पठन कौशल के प्रकार बताइए(Reading skill) वाचन कौशल – अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य,विशेषताएं, महत्व, पठन कौशल की विधियां 

पठन कौशल के प्रकार बताइए(Reading skill)Pathan Koshal -अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, विशेषताएं, महत्व, पठन कौशल की विधियां 

पठन कौशल क्या है

भाषा कौशल के 4 सोपान होते हैं i. सुनना (श्रवण) ii. बोलना  iii. पढ़ना(पठन) iv. लिखना(लेखन)
पठन भाषा शिक्षण का तृतीय कौशल है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है वे समाज में रहकर अपने विचारों को एक दूसरे तक पहुंचाने के लिए भाषा का प्रयोग करते हैं एक तो वे अपनी मातृभाषा में अपनी बातों को बोलते और सुनते हैं या पढ़ते और लिखते हैं। पठन का अर्थ पढ़कर अर्थ ग्रहण करना होता है। दूसरों के विचारों तथा भाव को समझना चिंतन तथा मनन करना आवश्यक है। यह पूर्ण रूप से सत्य है कि मनन एवं चिंतन पठन कौशल के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है बालक में पठन कौशल का विकास होना आवश्यक है जिससे वे विभिन्न दार्शनिकों, चिंताकों, तथा समाज सेविकाओं के विचारों को पढ़कर समझ सके तथा बोधगम्य में कर सके। बालक पढ़कर अधिकांश विचार ग्रहण करते हैं तथा उसी आधार पर विभिन्न सिद्धांतों का निर्माण करते हैं। पठन के द्वारा ही विचार एवं भावों का अर्थ बोधगम्य होता है। बालक पढ़कर ही अर्थ ग्रहण करता है और चिंतन संबंधी दक्षता प्राप्त करता है। श्रवण से अपेक्षा पठन से स्थाई ज्ञान प्राप्त होता है।

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पठन कौशल किसे कहते हैं पठन कौशल की परिभाषा

पठन कौशल (Reading Skill) वह क्षमता है, जिसके द्वारा व्यक्ति किसी लिखित सामग्री को समझने, उसका अर्थ ग्रहण करने और उसका विश्लेषण करने में सक्षम होता है। यह भाषा शिक्षण का एक महत्वपूर्ण घटक है, जो व्यक्ति के संज्ञानात्मक विकास और ज्ञान अर्जन में सहायक होता है।

विद्वानों द्वारा पठन कौशल की परिभाषाएँ:

  1. गुडमैन (Goodman) – “पठन एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसमें पाठक लिखित प्रतीकों को अर्थ से जोड़कर उनके माध्यम से संचार स्थापित करता है।”
  2. स्मिथ (Smith) – “पठन एक सक्रिय प्रक्रिया है, जिसमें पाठक अपने पूर्व ज्ञान और भाषा कौशल का उपयोग करके पाठ को समझता है।”
  3. हैरिस और होजेस (Harris & Hodges) – “पठन वह प्रक्रिया है, जिसमें पाठक लिखित शब्दों को पहचानता है, उनका सही उच्चारण करता है और उनके निहित अर्थ को समझता है।”

दूसरों के विचारों को पढ़कर समझना या अर्थ ग्रहण करने में दक्षता हासिल करना पठन कौशल कहलाता है।

या

वर्णों का उच्चारण, शब्दों या वाक्यों का अर्थ, बोध सहित अर्थ ग्रहण करना ही पठन कौशल कहलाता है।

पठन कौशल का अर्थ

पठन कौशल को अंग्रेजी भाषा में रीडिंग स्किल(Reading skill) कहा जाता है अंग्रेजी भाषा के रीडिंग शब्द के लिए हिंदी में दो शब्दों का प्रयोग किया जाता है पठन एवं वाचन। परंतु पठन एवं वाचन इन दोनों में मूलत: भेद है। पठन का अर्थ है जोर से तथा मौन होकर पढ़ना जिससे पठित सामग्री समझ में आ जाए। पठन के अंतर्गत  सस्वर तथा मौन वाचन आ जाता है।

पठन कौशल के प्रकार

पठन के मुख्यतः दो प्रकार होते हैं:-
१. सस्वर पठन
क) व्यक्तिगत पठन
ख) सामूहिक पठन
गुण के आधार
सस्वर पठन के प्रकार
i. आदर्श वाचन
ii. अनुकरण वाचन

२. मौन पठन
i. सामान्य मौन वाचन
ii. गंभीर मौन वाचन
iii. द्रुत  वाचन

१. सस्वर पठन

सस्वर पठन से तात्पर्य है लिखित भाषा में व्यक्त भाव तथा विचारों को समझने के लिए ध्वन्यात्मक उच्चारण करके पढ़ना। इसे मौखिक पठन भी कहा जाता है। सस्वर पठन का उद्देश्य बालकों को ध्वनियों के उचित आरोह-अवरोह एवं विराम चिन्ह आदि को दृष्टि में रखकर उचित स्वर यति गति लय के साथ पाठ्यवस्तु का अर्थ एवं भाव ग्रहण करते हुए कुछ उच्च स्तर करते हुए पढ़ने की योग्यता प्रदान करता है। सस्वर पठन करने से छात्रों का शब्दोच्चारण एवं अक्षर विन्यास शुद्ध होता है।
सस्वर पठन के दो भेद हैं-
क) व्यक्तिगत पठन
ख) सामूहिक पठन

क) व्यक्तिगत पठन:-
व्यक्तिगत पठन या व्यक्तिगत स्वर पठन वह पठन होता है जो कक्षा में शिक्षक द्वारा किए गए आदर्श पाठ का अनुकरण छात्र द्वारा किया जाता है। या बालक व्यक्तिगत रूप से स्वयं उच्चारण के साथ पठन करता है।

