रस क्या होता है,रस की परिभाषा एवं उसके प्रकार लिखिए,रस के अंग,रस in hindi,ras in hindi
साहित्य शास्त्र में रस शब्द का प्रयोग ‘काव्यानंद या काव्यास्वाद‘ के लिए किया गया है। रस का शाब्दिक अर्थ होता है आनंद। रस को ‘काव्य की आत्मा या काव्य का प्राण’ माना जाता है।
जब हम किसी भी कविता या काव्य को पढ़ते या सुनते हैं या फिर देखते समय हमें जिस आनंद की अनुभूति होती है उसे ही रस कहा जाता है। रस शब्द का सबसे पहले उल्लेख नाटक के संबंध में किया जाता था। भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में रस शब्द का उल्लेख किया है। नाट्यशास्त्र को पंचम वेद भी कहा जाता है। भरतमुनि के अनुसार विभाव, अनुभव व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती हैं। भरत मुनि ने अपने रस सूत्र में स्थायी भाव का उल्लेख नहीं किया है। इस प्रकार भरतमुनि रस की संख्या 8 बताया है। १.श्रृंगार २.हास्य ३.करुण ४.रौद्र ५.वीर ६.भयानक ७.वीभत्स और ८.अद्भुत। उद्भट ने इसमें शांत नामक एक रस और छोड़ दिया। ये ही 9(नौ) रस साहित्य में चिरकाल तक स्वीकार्य रहे। बाद में विश्वनाथ ने वात्सल्य नामक एक नवीन रस का उल्लेख किया। पीछे चल कर रूप गोस्वामी ने अपनी पुस्तक ‘हरिभक्तिरसामृतसिंधु’ में भक्ति को भी स्वतंत्र रस मानने के तर्क दिए। इस प्रकार वर्तमान में 11 रसों की चर्चा की जाती है
१.श्रृंगार २.हास्य ३.करुण ४.रौद्र ५.वीर ६.भयानक ७.वीभत्स ८.अद्भुत ९. शांत १०.वात्सल्य ११. भक्ति।
रस के कितने अंग होते हैं उनके नाम लिखिए या रस के अवयव कितने होते है(ras in hindi)
रस के चार अंग या अवयव होते हैं उनके नाम इस प्रकार है-
१.स्थायी भाव
२.विभाव
३.अनुभाव
४.संचारीभाव (व्याभिचारी भाव)
१.स्थायी भाव की परिभाषा,स्थायी भाव की संख्या कितनी है
रस | रस का स्थायी भाव |
---|---|
श्रृंगार | रति |
रौद्र | क्रोध |
भयानक | भय |
करूण | दुःख |
शांत | निर्देश (वैराग्य) |
हास्य | हंसी |
वीर | उत्साह |
अद्भुत | अद्भुत |
वीभत्स | घृणा |
2.विभाव किसे कहते हैं,विभाव के कितने भेद होते हैं या विभाव के कितने प्रकार होते हैं
3.अनुभाव:
4.संचारी भाव किसे कहते हैं,संचारी भाव की संख्या कितनी होती है
रस के भेद
१. श्रृंगार रस:
2. हास्य रस
हास्य मनुष्य की मनोरंजन कृति है और शास्त्र कारों के अनुसार हास्य का उद्रेक विकृत, आकार विकृत, आचरण विकृत वाणी आदि असंगतियों से होता है। हास्य रस के माध्यम से कविता में गुदगुदी उत्पन्न की जाती हैं हंसी हास्य रस का स्थायी भाव है और शंकर के गणों को हास्य का देवता बताया गया है। गोपाल प्रसाद व्यास की निम्न पंक्तियां लिखी जा सकती है-
3. वीर रस
जहां विषय और वर्णन से वीरता प्रदर्शित होती हैं वहां वीर रस होता है उत्साह वीर रस का स्थायी भाव है और शास्त्र कारों के अनुसार महेंद्र इसके देवता हैं। युद्ध, दान, दया और धर्म के क्षेत्र में वीरता प्रदर्शित करने की परंपरा रही है लेकिन वीर रस में मुख्यत: रण पराक्रम का वर्णन किया जाता है। वीर रस में गर्वीली वाणी आवेश एवं युद्ध कौशल की प्रस्तुति होती हैं। मैथिलीशरण गुप्त की इन पंक्तियों में युद्ध वीरता की ऐसे ही दुत्कार हैं-
वीर रस में कठोर वर्णो की योजना रस को अनुकूलता देती है तुलसी की इन पंक्तियों में वीर रस का सर्जक योजना हुई है-
4. करुण रस
जहां किसी हानि के कारण शोक भाव उपस्थित होता है वहां करुण रस उपस्थित होता है। यह हानि किसी अनिष्ट किसी के निधन अथवा प्रेम पत्र के चिर वियोग के कारण संभव होती है शोक इसका स्थायी भाव है और यम को इस रस का देवता कहा गया है। संस्कृत के महाकवि भवभूति ने करुण को ही एकमात्र रस माना है। करुण रस में शोक वश प्रलाप मूर्छा रूदन और विषाद का चित्रण कवियों ने किया है। श्री कृष्ण के मथुरा चले जाने से संतृप्त (पीड़ा से व्यथित) यशोदा के इस विलाप द्वारा हरिऔध ने करूण रस की सृष्टि की है-
