लेखन कौशल (Writing Skill in Hindi): अर्थ, परिभाषा, महत्व, विशेषताएं, विधियां, उद्देश्य, उपयोगिता, प्रकार

लेखन कौशल Lekhan Kaushal (Writing Skill in Hindi): अर्थ, परिभाषा, महत्व, विशेषताएं, विधियां, उद्देश्य, उपयोगिता, प्रकार, दोष, सुझाव 

लेखन कौशल क्या है? (What is Writing Skill in Hindi)

लेखन कौशल (Writing Skill) वह क्षमता है, जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं, तथ्यों और सूचनाओं को स्पष्ट, प्रभावी और रोचक तरीके से लिखित रूप में प्रस्तुत कर सकता है। यह एक महत्वपूर्ण संचार कौशल (Communication Skill) है, जो भाषा ज्ञान, शब्दावली, रचनात्मकता और अभिव्यक्ति की क्षमता को दर्शाता है। lekhan kaushal

किसी भी भाषा में लेखन केवल शब्दों को जोड़ने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह एक कला और विज्ञान दोनों है। यह व्यक्ति की सोचने, तर्क करने, विश्लेषण करने और प्रभावी ढंग से संवाद स्थापित करने की योग्यता को प्रदर्शित करता है। लेखन न केवल व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का साधन है, बल्कि यह शिक्षा, व्यवसाय, साहित्य, पत्रकारिता और प्रशासनिक कार्यों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

लेखन कौशल (Writing Skill in Hindi): अर्थ, परिभाषा, महत्व, विशेषताएं, विधियां, उद्देश्य, उपयोगिता, प्रकार

लेखन कौशल का अर्थ एवं परिभाषा (Writing Skill Meaning and Definition in Hindi)

लेखन कौशल का अर्थ

लेखन कौशल (Writing Skill) का तात्पर्य उन क्षमताओं और योग्यताओं से है, जिनके माध्यम से व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं, तथ्यों और सूचनाओं को प्रभावी, स्पष्ट और रोचक तरीके से लिखित रूप में अभिव्यक्त करता है। यह संचार का एक महत्वपूर्ण साधन है, जो भाषा के ज्ञान, शब्दावली, रचनात्मकता और अभिव्यक्ति की क्षमता को दर्शाता है।

लेखन केवल अक्षरों या शब्दों को कागज पर उतारना नहीं है, बल्कि यह एक कला है जो सोचने, समझने और अभिव्यक्त करने की क्षमता को दर्शाती है। यह शिक्षा, व्यवसाय, साहित्य, पत्रकारिता, प्रशासन और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


लेखन कौशल की परिभाषाएँ विभिन्न विद्वानों के अनुसार (lekhan kaushal ki paribhasha)

1. एडवर्ड सबाइन (Edward Sabine)
“लेखन कौशल केवल शब्दों का संयोजन नहीं, बल्कि विचारों को प्रभावी रूप से प्रस्तुत करने की कला है।”

2. एफ. एल. बिल्स (F.L. Bills)
“लेखन वह माध्यम है जिसके द्वारा व्यक्ति अपनी भावनाओं और विचारों को लिखित रूप में व्यवस्थित और स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करता है।”

3. क्रिस्टोफर ब्राउन (Christopher Brown)
“लेखन केवल भाषा का उपयोग करने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह एक सृजनात्मक और तार्किक प्रक्रिया है, जो विचारों को संरचित और प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत करने का माध्यम है।”

4. जे. एस. मिल (J.S. Mill)
“लेखन व्यक्ति की बौद्धिकता और भाषा कौशल का परिपक्व रूप होता है, जो विचारों को व्यवस्थित और प्रभावी रूप में व्यक्त करता है।”

5. विलियम स्ट्रंक जूनियर (William Strunk Jr.)
“अच्छे लेखन की विशेषता इसकी स्पष्टता, संक्षिप्तता और सटीकता में निहित होती है।”

6. अर्नेस्ट हेमिंग्वे (Ernest Hemingway)
“लेखन एक सरल और स्पष्ट कला है, जिसे जितना स्पष्ट और प्रभावी बनाया जाए, उतना ही वह प्रभावशाली होता है।”

7. डॉ. एस.के. शर्मा (Dr. S.K. Sharma)
“लेखन कौशल भाषा के सुनियोजित और प्रभावशाली उपयोग की एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा लेखक अपने विचारों को स्पष्ट, व्यवस्थित और सटीक रूप में प्रस्तुत करता है।”

लेखन कौशल का महत्व(lekhan kaushal ka mahatva)

लेखन कौशल (Writing Skill) संचार का एक महत्वपूर्ण और प्रभावी माध्यम है, जो किसी व्यक्ति के विचारों, भावनाओं, तथ्यों और सूचनाओं को स्पष्ट, रोचक और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने की क्षमता को दर्शाता है। यह न केवल शैक्षणिक और व्यावसायिक जीवन में उपयोगी होता है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यक्तिगत विकास के लिए भी अनिवार्य है।

आज के डिजिटल युग में, जहाँ लिखित संचार की भूमिका तेजी से बढ़ रही है, वहाँ प्रभावी लेखन कौशल सफलता की कुंजी बन गया है। चाहे वह अकादमिक लेखन हो, व्यावसायिक रिपोर्ट हो, समाचार लेख हो या फिर ब्लॉगिंग और डिजिटल कंटेंट हो—हर क्षेत्र में अच्छे लेखन कौशल की आवश्यकता होती है।

इस लेख में हम लेखन कौशल के महत्व को विस्तृत रूप से समझेंगे और यह जानेंगे कि यह हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को कैसे प्रभावित करता है।


1. संचार का प्रभावी माध्यम

लेखन कौशल संचार का सबसे शक्तिशाली साधन है। जब मौखिक संचार अस्थायी होता है और कभी-कभी अस्पष्ट हो सकता है, तब लेखन के माध्यम से विचारों को स्थायी, सटीक और प्रभावी तरीके से व्यक्त किया जा सकता है।

