व्यक्तित्व की प्रकृति, व्यक्तित्व का स्वरूप, Nature of Personality in Hindi
व्यक्तित्व का स्वरूप
यद्यपि व्यक्तित्व शब्द बहुत व्यापक है और व्यक्तित्व शब्द का प्रयोग हम विभिन्न अर्थों में करते हैं। परंतु जब आप कहते हैं कि राम का व्यक्तित्व अच्छा है तब प्रायः इसका तात्पर्य होता है राम की शारीरिक रचना बड़ी ही सुंदर है, वह देखने में स्वस्थ सुंदर और युवा है। किंतु यह विचार उन्हीं लोगों का है जो लोक सेवा आयोग के चुनाव मंडल के समक्ष उपस्थित होते हैं। उनके अनुसार यदि कोई व्यक्ति सुंदर है अपने विचारों को व्यक्त कर सकता है दूसरों को अपने ढंग से आकर्षित कर सकता है तो वह अवश्य ही सफल हो सकता है क्योंकि यह सब एक अच्छे व्यक्ति के गुण समझे जाते हैं। परंतु वास्तविक रूप में या विचार त्रुटिपूर्ण है। यह तो सत्य है कि व्यक्तित्व के अंदर ये सभी बातें सम्मिलित है किंतु कुछ शेष बातें और भी हैं जो हमारे कथन की “राम का व्यक्तित्व अच्छा है” में अंतर्निहित थे।
इसे भी पढ़िए: व्यक्तित्व के गुण
व्यक्तित्व की प्रकृति (Nature of Personality in Hindi)
व्यक्तित्व (Personality) किसी व्यक्ति की संपूर्ण मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक और सामाजिक विशेषताओं का संयोजन है, जो उसे अन्य व्यक्तियों से अलग बनाता है। यह केवल बाहरी गुणों या रूप-रंग तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यक्ति के व्यवहार, दृष्टिकोण, सोचने के तरीके, भावनाओं और अनुकूलन की क्षमता का भी प्रतिनिधित्व करता है।
मनुष्य के जीवन में व्यक्तित्व का बहुत अधिक महत्व है क्योंकि यह उसके सामाजिक संबंधों, कार्यशैली और जीवन के प्रति दृष्टिकोण को प्रभावित करता है। यह एक जटिल और बहुआयामी संरचना है, जो आनुवंशिकी, पर्यावरण, संस्कृति और व्यक्तिगत अनुभवों के प्रभाव से विकसित होती है।
व्यक्तित्व की प्रकृति को समझने के लिए हमें इसके विभिन्न पहलुओं पर गहराई से विचार करना होगा।
व्यक्तित्व की परिभाषाएँ
अलग-अलग मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व को विभिन्न दृष्टिकोणों से परिभाषित किया है:
- गॉर्डन ऑलपोर्ट (Gordon Allport) – “व्यक्तित्व व्यक्ति के उन गतिशील मानसिक और शारीरिक तंत्रों का संगठन है, जो उसके वातावरण के साथ अनुकूलन का निर्धारण करता है।”
- फ्रॉयड (Sigmund Freud) – “व्यक्तित्व तीन घटकों – इड (Id), ईगो (Ego) और सुपरईगो (Superego) – के बीच संघर्ष का परिणाम है।”
- जॉन वाटसन (John Watson) – “व्यक्तित्व मुख्य रूप से व्यक्ति के व्यवहार का प्रतिरूप (Pattern of Behavior) है, जो उसके अनुभवों और शिक्षा के आधार पर विकसित होता है।”
- कैरेल रोजर्स (Carl Rogers) – “व्यक्तित्व व्यक्ति की आत्म-संरचना (Self-Structure) से बनता है, जो उसके अनुभवों और आत्मबोध (Self-Concept) पर निर्भर करता है।”
इन परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि व्यक्तित्व केवल व्यक्ति की आंतरिक विशेषताओं तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह उसके बाहरी व्यवहार, सोचने के तरीके और सामाजिक अनुकूलन से भी जुड़ा हुआ है।
व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषताएँ (Characteristics of Personality in Hindi) व्यक्तित्व की प्रकृति
व्यक्तित्व मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण और जटिल पहलू है, जो व्यक्ति की संपूर्ण मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक और सामाजिक विशेषताओं को दर्शाता है। यह केवल बाहरी गुणों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि व्यक्ति के व्यवहार, दृष्टिकोण, सोचने के तरीके और अनुकूलन क्षमता का भी प्रतिनिधित्व करता है।
