शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन से हैं ॥ Shikshan Ko Prabhavit Karne Wale Karak

शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन से हैं ॥ Shikshan Ko Prabhavit Karne Wale Karak

शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन से हैं ॥ Shikshan Ko Prabhavit Karne Wale Karak

शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक की भूमिका केंद्रीय और निर्णायक होती है, क्योंकि वही छात्रों को ज्ञान, मूल्य और व्यवहार की दिशा प्रदान करता है। एक प्रभावशाली शिक्षक का कक्षा-प्रदर्शन तभी सफल माना जाता है जब वह छात्रों की बौद्धिक, सामाजिक, राजनीतिक और व्यावहारिक क्षमताओं का विकास कर सके। शिक्षक के कक्षा-प्रदर्शन को मुख्यतः दो प्रकार के कारक प्रभावित करते हैं—व्यक्तिगत कारक (Personal Factors) और बौद्धिक कारक (Intellectual Factors)। व्यक्तिगत कारक शिक्षक के व्यक्तित्व से जुड़े होते हैं। एक शिक्षक को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से संतुलित, सामाजिक दृष्टि से संवेदनशील और नैतिक दृष्टि से दृढ़ होना चाहिए। उसका व्यवहार, पहनावा, बोलचाल और दृष्टिकोण छात्रों पर गहरा प्रभाव डालता है। वहीं, बौद्धिक कारक शिक्षक की सोचने-समझने की क्षमता, विवेक और विषय-विशेष में निपुणता से संबंधित होते हैं। यदि शिक्षक की बुद्धि, विचार क्षमता या आत्मविश्वास में कमी हो, तो शिक्षण प्रक्रिया प्रभावित होती है। इसलिए शिक्षक को निर्भीक, ऊर्जावान और सकारात्मक सोच वाला होना चाहिए। इसके अतिरिक्त शिक्षण को प्रभावित करने वाले अन्य कारणों में शिक्षण सामग्री की गुणवत्ता, विद्यालय का वातावरण, छात्र-शिक्षक संबंध, और तकनीकी संसाधनों की उपलब्धता भी शामिल हैं। एक सफल शिक्षक वही है जो इन सभी कारकों को संतुलित रखकर शिक्षण को सार्थक बनाए। व्यक्तिगत कारक (Personal Factor) तथा बौद्धिक कारक (Intellectual Factor के अलावा अन्य निम्न कारणों से शिक्षण प्रभावित हो सकती है –

1. विषय का कम ज्ञान (Poor Knowledge of Subject)

शिक्षण प्रक्रिया की सफलता काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि शिक्षक अपने विषय में कितना निपुण है। यदि शिक्षक को अपने विषय का गहन ज्ञान नहीं है, तो वह विद्यार्थियों को संतुष्ट नहीं कर सकेगा और न ही उन्हें सही दिशा प्रदान कर पाएगा। विषय का कम ज्ञान शिक्षण की गुणवत्ता को कम करता है, जिससे विद्यार्थी भ्रमित और उदासीन हो जाते हैं। एक प्रभावशाली शिक्षक वह होता है जो अपने विषय में निपुण, अद्यतन और आत्मविश्वास से भरा हो। विषय का गहरा ज्ञान शिक्षक को उदाहरणों, तथ्यों और वास्तविक जीवन के संदर्भों के माध्यम से शिक्षण को रोचक और समझने योग्य बनाने में सहायता करता है। इसलिए शिक्षक को निरंतर अध्ययन, शोध और आत्म-विकास के माध्यम से अपने विषय में प्रवीणता बनाए रखनी चाहिए। विषय का सुदृढ़ ज्ञान ही प्रभावशाली शिक्षण और विद्यार्थियों के समग्र विकास का आधार है।

2. शिक्षक का स्वास्थ्य (Health of Teacher)

कहा गया है — “स्वास्थ्य ही धन है”, और यह बात शिक्षण पेशे पर भी पूरी तरह लागू होती है। एक शिक्षक तभी प्रभावशाली रूप से शिक्षण कार्य कर सकता है जब वह शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ हो। शिक्षण एक ऐसा कार्य है जिसमें निरंतर एकाग्रता, धैर्य, और ऊर्जावान व्यक्तित्व की आवश्यकता होती है। यदि शिक्षक अस्वस्थ या थका हुआ है, तो वह न तो सही ढंग से पढ़ा पाएगा और न ही विद्यार्थियों का ध्यान आकर्षित कर सकेगा। मानसिक अस्वस्थता जैसे तनाव, चिंता या थकान उसके व्यवहार और शिक्षण दोनों को प्रभावित करती है। इसलिए शिक्षकों के लिए आवश्यक है कि वे अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें, नियमित व्यायाम करें, संतुलित आहार लें और सकारात्मक सोच बनाए रखें। एक स्वस्थ शिक्षक ही ऊर्जावान वातावरण बनाता है और विद्यार्थियों में प्रेरणा का संचार करता है। इस प्रकार शिक्षक का अच्छा स्वास्थ्य न केवल उसके व्यक्तिगत जीवन के लिए बल्कि संपूर्ण शिक्षण प्रक्रिया की सफलता के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।

