
जेंडर समानता में परिवार की भूमिका ॥ Gender Samanta Mein Parivar Ki Bhumika ॥ लैंगिक समानता में परिवार की भूमिका ॥ Role of Family in Gender Equality in Hindi
परिवार क्या है (Parivar Kya Hai)
परिवार समाज की सबसे छोटी और सबसे महत्वपूर्ण इकाई है, जिसमें माता-पिता, बच्चे, दादा-दादी और अन्य संबंधी शामिल होते हैं। परिवार वह स्थान है जहाँ व्यक्ति प्रेम, सहयोग, संस्कार और सुरक्षा प्राप्त करता है। यह हमारे जीवन का पहला विद्यालय होता है, जहाँ हम सही-गलत की पहचान करना सीखते हैं। परिवार हमें भावनात्मक सहारा देता है और कठिन समय में हमारे साथ खड़ा रहता है। एक सुसंस्कृत और एकजुट परिवार समाज और राष्ट्र की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए, परिवार का सम्मान और एकता बनाए रखना हर व्यक्ति का कर्तव्य है।
परिवार का अर्थ (Parivar Ka Arth)
परिवार का अर्थ है—ऐसा सामाजिक समूह जिसमें माता-पिता, बच्चे और अन्य निकट संबंधी प्रेम, सहयोग और पारस्परिक समझ के साथ रहते हैं। यह व्यक्ति के जीवन का पहला सामाजिक संस्थान है जहाँ उसे संस्कार, मूल्य और आचार-व्यवहार सिखाए जाते हैं। परिवार केवल रक्त-संबंधों से नहीं, बल्कि भावनात्मक जुड़ाव, विश्वास और एक-दूसरे के प्रति जिम्मेदारी की भावना से बनता है। सरल शब्दों में, परिवार वह समूह है जहाँ व्यक्ति को स्नेह, सुरक्षा और अपनापन मिलता है।
परिवार की परिभाषाएँ
विभिन्न विद्वानों के अनुसार परिवार की परिभाषाएँ
परिवार की परिभाषा अलग-अलग विद्वानों ने अपने दृष्टिकोण से की है। नीचे कुछ प्रमुख परिभाषाएँ दी गई हैं —
- मैकाइवर और पेज (MacIver & Page) के अनुसार —
“परिवार एक ऐसा समूह है जो विवाह, रक्त-संबंध या गोद लेने के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ा होता है और जो एक समान निवास स्थान साझा करता है।” - किंग्सले डेविस (Kingsley Davis) के अनुसार —
“परिवार वह समूह है जिसमें पति-पत्नी और उनके अविवाहित बच्चे शामिल होते हैं, जो एक साथ रहते हैं और आपसी सहयोग से जीवन व्यतीत करते हैं।” - निमकोफ (Nimkoff) के अनुसार —
“परिवार वह स्थायी सामाजिक समूह है जो यौन संबंध, प्रजनन और बच्चों के पालन-पोषण के आधार पर निर्मित होता है।” - गिलिन और गिलिन (Gillin & Gillin) के अनुसार —
“परिवार दो या दो से अधिक व्यक्तियों का ऐसा समूह है जो वैवाहिक या रक्त-संबंधों से बंधे होते हैं और एक समान गृहस्थी में रहते हैं।”
परिवार के प्रकार (Types of Family)
परिवार को विभिन्न आधारों पर कई प्रकारों में विभाजित किया गया है। प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं —
संरचना के आधार पर परिवार के प्रकार (On the Basis of Structure)
परिवार को उसकी संरचना के आधार पर दो प्रमुख प्रकारों में विभाजित किया गया है – एकल परिवार और संयुक्त परिवार।
1. एकल परिवार (Nuclear Family)
इस प्रकार के परिवार में केवल माता-पिता और उनके अविवाहित बच्चे साथ रहते हैं। आज के समय में यह सबसे सामान्य पारिवारिक संरचना बन गई है, विशेषकर शहरों और आधुनिक जीवनशैली में। यह परिवार आर्थिक रूप से स्वतंत्र और निर्णय लेने में अधिक स्वतंत्र होता है, परंतु इसमें भावनात्मक सहयोग और पारिवारिक बंधन अपेक्षाकृत कम दिखाई देते हैं।
2. संयुक्त परिवार (Joint Family)
