हरिवंश राय बच्चन का जीवन परिचय
हरिवंश राय बच्चन हिन्दी साहित्य के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों में से एक हैं। इन्हें आधुनिक हिन्दी कविता का “मधु कवि” कहा जाता है। इनकी कविताओं में जीवन की वास्तविकता, मानवीय भावनाएँ, आशा-निराशा, प्रेम-वियोग, पीड़ा और आत्मसंघर्ष का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है। बच्चन जी ने हिन्दी साहित्य को एक नई दिशा प्रदान की और खड़ी बोली को अपनी गीतात्मक, सहज और सरस शैली में नए शिखर तक पहुँचाया। “मधुशाला” जैसी कालजयी कृति ने उन्हें अमरत्व प्रदान किया।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवम्बर 1907 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ ज़िले के बाबूपट्टी गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम प्रतापनारायण श्रीवास्तव और माता का नाम सरस्वती देवी था। बाल्यावस्था में इन्हें “बच्चन” कहकर पुकारा जाता था, जिसका अर्थ होता है “बच्चा” या “संतान”। यही नाम बाद में उनके साहित्यिक परिचय और स्थायी पहचान का आधार बना।
इनकी प्रारंभिक शिक्षा कायस्थ पाठशाला, इलाहाबाद में हुई जहाँ उन्होंने पहले उर्दू सीखी। इसके बाद उन्होंने अंग्रेजी विषय को अपनाया और प्रयाग विश्वविद्यालय (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। बाद में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (इंग्लैंड) से “डब्ल्यू. बी. यीट्स की कविताओं” पर शोध कर उन्होंने पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की।
पारिवारिक जीवन
बच्चन जी का जीवन संघर्षों और भावनात्मक आघातों से भरा हुआ था। उनकी प्रथम पत्नी श्यामा का निधन अल्पायु में ही क्षय रोग से हो गया। इस घटना ने उनके जीवन को गहरे दुख और विषाद से भर दिया, जिसकी छाया उनकी कविताओं में स्पष्ट दिखाई देती है। बाद में 1941 में उन्होंने तेजी सूरी से विवाह किया, जो स्वयं एक शिक्षित और रंगमंच व संगीत से जुड़ी महिला थीं। तेजी बच्चन से उनके दो पुत्र हुए – अमिताभ बच्चन और अजिताभ बच्चन। अमिताभ बच्चन बाद में हिन्दी सिनेमा के महानायक बने।
शैक्षणिक और व्यावसायिक जीवन हरिवंश राय बच्चन
हरिवंश राय बच्चन का कार्यक्षेत्र अत्यंत विस्तृत और बहुआयामी रहा। उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत शिक्षा के क्षेत्र से की और अनेक वर्षों तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग में प्राध्यापक के रूप में कार्य किया। अध्यापन काल में वे विद्यार्थियों के बीच अपनी विद्वत्ता और सरल स्वभाव के लिए प्रसिद्ध रहे।
कुछ समय तक वे आकाशवाणी से भी जुड़े रहे और वहाँ साहित्यिक कार्यक्रमों के निर्माण तथा प्रस्तुति में सक्रिय योगदान दिया। इसके पश्चात् 1955 ई. में वे विदेश मंत्रालय, भारत सरकार में हिन्दी विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त हुए और दिल्ली चले आए। इस पद पर रहते हुए उन्होंने हिन्दी को राजकीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया।
