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जीन जैक्स रूसो का जीवन परिचय/रूसो का जीवन परिचय
विश्व के महान शिक्षा शास्त्री एवं दार्शनिक रूसो का जन्म 1712 ईस्वी को इटली के जेनेवा नगर में एक निर्धन परिवार में हुआ था। उनके जन्म लेते ही उनकी माता का देहांत हो गया। 6 वर्षों की आयु में उन्होंने साहित्य धर्म और इतिहास संबंधी अनेक पुस्तकें पढ़ें। विद्यालय का वातावरण उनके अनुकूल ना होने के कारण वे विद्यालय की शिक्षा को व्यर्थ की शिक्षा मानने लगे। 25 वर्ष की आयु में उन्होंने साहित्य का अध्ययन किया तथा अनेक लेखकों के संपर्क में आने पर लिखना शुरू किया। उन्होंने अनेक किताबें एवं लेख लिखें जिनके कारण फ्रांस में महान क्रांति हुए। 38 वर्ष की आयु के पश्चात सन् 1750 ईस्वी में रूसो की रचनाएं छपने लगी। रूसो के अंतिम दिन अपमान चिंता तथा जीवन के प्रति भय में व्यतीत हुए। वह 1766-68 ई. तक इंग्लैंड जेनेवा तथा फ्रांस इत्यादि देशों में भागता रहा तथा अंत में 1778 ईस्वी में फ्रांस में मर गया। उसके मरने के 15 वर्ष पश्चात फ्रांस की राज्य क्रांति के अवसर पर उसे महान व्यक्ति तथा क्रांतिकारी होने का गौरव प्राप्त हुआ।
रूसो के पुस्तकों के नाम(jean jacques rousseau books):-
१. प्रोजेक्ट फॉर द एजुकेशन ऑफ एम.डी.सेंट मैरी
२. दि प्रोग्रेस ऑन आर्ट्स एण्ड साइंस (1750)
३. सोशल कॉन्ट्रैक्ट (1762)
४. द न्यू हेलॉयज (1761)
५. एमील (Emile) 1762
रूसो का शिक्षा दर्शन(ruso ka shiksha darshan) rousseau on education,
रूसो का शिक्षा दर्शन इस पर आधारित हैं “प्रत्येक वस्तु उस समय तक अच्छी होती है जब तक वह कर्ता के हाथों से निकली है पर मनुष्य के हाथों में आते ही वह बुरी हो जाती है।”
रूसो के शिक्षा दर्शन का यही मूल मंत्र है कि उन्होंने तत्कालीन कृत्रिम की आलोचना की हैं और कहा कि झूठ उदासीनता तथा बेईमानी से मानव जीवन का पतन कर डाला है। रूसो के अनुसार प्रकृति, मनुष्य और पदार्थ ये तीन शिक्षा के साधन है।
वह बच्चे की प्रवृत्तियों तथा योग्यताओं का बहुत आदर करते थे क्योंकि उनका मानना था कि बच्चे के ये गुण प्रौढ़ों के गुणों से भिन्न होते हैं शिक्षक को इनकी अवहेलना नहीं करनी चाहिए। बच्चे को छोटा प्रौढ़ नहीं समझना चाहिए क्योंकि जो बात प्रौढ़ के लिए लाभदायक हो सकती हैं वह बच्चों के लिए हानिकारक हो सकती हैं। बच्चे के मस्तिष्क में ऐसा असंबंध ज्ञान नहीं देना चाहिए जिससे उसे कोई रूचि न हो। रूसो की शिक्षा निषेधात्मक है उनके अनुसार बालक को 12 वर्ष की अवस्था तक किसी प्रकार की औपचारिक शिक्षा नहीं देना चाहता था। बल्कि उन्हें प्रकृति के साथ छोड़ देना चाहिेए ताकि बालक का सम विकास के लिए उचित अवसर मिल सके। उनका मानना है कि शिक्षा हमें प्रकृति मनुष्य तथा वस्तुओं से मिलती है इन तीनों की समानता ही अच्छी शिक्षा की परिचायक है। परंतु मनुष्य तथा प्रकृति में सदैव ही नहीं बनती इसलिए मनुष्य को मनुष्य अथवा नागरिक बनने के लिए किसी एक का चुनाव करना होगा रूसो का चुनाव मनुष्य की ओर है और इसलिए वह प्राकृतिक शिक्षा को सामाजिक शिक्षा से अच्छी मानता है। रूसो ने शिक्षा को चार भागों में बांटा है शैशव, बाल्यावस्था किशोरावस्था तथा प्रौढ़ता की ओर। रूसो शिक्षा का प्रारंभ जन्म से ही मानते हैं जन्म से ही बचा जो कुछ प्रकृति से सीखता है वही उनका शिक्षा है। रूसो की शिक्षा का मूल उद्देश्य भौतिक है इसलिए वह बालक को व्यक्तियों की वजाय वस्तुओं पर निर्भर रखना चाहता है।
