लिंग भेद का कारण। लिंग विभेद को दूर करने के उपाय gender meaning in hindi

लिंग भेद का कारण। लिंग विभेद को दूर करने के उपाय gender meaning in hindi ling bhed ke karan aur dur karne ke upay।। जेंडर आधारित भेदभाव के मुख्य मुद्दों का वर्णन कीजिए।। जेंडर विभेदीकरण क्या है।। लैंगिक असमानता के कारण और समाधान या निवारण ।। laingik vibhed se aap kya samajhte hain।। laingik vibhed ko dur karne ka upay।। laingik vibhed ke karan।। gender bias and its indicators in hindi ।। gender meaning in hindi

लैंगिक भेद की अवधारणा (laingik vibhed kya hai, meaning of gender in hindi, gender meaning in hindi)


जिससे किसी के स्त्री या पुरुष होने का बोध हो उसे लिंग कहते हैं मनुष्य दो रूपों में जन्म लेता है स्त्री और पुरुष जिसे प्रारंभिक अवस्था में बालिका तथा बालक कहा जाता है। बालक तथा बालिकाओं की शारीरिक संरचना में ही विभिनता नहीं होती बल्कि दोनों की रुचियां तथा क्रियाकलापों में भी विभिन्न ता पाई जाती हैं।
जैविक रूप में लिंग को परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है कि जब स्त्री तथा पुरुष के XX गुणसूत्र मिलते हैं तब बालिका। जब स्त्री और पुरुष के XY  गुणसूत्र मिलते हैं तो बालक का निर्माण होता है। लिंग निर्धारित शरीर की ऐच्छिक क्रिया का परिणाम ना होकर ऐच्छिक क्रिया है। अता इसके लिए किसी को भी दोस नहीं दिया जा सकता है। फिर भी लिंग के आधार पर भेदभाव किया जाता है तथा बालकों की तुलना में बालिकाओं को कम समझा जाता है यहीं से लिंग भेद या लैंगिक भेद शुरू होता है।

लैंगिक विभेद का अर्थ या लैंगिक विभेद से तात्पर्य (gender meaning in hindi)

लिंग विभेद(gender bias) से तात्पर्य है बालक तथा बालिकाओं के मध्य पाए जाने वाला लैंगिक असमानता। बालक तथा बालिकाओं में उनके लिंग के आधार पर भेदभाव किया जाता है जिसके कारण बालिकाओं की समाज में, शिक्षा में, तथा पालन-पोषण में बालकों से निम्न स्तर स्थिति में किया जाता है। जिससे वे बिछड़ जाते हैं। बालक तथा बालिकाओं में विभेद उनके लिंग को लेकर किया जाता है। इस प्रकार लिंग के आधार पर के जाने वाला भेदभाव लैंगिक भेद या लिंग विभेद कहलाता है।
भारत में साक्षरता प्रतिमत की निम्न बालिकाओं द्वारा देखा जा सकता है

लिंग विभेद के कारण या लैंगिक विभेद के कारण(ling bhed ke karan ko spasht kijiye)

लिंग विभेद के कारणों को निम्नलिखित बिंदुओं के साथ स्पष्ट किया जा सकता है-

१. मान्यताएं एवं परंपराएं

लिंग भेद(gender bias) का एक प्रमुख कारण है भारतीय मान्यताओं तथा परंपराओं का है यहां जीवित पुत्र का मुंह देखने से पुण्य की प्राप्ति का वर्णन है। तथा श्रद्धा और पिंड कार्य आदि पुत्र के हाथ से ही संपन्न कराने की मान्यता रही है। स्त्रियों को पिता को अग्नि देने का अधिकार भी नहीं दिया गया है। जिसके कारण पुत्र को महत्व दिया जाता है। परिवार चलाने में भी पुरुषों को ही प्रधान माना गया है। जिसके परिणाम स्वरूप बालको बालिका की अपेक्षा अधिक महत्व दिया जाता है और कहीं-कहीं तो बालिकाओं को गर्भ में ही हत्या कर दी जाती हैं अधिकांश बालिकाओं को बोझ समझकर ही उसका पालन पोषण किया जाता है तथा सदैव उन्हें पुरुषों के अधीनन में जीवन व्यतीत करना पड़ता है अथर्ववेद में वर्णन किया गया है कि स्त्री को बाल्यकाल में पिता के आधीन और युवा अवस्था में पति के अधीन तथा वृद्धावस्था में पुत्र के अधीन रहना चाहिए। इस प्रकार मान्यताएं तथा परंपराएं लिंग विभेद को बढ़ाने का एक प्रमुख कारण है।