  • स्पष्टता: लिखित सामग्री को पुनः पढ़कर संपादित किया जा सकता है, जिससे उसमें स्पष्टता और प्रभावशीलता बनी रहती है।
  • व्यवस्थित अभिव्यक्ति: लेखन के माध्यम से विचारों को व्यवस्थित और तार्किक तरीके से प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • लंबे समय तक संचार: मौखिक संवाद समय के साथ लुप्त हो सकता है, लेकिन लिखित सामग्री को संग्रहीत किया जा सकता है और बार-बार उपयोग किया जा सकता है।

सरकारी दस्तावेज, व्यावसायिक अनुबंध, कानूनी कागजात, वैज्ञानिक अनुसंधान पत्र और साहित्यिक कृतियाँ सभी लिखित संचार के ही उदाहरण हैं, जो समय के साथ भी प्रासंगिक रहते हैं।


2. शिक्षा और अकादमिक क्षेत्र में लेखन का महत्व

शिक्षा में लेखन कौशल का बहुत अधिक महत्व है। विद्यालयों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में छात्रों को अपने विचारों और ज्ञान को लिखित रूप में प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है।

  • परीक्षाओं में सफलता: लिखित उत्तरों के माध्यम से छात्र अपनी समझ और ज्ञान को प्रभावी ढंग से व्यक्त कर सकते हैं।
  • रिसर्च और परियोजनाएँ: शोध पत्र, निबंध, थीसिस और परियोजना रिपोर्ट लिखने के लिए लेखन कौशल आवश्यक होता है।
  • नवाचार और ज्ञान का विस्तार: लेखन ज्ञान के दस्तावेजीकरण का एक महत्वपूर्ण साधन है, जिससे आने वाली पीढ़ियाँ भी लाभान्वित हो सकती हैं।

इतिहास, विज्ञान, समाजशास्त्र और साहित्य जैसे विषयों में अच्छे लेखन कौशल के बिना उत्कृष्ट प्रदर्शन कर पाना कठिन हो सकता है।


3. व्यावसायिक और करियर में लेखन की भूमिका

आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग में व्यावसायिक सफलता के लिए लेखन कौशल अत्यंत आवश्यक है। चाहे वह किसी कॉर्पोरेट कंपनी का अधिकारी हो, शिक्षक हो, वकील हो, पत्रकार हो या फिर एक स्वतंत्र लेखक—हर पेशे में प्रभावी लेखन की आवश्यकता होती है।

  • व्यवसाय में संचार: कंपनियों में ईमेल, रिपोर्ट, व्यावसायिक प्रस्ताव, विपणन सामग्री और सोशल मीडिया पोस्ट लिखने की आवश्यकता होती है।
  • पत्रकारिता और कंटेंट राइटिंग: मीडिया, समाचार लेखन, ब्लॉगिंग और डिजिटल कंटेंट क्रिएशन में लेखन का विशेष महत्व है।
  • प्रस्तावना और अनुबंध: व्यावसायिक समझौतों और अनुबंधों को लिखने के लिए कानूनी और औपचारिक लेखन कौशल आवश्यक होता है।
  • रचनात्मक लेखन: विज्ञापन, स्क्रिप्ट राइटिंग, कहानियाँ और उपन्यास लेखन के लिए भी प्रभावी लेखन कौशल आवश्यक होता है।

जो लोग अच्छी तरह से लिख सकते हैं, वे अपने करियर में तेज़ी से आगे बढ़ सकते हैं और अपने विचारों को प्रभावी ढंग से व्यक्त कर सकते हैं।


4. रचनात्मकता और अभिव्यक्ति का साधन

लेखन केवल संचार का माध्यम ही नहीं है, बल्कि यह एक कला भी है। यह व्यक्ति की कल्पनाशीलता, रचनात्मकता और भावनाओं को व्यक्त करने का एक प्रभावी तरीका है।

  • साहित्य और कविता: लेखन के माध्यम से लेखक अपनी भावनाएँ, विचार और कल्पनाएँ कविता, कहानी, उपन्यास और नाटक के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं।
  • ब्लॉगिंग और ऑनलाइन कंटेंट: इंटरनेट के युग में लेखन ने ब्लॉगिंग, लेखन मंचों और सोशल मीडिया के रूप में एक नया स्वरूप ले लिया है।
  • आत्म-अभिव्यक्ति: डायरी लेखन, आत्मकथाएँ और प्रेरणादायक लेख आत्म-अभिव्यक्ति के बेहतरीन उदाहरण हैं।

रचनात्मक लेखन न केवल आत्मसंतोष प्रदान करता है, बल्कि इसे करियर के रूप में भी अपनाया जा सकता है।


5. सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव

लेखन सामाजिक जागरूकता फैलाने और सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

  • सामाजिक सुधार: लेखन के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। साहित्य, लेख और समाचार लोगों को जागरूक करने और सामाजिक मुद्दों पर प्रकाश डालने में सहायक होते हैं।
  • इतिहास और संस्कृति का संरक्षण: ऐतिहासिक घटनाएँ, धार्मिक ग्रंथ, लोककथाएँ और सांस्कृतिक दस्तावेज लेखन के माध्यम से ही सुरक्षित किए जाते हैं।
  • मीडिया और जनसंचार: समाचार पत्र, पत्रिकाएँ और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म समाज में सूचनाओं और विचारों का आदान-प्रदान करने का कार्य करते हैं।

6. डिजिटल युग में लेखन की बढ़ती आवश्यकता

आज के तकनीकी युग में लेखन कौशल की आवश्यकता पहले से अधिक बढ़ गई है।

  • कंटेंट मार्केटिंग और SEO लेखन: ऑनलाइन व्यवसायों के लिए ब्लॉग और आर्टिकल लिखने का कार्य तेजी से बढ़ रहा है।
  • सोशल मीडिया लेखन: ब्रांड प्रमोशन और डिजिटल मार्केटिंग में प्रभावी पोस्ट और विज्ञापन सामग्री की आवश्यकता होती है।
  • तकनीकी लेखन: सॉफ्टवेयर कंपनियों और स्टार्टअप्स के लिए टेक्निकल डॉक्यूमेंटेशन, यूज़र गाइड और प्रोडक्ट मैनुअल की मांग तेजी से बढ़ रही है।

डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आकर्षक और प्रभावी लेखन की क्षमता रखने वाले लोग अधिक सफलता प्राप्त कर सकते हैं।