रूसो के शिक्षा का उद्देश्य
“जीवन का अर्थ केवल सांस भर लेना ही नहीं है। जीवन कर्म है अपने अंगों ज्ञानेंद्रियों क्षमताओं तथा अपने अंगों का प्रयोग करना ही जीवन है जो हमें जीवित रहने की अनुभूति कराती है। जीवन का अधिक अनुभव रखने वाला व्यक्ति वह नहीं है जो अधिक दिन तक जीवित रहता है। परंतु वह व्यक्ति है जिसने पूर्णतः से जीवन का अनुभव किया है।”
अतः शिक्षा का उद्देश्य भी रूसों ने पूर्णतया से जीवन व्यतीत करने को मानते हैं।
रूसो उपदेश वाद के विरोधी थे स्वाध्याय किस सिद्धांत को मानते थे। वे लंबी-लंबी व्याख्याएं देना पसंद नहीं करते थे क्योंकि छोटे बालक न तो इसकी ओर ध्यान देते हैं और न ही उन्हें समझ पाते हैं। रूसो का मानना है कि जो बातें बालक स्वयं अपनी चेष्टा से सीखता है वह उसके जीवन में गहरा प्रभाव छोड़ जाती हैं।
रूसो का शिक्षा संबंधी सिद्धांत rousseau education theory, jean-jacques rousseau education theory
रूसो के जीवन के विषय में दिए गए विवरण में उनके शिक्षण संबंधी विषयों का सिद्धांत इस प्रकार से हैं
१. प्रकृतिवाद:
रूसो प्रकृतिवादी थे। उन्होंने प्राकृतिक शिक्षा को ही स्वाभाविक मानते हुए विद्यालय में नियमित और कृत्रिम शिक्षा प्रणाली की आलोचना की। रूसो के अनुसार बालक को शिक्षा के लिए सामाजिक नहीं बल्कि प्राकृतिक परिवेश की आवश्यकता होती है। रूसो ने प्रकृति की ओर लौटो तथा प्रकृति का अनुसरण करने का नारा दिया है उनका मानना था कि प्रकृति बालक की शिक्षा का सबसे बड़ा स्रोत है।
२. प्राकृतिक मानव का विकास:
प्राकृतिक शिक्षा से रूसो प्राकृतिक मानव का विकास करना चाहते थे। मनुष्य को जो शिक्षा समाज और समूह के प्रभाव से मिलती हैं वह मानवीय शिक्षा और जो शिक्षा वह अपने चारों ओर के परिवेश से प्राप्त करता है वह प्राकृतिक शिक्षा है और यही सच्ची शिक्षा हैं।
३. पदार्थ का महत्व:
रूसो ने शिक्षा के 3 स्रोत माने हैं
i.प्रकृति. ii.मानव और iii.पदार्थ बालक की शिक्षा में इन तीनों का ही समन्वय आवश्यक है। उनके अनुसार शिक्षा में मनुष्य पदार्थ और प्रकृति का समन्वय होना चाहिए। यह तीनों ही बालक में स्वाभाविक प्रवृत्ति भावना और विचार के विकास के साधन हैं। ये तीनों ही बालक के शिक्षक हैं।
रूसो के अनुसार विद्यालय
रूसो के अनुसार स्त्री शिक्षा
रूसो के शैक्षिक विचारों का मूल्यांकन
१. समाज विरोधी:
२. बालक संबंधी ज्ञान अपूर्ण
३. नारी शिक्षा संबंधी दृष्टिकोण संकुचित
४. प्राकृतिक अनुशासन का सिद्धांत दोषपूर्ण
५. परस्पर विरोधी विचार
रूसो के द्वारा बताए गए शिक्षण विधि
१. स्वानुभव द्वारा सीखना:
२. करके सीखना:
३. अनुशासन:
४. विद्यालय:
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