3. ज्ञान-संचार प्रक्रिया (Knowledge-Communication)

शिक्षण का मूल उद्देश्य केवल ज्ञान प्राप्त करना नहीं, बल्कि उसे प्रभावी रूप से संप्रेषित करना भी है। ज्ञान-संचार प्रक्रिया में शिक्षक की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि वही अध्येताओं तक सही जानकारी और विचार पहुंचाता है। इसके लिए शिक्षक को अपने विषय में पूर्ण प्रवीणता और आत्मविश्वास होना आवश्यक है। यदि शिक्षक अपने विषय में निपुण नहीं है, तो वह विद्यार्थियों को स्पष्ट और सटीक जानकारी प्रदान नहीं कर पाएगा, जिससे शिक्षण प्रक्रिया प्रभावित होगी। एक प्रभावशाली शिक्षक अपने ज्ञान को सरल भाषा, उदाहरणों और संवादात्मक शैली में प्रस्तुत करता है ताकि विद्यार्थी आसानी से समझ सकें। संचार प्रक्रिया के दौरान वातावरण शांत और व्यवस्थित होना चाहिए, क्योंकि शोरगुल या बाहरी व्यवधान शिक्षण को बाधित करते हैं। साथ ही, शिक्षक को विद्यार्थियों की प्रतिक्रियाओं को ध्यानपूर्वक सुनना और उनके संदेहों का समाधान करना चाहिए। एक सफल ज्ञान-संचार प्रक्रिया तभी संभव है जब शिक्षक विषय में दक्ष, भाषाई रूप से स्पष्ट और मानसिक रूप से एकाग्र हो। यही गुण शिक्षण को प्रभावशाली, प्रेरणादायी और सफल बनाते हैं।

4. मानसिक स्तर (Mental Level)

शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षक विद्यार्थियों के मानसिक स्तर को भली-भांति समझे। हर विद्यार्थी की समझ, ग्रहण करने की क्षमता और बौद्धिक स्तर अलग होता है। यदि शिक्षक इन मानसिक भिन्नताओं को नज़रअंदाज़ कर देता है और अपने ही स्तर से शिक्षण जारी रखता है, तो विद्यार्थी विषय को सही ढंग से नहीं समझ पाएंगे, जिससे शिक्षण प्रक्रिया प्रभावित होगी। एक कुशल शिक्षक वही है जो अध्येताओं की मानसिक अवस्था, रुचियों और आवश्यकताओं का आकलन कर उनके अनुरूप शिक्षण की योजना बनाता है। शिक्षण के दौरान सरल से कठिन की ओर बढ़ना, उदाहरणों और संवादों का प्रयोग करना, तथा विद्यार्थियों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना प्रभावी शिक्षण के संकेत हैं। जब शिक्षक विद्यार्थियों के मानसिक स्तर के अनुसार शिक्षण करता है, तब विषय अधिक रोचक, उपयोगी और समझने योग्य बन जाता है। अतः यह कहा जा सकता है कि शिक्षण की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि शिक्षक विद्यार्थियों की मानसिक स्थिति को कितनी गहराई से समझता और उसके अनुसार शिक्षण का तरीका अपनाता है।

5. तैयारी (Preparation)