7. मानसिक विकास और आत्म-अनुशासन

लेखन एक ऐसी प्रक्रिया है, जो व्यक्ति की सोचने की क्षमता, आत्म-अनुशासन और मानसिक स्पष्टता को विकसित करती है।

  • तार्किक और विश्लेषणात्मक सोच: लेखन के माध्यम से व्यक्ति अपनी सोच को अधिक संगठित और प्रभावी बना सकता है।
  • धैर्य और अनुशासन: लेखन में निरंतर सुधार की आवश्यकता होती है, जिससे व्यक्ति में अनुशासन की भावना विकसित होती है।
  • सकारात्मकता और आत्मचिंतन: लेखन व्यक्ति को आत्म-विश्लेषण करने और अपने विचारों को स्पष्ट करने में मदद करता है।

निष्कर्ष

लेखन कौशल केवल पेशेवर जीवन में ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत और सामाजिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह विचारों को अभिव्यक्त करने, संचार को प्रभावी बनाने, शिक्षा में उत्कृष्टता प्राप्त करने, व्यवसाय में सफलता पाने और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायक होता है।

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लेखन कौशल की विशेषताएँ

लेखन कौशल (Writing Skill) एक महत्वपूर्ण संचार कला है, जो व्यक्ति के विचारों, भावनाओं और सूचनाओं को प्रभावी और स्पष्ट रूप से व्यक्त करने की क्षमता प्रदान करता है। एक अच्छा लेखन कौशल न केवल भाषा और व्याकरण की समझ को दर्शाता है, बल्कि यह प्रभावशाली अभिव्यक्ति, तार्किक प्रवाह और रचनात्मकता को भी दर्शाता है।

लेखन कौशल की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:


1. स्पष्टता (Clarity)

  • प्रभावी लेखन में स्पष्टता आवश्यक होती है।
  • पाठक को लेखक का संदेश आसानी से समझ में आना चाहिए।
  • अस्पष्टता, जटिल वाक्य संरचना या अनावश्यक शब्दों से बचना चाहिए।

उदाहरण:
“हमारा उद्देश्य विद्यार्थियों को अच्छी शिक्षा देना है।” – स्पष्ट वाक्य।
“हमारा उद्देश्य इस बात को सुनिश्चित करना है कि विद्यार्थियों को शिक्षा का सर्वोत्तम अनुभव प्राप्त हो।” – जटिल वाक्य।


2. संक्षिप्तता (Conciseness)

  • कम शब्दों में अधिक अर्थ व्यक्त करना लेखन कौशल का महत्वपूर्ण पहलू है।
  • अनावश्यक शब्दों से बचते हुए सटीक और प्रभावी अभिव्यक्ति आवश्यक होती है।
  • लंबी और जटिल वाक्य संरचना से बचना चाहिए।

उदाहरण:
“उन्होंने तेजी से भागकर बस पकड़ी।” (सटीक)
“उन्होंने बहुत ही तेज गति से दौड़ते हुए बस को पकड़ने की कोशिश की।” (अनावश्यक लंबाई)


3. तार्किक प्रवाह (Logical Flow)

  • एक लेख में विचारों का क्रमबद्ध और तार्किक प्रवाह होना आवश्यक है।
  • अनुच्छेदों को सही क्रम में प्रस्तुत करना चाहिए ताकि पाठक आसानी से समझ सके।
  • विषयानुसार उपयुक्त शीर्षक और उपशीर्षकों का प्रयोग करना चाहिए।

उदाहरण:
अगर आप “पर्यावरण संरक्षण” पर लिख रहे हैं, तो पहले समस्या का वर्णन करें, फिर कारण बताएं, उसके बाद समाधान प्रस्तुत करें।


4. रचनात्मकता (Creativity)

  • लेखन में रचनात्मकता और नवीनता आवश्यक होती है।
  • पाठक की रुचि बनाए रखने के लिए रोचक भाषा, उदाहरण और शैली का उपयोग किया जाता है।
  • साहित्यिक लेखन में कल्पनाशक्ति और रोचक कथानक लेखन को बेहतर बनाते हैं।

उदाहरण:
“चिड़िया चहक रही थी और सूरज की पहली किरण पेड़ों को सोने की तरह चमका रही थी।” – रचनात्मक भाषा।


5. व्याकरण और भाषा का ज्ञान (Grammar and Language Proficiency)

  • शुद्ध भाषा का उपयोग लेखन कौशल की महत्वपूर्ण विशेषता है।
  • सही व्याकरण, विराम चिह्नों और वर्तनी का ध्यान रखना चाहिए।
  • भाषा की शुद्धता लेखन की प्रभावशीलता को बढ़ाती है।

उदाहरण:
वह जल्दी में था इसलिए उसने गलती कर दी।
वह जल्दी में था, इसलिए उसने गलती कर दी।


6. प्रभावशाली अभिव्यक्ति (Effective Expression)

  • लेखन में विचारों को इस तरह प्रस्तुत करना चाहिए कि पाठक प्रभावित हो।
  • शब्दों का चयन, शैली और भाषा का स्तर प्रभावी होना चाहिए।
  • औपचारिक और अनौपचारिक लेखन की शैली के बीच संतुलन बनाए रखना चाहिए।

उदाहरण:
“आपका योगदान समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।” – औपचारिक शैली।
“आपकी मदद से समाज में बड़ा बदलाव आ सकता है!” – प्रेरणादायक शैली।


7. उद्देश्यपरकता (Purposefulness)

  • लेखन का स्पष्ट उद्देश्य होना चाहिए – सूचित करना, समझाना, प्रेरित करना या मनोरंजन करना।
  • उद्देश्य के अनुसार लेखन की भाषा और शैली का चयन किया जाता है।
  • उदाहरण के लिए, पत्रकारीय लेखन में तथ्य और निष्पक्षता आवश्यक होती है, जबकि साहित्यिक लेखन में भावनात्मक अभिव्यक्ति महत्वपूर्ण होती है।

8. पाठक केंद्रित लेखन (Reader-Centric Writing)

  • लेखन पाठकों की रुचि और आवश्यकता के अनुसार होना चाहिए।
  • लक्षित पाठकों की उम्र, ज्ञान स्तर और समझने की क्षमता का ध्यान रखना आवश्यक है।
  • तकनीकी लेखन में सरल भाषा और व्यावहारिक उदाहरणों का प्रयोग महत्वपूर्ण होता है।