ख) सामूहिक पठन:-
सामूहिक पठन वह पठन होता है जिसमें बालक एक समूह में या एक कक्षा के सभी बालक मिलकर किसी भी पाठ का उच्चारण के साथ मिलकर पढ़ते हैं उसे सामूहिक पठन कहते हैं।
दोनों के आधार पर सस्वर पठन के और दो भेद बताए गए हैं-
i. आदर्श वाचन
ii. अनुकरण वाचन

i. आदर्श वाचन:-

छात्रों के समक्ष पाठ्य सामग्री को जब शिक्षक स्वयं वाचन करके प्रस्तुत करता है तो उसे आदर्श वाचन कहा जाता है।

ii. अनुकरण वाचन:-
आदर्श वचन के बाद छात्रों द्वारा अनुकरण वाचन किया जाता है। जब छात्र शिक्षक द्वारा किए गए वाचन के ढंग पर वचन करने का प्रयत्न करते हैं तो उसे अनुकरण वाचन कहा जाता है। या शिक्षक के द्वारा उच्चारित शब्द को बालक पीछे-पीछे अधूरा का है उसे ही अनुकरण वाचन कहते हैं।

सस्वर पठन के उद्देश्य

सस्वर पठन के उद्देश्य निम्न हैं-
१. सस्वर पठन का मुख्य उद्देश्य छात्रों के उच्चारण में सुधार लाना है बालकों के उच्चारण में होने वाली विराम, बलाघात संबंधी भूलों को धीरे-धीरे कम करना है।
२. सस्वर पठन का एक उद्देश्य वार्तालाप में तथा पठन में होने वाली रुकावट को दूर करना भी है।
३. इसका एक उद्देश्य उच्चारण एवं सुर में स्थानीय बोलियों का प्रभाव न आने देना है।
४. इसका एक उद्देश्य श्रोताओं की संख्या तथा अवसर के अनुसार वाणी को नियंत्रित करना भी है।
५. इसका एक उद्देश्य विरामादि चिह्नों का समुचित ध्यान रखते हुए पढ़ना भी है।

२. मौन पठन:-

लिखित सामग्री को मन-ही-मन आवाज निकाले बिना पढ़ना मौन पठन कहलाता है। वचन के होंठ बंद रहते हैं। जब छात्र मौन वाचन में कुशलता अर्जित कर लेता है तब सस्वर वाचन का अधिक प्रयोग करना छोड़ देता है।मौन वाचन में निपुणता का आना व्यक्ति के विचारों की प्रौढ़ता का द्योतक होता है एवं भाषायी दक्षता अधिकार का सूचक है। मौन पठन को प्रकृति के अनुसार मौन वाचन के दो भेद हैं-
i. गंभीर वाचन
ii. द्रुत  वाचन

  i. गंभीर वाचन:-

गंभीर वाचन उस समय किया जाता है, जब हम किसी सामग्री की तह तक पहुंचना चाहते हैं। गंभीर वाचन में पाठ्यक्रम के प्रत्येक शब्द को पढ़ना तथा समझना आवश्यक होता है। इसमें विचारों के चिंतन-मनन की आवश्यकता पड़ती है। नवीन सूचना एकत्र करने के लिए या केन्द्रीय भाव की खोज करने के लिए हम गंभीर वाचन या गहन वाचन करते हैं।

  ii. द्रुत  वाचन:-

द्रुत वाचन में हम तेजी से अध्ययन करते हैं। द्रुत वाचन का सम्बन्ध विस्तृत अध्ययन से है। विस्तृत वाचन तब किया जाता है जब हम अधिक सामग्री कम समय में पढ़ना चाहते हैं।द्रुत वचन का प्रयोग हम तब करते हैं जब हम सीखी हुई भाषा का अभ्यास करते हैं या अवसर का सदुपयोग करना या सूचना एकत्रित करना या आनंद प्राप्त करना आदि में करते है।

मौन वचन के उद्देश्य

१. मौन वाचन छात्रों में चिंतन शीलता का विकास करता है जिससे उनकी कल्पना शक्ति विकसित होती है और छात्र बुद्धिमान बनता है।
२. मन वचन छात्रों को भाषा के लिखित रूप को समझा कर तक पहुंचने में सहायता करता है।
३. मौन वाचन द्वारा एकाकी क्षणों में समय का सदुपयोग किया जा सकता है।
४. शिक्षार्थियों में चिंतन तथा तर्क शक्ति को बढ़ाने एवं उनके प्रति उत्तर क्षमता उत्पन्न करने के लिए भी इस का महत्वपूर्ण स्थान है।
५. मौन पठन में छात्र की कल्पना शक्ति का विकास होता है शांत मस्तिष्क में छात्र आगे की घटनाओं के विषय में अनुमान लगा सकता है।
६. सर्वाधिक महत्वपूर्ण उदय से यह है कि छात्र कम से कम समय में विषय को गहराई से समझ लेता है और अत्याधिक आनन्दानुभूति अर्जित करने में सफल होता है।
७. मौन पठन छात्रा को स्वाध्याय हेतु प्रेरित करता है और स्वाध्याय की ओर प्रेरित होकर वह साहित्य में रुचि लेने लगता है।
८. मौन पठन में अन्य संगी साथियों को कोई परेशानी नहीं होती है।
९. मौन पठन से अकेलेपन की बोझिलता बहुत कम हो जाती है।
१०. सस्वर पठन जितना प्राथमिक कक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण है मौन पठन उतना ही उच्च कक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण हैं।

पठन कौशल की विशेषताएँ और उनका महत्व

पठन कौशल (Reading Skill) भाषा शिक्षण की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो व्यक्ति की संज्ञानात्मक क्षमता, भाषा समझने की योग्यता और संप्रेषण कौशल को विकसित करने में मदद करता है। पठन कौशल केवल अक्षरों और शब्दों को पहचानने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें समझ, विश्लेषण, आलोचनात्मक सोच और स्मरण शक्ति जैसी क्षमताएँ भी शामिल होती हैं। यह कौशल न केवल छात्रों के लिए बल्कि किसी भी व्यक्ति के संपूर्ण बौद्धिक विकास के लिए आवश्यक है।

आज के प्रतिस्पर्धी युग में पठन कौशल का महत्व अत्यधिक बढ़ गया है। चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो, नौकरी हो या सामान्य ज्ञान अर्जित करने की बात हो, पढ़ने की क्षमता व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