२. संकीर्ण विचार धारा:

बालक बालिकाओं में विभेद का एक कारण है लोगों की संकीर्ण विचारधारा। लड़के माता पिता के बुढापे का सहारा बनेगा वंश चलाएंगे उन्हें पढ़ा लिखा कर घर की उन्नति होगी। वही लड़की के जन्म होने पर शोक का माहौल होता है क्योंकि उसके लिए दहेज देना होगा विवाह के लिए वर ढूंढना होगा। और उन्हें सुरक्षा प्रदान करनी होगी। तथा पढ़ाने लिखाने में पैसा खर्च होगा लोगों की या भी सोच होती है कि बालिकाओं का कार्य क्षेत्र सिर्फ चूल्हे चौके तक ही सीमित होती है। और उनकी भागीदारी को बाहरी कार्यों में स्वीकार नहीं किया जाता है। जिसके कारण बालिकाओं को बालक की तुलना में कम महत्व दिया जाता है जिससे लिंग विभेद में वृद्धि होती है।

 

३. अशिक्षा

लैंगिक विभेद (gender bias) में अशिक्षा की भूमिका महत्वपूर्ण है अशिक्षित व्यक्ति परिवार तथा समाज में चले आ रहे अंधविश्वासों पर ही कायम रहते हैं। तथा बिना सोचे समझे उनका पालन करते हैं। परिणाम स्वरूप लड़के का महत्व लड़की की अपेक्षा अधिक मानते हैं। सभी वस्तुओं तथा सुविधाओं पर प्रथम अधिकार बालकों को प्रदान किया जाता है। इसके विपरीत शिक्षित व्यक्ति या विचार विमर्श करने लगा है कि लड़कों के भांति ही लड़कियां प्रत्येक क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है तथा लड़का लड़की एक समान होते हैं यदि लड़कियों को समुचित प्रोत्साहन और अवसर प्रदान किया जाए तो वह प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा सकती है इस प्रकार लैंगिक विकास  अशिक्षा के परिणाम स्वरूप होते हैं इस प्रकार लैंगिक विभेद अशिक्षा और अज्ञानता के परिणाम स्वरूप होते हैं।

४. जागरुकता का अभाव

जागरुकता के अभाव के कारण भी लिंग भेद में वृद्धि होती है समाज में अभी भी लैंगिक विभेद के मुद्दों पर जागरुकता की कमी है जिसके कारण बालक बालिका कि देखरेख शिक्षा तथा पोषण आदि इस स्तरों पर भेदभाव किया जाता है जागरुकता के अभाव में माना जाता है कि स्त्रियों का कार्यक्षेत्र घर की चार दीवारों तक ही सीमित हैं अतः उनकी शिक्षा तथा पालन पोषण पर व्यय नहीं किया जाता। लोगों का यह मानना है कि लड़कियां शैक्षिक रुप से लड़कों की अपेक्षा कमजोर होती है। लैंगिक भेद भाव के कारण बालिकाओं की विकास का उचित प्रबंध नहीं किया जाता है तथा लड़कियों के प्रत्येक क्षेत्र में कम माना जाता है। अतः बालकों को बालिकाओं के अपेक्षा अधिक महत्व दिया जाता है।

५. आर्थिक तंगी:

भारतवर्ष में आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की संख्या अत्याधिक हैं ऐसे में वह बालिकाओं की अपेक्षा बालकों को संतान के रूप में प्राथमिकता देते हैं जिससे वह उनके काम में हाथ बटा सके और आर्थिक जिम्मेदारी का बोझ बटाने में मदद करें। परंतु लड़कियां ना तो काम में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर पाती है न ही आर्थिक जिम्मेदारियों का वहन कर पाती है लड़कियों को पराया धन समझ कर माता पिता उनके पालन पोषण में अधिक व्यय नहीं करना चाहते जबकि लड़के के साथ वैसा नहीं करना पड़ता है। इस प्रकार आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवार मैं लड़कियों की अपेक्षा लड़कों को अधिक महत्व दिया जाता है जिससे लिंग भेद बढ़ता है।

६. सरकारी उदासिलता :

