माता-पिता की संतान भी नेताएवं अभिनेता बनकर मन प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं जैसे पृथ्वीराज कपूर के वंशज स्वर्गीय राजीव गांधी एवं सोनिया गांधी के पुत्र राहुल गांधी।
शिक्षक बालक के वंशानुक्रम के ज्ञान से उसके विशिष्ट योग्यताओं एवं क्षमताओं को पहचान कर उनके विकास में योगदान दे सकता है।

७. चरित्र पर प्रभाव:-

डगडेल का मत है कि चरित्रहीन माता पिता की संतान चरित्रहीन होती हैं शिक्षक अपने छात्रों की सही जानकारी रखकर बुरी प्रवृत्तियों को सुधारने या बदलने में सहयोग कर सकता है और उसकी अच्छी प्रवृत्तियों को उभार कर उसे आगे बढ़ा सकता है जैसे चोर पिता के बालक को सही शिक्षा एवं उचित मार्गदर्शन द्वारा चोर बनने से रोका जा सकता है।

८. सीखने की क्षमता पर प्रभाव:-

वंशानुक्रम के कारण बालक के सीखने की योगिता में अंतर होता है। गोडार्ड ने कालीकट नामक एक सैनिक के वंशजों का अध्ययन करके यह सिद्ध किया कि मंदबुद्धि वाले माता-पिता की संतान मंदबुद्धि और तीव्र बुद्धि माता पिता की संतान तीव्र बुद्धि वाली होती है।
शिक्षक इस जान से अवगत होकर मंद एवं तीव्र बुद्धि वाली बालकों की क्षमता अनुसार शिक्षण विधियां पद्धतियों का प्रयोग करके बालक के विकास में अपना सहयोग दे सकता है।

९. विशिष्ट योग्यता पर प्रभाव:-

बालकों को वंशानुक्रम से कुछ प्रवृतियां प्राप्त होती है जो वांछनीय और अवांछनीय जो प्रकार की होती है बालक के शारीरिक, मानसिक लक्षण उनके खेलकूद संबंधी योग्यता गणित संबंधी कुशलता नेतृत्व का गुण यह सभी बातें उसके वंशानुक्रम पर निर्भर करती है। शिक्षक बालकों में वांछनीय प्रवृत्तियों का वामन या रूपांतरण कर सकता है। वह बालक को उसके मानसिक स्तर के अनुरूप आगे बढ़ा सकता है।

१०.स्वभाव पर प्रभाव:- 

माता पिता के स्वभाव संतान में वंश ग्राम के कारण होते हैं। आन्तरिक प्रेरक तत्व तथा संवेगों का निर्धारण वंशक्रम के द्वारा होता है। इनसे बालक के व्यवहार का निश्चित स्वरूप होता है। बालक का स्वभाव – जैसे गुस्सैल, शांत, शर्मीला, जिज्ञासु – भी वंशानुगत होता है। माता-पिता की भावनात्मक और मानसिक स्थिति उनके बच्चों में भी झलकती है। इसलिए शिक्षक को इस पहलू को ध्यान में रखकर शिक्षण कार्य करना चाहिए।

११ . भाषा विकास पर वंशानुक्रम का प्रभाव

बालक की भाषा सीखने की प्रारंभिक क्षमता भी उसके वंशानुक्रम पर निर्भर करती है। कुछ बालक बहुत कम उम्र में स्पष्ट बोलने लगते हैं, जबकि कुछ को भाषा पकड़ने में समय लगता है। यह अंतर उनके बोलने की जैविक योग्यता से जुड़ा होता है जो उन्हें जन्म से प्राप्त होती है।

१२ . रचनात्मकता (Creativity) पर प्रभाव

कई अध्ययन यह दर्शाते हैं कि रचनात्मक प्रवृत्तियाँ – जैसे चित्र बनाना, संगीत में रुचि, लेखन क्षमता – भी आनुवांशिक रूप से प्राप्त होती हैं। रचनात्मक माता-पिता के बच्चों में कल्पनाशीलता अधिक देखने को मिलती है।