इस लेख में, हम पठन कौशल की विभिन्न विशेषताओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे और समझेंगे कि यह क्यों आवश्यक है।


1. स्पष्टता और प्रवाहपूर्ण पढ़ने की क्षमता

एक कुशल पाठक पढ़ते समय स्पष्टता बनाए रखता है और बिना रुके, सहज रूप से पढ़ सकता है। पठन कौशल में शब्दों का सही उच्चारण और वाक्यों का उचित प्रवाह अत्यंत आवश्यक होता है।

  • यदि कोई पाठक शब्दों को गलत उच्चारित करता है, तो इसका प्रभाव उसके समझने की क्षमता पर भी पड़ सकता है।
  • प्रवाहपूर्ण पढ़ने की आदत से पढ़ने में रुचि बनी रहती है और यह मानसिक एकाग्रता को भी बढ़ाती है।
  • प्रवाहपूर्ण पठन से किसी भी विषय को आत्मसात करने की गति तेज हो जाती है, जिससे अध्ययन और अनुसंधान में सहायता मिलती है।

2. अर्थ ग्रहण करने की क्षमता (Comprehension Skills)

पठन कौशल का सबसे महत्वपूर्ण पहलू अर्थ ग्रहण करना है। यह कौशल किसी भी भाषा को समझने और उसका उचित उपयोग करने में मदद करता है।

  • पाठक को केवल शब्दों को पढ़ना ही नहीं, बल्कि उनके पीछे छिपे अर्थ को भी समझना चाहिए।
  • जटिल वाक्यों और विचारों को सरलता से आत्मसात करने की क्षमता विकसित होती है।
  • पाठ में दिए गए तथ्यों और तर्कों को विश्लेषणात्मक दृष्टि से समझने की योग्यता बढ़ती है।

3. शब्दावली का विकास (Vocabulary Expansion)

अच्छे पठन कौशल से व्यक्ति की शब्दावली समृद्ध होती है।

  • विभिन्न प्रकार के लेख, समाचार, साहित्य और अन्य स्रोतों से नए शब्दों की जानकारी मिलती है।
  • अधिक शब्द जानने से अभिव्यक्ति की क्षमता भी बढ़ती है और लेखन कौशल में सुधार आता है।
  • विभिन्न विषयों की शब्दावली सीखने से भाषा पर पकड़ मजबूत होती है।

4. विश्लेषणात्मक और आलोचनात्मक सोच (Analytical and Critical Thinking)

पठन कौशल केवल शब्दों को पढ़ने तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह पाठक में आलोचनात्मक सोच विकसित करने में भी सहायक होता है।

  • एक अच्छा पाठक किसी भी जानकारी को तर्कसंगत ढंग से विश्लेषण कर सकता है।
  • वह तथ्यों और विचारों के बीच संबंध स्थापित कर सकता है।
  • आलोचनात्मक पठन से पाठक में निर्णय लेने की क्षमता विकसित होती है, जिससे वह किसी भी जानकारी को तर्कसंगत दृष्टिकोण से देख पाता है।

5. एकाग्रता और धैर्य (Concentration and Patience)

पठन कौशल के लिए एकाग्रता और धैर्य का होना आवश्यक है।

  • बिना एकाग्रता के कोई भी व्यक्ति लंबे और जटिल पाठ को नहीं समझ सकता।
  • पढ़ने की प्रक्रिया में धैर्य आवश्यक होता है, क्योंकि गहन अध्ययन और समझ विकसित करने के लिए लगातार अभ्यास जरूरी है।
  • लगातार पठन से मानसिक अनुशासन विकसित होता है, जिससे किसी भी कार्य को ध्यानपूर्वक करने की आदत बनती है।

6. अनुमान लगाने की क्षमता (Predictive Ability)

कुशल पाठक अपने पूर्व ज्ञान और संदर्भों के आधार पर आगामी जानकारी का अनुमान लगाने में सक्षम होता है।

  • नए शब्दों के अर्थ संदर्भ से समझने की क्षमता बढ़ती है।
  • कहानी या पाठ के आगे के घटनाक्रम की संभावनाओं को सोचने में सहायता मिलती है।
  • वैज्ञानिक लेखों या शोध-पत्रों को पढ़ते समय उनके निष्कर्ष का अनुमान लगाने में यह कौशल सहायक होता है।

7. पठन गति का नियंत्रण (Reading Speed Control)

पाठक को अपनी पठन गति को नियंत्रित करना आना चाहिए।

  • यदि कोई पाठ कठिन है, तो उसे ध्यानपूर्वक और धीमी गति से पढ़ना चाहिए, ताकि उसका सही अर्थ समझा जा सके।
  • सरल पाठ को तेज गति से पढ़कर अधिक समय बचाया जा सकता है।
  • प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में पठन गति नियंत्रण बहुत महत्वपूर्ण होता है, ताकि कम समय में अधिक सामग्री पढ़ी जा सके।

8. पूर्व ज्ञान का उपयोग (Utilization of Prior Knowledge)

पठन करते समय व्यक्ति अपने पूर्व ज्ञान का उपयोग करता है, जिससे नई जानकारी को समझना आसान हो जाता है।

  • यदि कोई पाठ किसी जानी-पहचानी विषयवस्तु से संबंधित है, तो पाठक उसे जल्दी समझ सकता है।
  • संदर्भानुसार जानकारी को जोड़ने और समझने की क्षमता विकसित होती है।
  • शोधकार्य और निबंध लेखन में यह कौशल अत्यंत सहायक होता है।

9. स्मरण शक्ति और जानकारी को संगठित करने की क्षमता (Memory and Organization of Information)

पढ़े गए विषयों को लंबे समय तक याद रखना पठन कौशल का एक महत्वपूर्ण पहलू है।

  • महत्वपूर्ण बिंदुओं को उचित क्रम में व्यवस्थित करने की योग्यता होती है।
  • पढ़ी गई सामग्री को सारांश के रूप में प्रस्तुत करने की क्षमता विकसित होती है।
  • स्मरण शक्ति मजबूत होने से परीक्षाओं और व्यावसायिक जीवन में सफलता प्राप्त करने में सहायता मिलती है।

