पठन कौशल के प्रकार बताइए(Reading skill)-अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य
पठन कौशल क्या है
भाषा कौशल के 4 सोपान होते हैं i. सुनना (श्रवण) ii. बोलना (वाचन) iii. पढ़ना(पठन) iv. लिखना(लेखन)
पठन भाषा शिक्षण का तृतीय कौशल है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है वे समाज में रहकर अपने विचारों को एक दूसरे तक पहुंचाने के लिए भाषा का प्रयोग करते हैं एक तो वे अपनी मातृभाषा में अपनी बातों को बोलते और सुनते हैं या पढ़ते और लिखते हैं। पठन का अर्थ पढ़कर अर्थ ग्रहण करना होता है। दूसरों के विचारों तथा भाव को समझना चिंतन तथा मनन करना आवश्यक है। यह पूर्ण रूप से सत्य है कि मनन एवं चिंतन पठन कौशल के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है बालक में पठन कौशल का विकास होना आवश्यक है जिससे वे विभिन्न दार्शनिकों, चिंताकों, तथा समाज सेविकाओं के विचारों को पढ़कर समझ सके तथा बोधगम्य में कर सके। बालक पढ़कर अधिकांश विचार ग्रहण करते हैं तथा उसी आधार पर विभिन्न सिद्धांतों का निर्माण करते हैं। पठन के द्वारा ही विचार एवं भावों का अर्थ बोधगम्य होता है। बालक पढ़कर ही अर्थ ग्रहण करता है और चिंतन संबंधी दक्षता प्राप्त करता है। श्रवण से अपेक्षा पठन से स्थाई ज्ञान प्राप्त होता है।
पठन कौशल किसे कहते हैं पठन कौशल की परिभाषा
पठन कौशल (Reading Skill) वह क्षमता है, जिसके द्वारा व्यक्ति किसी लिखित सामग्री को समझने, उसका अर्थ ग्रहण करने और उसका विश्लेषण करने में सक्षम होता है। यह भाषा शिक्षण का एक महत्वपूर्ण घटक है, जो व्यक्ति के संज्ञानात्मक विकास और ज्ञान अर्जन में सहायक होता है।
विद्वानों द्वारा पठन कौशल की परिभाषाएँ:
- गुडमैन (Goodman) – “पठन एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसमें पाठक लिखित प्रतीकों को अर्थ से जोड़कर उनके माध्यम से संचार स्थापित करता है।”
- स्मिथ (Smith) – “पठन एक सक्रिय प्रक्रिया है, जिसमें पाठक अपने पूर्व ज्ञान और भाषा कौशल का उपयोग करके पाठ को समझता है।”
- हैरिस और होजेस (Harris & Hodges) – “पठन वह प्रक्रिया है, जिसमें पाठक लिखित शब्दों को पहचानता है, उनका सही उच्चारण करता है और उनके निहित अर्थ को समझता है।”
दूसरों के विचारों को पढ़कर समझना या अर्थ ग्रहण करने में दक्षता हासिल करना पठन कौशल कहलाता है।
या
वर्णों का उच्चारण, शब्दों या वाक्यों का अर्थ, बोध सहित अर्थ ग्रहण करना ही पठन कौशल कहलाता है।
पठन कौशल का अर्थ
पठन कौशल को अंग्रेजी भाषा में रीडिंग स्किल(Reading skill) कहा जाता है अंग्रेजी भाषा के रीडिंग शब्द के लिए हिंदी में दो शब्दों का प्रयोग किया जाता है पठन एवं वाचन। परंतु पठन एवं वाचन इन दोनों में मूलत: भेद है। पठन का अर्थ है जोर से तथा मौन होकर पढ़ना जिससे पठित सामग्री समझ में आ जाए। पठन के अंतर्गत सस्वर तथा मौन वाचन आ जाता है।
पठन कौशल के प्रकार
पठन के मुख्यतः दो प्रकार होते हैं:-
१. सस्वर पठन
क) व्यक्तिगत पठन
ख) सामूहिक पठन
गुण के आधार
सस्वर पठन के प्रकार