संयुक्त परिवार में दादा-दादी, माता-पिता, चाचा-चाची, भाई-बहन और अन्य रिश्तेदार एक साथ रहते हैं। यह परिवार भारतीय संस्कृति और परंपरा की पहचान है। इसमें एकता, सहयोग, और सामाजिक मूल्यों का विशेष स्थान होता है, जहाँ सभी सदस्य एक-दूसरे की सहायता और जिम्मेदारियों को साझा करते हैं।
वंश परंपरा के आधार पर परिवार के प्रकार (On the Basis of Lineage)
परिवार को वंश परंपरा के आधार पर दो मुख्य प्रकारों में बाँटा गया है – पितृसत्तात्मक परिवार और मातृसत्तात्मक परिवार।
1. पितृसत्तात्मक परिवार (Patrilineal Family)
इस प्रकार के परिवार में वंश, नाम और संपत्ति पिता के नाम से आगे बढ़ती है। बच्चों की पहचान पिता के नाम से होती है और संपत्ति का अधिकार भी सामान्यतः पुत्रों को मिलता है। यह परिवार प्रणाली भारत और कई अन्य देशों में प्रमुख रूप से प्रचलित है। यहाँ परिवार का मुखिया पिता होता है, जो निर्णय लेने और आर्थिक मामलों का संचालन करता है।
2. मातृसत्तात्मक परिवार (Matrilineal Family)
इस परिवार में वंश और संपत्ति का उत्तराधिकार माता के नाम से चलता है। बच्चों की पहचान माता के नाम से की जाती है और संपत्ति का अधिकार बेटियों को प्राप्त होता है। यह प्रणाली भारत के कुछ जनजातीय समुदायों जैसे खासी (मेघालय) और नायर (केरल) में देखने को मिलती है, जहाँ महिलाओं को परिवार का प्रमुख स्थान प्राप्त होता है।
निवास के आधार पर परिवार के प्रकार (On the Basis of Residence)
परिवार को निवास स्थान के आधार पर तीन प्रमुख प्रकारों में विभाजित किया गया है – पितृवासीय, मातृवासीय और नववासीय परिवार।
1. पितृवासीय परिवार (Patrilocal Family)
इस प्रकार के परिवार में विवाह के बाद पत्नी अपने पति के घर में रहती है। पति के माता-पिता और रिश्तेदारों के साथ रहना सामान्य परंपरा होती है। यह प्रणाली भारत में सबसे अधिक प्रचलित है और इसमें परिवार की जिम्मेदारियाँ तथा नियंत्रण प्रायः पति या उसके परिवार के हाथों में होता है।
2. मातृवासीय परिवार (Matrilocal Family)
इस परिवार में विवाह के बाद पति, पत्नी के घर में रहने आता है। यहाँ पत्नी का परिवार मुख्य होता है और निर्णयों में उसकी भूमिका प्रमुख रहती है। यह प्रथा भारत के कुछ जनजातीय समाजों में देखने को मिलती है।
3. नववासीय परिवार (Neolocal Family)
इस प्रकार के परिवार में पति-पत्नी दोनों विवाह के बाद एक नया स्वतंत्र घर बसाते हैं। यह आधुनिक समाज में बढ़ती हुई प्रवृत्ति है, जहाँ दंपति आत्मनिर्भर जीवनशैली अपनाते हैं और निर्णय स्वतंत्र रूप से लेते हैं।
विवाह के आधार पर परिवार के प्रकार (On the Basis of Marriage)
परिवार को विवाह संबंध के आधार पर तीन प्रमुख प्रकारों में विभाजित किया गया है – एकपत्नी, बहुपत्नी और बहुपति परिवार।
1. एकपत्नी परिवार (Monogamous Family)
इस प्रकार के परिवार में एक पुरुष की केवल एक ही पत्नी होती है। यह आज के समाज में सबसे सामान्य और कानूनी रूप से मान्य पारिवारिक प्रणाली है। इस परिवार में प्रेम, निष्ठा और स्थिरता का विशेष महत्व होता है। पति-पत्नी दोनों एक-दूसरे के प्रति समान जिम्मेदारियाँ निभाते हैं, जिससे पारिवारिक जीवन में संतुलन बना रहता है।
2. बहुपत्नी परिवार (Polygynous Family)
इस प्रकार के परिवार में एक पुरुष की एक से अधिक पत्नियाँ होती हैं। यह व्यवस्था पहले कुछ समाजों और समुदायों में प्रचलित थी, परंतु आधुनिक समय में यह प्रथा लगभग समाप्त हो चुकी है। इसमें परिवार बड़ा होता है, परंतु पारिवारिक समरसता बनाए रखना कठिन होता है।