10. कल्पनाशक्ति का विकास (Development of Imagination)

विशेष रूप से साहित्यिक और कथा-संबंधी पाठों को पढ़ने से व्यक्ति की कल्पनाशक्ति का विकास होता है।

  • पाठक कथानक को अपने मन-मस्तिष्क में चित्रित करने में सक्षम होता है।
  • कविता, कहानी और नाटक पढ़ने से भावनात्मक और रचनात्मक सोच विकसित होती है।

11. पठन रुचि और प्रेरणा (Interest and Motivation for Reading)

एक अच्छा पाठक हमेशा पठन के प्रति रुचि रखता है और नए विषयों को पढ़ने के लिए प्रेरित रहता है।

  • पढ़ने की आदत व्यक्ति को न केवल ज्ञान प्राप्त करने में मदद करती है, बल्कि उसकी बौद्धिक क्षमता को भी बढ़ाती है।
  • अधिक पढ़ने से भाषा कौशल और संचार कौशल में सुधार आता है।

12. विविध विधाओं का ज्ञान (Understanding Different Genres)

पढ़ने से व्यक्ति विभिन्न प्रकार की लेखन शैलियों और साहित्यिक विधाओं को समझने में सक्षम होता है।

  • कथा साहित्य, गैर-कथा साहित्य, समाचार, शोध-पत्र, जीवनी, तकनीकी लेखन आदि के बीच भेदभाव करने की क्षमता विकसित होती है।
  • औपचारिक और अनौपचारिक भाषा को पहचानने की योग्यता प्राप्त होती है।

निष्कर्ष

पठन कौशल किसी भी भाषा को सीखने और समझने का एक महत्वपूर्ण पहलू है। यह कौशल व्यक्ति को न केवल बेहतर पाठक बनने में मदद करता है, बल्कि उसे आत्मनिर्भर, आलोचनात्मक विचारक और कल्पनाशील बनाता है। एक अच्छी पठन आदत जीवनभर उपयोगी होती है और ज्ञान प्राप्ति के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण साधन है। इसलिए, पठन कौशल को नियमित अभ्यास और उचित रणनीतियों से विकसित किया जा सकता है।

पठन कौशल की विधियाँ

पठन कौशल (Reading Skill) का अर्थ है लिखित सामग्री को पढ़ने, समझने, व्याख्या करने और उसका उचित अर्थ निकालने की क्षमता। यह एक महत्वपूर्ण शैक्षिक कौशल है, जो व्यक्ति के ज्ञान और संप्रेषण क्षमता को विकसित करने में सहायक होता है। पठन कौशल को विकसित करने के लिए विभिन्न विधियों का उपयोग किया जाता है, जो इस प्रकार हैं—


1. मौखिक पठन विधि (Oral Reading Method)

इस विधि में पाठ को जोर से पढ़ा जाता है, जिससे उच्चारण, ध्वनि, प्रवाह और शब्दों की पहचान में सुधार होता है।

विशेषताएँ:

  • छात्रों के उच्चारण, ध्वनि स्पष्टता और पढ़ने की गति में सुधार आता है।
  • यह विधि आत्मविश्वास बढ़ाने में सहायक होती है।
  • शिक्षक छात्र के पठन कौशल को सुनकर तुरंत सुधार कर सकते हैं।

नकारात्मक पक्ष:

  • यह धीमी विधि हो सकती है।
  • सभी छात्रों को एक साथ मौखिक पठन करने में कठिनाई हो सकती है।

2. मूक पठन विधि (Silent Reading Method)

इस विधि में पाठ को बिना आवाज किए पढ़ा जाता है, जिससे एकाग्रता और समझने की क्षमता में वृद्धि होती है।

विशेषताएँ:

  • यह विधि पढ़ने की गति को बढ़ाती है।
  • यह आत्मचिंतन और गहरे अध्ययन में सहायक होती है।
  • छात्र अपने अनुसार पढ़ सकते हैं, जिससे बेहतर समझ विकसित होती है।

नकारात्मक पक्ष:

  • उच्चारण सुधार में सहायक नहीं होती।
  • शिक्षक को यह जानना कठिन होता है कि छात्र सही पढ़ रहे हैं या नहीं।

3. व्यापक पठन विधि (Extensive Reading Method)

इस विधि में छात्र संपूर्ण पाठ्य सामग्री या संपूर्ण पुस्तक को पढ़ते हैं, जिससे वे कहानी, विषयवस्तु और मुख्य विचारों को समझते हैं।

विशेषताएँ:

  • छात्रों की शब्दावली और भाषा कौशल विकसित होते हैं।
  • यह आनंददायक और रुचिकर पठन को प्रोत्साहित करती है।
  • यह समझ विकसित करने में सहायक होती है।

नकारात्मक पक्ष:

  • इस विधि में गहराई से अध्ययन नहीं हो पाता।
  • कभी-कभी छात्र बिना समझे भी पढ़ सकते हैं।

4. गहन पठन विधि (Intensive Reading Method)

इस विधि में शब्दों, वाक्यों और पाठ्य सामग्री का गहराई से अध्ययन किया जाता है।

विशेषताएँ:

  • यह भाषा और व्याकरण सुधारने में सहायक होती है।
  • यह आलोचनात्मक सोच विकसित करने में मदद करती है।
  • छात्रों को पाठ की गहराई में जाने का अवसर मिलता है।

नकारात्मक पक्ष:

  • यह धीमी विधि हो सकती है।
  • रुचिकर न होने पर छात्र ऊब सकते हैं।

5. स्किमिंग विधि (Skimming Method)

इस विधि में पाठ के मुख्य बिंदुओं को जल्दी से पढ़ा जाता है ताकि संक्षेप में उसका अर्थ समझा जा सके।

विशेषताएँ:

  • यह परीक्षा और त्वरित अध्ययन के लिए उपयोगी होती है।
  • यह समय बचाने में सहायक होती है।
  • समाचार पत्र, लेख और रिपोर्ट पढ़ने में लाभकारी होती है।

