समाचार लेखन के तत्व और समाचार लेखन के कितने ककार होते हैं

samachar lekhan ke kitne ang hote hain(समाचार लेखन के मुख्य आयाम)

पत्रकारिता की इमारत समाचारों की ईंटों से निर्मित होती है ईटों की संरचना सुघड़ और मजबूत होगी इमारत उतनी ही सुदृढ़ होगी अतः समाचारों की संरचना अर्थात उसे तैयार करना या लिखना पत्रकारिता का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है समाचार लेखन के तत्व या समाचार लेखन के मुख्य आयाम निम्नलिखित हैं-

समाचार लेखन के तत्व:

१. नवीनता

२. सत्यता

३. स्पष्टता

४. संक्षिप्ता

५. सुरुचि

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१. नवीनता:

नवीनता समाचार का प्रमुख तत्व है “प्रकृति के यौवन का श्रृंगार करेंगे तभी ना बासी फूल।”प्रसाद की इस उक्ति के अनुसार बासी समाचार पत्रों को गौरवान्वित नहीं कर सकते हैं। दैनिक पात्रों में 24 घंटे एवं सप्ताहिक पत्रों में 1 सप्ताह के बाद समाचार छपने पर समाचार नहीं रह जाता। आशय या है कि ताजा से ताजा समाचार पाठक को आकर्षित करता है विलंब होने पर निरर्थक हो जाता है नवीनता के अभाव में समाचार गल्प बातचीत आख्यान बन जाता है। समाचार के लिए तत्काल तक्षण अनिवार्य है (तत्काल तक्षण और अविलंब को समाचार का प्राण कहा गया है।)

 

२. सत्यता

समाचार का सबसे अनिवार्यता तत्व है सत्यता समाचारों को केवल सही तथ्यों पर आधारित होना चाहिए इसमें अनेक विचार अनुभव या टिप्पणी आदि नहीं जोड़े जा सकते हैं। झूठ या गलत बातें जोड़ना अथवा अनुमान या स्वाकलन के आधार पर समाचार तैयार करने से समाचार की विश्वसनीयता समाप्त हो जाती हैं Gardeyan के संपादक सीपी स्कॉट के अनुसार समाचार भले ही पत्रकार की भावना पर आघात करने वाला हो अथवा उसके विचारों के अनुकूल नहीं हो पर समाचार के तत्वों में बदलाव नहीं किया जाना चाहिए और निरपेक्ष यानी तथास्तु रहते हुए सही जानकारी और सूचना जनता तक पहुंचाना चाहिए।

 

३. स्पष्टता:

अगर सही बात यह जानकारी को साफ-साफ भाषा में प्रस्तुत नहीं किया जाए तो पाठकों श्रोताओं और दर्शकों के लिए समाचार को समझना मुश्किल होगा इसलिए समाचार को इतना स्पष्ट होना चाहिए कि उसे कोई भी बिना किसी उलझन के आसानी से समझ सके। समाचार लिखते समय सरल भाषा सही घटनाक्रम और व्यवस्थित विस्तार पर विशेष ध्यान देना चाहिए शब्द यथासंभव बोलचाल वाली भाषा के हो और भाषा में प्रवाह हो तभी समाचार स्पष्ट रूप से समझे जा सकेंगे।

 

४. संक्षिप्ता

समाचार सूचना या जानकारी पहुंचाने का माध्यम है व्यर्थ के विस्तार से समाचारों के प्रति लोगों की रूचि और उत्सुकता समाप्त हो जाती हैं इसलिए समाचार लिखते समय शब्द के आडम्बर और अनावश्यक विवरण देने से बचना चाहिए। कम शब्दों में प्राप्त जानकारी देना समाचार लेखन की सबसे बड़ी विशेषता मानी जाती हैं।

 

५. सुरुचि

समाचार लेखन सुरुचिपूर्ण होना चाहिए जहां लोग रुचि के समाचारों को आवश्यक विवरण देकर सजाया जाना जरूरी होता है वही वीभत्स और मन में भय उत्पन्न करने वाले समाचारों को यथासंभव कम शब्दों में केवल सूचना देने के रूप में लिखा जाना चाहिए अर्थात् जान भावना को ध्यान में रखकर उन्हीं समाचारों को महत्व दिया जाना चाहिए जिनमें जनता का हित हो और लोग जीने पसंद करते हैं।

 

समाचार लेखन के कितने ककार होते हैं (samachar lekhan ke 6 kakar)

उपर्युक्त तथ्यों पर आधारित जनकारी को समाचार का रूप देते समय 6 ककारों का उल्लेख करना आवश्यक है ये 6 ककार है:

१. क्या (घटना या स्थिति)

२. कब (समय या तर)

३. कहां (स्थान)

४. क्यों (कारण)

५. कौन (घटना का कारक/करने वाला)

६. कैसे (विवरण)

समाचार लिखते समय इन्हीं छह ककारों यानी प्रश्नों के उत्तर यथासंभव प्रस्तुत करने का प्रयास होना चाहिए समाचार के पहले अनुच्छेद या खंड में इन सभी प्रश्नों के उत्तर कम से कम शब्दों में लिखे जाते हैं इस क्रम में क्या प्रश्न सबसे पहले आता है और कैसे सबसे अंत में एक संवाददाता द्वारा इसी व्यवस्थित क्रम में लिखे गए समाचार का लाभ उसे प्रकाशित या प्रसारित करते समय पता चलता है। स्थानीय समय के अभाव में केवल पहला खंड लिया जाना पूरा समाचार बन जाता है। आगे के खंडों में समाचार के महत्व और उसकी उपयोगिता के आधार पर उसका उपयोग किया जा सकता है।

 

समाचार लेखन में क्या महत्वपूर्ण होता है या समाचार लेखन में निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है:-

१. प्रसार क्षेत्र की आवश्यकता ऊपर ध्यान रखना आवश्यक है।

२. पृष्ठ पर उपलब्ध स्थान अथवा चैनल के लिए उपलब्ध समय।

३. राष्ट्र की मर्यादा और समाज की परंपरा का ध्यान रखना आवश्यक है।

४. धर्म, जाति एवं संस्कृति के सम्मान एवं हित का ध्यान रखना आवश्यक है।

५. समाचार वक्तव्य यह टिप्पणी की प्रमाणिकता की जांच करना जरूरी है।

६. वक्ता के कथन या वक्तव्य को हू-ब-हू प्रस्तुत किया जाता है।

७. किसी अप्रिय घटना की शिकार महिला युक्ति की पहचान को उजागर नहीं करना

८. शीर्षक रोचक होना चाहिए।

९. किसी भी महत्वपूर्ण घटना पर दोनों पक्षों के विचारों को समान महत्त्व देना पड़ता है।

१०. व्यक्तिगत विचारों या अनुभवों को नहीं जोड़ना चाहिए।

११. किसी भी घटना के संबंध में विश्लेषण समीक्षक या ज्ञानकार बनने से बचना चाहिए।

 

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