लिंग विभेद बढ़ने में सरकारी उदासिलता भी एक कारण है। सरकार लिंग विभेद(gender bias) करने वालों के साथ सख्त करवाई नहीं करती है और चोरी-छिपे चिकित्सालयों और निजी अस्पतालों में भ्रूण की जांच तथा कन्या भ्रूण हत्या का कार्य तेजी से हो रहा है। सार्वजनिक स्थानों तथा सरकारी ऑफिस में भी महिलाओं को पुरुष के अपेक्षा हिना दृष्टि से देखा जाता है और उनमें व्यक्त असुरक्षा के भाव को समाप्त करने के अपेक्षा उसमें वृद्धि करने का कार्य किया जाता है जिससे लिंग भेद में वृद्धि होती है।

७. सांस्कृतिक प्रथाएं:

भारतीय सांस्कृतिक प्राचीन काल से ही पुरुष प्रधान रही है। भारतीय संस्कृति में धार्मिक तथा यज्ञ कार्यों में पुरुषों की प्राथमिकता दी जाती है और कार्यों में स्त्रियों को उसमें शामिल होने का कोई अधिकार नहीं है ऐसी स्थिति में पुरुष का स्थान प्रधान या प्रथम हो जाता है वही स्त्री का स्थान गौण माना गया है यह स्थिति किसी एक वर्ग या समुदाय के स्त्री पुरुष की न होकर समस्त स्त्रियों की बनकर लिंगिय भेद की समस्या का रूप धारण कर लेती है।

८. सामाजिक कुप्रथाएं:

भारतीय समाज वर्तमान के तकनीकी युग में भी विभिन्न प्रकार की कुप्रथा तथा अंधविश्वासों से भरा हुआ है जैसे दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह, डायन प्रथा, प्रदा प्रथा इत्यादि इन सभी कुप्रथाओं के कारण समाज में लड़कियों का महत्व कम होते जा रहा है तथा शिक्षित होने के बावजूद भी लोग लड़कों की कामना करते हैं। जिसके कारण समाज में लिंग भेद की समस्या कम होने के बजाय उसमें और बढ़ोतरी हो रही है।

९. दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली:

भारतीय शिक्षा प्रणाली दोषपूर्ण है जिस कारण शिक्षा का संबंध व्यक्ति के व्यवहारिक जीवन से नहीं हो पाता है अतः बालिकाओं के संबंध में शिक्षा व्यवस्था का सुनियोजन सुनिश्चित रूप से नहीं हो पाता है जिसके कारण समय तथा पैसे दोनों का सही उपयोग नहीं हो पाता है विद्यालयों में प्रचलित पाठ्यक्रम सैद्धांतिक एवं दोषपूर्ण है तथा बालिकाओं की रूचियों का ध्यान भी पाठ्यक्रम में नहीं रखा जाता है जिससे बालिकाओं में पढ़ाई के प्रति अरुचि की भावना उत्पन्न हो जाती है शिक्षा के उद्देश्य भारतीय समाज तथा आवश्यकताओं के अनुरूप होने चाहिए बालिकाओं के लिए शिक्षा का उद्देश्य विभिन्न मानी जाती है शिक्षक विविधताओं निष्क्रिय हैं जिस कारण शिक्षा ग्रहण में बालिकाओं की रुचि नहीं होती है।

१०. मनोवैज्ञानिक कारण:

लिंग भेद(gender bias) में मनोवैज्ञानिक कारको की भूमिका भी महत्वपूर्ण है प्रारंभ से ही स्त्रियों के मन में यह घर कर जाती है कि पुरुष महिलाओं की अपेक्षा सर्वश्रेष्ठ है तथा महिलाओं को उनके प्रत्येक आज्ञा का पालन करना चाहिए। बिना पुरुष के स्त्री की पहचान या अस्तित्व नहीं है। पुरुष ही महिला की सुरक्षा करते हैं अतः समाज भी आदर्श स्त्री का दर्जा महिलाओं को प्रदान करता है। जिनके साथ पुरुष का साथ होता है वे सुखी स्त्री मानी जाती है इस प्रकार स्त्रियों में यह मनोवैज्ञानिक घर कर बैठ जाती है कि पुरुष उनसे श्रेष्ठ हैं और वह स्वयं स्त्री होकर भी बालिकाओं की जन्म तथा उनके विकास का विरोध करती है।

लिंग भेद को दूर करने का उपाय

भारत में शिक्षा तथा साक्षरता में वृद्धि तो दर्ज किया जा रही हैं परंतु लिंग भेद के संबंध में स्थिति अभी भी चिंता जनक हैं। बालक तथा बालिकाओं में कई प्रकार से विभेद किया जाता है। जिससे समाज का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है वर्तमान में प्रयास किए जा रहे हैं जैसे सरकारी, निजी, अर्द्ध सरकारी तथा समाजसेवी संस्था द्वारा किए जा रहे हैं। जिसे लैंगिक मुद्दों पर जागरूकता लाई जा सके। लिंग भेद के कारण स्त्री पुरुष के बीच खाई निरंतर बढ़ती जा रही है। इसलिए लिंगभेद को कम करने तथा उसकी समाप्ति के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं-