नकारात्मक पक्ष:

  • पाठ की पूरी जानकारी नहीं मिलती।
  • महत्वपूर्ण बिंदु छूट सकते हैं।

6. स्कैनिंग विधि (Scanning Method)

इस विधि में पाठ में से किसी विशेष जानकारी को ढूँढने के लिए पढ़ा जाता है।

विशेषताएँ:

  • यह त्वरित सूचना प्राप्त करने में सहायक होती है।
  • आँकड़े, तिथियाँ और तथ्य ज्ञात करने के लिए उपयोगी होती है।
  • अनुसंधान और परीक्षा की तैयारी में सहायक होती है।

नकारात्मक पक्ष:

  • यह विधि पाठ को संपूर्ण रूप से समझने में सहायक नहीं होती।
  • शब्दावली और भाषा कौशल में वृद्धि नहीं होती।

7. आलोचनात्मक पठन विधि (Critical Reading Method)

इस विधि में पाठ को समझकर उसके अर्थों का विश्लेषण और मूल्यांकन किया जाता है।

विशेषताएँ:

  • यह गहरी सोच और तर्क करने की क्षमता विकसित करती है।
  • छात्र विभिन्न दृष्टिकोणों को समझ पाते हैं।
  • यह शोध आधारित अध्ययन के लिए उपयोगी होती है।

नकारात्मक पक्ष:

  • यह समय लेने वाली विधि हो सकती है।
  • सभी छात्रों के लिए इसे अपनाना आसान नहीं होता।

8. पूर्वावलोकन पठन विधि (Preview Reading Method)

इस विधि में पढ़ने से पहले पाठ के शीर्षक, उपशीर्षक, चित्रों और सारांश को देखा जाता है, जिससे यह समझने में मदद मिलती है कि पाठ किस बारे में है।

विशेषताएँ:

  • यह पाठ को जल्दी समझने में सहायक होती है।
  • छात्रों को रुचि उत्पन्न करने में मदद करती है।
  • यह परीक्षा की तैयारी में उपयोगी होती है।

नकारात्मक पक्ष:

  • इसमें गहन अध्ययन नहीं किया जाता।
  • यह संपूर्ण विषयवस्तु को समझने में सहायक नहीं होती।

9. स्व-निर्देशित पठन विधि (Self-Directed Reading Method)

इस विधि में छात्र अपनी रुचि के अनुसार पठन सामग्री चुनते हैं और स्व-निर्णय के आधार पर पढ़ते हैं।

विशेषताएँ:

  • यह आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देती है।
  • रुचिकर और प्रभावी पठन को प्रोत्साहित करती है।
  • यह लंबे समय तक ज्ञान बनाए रखने में सहायक होती है।

नकारात्मक पक्ष:

  • गलत पठन सामग्री का चुनाव हो सकता है।
  • बिना मार्गदर्शन के गलत समझ विकसित हो सकती है।

निष्कर्ष

पठन कौशल की विभिन्न विधियाँ व्यक्ति की समझने, सोचने और विश्लेषण करने की क्षमता को विकसित करने में मदद करती हैं। प्रत्येक विधि का अपना विशेष महत्व है और उसे आवश्यकतानुसार अपनाया जा सकता है। सफल पाठक बनने के लिए विभिन्न पठन विधियों का प्रयोग करना आवश्यक होता है।

“अच्छी पठन क्षमता व्यक्ति के बौद्धिक विकास की कुंजी होती है।” 😊

पठन शिक्षण की विधियाँ (Methods of Teaching Reading in Hindi)

पठन कौशल भाषा शिक्षण का एक महत्वपूर्ण अंग है, जिसके माध्यम से विद्यार्थी पढ़ने, समझने और संप्रेषण करने की क्षमता विकसित करते हैं। प्रभावी पठन शिक्षण के लिए विभिन्न विधियों का उपयोग किया जाता है, ताकि विद्यार्थी भाषा को सही ढंग से पढ़ने, अर्थ ग्रहण करने और नए शब्दों को सीखने में सक्षम हो सकें।

पठन शिक्षण की विधियाँ मुख्य रूप से चार भागों में विभाजित की जा सकती हैं:

  1. वर्ण आधारित विधियाँ (Alphabet-Based Methods)
  2. ध्वनि आधारित विधियाँ (Phonics-Based Methods)
  3. शब्द और वाक्य आधारित विधियाँ (Word and Sentence-Based Methods)
  4. संयोजित विधियाँ (Integrated or Eclectic Methods)

अब हम इन विधियों को विस्तार से समझेंगे।


1. वर्ण आधारित विधि (Alphabet Method)

यह विधि पठन शिक्षण की सबसे पुरानी और पारंपरिक विधियों में से एक है। इसमें विद्यार्थियों को सबसे पहले अक्षरों (स्वर और व्यंजन) की पहचान करवाई जाती है और फिर अक्षरों को जोड़कर शब्द बनाना सिखाया जाता है।

प्रक्रिया:
  1. सबसे पहले बच्चों को हिंदी के 13 स्वर (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः) और 33 व्यंजन (क, ख, ग, घ, ङ… क्ष, त्र, ज्ञ) सिखाए जाते हैं।
  2. इसके बाद विद्यार्थियों को इन अक्षरों का सही उच्चारण करने का अभ्यास कराया जाता है।
  3. अक्षरों को जोड़कर छोटे-छोटे शब्द बनाना सिखाया जाता है, जैसे – म+ल = मल, क+ल = कल, न+ल = नल।
  4. शब्दों को जोड़कर छोटे-छोटे वाक्य बनाना सिखाया जाता है।
विशेषताएँ:
  • यह विधि छोटे बच्चों के लिए उपयुक्त होती है।
  • बच्चों को अक्षरों की स्पष्ट पहचान होती है।
  • इससे पठन कौशल धीरे-धीरे विकसित होता है।
कमियाँ:
  • यह विधि पठन प्रक्रिया को धीमा बना सकती है।
  • विद्यार्थी शब्दों के अर्थ को समझने में कठिनाई महसूस कर सकते हैं।