उदाहरण:
“बच्चों के लिए नैतिक कहानियाँ सरल भाषा में लिखी जाती हैं, जबकि शोध पत्र तकनीकी भाषा में।”


9. भावनात्मक प्रभाव (Emotional Appeal)

  • लेखन में भावनात्मक अपील होने से पाठक उससे जुड़ाव महसूस करता है।
  • कहानियों, प्रेरक लेखों और भाषणों में यह विशेषता अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।

उदाहरण:
“हमारी छोटी-छोटी आदतें पर्यावरण को बचाने में बड़ी भूमिका निभा सकती हैं।” – प्रेरणादायक लेखन।


10. संशोधन और संपादन क्षमता (Editing and Proofreading Skills)

  • प्रभावी लेखन के लिए संपादन और संशोधन (Editing & Proofreading) आवश्यक है।
  • लेख को पुनः पढ़कर त्रुटियाँ सुधारनी चाहिए।
  • व्याकरण, वर्तनी, विराम चिह्न और वाक्य संरचना की जांच करनी चाहिए।

संशोधन का उदाहरण:
पहला ड्राफ्ट: मौसम बहुत अच्छा था इसलिए हम बाहर घूमने गए और बहुत मजा आया।
संशोधित संस्करण: अच्छे मौसम का आनंद लेने के लिए हम बाहर घूमने गए और खूब मजा किया।


निष्कर्ष

लेखन कौशल केवल शब्दों को जोड़ने की कला नहीं है, बल्कि यह स्पष्टता, संक्षिप्तता, तार्किक प्रवाह, रचनात्मकता, भाषा ज्ञान और पाठक केंद्रित अभिव्यक्ति का एक संयोजन है।

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लेखन कौशल की विधियाँ (Writing Skill Methods in Hindi)lekhan kaushal ki vidhiyan

लेखन कौशल (Writing Skill) किसी भी भाषा को सीखने और संप्रेषण करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। यह केवल अक्षरों को लिखने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह भाषा की गहरी समझ, व्याकरण, शब्द विन्यास, और सुलेख की स्पष्टता को भी दर्शाता है। लेखन कौशल विकसित करने के लिए कई शिक्षण विधियाँ अपनाई जाती हैं, जो विद्यार्थियों को धीरे-धीरे वर्ण, शब्द, वाक्य और पैराग्राफ लिखने के योग्य बनाती हैं।

लेखन कौशल सिखाने की विभिन्न विधियों को अपनाकर विद्यार्थियों को बेहतर लेखन क्षमता प्रदान की जा सकती है। नीचे लेखन सिखाने की प्रमुख विधियों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।


1. अनुकरण विधि (Imitation Method)

अनुकरण विधि सबसे पुरानी और प्रचलित विधियों में से एक है। इस विधि में विद्यार्थी अपने शिक्षक के द्वारा लिखे गए शब्दों या वाक्यों की नकल करते हैं। यह विधि लेखन अभ्यास के लिए बहुत उपयोगी होती है।

प्रक्रिया:
  • शिक्षक श्यामपट्ट (ब्लैकबोर्ड) या स्लेट पर वर्ण, शब्द या वाक्य लिखते हैं।
  • विद्यार्थी उसे ध्यानपूर्वक देखते हैं और उसी तरह से अपने कॉपी में लिखने का प्रयास करते हैं।
  • धीरे-धीरे विद्यार्थी अक्षरों को सही ढंग से लिखने में कुशल हो जाते हैं।
  • सुलेख पुस्तिकाओं में पहले से लिखे गए शब्दों या वाक्यों की पहली पंक्ति देखकर विद्यार्थी शेष पृष्ठ को भरते हैं।
विशेषताएँ:

✅ यह सबसे सरल और प्रभावी विधि है।
✅ विद्यार्थी की लिखावट साफ और सुव्यवस्थित होती है।
✅ यह विधि सभी आयु वर्ग के विद्यार्थियों के लिए उपयुक्त है।
✅ लिखने की गति और धारा प्रवाह को बढ़ाने में सहायक होती है।


2. पेस्टालॉजी की रचनात्मक विधि (Pestalozzi’s Constructive Method)

इस विधि का विकास प्रसिद्ध स्विस शिक्षाविद् जोहान हेनरिक पेस्टालॉजी ने किया था। यह विधि वर्णों की संरचना को वैज्ञानिक तरीके से सीखने पर जोर देती है।

इस विधि की तीन मुख्य विशेषताएँ:

1️⃣ पृथक्करण (Separation):

  • वर्णों को छोटे-छोटे भागों में विभाजित किया जाता है, जैसे—
    |, /, —, °, ~, ~ इत्यादि रेखाएँ और आकृतियाँ।
  • विद्यार्थी पहले इन आकृतियों को लिखना सीखते हैं और फिर उनसे वर्ण बनाते हैं।

2️⃣ वर्गीकरण (Classification):

  • कठिनाइयों के अनुसार वर्णों का वर्गीकरण किया जाता है।
  • सरल वर्ण: ग, म, न, भ
  • जटिल वर्ण: झ, र, ण, स, ए, ऐ

3️⃣ एकीकरण (Integration):

  • वर्णों की आकृतियों को एक साथ जोड़कर पूर्ण वर्ण बनाया जाता है।
विशेषताएँ:

✅ वर्णों को लिखने की प्रक्रिया को आसान बनाती है।
✅ विद्यार्थी वर्णों की सही बनावट को समझते हैं।
✅ यह विधि लेखन को अधिक वैज्ञानिक और रोचक बनाती है।


3. मॉण्टेसरी विधि (Montessori Method)

मारिया मॉण्टेसरी द्वारा विकसित यह विधि विद्यार्थियों के प्राकृतिक विकास और स्पर्श अनुभव पर आधारित है।

प्रक्रिया:
  • विद्यार्थियों को लकड़ी या गत्ते से बने अक्षरों पर उंगलियाँ फेरने के लिए कहा जाता है।
  • जब विद्यार्थी की अंगुलियाँ इन अक्षरों पर सही ढंग से फिरने लगती हैं, तो वह उन्हें कागज पर लिखने में सक्षम हो जाता है।
  • शिक्षक वर्णों को एक बड़े गत्ते पर काटकर देते हैं, जिसे विद्यार्थी महसूस करते हैं और धीरे-धीरे लिखने का अभ्यास करते हैं।
विशेषताएँ:

✅ यह विधि रोचक और व्यावहारिक होती है।
✅ छोटे बच्चों के लिए विशेष रूप से उपयोगी होती है।
✅ विद्यार्थियों को अक्षरों का आकार और संरचना समझने में सहायता मिलती है।


4. जैकॉटोट विधि (Jacotot Method)

यह विधि विद्यार्थियों को आत्मनिर्भर लेखन कौशल विकसित करने के लिए प्रेरित करती है।

प्रक्रिया:
  • शिक्षक विद्यार्थी को एक पूरा वाक्य लिखने के लिए देते हैं।
  • विद्यार्थी पहले शब्द-दर-शब्द वाक्य को लिखते हैं और उसे मूल प्रति से मिलाते हैं।
  • विद्यार्थी स्वयं अपनी अशुद्धियों को सुधारते हैं और अंततः वाक्य को स्मृति के आधार पर लिखते हैं।
विशेषताएँ:

✅ विद्यार्थी आत्मसुधार करना सीखता है।
✅ लेखन में आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास बढ़ता है।


5. विश्लेषण विधि (Analytical Method)

इस विधि में लेखन सिखाने की प्रक्रिया निम्न प्रकार से हो सकती है:
1️⃣ शब्द → वाक्य
2️⃣ वाक्य → शब्द

विशेषताएँ:

✅ यह विधि वाचन के लिए अधिक उपयोगी होती है।
✅ लिखने में कठिनाई उत्पन्न कर सकती है क्योंकि इसमें पूरा वाक्य एक साथ लिखना पड़ता है।


6. संश्लेषण विधि (Synthetic Method)

इस विधि में पहले वर्ण, फिर शब्द, और अंत में वाक्य लिखना सिखाया जाता है।

प्रक्रिया:
  • पहले विद्यार्थी को वर्णमाला से परिचित कराया जाता है।
  • वर्णों से मिलकर बनने वाले शब्दों को लिखना सिखाया जाता है।
  • तत्पश्चात शब्दों से वाक्य निर्माण की प्रक्रिया सिखाई जाती है।
विशेषताएँ:

✅ यह विधि व्यवस्थित और प्रभावी होती है।
✅ विद्यार्थियों को सही क्रम में लिखने की आदत पड़ती है।


7. मनोवैज्ञानिक प्रणाली (Psychological Method)

यह विधि विद्यार्थियों की मानसिक स्थिति को ध्यान में रखकर बनाई गई है।

प्रक्रिया:
  • पहले विद्यार्थियों को छोटे-छोटे वाक्य बोलना सिखाया जाता है।
  • जब वे सहज रूप से बोलने लगते हैं, तब उन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया जाता है।
  • यह विधि विद्यार्थियों की ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों को मजबूत बनाती है।
विशेषताएँ:

✅ यह विधि स्वाभाविक रूप से सीखने की प्रक्रिया को बढ़ावा देती है।
✅ बालकों की मानसिक स्थिति और अभिरुचि के अनुसार लेखन सिखाया जाता है।


निष्कर्ष

लेखन कौशल विकसित करने के लिए विभिन्न विधियाँ अपनाई जाती हैं। इनमें से प्रत्येक विधि की अपनी विशेषताएँ और उपयोगिता है। अनुकरण विधि और संश्लेषण विधि सबसे अधिक प्रचलित हैं, जबकि मॉण्टेसरी और पेस्टालॉजी विधियाँ अधिक रोचक और रचनात्मक होती हैं। मनोवैज्ञानिक प्रणाली विद्यार्थियों की स्वाभाविक रुचि के अनुसार लेखन सीखने में मदद करती है।

इन विधियों के माध्यम से विद्यार्थियों का लेखन कौशल विकसित किया जा सकता है, जिससे वे सुलेख और भाषा के सही प्रयोग में दक्ष बन सकें।

लेखन कौशल के उद्देश्य

लेखन कौशल भाषा के प्रयोग की एक महत्वपूर्ण विधा है, जो व्यक्ति को अपने विचारों, भावनाओं, अनुभवों और सूचनाओं को प्रभावी रूप से लिखित रूप में प्रस्तुत करने में सक्षम बनाता है। लेखन न केवल संचार का एक माध्यम है, बल्कि यह रचनात्मकता, तार्किकता और बौद्धिक क्षमता को भी विकसित करता है।

लेखन कौशल को विकसित करने के कई उद्देश्य होते हैं, जो विद्यार्थियों को स्पष्ट, सुंदर, व्यवस्थित और प्रभावशाली लेखन में दक्ष बनाते हैं। लेखन केवल अक्षरों को कागज पर उकेरने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह एक विचारशील गतिविधि है, जो व्यक्ति के संज्ञानात्मक (Cognitive), भाषाई (Linguistic), सामाजिक (Social) और सांस्कृतिक (Cultural) विकास में सहायक होती है।

लेखन कौशल के मुख्य उद्देश्य

लेखन कौशल के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं—

1. भावों एवं विचारों की अभिव्यक्ति का विकास

लेखन का सबसे बड़ा उद्देश्य विद्यार्थियों को इस योग्य बनाना है कि वे अपने विचारों, भावनाओं, अनुभवों और कल्पनाओं को प्रभावी ढंग से व्यक्त कर सकें। लेखन विचारों की अभिव्यक्ति का एक सशक्त साधन है, जो व्यक्ति को आत्म-अन्वेषण (Self-Exploration) और आत्म-अभिव्यक्ति (Self-Expression) की सुविधा प्रदान करता है।

  • लेखन के माध्यम से विद्यार्थी अपनी कल्पनाओं और रचनात्मकता को मूर्त रूप दे सकते हैं।
  • यह उन्हें अपनी भावनाओं को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करने का अवसर देता है।
  • विचारों को स्पष्ट और संगठित तरीके से प्रस्तुत करने की क्षमता विकसित होती है।
2. सुंदर, सुडौल और स्पष्ट लेखन की शिक्षा