१. जन शिक्षा का प्रसार:-

स्त्री पुरुष में तब तक भेदभाव की स्थिति बनी रहेगी जब तक जनसाधारण के मध्य शिक्षा का प्रयास नहीं हो जाता है। वास्तविक अर्थ में भारतीय विशाल जनसमूह को शिक्षित करना होगा। जिससे लड़के लड़कियों के लिंग को लेकर धारणाएं है उनसे वे मुक्त हो सके। शिक्षा के द्वारा लोगों में जागरूकता आई है। जिससे लोग यह समझ सकते हैं कि स्त्री या पुरुष होना मायने नहीं रखता है बल्कि व्यक्ति का कार्य महत्व रखता है। इस प्रकार जन शिक्षा का प्रसार करके लिंगभेद को कम किया जा सकता है।

२. जागरूकता लाना:-

भारतीय समाज में अभी भी जागरूकता की कमी है। इसी कारण स्त्री और पुरुषों में वर्षों से चली आ रही भेदभाव की भावना अभी तक जीवित है। जिसको जागरूकता लाकर समाप्त किया जा सकता है। जागरूकता लाने के वर्तमान में अनेक साधन है जैसे TV, Radio, mobile, internet, नुक्कड़ नाटक चलचित्र दीवार लेखन पत्र पत्रिकाएं अखबार इत्यादि जिससे लोगों को लड़का लड़की के घटते अनुपात तथा उसके दुष्ट परिणामों से अवगत कराया जा सकता है जिससे समाज में जागरुकता आएगी तथा लिंग भेद की समस्या धीरे धीरे समाप्त हो जाएगी।

३. बालिका शिक्षा का प्रसार:

बालिका शिक्षा का प्रसार करके भी लिंग भेद को कम किया जा सकता है जहां पर बालिकाओं की साक्षरता दर अधिक है। बालिका लिंग अनुपात भी अधिक है। इससे स्पष्ट होता है कि लिंग अनुपात में शिक्षा की विशेष भूमिका है। पढ़ी-लिखी लड़की घर परिवार का बोझ नहीं समझी जाती बल्कि लड़कियों शिक्षित होकर परिवारिक उत्तरदायित्व का निर्वाहन भी करती है। जिससे लिंग भेदभाव में कमी आती है।

 

४. शिक्षा प्रणाली में सुधार:

भारतीय शिक्षा प्रणाली ब्रिटिश कालीन शिक्षा प्रणाली का अभी भी अनुकरण कर रही है जिसके कारण भारतीय शिक्षा भारतीय समाज की उद्देश्यों की पूर्ति करने में अपूर्ण सिद्ध हो रही है। जिसमें बालिका शिक्षा के उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो पा रही है। शिक्षा व्यवस्था में अनेक दोष व्याप्त हैं। जैसे अपूर्ण शिक्षण विद्यालयों में बालिकाओं के साथ भेदभाव पूर्ण व्यवहार बालिकाओं की आवश्यकताओं तथा सूचियों की अनुरूप पाठ्यक्रम का ना होना विद्यालयों का दूर होना तथा पृथक बालिका का विद्यालयों का अभाव होना गुणवत्तापूर्ण शिक्षण की कमी बालिकाओं की  व्यवसायिक शिक्षा की समुचित व्यवस्था ना होना पढ़ाई का वास्तविक जीवन से संबंध ना होना इत्यादि। इन सभी समस्याओं का समुचित समाधान करके ही शिक्षा प्रणाली में सुधार लाया जा सकता है तथा लिंगभेद को दूर किया जा सकता है।

५. बालिकाओं के लिए पृथक व्यवसायिक विद्यालयों की स्थापना करना:

बालिकाओं आत्मनिर्भर बनाने तथा पुरुष प्रधान भारतीय समाज में अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए व्यवसायिक शिक्षा का प्रबंध किया जाना चाहिए। बालिकाओं की स्थिति में सुधार साक्षरता मात्र से ही नहीं लाया जा सकता। परंतु उन्हें आत्मनिर्भर बनाने हेतु व्यवसायिक पाठ्यक्रमों की व्यवस्था की जानी चाहिए। जिसमें उनकी आवश्यकताओं तथा रुचिओं पर विशेष ध्यान दिया जाए। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए व्यवसायिक विद्यालयों की स्थापना की जाए जो सिर्फ महिलाओं के लिए हो आर्थिक स्वालंबन महिला तथा पुरुषों के मध्य जो लिंग भेद है उसे समाप्त करने में मुख्य भूमिका निभाता है और या व्यवसायिक शिक्षा द्वारा ही संभव हो सकता है।