i. आदर्श वाचन
ii. अनुकरण वाचन
२. मौन पठन
i. सामान्य मौन वाचन
ii. गंभीर मौन वाचन
iii. द्रुत वाचन
१. सस्वर पठन
सस्वर पठन से तात्पर्य है लिखित भाषा में व्यक्त भाव तथा विचारों को समझने के लिए ध्वन्यात्मक उच्चारण करके पढ़ना। इसे मौखिक पठन भी कहा जाता है। सस्वर पठन का उद्देश्य बालकों को ध्वनियों के उचित आरोह-अवरोह एवं विराम चिन्ह आदि को दृष्टि में रखकर उचित स्वर यति गति लय के साथ पाठ्यवस्तु का अर्थ एवं भाव ग्रहण करते हुए कुछ उच्च स्तर करते हुए पढ़ने की योग्यता प्रदान करता है। सस्वर पठन करने से छात्रों का शब्दोच्चारण एवं अक्षर विन्यास शुद्ध होता है।
सस्वर पठन के दो भेद हैं-
क) व्यक्तिगत पठन
ख) सामूहिक पठन
क) व्यक्तिगत पठन:-
व्यक्तिगत पठन या व्यक्तिगत स्वर पठन वह पठन होता है जो कक्षा में शिक्षक द्वारा किए गए आदर्श पाठ का अनुकरण छात्र द्वारा किया जाता है। या बालक व्यक्तिगत रूप से स्वयं उच्चारण के साथ पठन करता है।
ख) सामूहिक पठन:-
सामूहिक पठन वह पठन होता है जिसमें बालक एक समूह में या एक कक्षा के सभी बालक मिलकर किसी भी पाठ का उच्चारण के साथ मिलकर पढ़ते हैं उसे सामूहिक पठन कहते हैं।
दोनों के आधार पर सस्वर पठन के और दो भेद बताए गए हैं-
i. आदर्श वाचन
ii. अनुकरण वाचन
i. आदर्श वाचन:-
छात्रों के समक्ष पाठ्य सामग्री को जब शिक्षक स्वयं वाचन करके प्रस्तुत करता है तो उसे आदर्श वाचन कहा जाता है।
ii. अनुकरण वाचन:-
आदर्श वचन के बाद छात्रों द्वारा अनुकरण वाचन किया जाता है। जब छात्र शिक्षक द्वारा किए गए वाचन के ढंग पर वचन करने का प्रयत्न करते हैं तो उसे अनुकरण वाचन कहा जाता है। या शिक्षक के द्वारा उच्चारित शब्द को बालक पीछे-पीछे अधूरा का है उसे ही अनुकरण वाचन कहते हैं।
सस्वर पठन के उद्देश्य
सस्वर पठन के उद्देश्य निम्न हैं-
१. सस्वर पठन का मुख्य उद्देश्य छात्रों के उच्चारण में सुधार लाना है बालकों के उच्चारण में होने वाली विराम, बलाघात संबंधी भूलों को धीरे-धीरे कम करना है।
२. सस्वर पठन का एक उद्देश्य वार्तालाप में तथा पठन में होने वाली रुकावट को दूर करना भी है।
३. इसका एक उद्देश्य उच्चारण एवं सुर में स्थानीय बोलियों का प्रभाव न आने देना है।
४. इसका एक उद्देश्य श्रोताओं की संख्या तथा अवसर के अनुसार वाणी को नियंत्रित करना भी है।
५. इसका एक उद्देश्य विरामादि चिह्नों का समुचित ध्यान रखते हुए पढ़ना भी है।
२. मौन पठन:-
लिखित सामग्री को मन-ही-मन आवाज निकाले बिना पढ़ना मौन पठन कहलाता है। वचन के होंठ बंद रहते हैं। जब छात्र मौन वाचन में कुशलता अर्जित कर लेता है तब सस्वर वाचन का अधिक प्रयोग करना छोड़ देता है।मौन वाचन में निपुणता का आना व्यक्ति के विचारों की प्रौढ़ता का द्योतक होता है एवं भाषायी दक्षता अधिकार का सूचक है। मौन पठन को प्रकृति के अनुसार मौन वाचन के दो भेद हैं-
i. गंभीर वाचन
ii. द्रुत वाचन
i. गंभीर वाचन:-