शिक्षण एक योजनाबद्ध प्रक्रिया है, जिसके सफल निष्पादन के लिए शिक्षक को पूर्ण तैयारी के साथ कक्षा में प्रवेश करना आवश्यक है। बिना तैयारी के शिक्षण न केवल अधूरा रह जाता है, बल्कि विद्यार्थियों की रुचि और विश्वास भी कम हो जाता है। जिस प्रकार किसी कार्य की सफलता उसकी पूर्व तैयारी पर निर्भर करती है, उसी प्रकार प्रभावशाली शिक्षण भी विषय की गहन तैयारी पर आधारित होता है। शिक्षक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह जिस विषय वस्तु का प्रस्तुतीकरण करने जा रहा है, उससे संबंधित सभी बिंदुओं, तथ्यों और उदाहरणों का पूरा ज्ञान रखता हो। कक्षा में विद्यार्थी विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछ सकते हैं, जिनका सही और संतोषजनक उत्तर देना शिक्षक का दायित्व होता है। यह तभी संभव है जब शिक्षक विषय की गहराई से तैयारी करके आए। तैयारी में केवल पाठ की जानकारी ही नहीं, बल्कि शिक्षण-सामग्री, समय-प्रबंधन, और विद्यार्थियों के स्तर के अनुसार उदाहरणों का चयन भी शामिल है। अतः यह कहा जा सकता है कि एक शिक्षक की अच्छी तैयारी ही प्रभावशाली, आत्मविश्वासपूर्ण और सफल शिक्षण की कुंजी है।

6. तत्क्षण बौद्धिक क्षमता (Presence of Mind)

एक सफल शिक्षक के लिए तत्क्षण बौद्धिक क्षमता का होना अत्यंत आवश्यक है। शिक्षण के दौरान कई बार ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं जब विद्यार्थियों को विषय समझने में कठिनाई होती है या वे पाठ में रुचि नहीं लेते। ऐसे में शिक्षक को तुरंत अपनी सोच, अनुभव और रचनात्मकता का प्रयोग करते हुए शिक्षण को रोचक और बोधगम्य बनाना चाहिए। उदाहरण के रूप में, शिक्षक किसी कठिन विषय को समझाने के लिए वास्तविक जीवन के उदाहरण, चित्र, मॉडल या किसी शिक्षण सहायक तकनीक का प्रयोग कर सकता है। यही तत्क्षण बौद्धिक क्षमता कहलाती है, जो न केवल शिक्षण को जीवंत बनाती है, बल्कि विद्यार्थियों के मन में विषय के प्रति रुचि और जिज्ञासा भी उत्पन्न करती है। यदि शिक्षक में यह गुण नहीं है, तो वह विद्यार्थियों के साथ संवाद स्थापित करने और उनकी समस्याओं का तत्काल समाधान देने में असफल हो सकता है। अतः शिक्षकों में परिस्थिति के अनुसार सोचने, निर्णय लेने और शीघ्र समाधान प्रस्तुत करने की योग्यता होनी चाहिए, क्योंकि यही गुण शिक्षण को प्रभावशाली, आकर्षक और उपयोगी बनाते हैं।

7. असंतुलित छात्र-शिक्षक औसत (Unbalanced Student-Teacher Ratio)

शिक्षण की प्रभावशीलता काफी हद तक छात्र-शिक्षक औसत (Student-Teacher Ratio) पर निर्भर करती है। प्रत्येक विद्यालय या विश्वविद्यालय के लिए शिक्षक-छात्र अनुपात का एक मानक निर्धारित किया गया है ताकि हर विद्यार्थी को पर्याप्त ध्यान और मार्गदर्शन मिल सके। जब यह औसत असंतुलित हो जाता है — अर्थात् एक शिक्षक पर अत्यधिक संख्या में छात्र हो जाते हैं — तो शिक्षण की गुणवत्ता स्वतः प्रभावित होती है। ऐसे में शिक्षक सभी विद्यार्थियों तक समान रूप से ध्यान नहीं दे पाता, जिससे कुछ विद्यार्थी पाठ को ठीक से समझ नहीं पाते या व्याख्यान सुनने में कठिनाई महसूस करते हैं। परिणामस्वरूप शिक्षण प्रक्रिया निष्प्रभावी हो जाती है। संतुलित छात्र-शिक्षक अनुपात शिक्षण को अधिक संवादात्मक, व्यक्तिगत और परिणामदायी बनाता है। इसलिए शैक्षणिक संस्थानों के लिए यह आवश्यक है कि वे निर्धारित मानकों के अनुसार ही कक्षाओं का संचालन करें, ताकि शिक्षक प्रत्येक विद्यार्थी की सीखने की गति और आवश्यकताओं पर ध्यान दे सके। इस प्रकार, संतुलित छात्र-शिक्षक औसत शिक्षण की गुणवत्ता और विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास का प्रमुख आधार है।

8. आधारभूत संरचना (Infrastructure)