व्यक्तित्व की प्रकृति को बेहतर समझने के लिए इसकी प्रमुख विशेषताओं को जानना आवश्यक है। ये विशेषताएँ यह दर्शाती हैं कि किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व कैसे विकसित होता है, किन तत्वों से प्रभावित होता है, और समय के साथ इसमें किस प्रकार परिवर्तन आता है।
1. व्यक्तित्व एक गतिशील प्रक्रिया है
व्यक्तित्व एक स्थिर या अपरिवर्तनीय तत्व नहीं है, बल्कि यह लगातार विकसित होता रहता है। व्यक्ति के अनुभव, समाज के प्रभाव, पारिवारिक परिवेश और आत्मचेतना के कारण इसमें समय-समय पर बदलाव आते रहते हैं।
- बचपन में व्यक्ति की रुचियाँ, आदतें और मूल प्रवृत्तियाँ विकसित होती हैं।
- किशोरावस्था में सामाजिक प्रभाव, शिक्षा और भावनात्मक परिवर्तनों के कारण व्यक्तित्व अधिक स्पष्ट रूप से उभरता है।
- युवावस्था में जीवन के अनुभवों और परिस्थितियों से व्यक्ति की सोच और व्यवहार में परिपक्वता आती है।
- वृद्धावस्था में अनुभवों का सार और जीवन दर्शन व्यक्ति के व्यक्तित्व को नई दिशा देता है।
इस प्रकार, जन्म से मृत्यु तक व्यक्तित्व में निरंतर परिवर्तन होता रहता है।
2. व्यक्तित्व अद्वितीय (Unique) होता है
हर व्यक्ति का व्यक्तित्व अलग होता है। कोई भी दो व्यक्ति पूरी तरह से समान व्यक्तित्व के नहीं हो सकते, भले ही वे समान वातावरण और परिस्थितियों में पले-बढ़े हों।
- एक ही परिवार में पले-बढ़े दो भाई-बहन भी अलग-अलग व्यक्तित्व रखते हैं।
- समाज और पारिवारिक पृष्ठभूमि का प्रभाव तो पड़ता है, लेकिन अंततः हर व्यक्ति की सोच, दृष्टिकोण और कार्यशैली विशिष्ट होती है।
- व्यक्तित्व के निर्माण में आनुवंशिकता, वातावरण और व्यक्तिगत अनुभवों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जो प्रत्येक व्यक्ति को अद्वितीय बनाते हैं।
3. व्यक्तित्व में जैविक और सामाजिक कारकों का योगदान होता है
व्यक्तित्व के निर्माण में दो प्रमुख कारक कार्य करते हैं – जैविक (Biological) और सामाजिक (Social)।
(क) जैविक कारक (Biological Factors)
- आनुवंशिकी (Heredity): माता-पिता से प्राप्त गुण जैसे बुद्धिमत्ता, रचनात्मकता, धैर्य, आत्मविश्वास आदि।
- शारीरिक संरचना (Physical Structure): शरीर की बनावट, रंग, ऊँचाई आदि, जो आत्मविश्वास और व्यवहार को प्रभावित करते हैं।
- तंत्रिका तंत्र (Nervous System): व्यक्ति की सोचने-समझने और प्रतिक्रिया करने की क्षमता।
- हार्मोनल प्रभाव (Hormonal Influence): हार्मोन के उतार-चढ़ाव से व्यक्ति की भावनाएँ और व्यवहार प्रभावित होते हैं।
(ख) सामाजिक कारक (Social Factors)
- परिवार: बचपन में माता-पिता का व्यवहार और परवरिश का तरीका व्यक्तित्व को प्रभावित करता है।
- शिक्षा और समाज: विद्यालय, शिक्षक, मित्र और सामाजिक नियम व्यक्तित्व निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं।
- संस्कृति: व्यक्ति की जीवनशैली, नैतिकता और मूल्यों को प्रभावित करने वाला प्रमुख तत्व।
इस प्रकार, व्यक्ति का व्यक्तित्व जन्मजात गुणों और सामाजिक वातावरण दोनों के मेल से विकसित होता है।
4. व्यक्तित्व बहुआयामी (Multidimensional) होता है
व्यक्तित्व केवल किसी व्यक्ति के बाहरी व्यवहार तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह उसके संपूर्ण अस्तित्व को दर्शाता है।
- यह भावनात्मक (Emotional) होता है – व्यक्ति की भावनाएँ, इच्छाएँ और संवेदनाएँ इसमें शामिल होती हैं।
- यह बौद्धिक (Intellectual) होता है – व्यक्ति की सोचने, समझने और निर्णय लेने की क्षमता को दर्शाता है।