विश्वविद्यालयीन जीवन के दौरान ही उन्हें विदेश में अध्ययन का अवसर मिला। वे 1952 से 1954 ई. तक कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (इंग्लैंड) में रहे और वहाँ प्रसिद्ध अंग्रेज़ी कवि डब्ल्यू. बी. यीट्स पर शोध प्रबंध तैयार किया। यह शोध प्रबंध न केवल शैक्षणिक जगत में सराहा गया, बल्कि उनके गहन साहित्यिक दृष्टिकोण और आलोचनात्मक प्रतिभा का प्रमाण भी बना।
इस प्रकार, हरिवंश राय बच्चन का कार्यक्षेत्र शिक्षा, साहित्य, प्रसार माध्यम और प्रशासन—सभी क्षेत्रों में फैला रहा। उन्होंने न केवल काव्य के माध्यम से, बल्कि अध्यापन, शोध और प्रशासनिक सेवाओं द्वारा भी हिन्दी और भारतीय साहित्य की गरिमा को बढ़ाया। 1966 में उन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया। साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें “पद्म भूषण” सहित अनेक सम्मान मिले।
काव्य की विशेषताएँ
बच्चन जी की कविताओं में गहन संवेदनशीलता, मानवीय भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति, गीतात्मकता, संगीतात्मकता, सरलता और मार्मिकता की झलक मिलती है। वे मूलतः व्यक्तिवादी कवि थे लेकिन उनके काव्य में समाज, जीवन और मानवता की पीड़ा का भी गहन चित्रण है।
उन पर उमर खय्याम की रुबाइयों का विशेष प्रभाव पड़ा, जिसे उन्होंने अपनी कविताओं में नए रूप में ढाला। उनकी प्रसिद्ध रचना “मधुशाला” इसी प्रभाव का प्रमाण है, जिसने उन्हें अमर बना दिया।
हरिवंश राय बच्चन की प्रमुख रचनाएँ
- मधुशाला (1935) – उनकी सबसे लोकप्रिय और कालजयी रचना।
- मधुबाला, मधुकलश – मधुशाला की ही काव्यधारा को आगे बढ़ाने वाली रचनाएँ।
- सतरंगिणी, मिलन यामिनी – श्रृंगार रस और प्रेमाभिव्यक्ति से ओतप्रोत गीत।
- निशा निमंत्रण, एकांत संगीत – कवि के दर्द और पीड़ा की संवेदनाएँ।
- आकुल अंतर, प्रणय पत्रिका, आरती और अंगारे – गहन मानवीय संवेदनाओं और प्रेम-वियोग की कविताएँ।
- बंगाल का अकाल – सामाजिक और यथार्थवादी विषय पर आधारित कृति।
इसके अतिरिक्त उन्होंने बुद्ध का नाचघर, तेरा हार, हलाहल जैसी कृतियाँ भी लिखीं।
आत्मकथात्मक कृतियाँ
बच्चन जी की आत्मकथा हिन्दी गद्य साहित्य की महत्वपूर्ण धरोहर है। इसमें उन्होंने अपने जीवन की घटनाओं और अनुभवों का मार्मिक और सहज चित्रण किया। ये चार खंडों में प्रकाशित हुई:
- क्या भूलूँ क्या याद करूँ
- नीड़ का निर्माण फिर
- बसेरे से दूर
- दशद्वार से सोपान तक
इन आत्मकथाओं से न केवल उनके जीवन की गहराईयों का परिचय मिलता है, बल्कि उस समय के सामाजिक, राजनीतिक और साहित्यिक परिदृश्य की झलक भी मिलती है।
1. कविता संग्रह
बच्चन जी गीतात्मक और मानवीय भावनाओं के कवि थे। उनकी कविताएँ श्रृंगार, पीड़ा, आशा, प्रेम और संघर्ष को अद्भुत शैली में प्रस्तुत करती हैं।
- तेरा हार (1929)
- मधुशाला (1935) – कालजयी कृति, जिसने बच्चन जी को अमर बना दिया।