गंभीर वाचन उस समय किया जाता है, जब हम किसी सामग्री की तह तक पहुंचना चाहते हैं। गंभीर वाचन में पाठ्यक्रम के प्रत्येक शब्द को पढ़ना तथा समझना आवश्यक होता है। इसमें विचारों के चिंतन-मनन की आवश्यकता पड़ती है। नवीन सूचना एकत्र करने के लिए या केन्द्रीय भाव की खोज करने के लिए हम गंभीर वाचन या गहन वाचन करते हैं।
ii. द्रुत वाचन:-
द्रुत वाचन में हम तेजी से अध्ययन करते हैं। द्रुत वाचन का सम्बन्ध विस्तृत अध्ययन से है। विस्तृत वाचन तब किया जाता है जब हम अधिक सामग्री कम समय में पढ़ना चाहते हैं।द्रुत वचन का प्रयोग हम तब करते हैं जब हम सीखी हुई भाषा का अभ्यास करते हैं या अवसर का सदुपयोग करना या सूचना एकत्रित करना या आनंद प्राप्त करना आदि में करते है।
मौन वचन के उद्देश्य
१. मौन वाचन छात्रों में चिंतन शीलता का विकास करता है जिससे उनकी कल्पना शक्ति विकसित होती है और छात्र बुद्धिमान बनता है।
२. मन वचन छात्रों को भाषा के लिखित रूप को समझा कर तक पहुंचने में सहायता करता है।
३. मौन वाचन द्वारा एकाकी क्षणों में समय का सदुपयोग किया जा सकता है।
४. शिक्षार्थियों में चिंतन तथा तर्क शक्ति को बढ़ाने एवं उनके प्रति उत्तर क्षमता उत्पन्न करने के लिए भी इस का महत्वपूर्ण स्थान है।
५. मौन पठन में छात्र की कल्पना शक्ति का विकास होता है शांत मस्तिष्क में छात्र आगे की घटनाओं के विषय में अनुमान लगा सकता है।
६. सर्वाधिक महत्वपूर्ण उदय से यह है कि छात्र कम से कम समय में विषय को गहराई से समझ लेता है और अत्याधिक आनन्दानुभूति अर्जित करने में सफल होता है।
७. मौन पठन छात्रा को स्वाध्याय हेतु प्रेरित करता है और स्वाध्याय की ओर प्रेरित होकर वह साहित्य में रुचि लेने लगता है।
८. मौन पठन में अन्य संगी साथियों को कोई परेशानी नहीं होती है।
९. मौन पठन से अकेलेपन की बोझिलता बहुत कम हो जाती है।
१०. सस्वर पठन जितना प्राथमिक कक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण है मौन पठन उतना ही उच्च कक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण हैं।
पठन कौशल की विशेषताएँ और उनका महत्व
पठन कौशल (Reading Skill) भाषा शिक्षण की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो व्यक्ति की संज्ञानात्मक क्षमता, भाषा समझने की योग्यता और संप्रेषण कौशल को विकसित करने में मदद करता है। पठन कौशल केवल अक्षरों और शब्दों को पहचानने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें समझ, विश्लेषण, आलोचनात्मक सोच और स्मरण शक्ति जैसी क्षमताएँ भी शामिल होती हैं। यह कौशल न केवल छात्रों के लिए बल्कि किसी भी व्यक्ति के संपूर्ण बौद्धिक विकास के लिए आवश्यक है।
आज के प्रतिस्पर्धी युग में पठन कौशल का महत्व अत्यधिक बढ़ गया है। चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो, नौकरी हो या सामान्य ज्ञान अर्जित करने की बात हो, पढ़ने की क्षमता व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
इस लेख में, हम पठन कौशल की विभिन्न विशेषताओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे और समझेंगे कि यह क्यों आवश्यक है।
1. स्पष्टता और प्रवाहपूर्ण पढ़ने की क्षमता