- यह सामाजिक (Social) होता है – व्यक्ति के पारिवारिक, व्यावसायिक और सामाजिक संबंध इसमें समाहित होते हैं।
- यह नैतिक (Moral) होता है – व्यक्ति की मूल्य, सिद्धांत और नैतिकता इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
व्यक्तित्व एक जटिल संरचना है, जो कई कारकों से मिलकर बनती है और जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित करती है।
5. व्यक्तित्व का निरंतर विकास होता रहता है
व्यक्तित्व कभी स्थिर नहीं रहता, बल्कि जीवनभर विकसित होता रहता है।
- बचपन में शिक्षा और पारिवारिक प्रभाव प्रमुख होते हैं।
- किशोरावस्था में आत्म-परिचय और सामाजिक संबंधों का विकास होता है।
- युवावस्था में करियर, रिश्ते और जिम्मेदारियाँ व्यक्तित्व को नया रूप देते हैं।
- प्रौढ़ावस्था में अनुभव, आत्मनिरीक्षण और जीवन की सच्चाइयाँ व्यक्ति के व्यक्तित्व को परिपक्व बनाते हैं।
इस प्रकार, व्यक्ति के जीवन में आने वाले अनुभव और परिस्थितियाँ उसके व्यक्तित्व में निरंतर बदलाव लाती हैं।
6. व्यक्तित्व समाज से प्रभावित होता है
व्यक्ति का समाज, संस्कृति, शिक्षा, परिवार और मित्र मंडली उसके व्यक्तित्व निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- परिवार से व्यक्ति मूलभूत नैतिक मूल्य, भाषा और व्यवहार सीखता है।
- शिक्षा व्यक्ति के दृष्टिकोण, तर्कशक्ति और आत्मनिर्भरता को विकसित करती है।
- संस्कृति और परंपराएँ व्यक्ति के आदर्शों, जीवनशैली और सामाजिक दृष्टिकोण को प्रभावित करती हैं।
- मीडिया और तकनीक भी व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्माण में आधुनिक कारकों के रूप में कार्य करती हैं।
इस प्रकार, व्यक्तित्व का विकास केवल आंतरिक नहीं, बल्कि बाहरी समाज के प्रभाव से भी होता है।
7. मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास उसके वंशानुक्रम और वातावरण दोनों पर निर्भर करता है।
8. मनुष्य का व्यक्तित्व वंशानुक्रम और पर्यावरण का योग नहीं गुणनफल होता है।
9. मनुष्य के स्थायी गुण एवं योग्यताएं ही उसके व्यक्तित्व के अंग होते हैं।
10. मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास जन्म से मरण तक होता है।
11. मनुष्य का व्यक्तित्व उसकी जन्मजात शक्तियों और अर्जित गुणों एवं योग्यताओं का योग न होकर उनकी एक विशिष्ट रचना होता है।
12. मनुष्य के व्यक्तित्व में आत्म चेतना का गुण विद्यमान होता है।
13. मनुष्य के व्यक्तित्व में सामाजिकता का गुण पाया जाता है।
14. मनुष्य के व्यक्तित्व में सामंजस्यता का गुण पाया जाता है।
14. मनुष्य के व्यक्तित्व में दृढ़ इच्छाशक्ति विद्यमान होती है।
15. मनुष्य के व्यक्तित्व निरंतर निर्माण की क्रिया में रहता है।
16. मनुष्य के व्यक्तित्व में निर्देशित लक्ष्य प्राप्ति का गुण विद्यमान होता है।
17. मनुष्य का व्यक्तित्व बहुआयामी संप्रत्यय है। इसमें उसकी जमजम शक्तियों और अर्जित गुण दोनों आते हैं।
18. मनुष्य के व्यक्तित्व का मुख्य गुण वातावरण के साथ समायोजन करना है।
19. मनुष्य के व्यक्तित्व गतिशील प्रक्रिया है।
20. मनुष्य के व्यक्तित्व व्यवहार ढंग रूचि और दृष्टिकोण ओ की क्षमताओं का संगठन है।
21. व्यक्ति के व्यक्तित्व विभिन्न गुणों का एकीकरण होता है।
22. मनुष्य के व्यक्तित्व शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और सांस्कृतिक घटक ओं का संयुक्त योग है।
23. मनुष्य के व्यक्तित्व स्वाभाव और चारित्रिक गुणों का अद्भुत मिश्रण है।
24. व्यक्तित्व का अवकलन समाज के संदर्भ में ही संभव होता है।