लेखन केवल विचारों की अभिव्यक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे सुडौल, सुव्यवस्थित और स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करना भी महत्वपूर्ण है। लेखन की सुन्दरता और पठनीयता पाठक के लिए इसे प्रभावी बनाती है।

  • विद्यार्थियों को सही तरीके से अक्षरों और शब्दों को लिखने का अभ्यास कराना आवश्यक है।
  • अक्षर लेखन की सटीकता और सुंदरता पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
  • विद्यार्थियों को इस प्रकार प्रशिक्षित किया जाना चाहिए कि वे पढ़ने में आसान और स्पष्ट रूप से समझ आने वाली भाषा लिख सकें।
3. शब्द भंडार (Vocabulary) का विस्तार

शब्दावली (Vocabulary) किसी भी भाषा की आत्मा होती है। एक समृद्ध शब्दकोश लेखन को प्रभावशाली और आकर्षक बनाता है।

  • विद्यार्थियों को नए-नए शब्द सिखाना और उन्हें उनके अर्थों, प्रयोगों और संदर्भों से परिचित कराना आवश्यक है।
  • लेखन अभ्यास के दौरान कठिन शब्दों और उनके प्रयोग पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
  • उचित शब्द चयन की क्षमता विकसित की जानी चाहिए ताकि लेखन प्रभावी और सारगर्भित हो।
4. भाषा के सही स्वरूप की पहचान

मातृभाषा या हिंदी के अक्षरों, शब्दों और वाक्य संरचना की सही पहचान करना और उनका सही प्रयोग करना लेखन कौशल का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है।

  • विद्यार्थियों को अक्षरों के सही आकार, उनके सही उच्चारण और सही लिखने की आदत विकसित करनी चाहिए।
  • भाषा की शुद्धता बनाए रखने के लिए व्याकरण के नियमों का पालन करना आवश्यक है।
  • भाषा के विभिन्न पहलुओं, जैसे संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया आदि का सही उपयोग सिखाना चाहिए।
5. लेखन में प्रवाह और गति का विकास

अच्छा लेखन तभी संभव है जब विद्यार्थी सुगमता और प्रवाह के साथ लिख सकें। लेखन अभ्यास का उद्देश्य विद्यार्थियों को इस स्तर तक प्रशिक्षित करना है कि वे बिना किसी रुकावट के सहजता से लिख सकें।

  • नियमित लेखन अभ्यास द्वारा लेखन की गति को बेहतर बनाया जा सकता है।
  • लेखन में प्रवाह (Flow) बनाए रखने के लिए अभ्यास आवश्यक है।
  • निरंतर अभ्यास से लेखन स्वाभाविक (Automatic) और प्रवाहपूर्ण (Fluent) बनता है।
6. विराम चिह्नों (Punctuation) का उचित प्रयोग

विराम चिह्न (Punctuation Marks) लेखन को प्रभावी और स्पष्ट बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गलत विराम चिह्नों का प्रयोग लेखन के अर्थ को बदल सकता है।

  • विद्यार्थियों को विराम चिह्नों के सही प्रयोग की शिक्षा देना आवश्यक है।
  • विराम चिह्न, जैसे—अल्पविराम (Comma), पूर्णविराम (Full Stop), प्रश्नवाचक चिह्न (Question Mark), उद्धरण चिह्न (Quotation Marks) आदि का सही उपयोग लेखन को स्पष्ट और व्यवस्थित बनाता है।
  • गलत विराम चिह्नों के प्रयोग से बचने के लिए लेखन अभ्यास आवश्यक है।
7. अनुच्छेदों में विभाजन की क्षमता विकसित करना

लेखन को प्रभावशाली बनाने के लिए यह आवश्यक है कि विचारों को व्यवस्थित ढंग से अनुच्छेदों में विभाजित किया जाए।

  • विद्यार्थियों को विचारों को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करने की क्षमता विकसित करनी चाहिए।
  • उचित अनुच्छेद विभाजन लेखन को अधिक व्यवस्थित और स्पष्ट बनाता है।
  • एक अनुच्छेद में एक ही मुख्य विचार होना चाहिए ताकि पाठक को समझने में सुविधा हो।

पढ़ना पहले सिखाएँ या लिखना?

शिक्षा जगत में यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न रहा है कि पहले पढ़ना सिखाना चाहिए या लिखना। इस विषय में विभिन्न शिक्षाविदों के भिन्न-भिन्न मत हैं—

1. मारिया मॉण्टेसरी का मत

मारिया मॉण्टेसरी के अनुसार, बालक को पहले लिखना सिखाना चाहिए, क्योंकि—

  • पढ़ना अपेक्षाकृत कठिन प्रक्रिया है, जिसमें मन और शरीर दोनों की जटिलताओं का सामना करना पड़ता है।
  • लिखना केवल शारीरिक कौशल (Motor Skill) पर आधारित होता है, जबकि पढ़ना एक मानसिक प्रक्रिया है, जिसमें भाषा की पहचान, शब्दों की समझ और वाक्य संरचना का ज्ञान आवश्यक होता है।
  • पहले लिखना सीखने से बच्चों में भाषा सीखने की प्रक्रिया अधिक स्वाभाविक हो जाती है।

2. आलोचकों का मत

मॉण्टेसरी के आलोचकों का मानना है कि—

  • पहले पढ़ना सिखाया जाना चाहिए, क्योंकि पढ़ने से भाषा की समझ विकसित होती है, जो बाद में लेखन में सहायता करती है।
  • पढ़ने से पहले लिखने का प्रयास करने से बच्चे में भाषा की अशुद्धियाँ बढ़ सकती हैं।
  • लिखने से पहले भाषा के मूलभूत नियमों को समझना आवश्यक है, जो पढ़ने से अधिक स्पष्ट होते हैं।

3. संतुलित दृष्टिकोण (Balanced Approach)

वास्तव में, पढ़ना और लिखना दोनों प्रक्रियाएँ एक-दूसरे की पूरक हैं। सबसे उपयुक्त तरीका यह है कि—

  • पढ़ने और लिखने की प्रक्रिया को साथ-साथ विकसित किया जाए।
  • पढ़ने से भाषा की समझ विकसित होती है, जबकि लिखने से शारीरिक समन्वय (Motor Coordination) और भाषा के व्यावहारिक प्रयोग (Practical Application) में सुधार होता है।
  • दोनों प्रक्रियाओं को संतुलित रूप से अपनाने से विद्यार्थी भाषा को अधिक प्रभावी ढंग से सीख सकते हैं।