एक कुशल पाठक पढ़ते समय स्पष्टता बनाए रखता है और बिना रुके, सहज रूप से पढ़ सकता है। पठन कौशल में शब्दों का सही उच्चारण और वाक्यों का उचित प्रवाह अत्यंत आवश्यक होता है।
- यदि कोई पाठक शब्दों को गलत उच्चारित करता है, तो इसका प्रभाव उसके समझने की क्षमता पर भी पड़ सकता है।
- प्रवाहपूर्ण पढ़ने की आदत से पढ़ने में रुचि बनी रहती है और यह मानसिक एकाग्रता को भी बढ़ाती है।
- प्रवाहपूर्ण पठन से किसी भी विषय को आत्मसात करने की गति तेज हो जाती है, जिससे अध्ययन और अनुसंधान में सहायता मिलती है।
2. अर्थ ग्रहण करने की क्षमता (Comprehension Skills)
पठन कौशल का सबसे महत्वपूर्ण पहलू अर्थ ग्रहण करना है। यह कौशल किसी भी भाषा को समझने और उसका उचित उपयोग करने में मदद करता है।
- पाठक को केवल शब्दों को पढ़ना ही नहीं, बल्कि उनके पीछे छिपे अर्थ को भी समझना चाहिए।
- जटिल वाक्यों और विचारों को सरलता से आत्मसात करने की क्षमता विकसित होती है।
- पाठ में दिए गए तथ्यों और तर्कों को विश्लेषणात्मक दृष्टि से समझने की योग्यता बढ़ती है।
3. शब्दावली का विकास (Vocabulary Expansion)
अच्छे पठन कौशल से व्यक्ति की शब्दावली समृद्ध होती है।
- विभिन्न प्रकार के लेख, समाचार, साहित्य और अन्य स्रोतों से नए शब्दों की जानकारी मिलती है।
- अधिक शब्द जानने से अभिव्यक्ति की क्षमता भी बढ़ती है और लेखन कौशल में सुधार आता है।
- विभिन्न विषयों की शब्दावली सीखने से भाषा पर पकड़ मजबूत होती है।
4. विश्लेषणात्मक और आलोचनात्मक सोच (Analytical and Critical Thinking)
पठन कौशल केवल शब्दों को पढ़ने तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह पाठक में आलोचनात्मक सोच विकसित करने में भी सहायक होता है।
- एक अच्छा पाठक किसी भी जानकारी को तर्कसंगत ढंग से विश्लेषण कर सकता है।
- वह तथ्यों और विचारों के बीच संबंध स्थापित कर सकता है।
- आलोचनात्मक पठन से पाठक में निर्णय लेने की क्षमता विकसित होती है, जिससे वह किसी भी जानकारी को तर्कसंगत दृष्टिकोण से देख पाता है।
5. एकाग्रता और धैर्य (Concentration and Patience)
पठन कौशल के लिए एकाग्रता और धैर्य का होना आवश्यक है।
- बिना एकाग्रता के कोई भी व्यक्ति लंबे और जटिल पाठ को नहीं समझ सकता।
- पढ़ने की प्रक्रिया में धैर्य आवश्यक होता है, क्योंकि गहन अध्ययन और समझ विकसित करने के लिए लगातार अभ्यास जरूरी है।
- लगातार पठन से मानसिक अनुशासन विकसित होता है, जिससे किसी भी कार्य को ध्यानपूर्वक करने की आदत बनती है।
6. अनुमान लगाने की क्षमता (Predictive Ability)
कुशल पाठक अपने पूर्व ज्ञान और संदर्भों के आधार पर आगामी जानकारी का अनुमान लगाने में सक्षम होता है।
- नए शब्दों के अर्थ संदर्भ से समझने की क्षमता बढ़ती है।
- कहानी या पाठ के आगे के घटनाक्रम की संभावनाओं को सोचने में सहायता मिलती है।
- वैज्ञानिक लेखों या शोध-पत्रों को पढ़ते समय उनके निष्कर्ष का अनुमान लगाने में यह कौशल सहायक होता है।
7. पठन गति का नियंत्रण (Reading Speed Control)
पाठक को अपनी पठन गति को नियंत्रित करना आना चाहिए।