- मधुबाला (1936)
- मधुकलश (1937)
- आत्म परिचय (1937)
- निशा निमंत्रण (1938)
- एकांत संगीत (1939)
- आकुल अंतर (1943)
- सतरंगिनी (1945)
- हलाहल (1946)
- बंगाल का काल (1946) – अकाल की मार्मिक छवि।
- खादी के फूल (1948)
- सूत की माला (1948)
- मिलन यामिनी (1950)
- प्रणय पत्रिका (1955)
- धार के इधर-उधर (1957)
- आरती और अंगारे (1958)
- बुद्ध और नाचघर (1958)
- त्रिभंगिमा (1961)
- चार खेमे चौंसठ खूंटे (1962)
- दो चट्टानें (1965) – साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त।
- बहुत दिन बीते (1967)
- कटती प्रतिमाओं की आवाज़ (1968)
- उभरते प्रतिमानों के रूप (1969)
- जाल समेटा (1973)
- नई से नई-पुरानी से पुरानी (1985)
2. आत्मकथा
बच्चन जी ने अपने जीवन के अनुभवों और संघर्षों को चार भागों में आत्मकथा के रूप में लिखा है। ये हिन्दी साहित्य की श्रेष्ठ आत्मकथाओं में मानी जाती हैं।
- क्या भूलूँ क्या याद करूँ (1969) – प्रारंभिक जीवन और संघर्ष।
- नीड़ का निर्माण फिर (1970) – पारिवारिक जीवन और साहित्यिक यात्रा।
- बसेरे से दूर (1977) – विदेश प्रवास और अनुभव।
- दशद्वार से सोपान तक (1985) – जीवन की परिपक्वता और अंतिम पड़ाव।
- प्रवासी की डायरी – विदेश यात्रा का विवरण।
3. विविध रचनाएँ (अनुवाद, आलोचना, निबंध आदि)
बच्चन जी केवल कवि ही नहीं, बल्कि कुशल अनुवादक और आलोचक भी थे। उन्होंने शेक्सपियर के कई नाटकों का हिन्दी में अनुवाद किया और साहित्यिक आलोचना की भी अनेक पुस्तकें लिखीं।
- बच्चन के साथ क्षण भर (1934)
- खय्याम की मधुशाला (1938)
- सोपान (1953)
- मैकबेथ (1957) – शेक्सपियर का हिन्दी अनुवाद।
- जनगीता (1958)
- ओथेलो (1959) – अनुवाद।
- उमर खय्याम की रुबाइयाँ (1959)
- कवियों में सौम्य संत: पंत (1960)
- आज के लोकप्रिय हिन्दी कवि: सुमित्रानंदन पंत (1960)
- आधुनिक कवि (1961)
- नेहरू: राजनैतिक जीवनचरित (1961)
- नये पुराने झरोखे (1962)
- अभिनव सोपान (1964)
- चौंसठ रूसी कविताएँ (1964) – अनुवाद।
- नागर गीता (1966)
- बच्चन के लोकप्रिय गीत (1967)
- W.B. Yeats and Occultism (1968) – अंग्रेजी में।
- मरकत द्वीप का स्वर (1968)
- हैमलेट (1969) – अनुवाद।
- भाषा अपनी भाव पराये (1970)
- पंत के सौ पत्र (1970)
- प्रवास की डायरी (1971)
- किंग लियर (1972) – अनुवाद।
- टूटी-छूटी कड़ियाँ (1973)
4. हरिवंश राय बच्चन के प्रमुख अनुवाद
- खैयाम की मधुशाला (1938) – उमर खैय्याम की रुबाइयों का काव्यात्मक अनुवाद।
- मैकबेथ (1957) – शेक्सपियर का प्रसिद्ध नाटक।
- जनगीता (1958) – आध्यात्मिक व दार्शनिक स्वरूप का काव्यात्मक रूपांतरण।
- उमर खैयाम की रुबाइयाँ (1959) – फारसी कवि उमर खैय्याम की प्रसिद्ध रुबाइयों का हिन्दी में प्रस्तुतीकरण।
- ओथेलो (1959) – शेक्सपियर का त्रासदी नाटक।
- नेहरू: राजनैतिक जीवन चरित (1961) – जवाहरलाल नेहरू का जीवन-चरित।