निष्कर्ष

लेखन कौशल का विकास शिक्षा का एक अनिवार्य हिस्सा है, जो विद्यार्थियों के संचार कौशल, भाषा ज्ञान और रचनात्मक अभिव्यक्ति को बढ़ाता है। पढ़ना और लिखना एक-दूसरे के पूरक हैं और इन दोनों को संतुलित रूप से सिखाने से विद्यार्थियों के भाषा कौशल में व्यापक सुधार होता है।

लेखन कौशल न केवल शिक्षा में बल्कि सामाजिक और व्यावसायिक जीवन में भी व्यक्ति के विकास में सहायक सिद्ध होता है। यह एक ऐसी कला है, जो अभ्यास और समर्पण के माध्यम से निखरती है।

लेखन कौशल की उपयोगिता

लेखन कौशल (Writing Skill) एक अत्यंत महत्वपूर्ण संचार कौशल है, जो न केवल व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का माध्यम है, बल्कि पेशेवर, शैक्षणिक और सामाजिक जीवन में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लेखन केवल शब्दों को कागज पर उतारने तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह व्यक्ति की सोच, तर्कशक्ति, रचनात्मकता और संप्रेषण क्षमता को भी दर्शाता है।


लेखन कौशल की उपयोगिता के प्रमुख क्षेत्र

1. शैक्षणिक क्षेत्र में उपयोगिता

  • विद्यार्थियों के लिए लेखन कौशल अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह परीक्षा में उत्तर लिखने, निबंध, शोधपत्र, प्रोजेक्ट रिपोर्ट आदि प्रस्तुत करने में सहायक होता है।
  • शिक्षा में नोट्स बनाना, विचारों को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करना, रचनात्मक लेखन (निबंध, कहानी, कविता) आदि में लेखन कौशल की उपयोगिता होती है।
  • शोधकर्ताओं और शिक्षकों के लिए यह आवश्यक होता है कि वे अपने शोध निष्कर्षों को प्रभावी ढंग से लिखकर प्रस्तुत करें।

2. व्यावसायिक एवं प्रशासनिक क्षेत्र में उपयोगिता

  • कार्यालयी कार्यों में आधिकारिक पत्र, ज्ञापन (Memo), रिपोर्ट, प्रस्तावना पत्र, ई-मेल, अनुबंध (Contracts) आदि लिखने के लिए लेखन कौशल आवश्यक होता है।
  • सरकारी और निजी संगठनों में संचार का एक बड़ा माध्यम लेखन होता है, जिससे स्पष्ट, सटीक और प्रभावी संवाद स्थापित किया जाता है।
  • पत्रकारिता, संपादन, विज्ञापन और डिजिटल मीडिया में कार्यरत लोगों के लिए लेखन कौशल का विशेष महत्व है।
  • प्रभावी व्यावसायिक लेखन ग्राहकों, सहकर्मियों और उच्च अधिकारियों के साथ संवाद को सुगम बनाता है।

3. व्यक्तिगत विकास में उपयोगिता

  • लेखन आत्म-अभिव्यक्ति का एक शक्तिशाली माध्यम है, जिससे व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं और अनुभवों को स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकता है।
  • डायरी लेखन, ब्लॉगिंग और क्रिएटिव राइटिंग (कविता, कहानी, नाटक) के माध्यम से व्यक्ति अपनी सोच को दिशा दे सकता है।
  • लेखन व्यक्ति की भाषा शैली को प्रभावी बनाता है, जिससे उसका संवाद कौशल बेहतर होता है।
  • यह आत्म-अवलोकन (Self-Reflection) और आत्म-विश्लेषण का माध्यम भी बनता है।

4. सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में उपयोगिता

  • लेखन सामाजिक परिवर्तन लाने का एक महत्वपूर्ण साधन है। विचारशील लेखन समाज में जागरूकता बढ़ाने, समस्याओं को उजागर करने और समाधान प्रस्तुत करने में सहायक होता है।
  • साहित्य, कविता, निबंध, उपन्यास, नाटक आदि के माध्यम से लेखक समाज को एक नई दिशा देने में योगदान देता है।
  • ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को संजोने के लिए लेखन आवश्यक है, जिससे भावी पीढ़ियों को ज्ञान प्राप्त हो सके।

5. डिजिटल युग में लेखन कौशल की उपयोगिता

  • आज के इंटरनेट और सोशल मीडिया युग में लेखन कौशल की आवश्यकता और अधिक बढ़ गई है।
  • ब्लॉगिंग, कंटेंट राइटिंग, ई-बुक्स, डिजिटल मार्केटिंग और सोशल मीडिया पोस्ट लिखने के लिए लेखन कौशल अनिवार्य है।
  • वेबसाइट, ऑनलाइन कोर्स, यूट्यूब स्क्रिप्ट, विज्ञापन सामग्री आदि के लिए प्रभावी लेखन एक प्रमुख भूमिका निभाता है।
  • ई-मेल, सोशल मीडिया और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म पर स्पष्ट और प्रभावी लेखन व्यवसायों और व्यक्तिगत ब्रांडिंग में सहायक होता है।

6. साहित्य और सृजनात्मकता के क्षेत्र में उपयोगिता

  • साहित्य लेखन (कहानी, उपन्यास, कविता, नाटक) के माध्यम से व्यक्ति अपनी कल्पनाशक्ति और रचनात्मकता को प्रकट कर सकता है।
  • पत्रकारिता और संपादन कार्यों में लेखन एक आवश्यक कौशल है।
  • पटकथा लेखन (Script Writing), गीत लेखन (Lyric Writing), नाटक और संवाद लेखन (Dialogue Writing) जैसी विधाओं में भी लेखन कौशल की विशेष उपयोगिता होती है।

निष्कर्ष

लेखन कौशल केवल शैक्षणिक या व्यावसायिक जीवन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह संपूर्ण जीवन के हर क्षेत्र में सहायक होता है। यह विचारों को अभिव्यक्त करने, संचार को प्रभावी बनाने, ज्ञान को संरक्षित करने, सामाजिक परिवर्तन लाने और व्यक्तिगत एवं व्यावसायिक सफलता प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