3. बहुपति परिवार (Polyandrous Family)
इस प्रकार के परिवार में एक स्त्री के एक से अधिक पति होते हैं। यह व्यवस्था अत्यंत दुर्लभ है और कुछ विशेष जनजातीय समाजों जैसे हिमालयी क्षेत्रों के पॉलियंड्री समुदायों में पाई जाती है। इसका मुख्य उद्देश्य सीमित संसाधनों का संरक्षण और जनसंख्या नियंत्रण होता है।
शिक्षा के क्षेत्र में परिवार की भूमिका (Role of Family in the Field of Education)
परिवार बच्चे की शिक्षा का पहला और सबसे प्रभावशाली संस्थान होता है। विद्यालय जाने से पहले ही बच्चा अपने घर में परिवार से बहुत कुछ सीखता है। परिवार की शिक्षा संबंधी मुख्य भूमिकाएँ निम्नलिखित हैं —
प्रथम विद्यालय के रूप में परिवार
परिवार को बच्चे का प्रथम विद्यालय कहा जाता है क्योंकि यहीं से उसके जीवन का प्रारंभिक शिक्षण होता है। बच्चा सबसे पहले अपने माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों से बोलना, चलना, व्यवहार करना, प्रेम, सम्मान, अनुशासन और सामाजिक नियमों को सीखता है। परिवार ही वह स्थान है जहाँ बच्चे के संस्कार, चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण होता है। माँ बच्चे की पहली शिक्षिका होती है, जो उसे सही और गलत में अंतर करना सिखाती है। परिवार का वातावरण जितना स्नेहपूर्ण और शिक्षाप्रद होगा, बच्चे का विकास उतना ही बेहतर होगा। इस प्रकार, परिवार न केवल जीवन की शुरुआत का आधार है, बल्कि मानव निर्माण की प्रथम पाठशाला भी है।
संस्कार और मूल्य शिक्षा
परिवार बच्चे के जीवन में संस्कार और मूल्य शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत होता है। यही वह स्थान है जहाँ बच्चा नैतिकता, ईमानदारी, अनुशासन, सम्मान, प्रेम, सहयोग और सहानुभूति जैसे जीवन-मूल्य सीखता है। माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्य अपने व्यवहार और आचरण से बच्चे के लिए आदर्श प्रस्तुत करते हैं। परिवार के संस्कार ही बच्चे के चरित्र निर्माण और सामाजिक व्यवहार की नींव रखते हैं। यदि परिवार में सकारात्मक वातावरण, परस्पर सम्मान और प्रेम की भावना हो, तो बच्चा भी उन्हीं गुणों को आत्मसात करता है। इस प्रकार, परिवार बच्चे के भीतर अच्छे संस्कार और नैतिक मूल्यों का विकास कर एक सशक्त और जिम्मेदार नागरिक तैयार करता है।
शैक्षणिक प्रोत्साहन
परिवार बच्चे को शिक्षा के प्रति प्रेरित करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाता है। माता-पिता न केवल बच्चे को पढ़ाई के लिए प्रेरित करते हैं, बल्कि उसके लिए एक अनुकूल और शांत वातावरण भी तैयार करते हैं, जहाँ वह ध्यानपूर्वक अध्ययन कर सके। वे बच्चे की शैक्षणिक प्रगति पर निगरानी रखते हैं, उसकी कठिनाइयों को समझकर सहायता करते हैं और उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। माता-पिता के उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन से बच्चे में आत्मविश्वास, लगन और सीखने की इच्छा बढ़ती है। परिवार का यह सहयोग बच्चे की शिक्षा में सफलता का आधार बनता है। इस प्रकार, परिवार बच्चे के शैक्षणिक विकास और मानसिक उत्थान में एक मजबूत स्तंभ की तरह कार्य करता है।
भावनात्मक समर्थन