- चौंसठ रूसी कविताएँ (1964) – रूसी कविताओं का अनुवाद।
- मरकत द्वीप का स्वर (1965) – W. B. Yeats की कविताओं का अनुवाद।
- नागर गीता (1966) – गीता का आधुनिक भावानुवाद।
- हैमलेट (1969) – शेक्सपियर की महान त्रासदी का हिन्दी अनुवाद।
- भाषा अपनी भाव पराए (1970) – भाषा और अभिव्यक्ति पर अनुवाद/आलोचना।
- किंग लियर (1972) – शेक्सपियर की एक और प्रसिद्ध त्रासदी।
प्रेरणा – हरिवंश राय बच्चन
हरिवंश राय बच्चन की काव्य-दृष्टि का मूल आधार प्रेरणा है। उनकी कविताएँ विशेषकर मधुशाला और उससे जुड़ा उनका हालावाद जीवन की कठिनाइयों और नीरसताओं से पलायन का मार्ग नहीं दिखाता, बल्कि उन्हें स्वीकार करते हुए उनमें से मधुरता और आनंद ढूँढ़ने की प्रेरणा देता है।
बच्चन मानते हैं कि जीवन में दुख, असफलताएँ और नीरसताएँ स्वाभाविक हैं, परंतु उनसे मुँह मोड़ लेना समाधान नहीं है। उनका काव्य हमें सिखाता है कि इन परिस्थितियों को नकारने या भागने के बजाय उनका उपयोग करना चाहिए और उनमें से प्रसन्नता तथा जीवन-दायिनी शक्ति खोजनी चाहिए। यही उनकी रचनाओं का जीवन-दर्शन है।
उर्दू और फ़ारसी कवियों की तरह बच्चन भी जीवन के रंग-रूप और सौंदर्य को अपनाने की प्रेरणा देते हैं। ख़ैयाम से प्रभावित होकर वे वर्तमान क्षण का महत्व बताते हैं और यह शिक्षा देते हैं कि हर पल को पूर्णता के साथ जीना ही जीवन का वास्तविक आनंद है।
बच्चन के हालावाद में पलायनवाद नहीं है, क्योंकि यहाँ वास्तविकता का अस्वीकार नहीं किया गया है। वे वास्तविकता की शुष्कता को अपनी संवेदनशीलता और भावुकता की धारा से हरा-भरा बना देते हैं। उनकी कविताएँ ग़म से घबराकर आत्महत्या करने का नहीं, बल्कि ग़म को मिटाकर जीवन को सुंदर और आनंदमय बनाने का निमंत्रण देती हैं।
इस प्रकार, बच्चन का काव्य हमें यह प्रेरणा देता है कि—
- जीवन की कठिनाइयों से भागो मत, उन्हें अपनाओ।
- वर्तमान क्षण का पूरा आनंद लो।
- दुःख को मधुरता में और नीरसता को रसमयता में बदलो।
यही उनकी कविताओं की सबसे बड़ी प्रेरणा है, जो जीवन को आशावाद और उत्साह से जीने की ओर ले जाती है।
लोकप्रियता – हरिवंश राय बच्चन
हरिवंश राय बच्चन की कविताओं की लोकप्रियता का मुख्य कारण उनकी सरलता, सहजता और संवेदनशीलता है। उन्होंने जटिल दार्शनिक विचारों को बोझिल भाषा में प्रस्तुत करने के बजाय सहज और सीधी शैली में व्यक्त किया। उनकी रचनाएँ गहन अनुभूतिमूलक सत्यता पर आधारित थीं, जिनमें कवि का निजी अनुभव, पीड़ा, संघर्ष और आत्माभिव्यक्ति स्पष्ट दिखाई देती है।
बच्चन ने समाज की अभावग्रस्त व्यथा, खोखले परिवेश और व्यवस्था के आगे व्यक्ति की असहायता को सरल और कल्पनाशील बिम्बों में ढाला। विशेषकर मधुशाला जैसी कृति ने जीवन-दर्शन और ग़म दोनों को मधुर और आकर्षक रूप में प्रस्तुत कर उन्हें जन-जन का प्रिय बना दिया।
उनकी कविताएँ जनभाषा में थीं, जिन्हें हर वर्ग का पाठक समझ और अनुभव कर सकता था। यही कारण है कि हिन्दी साहित्य जगत ने उत्साह से उनके गीतों का स्वागत किया और वे शीघ्र ही जनप्रिय कवि बन गए।