लेखन कौशल के प्रकार(lekhan kaushal ke prakar)

लेखन कौशल को विभिन्न प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है, जो लेखन के उद्देश्य और शैली के अनुसार भिन्न होते हैं। प्रमुख रूप से निम्नलिखित तीन प्रकार के लेखन कौशल होते हैं:


1. सुलेख (Calligraphy/Handwriting Skill)

सुलेख का अर्थ है सुंदर, सुडौल और स्पष्ट रूप से लिखना। यह लेखन का एक ऐसा प्रकार है जिसमें शब्दों और अक्षरों को सटीक, संतुलित और आकर्षक ढंग से लिखा जाता है।

🔹 सुलेख की विशेषताएँ:

  • सुंदर और स्पष्ट लेखन शैली विकसित करना
  • अक्षरों के सही आकार और अनुपात का ध्यान रखना
  • संतुलित और सुव्यवस्थित लेखन की आदत डालना
  • लिखावट को पठनीय और आकर्षक बनाना

🔹 सुलेख का महत्व:

  • विद्यालयों में बच्चों को स्पष्ट और सुन्दर लिखावट सिखाने के लिए
  • औपचारिक दस्तावेजों और प्रमाणपत्रों में सुलेख का प्रयोग
  • कला के रूप में कैलीग्राफी का उपयोग

2. अनुलेख (Transcription Writing)

अनुलेख का अर्थ है किसी लिखे हुए पाठ को हूबहू नकल करना या दोबारा लिखना। यह लेखन कौशल विद्यार्थियों में अनुशासन, ध्यान केंद्रित करने और सही ढंग से लिखने की आदत डालने में सहायक होता है।

🔹 अनुलेख की विशेषताएँ:

  • किसी दिए गए पाठ या सामग्री को ज्यों का त्यों लिखना
  • शब्दों और वाक्य संरचना को ध्यान से देखकर लिखना
  • वर्तनी और विराम चिह्नों पर विशेष ध्यान देना
  • लिखने की गति और सटीकता में सुधार करना

🔹 अनुलेख का महत्व:

  • विद्यार्थियों को सही लेखन शैली सिखाने के लिए
  • ऐतिहासिक और साहित्यिक दस्तावेजों की नकल और संरक्षण में उपयोगी
  • लिखित भाषा के अभ्यास और सुधार में सहायक

3. श्रुतिलेख (Dictation Writing)

श्रुतिलेख का अर्थ है बोले गए या पढ़े गए शब्दों को सुनकर लिखना। यह लेखन कौशल स्मरण शक्ति, ध्यान केंद्रित करने और सुनकर सही ढंग से लिखने की क्षमता को विकसित करता है।

🔹 श्रुतिलेख की विशेषताएँ:

  • किसी व्यक्ति द्वारा बोले गए शब्दों को सुनकर लिखना
  • सही वर्तनी और व्याकरण का ध्यान रखना
  • भाषा कौशल और सुनने की क्षमता में सुधार लाना
  • त्वरित और स्पष्ट लेखन का अभ्यास कराना

🔹 श्रुतिलेख का महत्व:

  • छात्रों की सुनने और लिखने की क्षमता को बढ़ाने के लिए
  • प्रतियोगी परीक्षाओं और प्रशासनिक कार्यों में सहायक
  • संचार और नोट-टेकिंग स्किल्स को बेहतर बनाने में उपयोगी

निष्कर्ष

सुलेख, अनुलेख और श्रुतिलेख – ये तीनों लेखन कौशल के महत्वपूर्ण प्रकार हैं, जो लेखन की सटीकता, स्पष्टता और सुंदरता को बढ़ाने में सहायक होते हैं। लेखन का यह अभ्यास विद्यार्थियों और पेशेवरों के लिए अत्यंत आवश्यक है, जिससे वे प्रभावी रूप से अपने विचारों को व्यक्त कर सकें।

लेखन के दोष

शिक्षक को लेखन के दोपों का बोध होना आवश्यक है तभी वह इन दोषों का सुधार कर सकता है। प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-

(1) बालक लिखने में पक्ति का ध्यान नहीं रखता है और अक्षर समान आकार के नहीं होते हैं। किसी एक ओर झुके रहते हैं, सीधे नहीं लिख पाता है।

(2) सभी अक्षरों की ऊँचाई समान नहीं होती है।

(3) अक्षरों का शुद्ध ज्ञान न होने पर कुछ भी लिख देता है।

(4) अक्षरों को पूर्ण रूप में न लिखना शिरारेखा का स्थान-स्थान पर टूटा होना। एक शब्द के ऊपर एक ही रेखा न होना।

(5) लेखन में एक ही लेखनी का प्रयोग न करने से कुछ पतले और कुछ मोटे अक्षर होते हैं।

(6) शब्द को पूरा न लिखना, शब्द के अक्षर विखरे होना।

(7) प्रत्येक शब्द तथा अक्षर की स्याही-समान न होने। अक्षरों की स्याही का फीका होना।

लेखन हेतु सुझाव

लेखन शिक्षण के लिए यहाँ कुछ सुझाव दिए गए हैं। शिक्षण को उनका ध्यान रखना चाहिए-

(1) छात्रों के बैठने का आसन समुचित होना चाहिए। झुककर लिखने की आदत न पड़े।

(2) हिन्दी वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों के सुधार हेतु अभ्यास कराया जाए।

(3) लिखने तथा पढ़ने की क्रियाएँ एक साथ होनी चाहिए।

(4) अक्षरों तथा शब्दों के सुन्दर लिखने के लिए आदर्श प्रस्तुत किया जाये जिसका छात्र अनुकरण कर सकें।

5) लेखन एक कला है जिसका विकास अभ्यास तथा अनुकरण से किया जा सकता है।

(6) लेखन क्रिया छात्रों की रुचि के शब्दों से आरम्भ की जानी चाहिए।

(7) शब्दों और अक्षरों को धीरे-धीरे सुडौल तथा सुन्दर लिखने से आरम्भ करके लिखने की गति का भी विकास किया जाए।

(8) शब्दों एवं अक्षरों की एकरूपता गति से लिखने में मुख्य विशेषताओं का ध्यान रखा जाये।

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