2. ध्वन्यात्मक विधि (Phonetic Method)

इस विधि में विद्यार्थियों को अक्षरों की ध्वनियों (Sounds) के आधार पर पढ़ना सिखाया जाता है।

प्रक्रिया:
  1. विद्यार्थियों को पहले वर्णों की ध्वनियों से परिचित कराया जाता है।
  2. इन ध्वनियों को जोड़कर नए शब्दों का निर्माण कराया जाता है।
  3. धीरे-धीरे इन शब्दों को वाक्यों में प्रयोग करना सिखाया जाता है।
उदाहरण:
  • ‘क’ + ‘ल’ = ‘कल’
  • ‘म’ + ‘ा’ + ‘न’ = ‘मान’
  • ‘ग’ + ‘ल’ + ‘ी’ = ‘गली’
विशेषताएँ:
  • इससे बच्चों का उच्चारण सही होता है।
  • शब्दों को जोड़ने की क्षमता विकसित होती है।
  • पठन प्रक्रिया तेज होती है।
कमियाँ:
  • हिंदी भाषा में कई शब्दों की ध्वनियाँ अपवाद होती हैं, जिससे बच्चों को भ्रम हो सकता है।
  • यह विधि उन बच्चों के लिए कठिन हो सकती है जो श्रवण कौशल में कमजोर होते हैं।

3. शब्द पहचान विधि (Word Recognition Method)

इस विधि में विद्यार्थियों को संपूर्ण शब्दों की पहचान कराई जाती है, बजाय इसके कि वे अक्षर जोड़कर शब्द बनाएं।

प्रक्रिया:
  1. विद्यार्थियों को चित्रों के माध्यम से नए शब्द सिखाए जाते हैं।
  2. बार-बार शब्दों को देखकर और सुनकर उन्हें याद कराया जाता है।
  3. परिचित शब्दों का प्रयोग कर वाक्य पढ़ाया जाता है।
उदाहरण:
  • बच्चे को ‘आम’ शब्द का एक चित्र दिखाकर उसे पढ़ने के लिए कहा जाता है।
  • इसके बाद ‘आम’ शब्द को अन्य संदर्भों में भी प्रयोग कराया जाता है।
विशेषताएँ:
  • छोटे बच्चों के लिए आसान विधि है।
  • नए शब्द जल्दी याद होते हैं।
  • पठन कौशल तेजी से विकसित होता है।
कमियाँ:
  • इस विधि में नए शब्द सीखने की प्रक्रिया सीमित हो सकती है।
  • बच्चों को कभी-कभी नए शब्दों का सही उच्चारण करने में कठिनाई हो सकती है।

4. वाक्य विधि (Sentence Method)

इस विधि में पहले संपूर्ण वाक्य पढ़ाया जाता है, फिर उसमें से शब्द और वर्णों को अलग-अलग सिखाया जाता है।

प्रक्रिया:
  1. विद्यार्थी को पहले एक संपूर्ण वाक्य पढ़ाया जाता है।
  2. इसके बाद वाक्य में प्रयुक्त शब्दों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
  3. अंत में प्रत्येक शब्द में प्रयुक्त अक्षरों को पहचाना जाता है।
उदाहरण:

यदि विद्यार्थी को “आम मीठा है।” वाक्य पढ़ाया जाता है, तो बाद में उसे “आम”, “मीठा”, “है” शब्दों को अलग-अलग पहचानना सिखाया जाता है।

विशेषताएँ:
  • विद्यार्थी को पढ़ने और समझने की आदत जल्दी पड़ती है।
  • भाषा का समग्र विकास होता है।
कमियाँ:
  • इस विधि में छोटे बच्चों को कठिनाई हो सकती है।
  • यदि विद्यार्थी नए शब्दों से परिचित नहीं है, तो उसे वाक्य समझने में दिक्कत हो सकती है।

5. मिश्रित विधि (Eclectic Method)

इस विधि में वर्ण, ध्वनि, शब्द और वाक्य विधियों का मिश्रण किया जाता है।

प्रक्रिया:
  1. विद्यार्थी को पहले वर्ण और उनकी ध्वनियाँ सिखाई जाती हैं।
  2. फिर शब्द पहचानने की क्षमता विकसित की जाती है।
  3. बाद में संपूर्ण वाक्य पढ़ाया जाता है।
विशेषताएँ:
  • यह विधि विद्यार्थियों की सीखने की गति के अनुसार अनुकूल होती है।
  • पठन कौशल का समग्र विकास होता है।
कमियाँ:
  • इस विधि में शिक्षक को अधिक मेहनत करनी पड़ती है।
  • यह विधि समय लेने वाली हो सकती है।
निष्कर्ष

पठन शिक्षण की विधियाँ विद्यार्थी की सीखने की क्षमता और उनके भाषा ज्ञान के स्तर के आधार पर चुनी जाती हैं।

  • प्रारंभिक कक्षाओं में वर्ण आधारित और ध्वन्यात्मक विधियाँ अधिक प्रभावी होती हैं।
  • मध्यम और उच्च स्तर की कक्षाओं के लिए शब्द पहचान विधि और वाक्य विधि उपयोगी होती हैं।
  • मिश्रित विधि सबसे अधिक प्रभावी मानी जाती है, क्योंकि यह सभी विधियों का समुचित उपयोग करती है।

सही पठन शिक्षण विधि के चयन से विद्यार्थियों की पढ़ने, समझने और संप्रेषण करने की क्षमता में सुधार होता है और वे भाषा में निपुणता प्राप्त कर सकते हैं।

वाचन कौशल के उद्देश्य 

1. अभिव्यक्ति की क्षमता को विकसित करना

वाचन का मुख्य उद्देश्य यह है कि छात्र अपने भीतर के भावों, विचारों, अनुभूतियों और अनुभवों को स्पष्ट, सटीक और प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करना सीखें। जब छात्र अच्छा वाचन करते हैं, तो वे अपनी बात को बेहतर तरीके से कहने में सक्षम हो पाते हैं। इससे उनके आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और वे सामाजिक तथा शैक्षणिक दोनों ही क्षेत्रों में अधिक सफल होते हैं।