६. सामाजिक कुप्रथाओं रोक:

समाज में अनेक कुप्रथाएं है। जिसका प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों ही प्रभाव महिलाओं पर पड़ता है। समाज में प्रदा प्रथा बाल विवाह डायन प्रथा कन्या भ्रूण हत्या विधवा विवाह निषेध आदि प्रचलित है। जिसके कारण स्त्रियों को शारीरिक तथा मानसिक रूप से प्रताड़ित होना पड़ता है। अत: इन कुप्रथाओं पर रोक लगानी चाहिए। इस शिक्षा में अनेक प्रयास किए जा रहे हैं जैसे शरदा एक्ट द्वारा बाल विवाह पर रोक राजा राममोहन राय के प्रयासों के परिणाम स्वरूप सती प्रथा का समापन संविधान के द्वारा बालिका विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष का निर्धारण आदि के द्वारा स्त्रियों की स्थिति में सुधार आया है। इन कुप्रथाओं पर रोक लगाकर उन्हें पुरुषों के समक्ष स्थान दिला कर समाज को लिंग भेद को दूर किया या समाप्त किया जा सकता है।

७. सुरक्षात्मक वातावरण

बालक तथा बालिका के लिंग में इसलिए भी भेद किया जाता है कि बालिकाओं की आयु जैसे-जैसे हैं वृद्धि होती हैं वैसे वैसे माता-पिता की उनकी सुरक्षा की चिंता सताने लगती है क्योंकि समाज अभी भी बालिकाओं के लिए सुरक्षित नहीं है। पुलिस तथा प्रशासन के साथ समाज को भी ऐसा सुरक्षात्मक वातावरण सृजित करना चाहिए जिससे बालिकाएं जब घर से निकले तो उनके माता-पिता तथा अभिभावक को सुरक्षा की चिंता ना हो। सुरक्षात्मक वातावरण के निर्माण में सामाजिक भागीदारी की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है। घर तथा बाहर प्रत्येक स्थान पर सुरक्षात्मक वातावरण होने से बालिकाएं अपना अध्ययन और रोजगार निडर होकर करेंगी तथा आगे बढ़कर आत्मनिर्भर बनेगी। जिससे वे पुरुषों के बराबरी कर मुख्यधारा में आ सकेंगे इन सभी की व्यवस्था से लिंगभेद को दूर किया जा सकता है।

८. प्रशासनिक प्रयास:-

लिंग भेद को समाप्त करने में प्रशासनिकों प्रयासों की भूमिका भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। जो भी नियम सरकार द्वारा बनाये गये हैं। उनका सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। जो भी प्रशासन के नियमों का पालन नहीं करेंगे और कन्या भ्रूण हत्या जैसे चिकित्सालायों, व्यक्तियों तथा क्लिनिको पर सख्त से सख्त करवाई करनी चाहिए। तथा इनकी मान्यता समाप्त कर देनी चाहिए। प्रशासन को लिंग भेद को कम करने के लिए साहसी और प्रतिभा महिलाओं तथा बालिकाओं को प्रोत्साहित करना चाहिए जिससे लोगों में लिंग भेद के विषय में धारणाएं बदल जाए।

९. संविधान उपचार:

भारतीय संविधान में स्त्रियों के विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है तथा उसकी सभता हेतु अनेक धाराओं का निर्धारण किया जाता है। तथा संविधान में स्त्री पुरुष में कोई भेदभाव नहीं किया जाता है । मौलिक अधिकार पुरुषों के लिए जितना हैं उतना ही बालिकाओं के लिए भी है। और महिलाओं की पिछड़ी स्थिति को देखते हुए उनकी उन्नति के लिए विशेष प्रयास किए गए हैं। महिलाओं की सुरक्षा हेतु विशेष प्रावधान बनाएं गए हैं तथा सजा जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है इस प्रकार संविधान में उपचार तो बहुत किए गए हैं परंतु उन उपचारों के विषय में जितनी जागरुकता होनी चाहिए उतनी नहीं है अतः प्रावधानों के विषय में जागरुकता फैलाकर लिंग भेद को कम किया जा सकता है।

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