काव्य भाषा की गरिमा – हरिवंश राय बच्चन
हरिवंश राय बच्चन को हिन्दी साहित्य में यह श्रेय विशेष रूप से प्राप्त है कि उन्होंने सामान्य बोलचाल की भाषा को काव्य भाषा की गरिमा प्रदान की। उनकी कविताएँ न तो अति अलंकृत थीं और न ही जटिल, बल्कि सहज और सरल भाषा में व्यक्त हुईं, जो सीधे हृदय को स्पर्श करती हैं।
उनकी लोकप्रियता का एक प्रमुख कारण उनका काव्य पाठ भी रहा। बच्चन ने हिन्दी में कवि सम्मेलन की परम्परा को सुदृढ़ और जनप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अपने सजीव और प्रभावशाली पाठ के कारण वे पाठकों और श्रोताओं दोनों के और निकट आ गए।
कविता के अतिरिक्त उन्होंने समीक्षात्मक निबंध भी लिखे, जो गम्भीर अध्ययन और सुस्पष्ट विचारों के लिए उल्लेखनीय हैं। साथ ही उनके द्वारा किए गए शेक्सपीयर के नाटकों के अनुवाद और जनगीता जैसे कार्य साहित्यिक दृष्टि से स्मरणीय तो हैं, किंतु उनकी लोकप्रियता का मुख्य आधार उनकी काव्य रचनाएँ ही रहीं।
सम्मान और पुरस्कार
हरिवंश राय बच्चन को साहित्य में उनके योगदान के लिए अनेक पुरस्कार और सम्मान मिले, जिनमें प्रमुख हैं –
- साहित्य अकादमी पुरस्कार (1968) – कृति दो चट्टानें के लिए।
- सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार।
- एफ्रो-एशियाई सम्मेलन का कमल पुरस्कार।
- सरस्वती सम्मान – आत्मकथा के लिए।
- पद्म भूषण (1963) – साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान हेतु।
साहित्यिक स्थान और महत्व
हरिवंश राय बच्चन हिन्दी साहित्य के उन कवियों में गिने जाते हैं जिन्होंने “गीतात्मक कविता” को नया आयाम दिया। उनकी कविताएँ आम जनमानस के हृदय को छूने वाली हैं। “मधुशाला” आज भी उसी उत्साह से पढ़ी और गाई जाती है, जैसे इसके प्रकाशन के समय।
बच्चन जी का साहित्य इस बात का प्रमाण है कि कवि केवल कल्पनाओं में ही नहीं जीता, बल्कि जीवन के हर सुख-दुःख, संघर्ष और यथार्थ को अपनी रचनाओं के माध्यम से जीता और अभिव्यक्त करता है।
निधन
साहित्य और समाज को अपने अमूल्य योगदान से समृद्ध करने वाले हरिवंश राय बच्चन 18 जनवरी 2003 को इस संसार को अलविदा कह गए। वे आज भी अपनी कविताओं, आत्मकथाओं और “मधुशाला” के अमर गीतों के माध्यम से हिन्दी साहित्य और पाठकों के हृदय में जीवित हैं।
निष्कर्ष
हरिवंश राय बच्चन हिन्दी साहित्य के ऐसे कवि थे जिन्होंने गीतों में जीवन की सच्चाइयों को पिरोकर अमर कर दिया। उनकी रचनाएँ मानवीय संवेदनाओं, प्रेम, पीड़ा और आशा की मधुर ध्वनियों से भरी हुई हैं। वे न केवल कवि थे बल्कि एक दार्शनिक, विचारक और साहित्यकार भी थे। उनका जीवन संघर्ष, आस्था और साहित्य-सेवा का अनुपम उदाहरण है। “मधुशाला” के मधु से उन्होंने जिस तरह पाठकों को जीवन का उत्साह और आशावादिता दी, वह उन्हें हिन्दी साहित्य का अमर नक्षत्र बनाता है।
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