2. शुद्ध उच्चारण और उचित प्रस्तुति का अभ्यास करना

वाचन के माध्यम से छात्र भाषा के शुद्ध उच्चारण, सही शब्दों की ध्वनि, वाक्य की गति, विराम-चिह्नों का सही प्रयोग, आरोह-अवरोह और हाव-भाव का समुचित प्रयोग करना सीखते हैं। यह अभ्यास उनके बोलने के ढंग को आकर्षक और प्रभावी बनाता है।

3. आत्मविश्वास और संकोचमुक्त अभिव्यक्ति का विकास

जब छात्र निरंतर अभ्यास के साथ वाचन करते हैं, तो वे मंच पर या किसी समूह में निःसंकोच होकर बोलने लगते हैं। वे अपनी बात कहने में हिचकिचाते नहीं और धीरे-धीरे संवाद कौशल में दक्ष हो जाते हैं।

4. सामूहिक एवं परस्पर संवाद कौशल को बढ़ावा देना

वाचन केवल एकपक्षीय क्रिया नहीं है; यह संवाद की शुरुआत है। जब छात्र कक्षा में पढ़ते हैं, तो शिक्षक और सहपाठियों के साथ संवाद स्थापित होता है। इससे उनमें परस्पर संवाद, श्रोता बनने और अपनी बात स्पष्ट करने की योग्यता विकसित होती है।

5. धारा प्रवाह और सहज वाचन की आदत डालना

वाचन कौशल से छात्रों में बिना रुके, बिना झिझक के निरंतर बोलने की आदत विकसित होती है। यह अभ्यास उन्हें मंच पर भाषण देने, कहानी सुनाने, प्रस्तुति देने आदि में मदद करता है।

6. प्राकृतिक और जीवंत बोलने की शैली विकसित करना

वाचन के दौरान यदि छात्र भावों के अनुरूप पढ़ना सीखें, तो उनकी भाषा अधिक प्रभावी हो जाती है। यह स्वाभाविकता भाषा को यांत्रिक न बनाकर जीवंत बनाती है, जिससे श्रोता अधिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

7. प्रभावशाली प्रस्तुतीकरण का विकास

वाचन का अभ्यास छात्रों को इस योग्य बनाता है कि वे किसी विषय या विचार को इस प्रकार प्रस्तुत करें कि श्रोता उस पर ध्यान दें, समझें और प्रभावित हों। यह गुण आगे चलकर व्यक्तित्व विकास और करियर में अत्यंत सहायक होता है।

8. आदर्श वाचन से अनुकरणीय वाचन शैली का विकास

शिक्षक जब कक्षा में आदर्श वाचन प्रस्तुत करते हैं – जैसे कि सही लय, गति, यति, आरोह-अवरोह और शब्दों पर जोर देना – तो छात्र उसे सुनकर उसी शैली में पढ़ने का प्रयास करते हैं। यह अनुकरण उन्हें भाषा और भाव की सूक्ष्मताओं को समझने में सहायता करता है।

9. रसों एवं भावों के अनुसार वाचन का अभ्यास

वाचन में केवल शब्द पढ़ना पर्याप्त नहीं होता, बल्कि उन शब्दों में निहित भावों को व्यक्त करना भी आवश्यक होता है। जैसे ओज पूर्ण कविताओं का ओज के साथ, श्रृंगार रस की कविताओं का कोमलता के साथ वाचन किया जाना चाहिए। इससे छात्र न केवल भाषा, बल्कि साहित्य के सौंदर्य को भी समझते हैं।

10. मौन वाचन के माध्यम से स्वाध्याय की आदत विकसित करना

जब छात्र बिना आवाज के पढ़ना (मौन वाचन) करते हैं, तो वे एकाग्र होकर विषयवस्तु को समझने लगते हैं। यह आदत उनमें आत्म अध्ययन की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है, जिससे वे आत्मनिर्भर और जिज्ञासु बनते हैं।

वाचन कौशल के महत्व 

1. ज्ञानार्जन का मुख्य माध्यम

वाचन कौशल के माध्यम से हम विभिन्न पुस्तकों, लेखों, समाचारों और अन्य शैक्षणिक सामग्री से आवश्यक ज्ञान प्राप्त करते हैं। यह ज्ञान हमें न केवल परीक्षा में सफलता दिलाता है, बल्कि जीवन की समस्याओं को समझने और हल करने में भी सहायता करता है।

2. विचारों की प्रभावशाली अभिव्यक्ति

जब हम नियमित रूप से वाचन करते हैं, तो हमारी भाषा समृद्ध होती है और विचारों को स्पष्ट, सटीक व प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करने की क्षमता विकसित होती है। इससे बातचीत, भाषण और लेखन में निपुणता आती है।

3. विषय-वस्तु को समझने की क्षमता

अच्छा वाचन कौशल हमें किसी भी जटिल विषय को समझने, विश्लेषण करने और उसका अर्थ निकालने में मदद करता है। यह अध्ययन को अधिक गहराई से करने का अवसर देता है।

4. शब्दावली और भाषा में सुधार

वाचन के दौरान हम नई-नई शब्दावलियाँ, मुहावरे, लोकोक्तियाँ और व्याकरणिक संरचनाएं सीखते हैं, जिससे हमारी भाषा और लेखन शैली परिष्कृत होती है।

5. संचार कौशल में निखार

वाचन से प्राप्त ज्ञान और भाषा की समझ हमारे संचार कौशल को बेहतर बनाती है। हम अधिक आत्मविश्वास के साथ संवाद कर पाते हैं और दूसरों के विचारों को भी बेहतर ढंग से समझते हैं।

6. कल्पना शक्ति और बौद्धिक विकास

कहानियाँ, उपन्यास, कविताएँ और अन्य साहित्यिक रचनाएँ पढ़ने से हमारी कल्पना शक्ति जागृत होती है। यह मस्तिष्क को रचनात्मक और विश्लेषणात्मक सोचने में समर्थ बनाता है।