१३ . रोग प्रतिरोधक क्षमता पर प्रभाव

बालक की रोगों से लड़ने की क्षमता यानी इम्यून सिस्टम भी वंशानुगत होता है। यदि माता-पिता की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत रही है, तो बालक में भी वह शक्ति पाई जाती है। इससे बालक का शारीरिक स्वास्थ्य और विकास प्रभावित होता है।

१४ . संवेगात्मक विकास पर प्रभाव

संवेदनशीलता, भावनात्मक स्थिरता, सहानुभूति और आत्मनियंत्रण जैसी विशेषताएं भी आनुवांशिक रूप से जुड़ी होती हैं। कुछ बच्चे अधिक भावुक होते हैं जबकि कुछ संतुलित व्यवहार वाले। यह भावनात्मक प्रवृत्तियां वंशानुक्रम से मिलती हैं।

१५ . नेतृत्व क्षमता पर प्रभाव

नेतृत्व एक जन्मजात गुण हो सकता है। कुछ बच्चों में समूह को मार्गदर्शन देने, निर्णय लेने और पहल करने की प्रवृत्ति बचपन से ही दिखती है। यह प्रवृत्ति भी अक्सर वंश पर आधारित होती है

१६ . नैतिक मूल्यों की प्रवृत्ति पर प्रभाव

कुछ बच्चों में नैतिक निर्णय लेने की प्रवृत्ति बहुत प्रारंभ से ही देखी जाती है, जो उनके वंशानुक्रम में समाहित मूल्यों का संकेत देती है। यदि परिवार में उच्च नैतिकता रही है, तो बालक में भी इसका बीज होता है।

17. मोटर स्किल्स (Motor Skills) पर प्रभाव

बच्चों की सूक्ष्म व स्थूल मोटर स्किल्स (जैसे दौड़ना, पकड़ना, लिखना) भी वंशानुगत कारकों पर निर्भर करती हैं। यह देखा गया है कि खेलों में दक्ष माता-पिता के बच्चे भी खेलकूद में रुचि लेते हैं और शारीरिक रूप से अधिक सक्रिय होते हैं।

18. जोखिम लेने की प्रवृत्ति पर प्रभाव

कुछ बालक नए कामों को करने में उत्साहित रहते हैं, उन्हें प्रयोग करने में आनंद आता है, जबकि कुछ बालक डरपोक या झिझकने वाले होते हैं। यह रिस्क-टेकिंग बिहेवियर भी वंशानुगत कारकों से प्रभावित होता है।

19. सामाजिक व्यवहार (Social Behavior) पर प्रभाव

किसी बालक का दूसरों से घुलने-मिलने की प्रवृत्ति, टीम वर्क या सहयोगिता का भाव, परिवार और समाज में अपनापन आदि व्यवहार उसके माता-पिता के स्वभाव से मेल खाते हैं।

20. आत्मविश्वास पर प्रभाव

आत्मविश्वास एक मानसिक स्थिति है, जो वंशानुक्रम और पालन-पोषण दोनों से बनती है। जिन परिवारों में आत्मविश्वासी लोग होते हैं, वहां के बच्चे भी आमतौर पर आत्मविश्वासी होते हैं। शिक्षक ऐसे बच्चों को पहचान कर उनके आत्मबल को सही दिशा दे सकते हैं।

निष्कर्ष:

बालक के संपूर्ण विकास—शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, नैतिक और सामाजिक—में वंशानुक्रम की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। हालांकि यह अंतिम निर्धारक नहीं है, लेकिन यह बालक की प्रारंभिक क्षमताओं का आधार बनाता है। शिक्षक और अभिभावक वंशानुक्रम के महत्व को समझकर बालक के सर्वांगीण विकास में अपनी भूमिका निभा सकते हैं।

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