- यदि कोई पाठ कठिन है, तो उसे ध्यानपूर्वक और धीमी गति से पढ़ना चाहिए, ताकि उसका सही अर्थ समझा जा सके।
- सरल पाठ को तेज गति से पढ़कर अधिक समय बचाया जा सकता है।
- प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में पठन गति नियंत्रण बहुत महत्वपूर्ण होता है, ताकि कम समय में अधिक सामग्री पढ़ी जा सके।
8. पूर्व ज्ञान का उपयोग (Utilization of Prior Knowledge)
पठन करते समय व्यक्ति अपने पूर्व ज्ञान का उपयोग करता है, जिससे नई जानकारी को समझना आसान हो जाता है।
- यदि कोई पाठ किसी जानी-पहचानी विषयवस्तु से संबंधित है, तो पाठक उसे जल्दी समझ सकता है।
- संदर्भानुसार जानकारी को जोड़ने और समझने की क्षमता विकसित होती है।
- शोधकार्य और निबंध लेखन में यह कौशल अत्यंत सहायक होता है।
9. स्मरण शक्ति और जानकारी को संगठित करने की क्षमता (Memory and Organization of Information)
पढ़े गए विषयों को लंबे समय तक याद रखना पठन कौशल का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
- महत्वपूर्ण बिंदुओं को उचित क्रम में व्यवस्थित करने की योग्यता होती है।
- पढ़ी गई सामग्री को सारांश के रूप में प्रस्तुत करने की क्षमता विकसित होती है।
- स्मरण शक्ति मजबूत होने से परीक्षाओं और व्यावसायिक जीवन में सफलता प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
10. कल्पनाशक्ति का विकास (Development of Imagination)
विशेष रूप से साहित्यिक और कथा-संबंधी पाठों को पढ़ने से व्यक्ति की कल्पनाशक्ति का विकास होता है।
- पाठक कथानक को अपने मन-मस्तिष्क में चित्रित करने में सक्षम होता है।
- कविता, कहानी और नाटक पढ़ने से भावनात्मक और रचनात्मक सोच विकसित होती है।
11. पठन रुचि और प्रेरणा (Interest and Motivation for Reading)
एक अच्छा पाठक हमेशा पठन के प्रति रुचि रखता है और नए विषयों को पढ़ने के लिए प्रेरित रहता है।
- पढ़ने की आदत व्यक्ति को न केवल ज्ञान प्राप्त करने में मदद करती है, बल्कि उसकी बौद्धिक क्षमता को भी बढ़ाती है।
- अधिक पढ़ने से भाषा कौशल और संचार कौशल में सुधार आता है।
12. विविध विधाओं का ज्ञान (Understanding Different Genres)
पढ़ने से व्यक्ति विभिन्न प्रकार की लेखन शैलियों और साहित्यिक विधाओं को समझने में सक्षम होता है।
- कथा साहित्य, गैर-कथा साहित्य, समाचार, शोध-पत्र, जीवनी, तकनीकी लेखन आदि के बीच भेदभाव करने की क्षमता विकसित होती है।
- औपचारिक और अनौपचारिक भाषा को पहचानने की योग्यता प्राप्त होती है।
निष्कर्ष
पठन कौशल किसी भी भाषा को सीखने और समझने का एक महत्वपूर्ण पहलू है। यह कौशल व्यक्ति को न केवल बेहतर पाठक बनने में मदद करता है, बल्कि उसे आत्मनिर्भर, आलोचनात्मक विचारक और कल्पनाशील बनाता है। एक अच्छी पठन आदत जीवनभर उपयोगी होती है और ज्ञान प्राप्ति के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण साधन है। इसलिए, पठन कौशल को नियमित अभ्यास और उचित रणनीतियों से विकसित किया जा सकता है।
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अच्छा लगा