7. गहन चिंतन और विचारशीलता का विकास

वाचन केवल सतही जानकारी नहीं देता, बल्कि यह हमें विचारों की गहराई में ले जाता है। इससे हमारी चिंतनशीलता बढ़ती है और हम जीवन के विभिन्न पहलुओं पर बेहतर दृष्टिकोण विकसित करते हैं।

8. जीवन की कठिनाइयों से निपटने की समझ

अच्छा वाचन कौशल हमें विविध अनुभवों, दृष्टिकोणों और समस्याओं के समाधान से परिचित कराता है। इससे हम जीवन की चुनौतियों को समझदारी और विवेक के साथ सामना कर सकते हैं।

9. स्वावलंबी एवं सतत शिक्षण की दिशा में अग्रसरता

वाचन की आदत छात्रों को आत्मनिर्भर बनाती है। वे बिना किसी की सहायता के अध्ययन कर सकते हैं, जिससे आजीवन सीखने की प्रक्रिया संभव होती है।

वाचन कौशल की उपयोगिता

1. ज्ञान वृद्धि का प्रभावशाली माध्यम

वाचन के माध्यम से हम निरंतर नई-नई जानकारियाँ अर्जित करते हैं। चाहे वह विज्ञान हो, समाजशास्त्र हो, भाषा हो या साहित्य – वाचन हमें हर क्षेत्र की जानकारी देता है। यह ज्ञान हमें तर्कशील, सूझबूझ वाला और जागरूक नागरिक बनाता है।

2. समीक्षा और आलोचनात्मक दृष्टिकोण का विकास

वाचन हमारे भीतर विश्लेषण करने, विचारों की जांच-पड़ताल करने और विषयवस्तु की समीक्षा करने की क्षमता विकसित करता है। हम किसी लेख, विचार, या नीति की आलोचना या प्रशंसा तर्कसंगत ढंग से कर पाते हैं।

3. सांस्कृतिक विविधता की समझ

विविध भाषाओं, देशों और परंपराओं से संबंधित पुस्तकों को पढ़ने से हम अलग-अलग संस्कृतियों, जीवनशैलियों और सोच के तरीकों को समझ पाते हैं। इससे हमारी दृष्टि व्यापक होती है और हम अधिक सहिष्णु व समझदार बनते हैं।

4. शैक्षणिक सफलता में सहायक

वाचन कौशल छात्रों की पढ़ाई का आधार होता है। पाठ्यपुस्तकें, संदर्भ पुस्तकें, अनुसंधान सामग्री – सब वाचन के माध्यम से समझी जाती हैं। एक अच्छा पाठक ही एक अच्छा विद्यार्थी बन सकता है।

5. आत्म-अभिव्यक्ति में मददगार

वाचन से हमारे विचारों का दायरा बढ़ता है और हम अपने अनुभवों, भावनाओं और सोच को बेहतर ढंग से व्यक्त कर पाते हैं – चाहे वह लेखन के माध्यम से हो या वाक्यात्मक रूप में।

6. प्रभावी संप्रेषण (Communication) का निर्माण

जब हम पढ़कर भाषा को समझते हैं, तो हम दूसरों से बातचीत करते समय सही शब्दों, भावों और लहजे का प्रयोग कर पाते हैं। वाचन संप्रेषण कौशल को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

7. मनोरंजन का सशक्त साधन

उपन्यास, कहानियाँ, कविताएँ, आत्मकथाएँ और अन्य साहित्यिक रचनाएँ हमें भावनात्मक और मानसिक आनंद देती हैं। वाचन एक सकारात्मक और रचनात्मक मनोरंजन का माध्यम बन सकता है।

8. स्व-अध्ययन की आदत विकसित करना

वाचन कौशल से व्यक्ति में स्वाध्याय की प्रवृत्ति पैदा होती है। इससे वह अपने समय और रुचि के अनुसार पढ़ाई कर सकता है, जिससे आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास दोनों बढ़ते हैं।

9. साक्षरता और भाषा कौशल का निर्माण

वाचन केवल शब्दों को पढ़ने का कार्य नहीं है, बल्कि यह भाषा को समझने, शब्दार्थ ग्रहण करने, व्याकरण और लिपि के ज्ञान को भी समाहित करता है। यह पूर्ण साक्षरता की दिशा में पहला कदम है।

10. उच्च शिक्षा और करियर में सफलता का आधार

उच्च शिक्षा में सफलता पाने के लिए वाचन अनिवार्य है। अकादमिक लेख, शोध-पत्र, प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी – सब कुछ वाचन पर निर्भर है। साथ ही, करियर में भी रिपोर्ट, ईमेल, दस्तावेज़ आदि पढ़ने की दक्षता अनिवार्य होती है।

11. सस्वर वाचन का महत्व

सस्वर वाचन (उच्च स्वर में पढ़ना) से हमारी दृष्टि, श्रवण और मस्तिष्क – तीनों अंगों का समन्वय होता है। इससे छात्र ध्वनियों को पहचानना, उनका उच्चारण और सही लिपि संकेतों को समझना सीखते हैं। यह भाषा शिक्षण का मूल आधार है।

12. मौन वाचन एवं उसकी उपयोगिता

मौन वाचन (बिना आवाज किए पढ़ना) एकाग्रता और ध्यान केंद्रित करने की शक्ति को बढ़ाता है। यह छात्रों को तेजी से पढ़ने और गहराई से समझने में सहायक होता है।

13. गहन वाचन

गहन वाचन में पाठ के प्रत्येक वाक्य, शब्द और भाव का बारीकी से अध्ययन किया जाता है। यह साहित्यिक समझ, व्याकरणिक संरचना और विचारों की गहराई को समझने के लिए अनिवार्य है।

14. विस्तृत वाचन

विस्तृत वाचन में सीमित समय में अधिक सामग्री पढ़ी जाती है, जिससे व्यापक जानकारी प्राप्त होती है। यह सामान्य ज्ञान, समाचार, समसामयिक घटनाओं और संदर्भ अध्ययन के लिए उपयुक्त होता है।

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