25. प्रत्येक मनुष्य का व्यक्तित्व विशिष्ट होता है अनूठा होता है कुछ अलग होता है।
इसे भी पढ़ें: समावेशी शिक्षा का अर्थ; परिभाषा , अवधारणा, विशेषताएं , क्षेत्र ,आवश्यकता, सिद्धांत inclusive education in hindi
व्यक्तित्व के निर्माण में प्रमुख तत्व
व्यक्तित्व कई कारकों के प्रभाव से विकसित होता है। मुख्य रूप से इसे चार भागों में बाँटा जा सकता है:
1. जैविक कारक (Biological Factors)
व्यक्ति के व्यक्तित्व पर जैविक कारक प्रभाव डालते हैं, जिनमें निम्नलिखित तत्व शामिल हैं:
- आनुवंशिकता (Heredity): माता-पिता से प्राप्त शारीरिक विशेषताएँ, मानसिक क्षमता और भावनात्मक प्रवृत्तियाँ।
- शारीरिक संरचना (Physical Structure): शरीर की बनावट, ऊँचाई, रंग, चेहरे की बनावट आदि।
- तंत्रिका तंत्र (Nervous System): व्यक्ति की सोचने, समझने और प्रतिक्रिया करने की क्षमता।
- हार्मोनल प्रभाव (Hormonal Influence): हार्मोन के उतार-चढ़ाव से व्यक्ति के मूड, भावनाएँ और व्यवहार प्रभावित होते हैं।
2. सामाजिक कारक (Social Factors)
व्यक्ति का समाज, परिवार और संस्कृति उसके व्यक्तित्व निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं।
- पारिवारिक पृष्ठभूमि: माता-पिता का व्यवहार, शिक्षा और परवरिश।
- सामाजिक वातावरण: व्यक्ति की परवरिश किस सामाजिक ढाँचे में हुई है।
- सांस्कृतिक प्रभाव: परंपराएँ, धार्मिक विश्वास, रीति-रिवाज आदि।
3. मनोवैज्ञानिक कारक (Psychological Factors)
व्यक्ति के भीतर मौजूद कुछ मनोवैज्ञानिक तत्व भी उसके व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं।
- अभिप्रेरणा (Motivation): व्यक्ति के कार्यों को प्रेरित करने वाली शक्ति।
- बुद्धिमत्ता (Intelligence): किसी समस्या को हल करने की क्षमता।
- रुचि और अभिवृत्ति (Interest and Attitude): व्यक्ति की रुचियाँ और दृष्टिकोण।
4. अनुभव और शिक्षा (Experience and Education)
शिक्षा और जीवन के अनुभवों से व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण होता है।
- औपचारिक शिक्षा: स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में प्राप्त ज्ञान।
- अनौपचारिक शिक्षा: परिवार और समाज से प्राप्त अनुभव।
- व्यक्तिगत अनुभव: सुख-दुःख, संघर्ष और चुनौतियाँ।
व्यक्तित्व के प्रकार
मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया है:
- कार्ल जंग (Carl Jung) के अनुसार:
- अंतर्मुखी (Introvert)
- बहिर्मुखी (Extrovert)
- उभयमुखी (Ambivert)
- शेल्डन (Sheldon) के अनुसार:
- एन्डोमोर्फ (Endomorph) – गोल और भारी शरीर वाले
- मेसोमोर्फ (Mesomorph) – मांसल और सक्रिय
- एक्टोमोर्फ (Ectomorph) – पतले और संवेदनशील
- फ्रॉयड (Freud) के अनुसार:
- इड (Id)
- ईगो (Ego)
- सुपरईगो (Superego)
निष्कर्ष
व्यक्तित्व केवल व्यक्ति के बाहरी स्वरूप तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह उसके संपूर्ण अस्तित्व को दर्शाता है। यह जैविक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक तत्वों के मेल से बनता है और समय के साथ विकसित होता रहता है।
हर व्यक्ति का व्यक्तित्व विशिष्ट और अद्वितीय होता है, जो उसे दूसरों से अलग बनाता है। व्यक्तित्व का विकास निरंतर होता रहता है और इसमें कई कारक योगदान देते हैं, जैसे आनुवंशिकता, समाज, शिक्षा और व्यक्तिगत अनुभव।
इसलिए, व्यक्तित्व का अध्ययन न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए आवश्यक है, बल्कि यह समाज और विभिन्न पेशों में सफलता प्राप्त करने के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।