परिवार बच्चे को मानसिक और भावनात्मक सुरक्षा प्रदान करता है, जो उसके सर्वांगीण विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। माता-पिता और परिवार के सदस्य बच्चे की भावनाओं को समझते हैं, उसकी परेशानियों में साथ देते हैं और हर परिस्थिति में उसे संभालते हैं। यह भावनात्मक समर्थन बच्चे को आत्मविश्वास, स्थिरता और सकारात्मक सोच प्रदान करता है। जब बच्चा परिवार के स्नेह और प्रोत्साहन से घिरा होता है, तो वह निडर होकर अध्ययन और अन्य गतिविधियों में आगे बढ़ता है। परिवार का प्रेमपूर्ण वातावरण बच्चे को तनाव और असफलता से उबरने की शक्ति देता है। इस प्रकार, परिवार बच्चे के जीवन में एक मजबूत भावनात्मक आधार का कार्य करता है, जो उसे संतुलित और आत्मविश्वासी बनाता है।
आर्थिक सहयोग
परिवार बच्चे की शिक्षा के लिए आवश्यक आर्थिक सहयोग प्रदान करता है। माता-पिता अपने संसाधनों के अनुसार बच्चे की पढ़ाई के लिए पुस्तकें, वर्दी, फीस, स्टेशनरी और अन्य शैक्षणिक सामग्री उपलब्ध कराते हैं, ताकि उसकी पढ़ाई में कोई बाधा न आए। वे बच्चे की शैक्षणिक जरूरतों को प्राथमिकता देते हुए उसके भविष्य के लिए सुव्यवस्थित आर्थिक योजना बनाते हैं। परिवार का यह सहयोग बच्चे को न केवल अध्ययन के लिए आवश्यक साधन देता है, बल्कि उसे यह एहसास भी कराता है कि उसकी शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण है। आर्थिक स्थिरता और समर्थन के कारण बच्चा निर्बाध रूप से अध्ययन कर पाता है और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर होता है। इस प्रकार, परिवार शिक्षा के क्षेत्र में बच्चे का मुख्य सहायक और प्रेरक बल होता है।
व्यवहार और आदर्श प्रस्तुत करना
परिवार, विशेष रूप से माता-पिता, अपने आचरण और जीवनशैली से बच्चे के लिए सबसे बड़े आदर्श बनते हैं। बच्चा अपने माता-पिता को देखकर ही यह सीखता है कि जीवन में शिक्षा, अनुशासन, परिश्रम और ईमानदारी का क्या महत्व है। जब माता-पिता स्वयं अध्ययन, समयपालन और नैतिक व्यवहार का पालन करते हैं, तो बच्चा भी अनजाने में वही गुण अपनाता है। उनके द्वारा दिखाया गया सकारात्मक व्यवहार और जीवन दृष्टिकोण बच्चे के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव डालता है। इस प्रकार, परिवार केवल शब्दों से नहीं, बल्कि अपने कर्मों और उदाहरणों से बच्चे को सिखाता है कि कैसे एक शिक्षित, जिम्मेदार और सदाचारी जीवन जिया जाए। परिवार का यह आदर्श प्रस्तुत करना बच्चे के चरित्र निर्माण और मूल्य विकास का मूल आधार होता है।
सामाजिक शिक्षा का माध्यम
परिवार बच्चे के लिए सामाजिक शिक्षा का प्रथम और सबसे प्रभावी माध्यम होता है। यहीं से वह सीखता है कि समाज में कैसे रहना है, दूसरों का सम्मान कैसे करना है, और सहयोग व सहानुभूति की भावना कैसे विकसित करनी है। परिवार के सदस्य अपने व्यवहार, प्रेम और आपसी संबंधों के माध्यम से बच्चे को सामाजिक मर्यादा, शिष्टाचार, और सामूहिक जीवन के नियम सिखाते हैं। बच्चा परिवार के माध्यम से यह समझता है कि हर व्यक्ति समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और सबके साथ मिलकर ही जीवन सुंदर बनता है। परिवार में सिखाए गए ये सामाजिक मूल्य आगे चलकर बच्चे को एक संवेदनशील, जिम्मेदार और आदर्श नागरिक बनने में सहायता करते हैं। इस प्रकार, परिवार बच्चे के लिए सामाजिक व्यवहार और मानवीय संबंधों की पहली पाठशाला होता है।
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