करुण रस की अन्यतम स्थिति मरण या मरणोपरांत विलाप में है। रामचरितमानस में दशरथ के निधन को तुलसीदास ने करुण रस की चरम स्थिति के रूप में चित्रित किया है।
5. रौद्र रस
जहां विरोध अपमान आदि के कारण प्रतिशोध की भावना क्रोध उपजाती है वही रौद्र रस साकार होती है। क्रोध रौद्र रस का स्थायी भाव है और रूद्र को आचार्यों ने रौद्र रस का देवता माना है। गुस्से में कठोर बोलना, ललकारना, दांत पीसना पैर पटकना आंखें लाल करना मारना आदि जिस क्रोध के अनुभव है वह क्रोध इस रस का केंद्रीय विषय होता है विभीषण पर रावण का यह क्रोध तुलसी के शब्दों में रौद्र रस का ही उदाहरण है-
6. भयानक रस
भय की जिन परिस्थितियों में मन और शरीर में घबराहट, चिंता, त्रास आदि का अनुभव होता है उन्हीं परिस्थितियों में भयानक रस उपस्थित होता है। भय भयानक रस का स्थायी भाव है और कालदेव को इसका देवता कहा गया है।भय उपजाने वाली वस्तुएं और परिस्थितियां भयानक रस के लिए आलंबन बनती है किसी प्राचीन कवि ने लिखा है-
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7.विभित्स (घृणा) रस-
घृणित वस्तु को देखने या उसकी चर्चा सुनने से ही मन में घृणा का भाव उत्पन्न होता है। यही घृणा या जुगुप्सा वीभत्स रस का स्थायी भाव है। महाकाल को शास्त्र कारों ने इस रस का देवता बताया है। वीभत्स रस के अंतर्गत उन सारी वस्तुओं और स्थितियों का वर्णन होता है जिन से घृणा उपजती है सत्य हरिश्चंद्र नाटक में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने श्मशान ऐसा ही वर्णन किया है-
8. अद्भुत रस
जहां किसी अनोखी अपूर्व विचित्र वस्तु या स्थिति को देखकर मन और शरीर आश्चार्य से भर जाता है। वही अद्भुत रस होता है। अचरज के साथ आंखें फ़ाड़ कर देखना मुंह खुला रह जाना रोमांचित हो ना और स्तंभित होना। अद्भुत रस के स्थायी भाव विस्मय के अनुभव है। ब्रह्मा को अद्भुत रस का रस का देवता कहा गया है। कौरवों की सभा में श्री कृष्ण के विलक्षण विराट स्वरूप का चित्रण में अद्भुत रस संचारित है-
9. शांत रस
दार्शनिक और आध्यात्मिक ज्ञान द्वारा जब आत्म चिंतन संसार की निरसारता एवं परमात्मा की सत्यता पर केंद्रित होने लगता। शांत रस का स्थायी भाव निर्वेद (वैराग्य) हैं। निर्वेद की स्थिति में मन संसार के मोह माया से मुक्त होकर आध्यात्मिक और भक्ति में लीन हो जाता है। समस्त दार्शनिक भक्ति परक चिंतन और साहित्य को शांत रस का ही उदाहरण कहा गया है बिहारी जैसे श्रृंगारिक कवि के इस दोहे में संसार की नश्वरत्म और ईश्वर की व्यापकता शांत रस का आधार बनी है-
10. वात्सल्य रस:
जहां संतान के प्रति माता पिता और अभिभावकों का आपार स्नेह उमड़ता है वहां पर वात्सल्य रस प्रकट होता है। स्नेह या वत्सलता वात्सल्य रस का स्थायी भाव है। और श्री कृष्णा वात्सल्य रस के देवता माने गए हैं। बच्चों की क्रीड़ाएं और उनकी सारी गतिविधियां वात्सल्य रस का आलंबन बनती है। श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का इतना सरल और स्वाभाविक चित्रण सूरदास ने किया है कि उनके पदों में वात्सल्य रस का चरम उत्कर्ष दिखाई पड़ता है श्रृंगार रस की भांति वात्सल्य के दो पक्ष हैं संयोग और वियोग।
क) संयोग वात्सल्य: जब बालकों की ऐसी बातों का वर्णन होता है जिनमें उनके अपने माता पिता आदि के उनके पास उपस्थित रहने का उल्लेख होता है। तब संयोग वात्सल्य होता है।
ख) वियोग वात्सल्य: जब बालकों के माता-पिता आदि से अलग हो जाने पर उनकी अथवा उनके कारण मां बाप की दयनीय दशा का वर्णन होता है तब वियोग वात्सल्य होता है महाकवि सूरदास ने कृष्ण के मथुरा चले जाने पर माता यशोदा का अपने वाला के वियोग में सती उत्तम वर्णन किया है।
भक्ति रस में ईश्वर के प्रति भक्ति भाव जागृत होता है जिसमें ईश्वर के प्रति मानव का संस्कार दिखाई देता है जब मनुष्य ईश्वर के प्रति भक्ति भावना स्थाई रूप में प्रतिष्ठित होने लगता है तब भक्ति रस उत्पन्न होने लगता है जैसे:-
धन्यवाद