किसी भी शैक्षणिक संस्थान की सफलता उसकी आधारभूत संरचना पर निर्भर करती है। सुदृढ़ और आधुनिक आधारभूत सुविधाएँ शिक्षण को प्रभावशाली, आकर्षक और उपयोगी बनाती हैं। विद्यालय या विश्वविद्यालय में आवश्यक सुविधाएँ जैसे स्वच्छ कक्षाएँ, उपयुक्त उपस्कर (Teaching Aids), स्वच्छ पेयजल, प्रसाधन, खेलकूद की सुविधा, पुस्तकालय तथा कंप्यूटर और इंटरनेट जैसी सूचना प्रौद्योगिकी संसाधन अत्यंत आवश्यक होते हैं। यदि इन सुविधाओं की कमी होती है, तो शिक्षण की गुणवत्ता प्रभावित होती है और विद्यार्थी सीखने में रुचि नहीं ले पाते। एक सुव्यवस्थित पुस्तकालय विद्यार्थियों को अतिरिक्त ज्ञान प्रदान करता है, जबकि प्रयोगशालाएँ और खेलकूद की सुविधाएँ उनके व्यावहारिक और शारीरिक विकास में सहायक होती हैं। साथ ही, आधुनिक शिक्षण पद्धतियों के लिए तकनीकी उपकरणों जैसे प्रोजेक्टर, स्मार्ट बोर्ड और डिजिटल लर्निंग टूल्स की उपलब्धता भी अनिवार्य है। अतः यह स्पष्ट है कि सुदृढ़ आधारभूत संरचना न केवल शिक्षण को प्रभावी बनाती है, बल्कि विद्यार्थियों में सीखने की प्रेरणा और रचनात्मकता को भी बढ़ाती है।

9. शिक्षण सहायक उपकरण (Teaching Aids/Tools)

शिक्षण सहायक उपकरण वे साधन हैं जो किसी विषय वस्तु को अधिक स्पष्ट, रोचक और समझने योग्य बनाने में शिक्षक की सहायता करते हैं। केवल व्याख्यान पद्धति से शिक्षण कार्य को प्रभावी बनाना कठिन होता है, इसलिए शिक्षकों को विभिन्न शिक्षण सहायक सामग्रियों का उपयोग करना आवश्यक है। इनमें चार्ट, मॉडल, चित्र, मानचित्र, प्रोजेक्टर, स्मार्ट बोर्ड, वीडियो, या अन्य ऑडियो-विजुअल उपकरण शामिल हो सकते हैं। जब शिक्षक इन उपकरणों का प्रयोग करते हैं, तो विद्यार्थी विषय को न केवल सुनते हैं बल्कि उसे दृश्य रूप में अनुभव भी करते हैं, जिससे उनकी समझ और स्मरण शक्ति दोनों में वृद्धि होती है। यदि शिक्षक शिक्षण सहायक उपकरणों का प्रयोग नहीं करते, तो विषय वस्तु को स्पष्ट करना कठिन हो जाता है और विद्यार्थी ऊब महसूस कर सकते हैं। शिक्षण सामग्री का प्रयोग न केवल शिक्षण को जीवंत बनाता है, बल्कि विद्यार्थियों की सक्रिय भागीदारी और रुचि भी बढ़ाता है। अतः यह कहा जा सकता है कि शिक्षण सहायक उपकरण शिक्षण प्रक्रिया के अनिवार्य अंग हैं, जो ज्ञान के प्रभावी संचार और शिक्षण की गुणवत्ता में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)

शिक्षण एक जटिल किंतु अत्यंत रचनात्मक प्रक्रिया है, जिसमें शिक्षक की भूमिका केंद्रीय और निर्णायक होती है। शिक्षण की प्रभावशीलता कई कारकों पर निर्भर करती है — जैसे शिक्षक का विषय ज्ञान, स्वास्थ्य, मानसिक स्तर, तत्क्षण बौद्धिक क्षमता, तैयारी, छात्र-शिक्षक अनुपात, आधारभूत संरचना, तथा शिक्षण सहायक उपकरणों का प्रयोग। एक सक्षम और सजग शिक्षक इन सभी तत्वों को संतुलित रखकर ही शिक्षण को प्रभावशाली बना सकता है। शिक्षक को केवल ज्ञान का स्रोत नहीं, बल्कि प्रेरणा, अनुशासन और नैतिकता का प्रतीक बनना चाहिए। जब शिक्षक शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक रूप से स्वस्थ रहकर समुचित तैयारी और आधुनिक तकनीकों के साथ शिक्षण करता है, तब विद्यार्थी न केवल विषय को समझते हैं बल्कि जीवन के मूल्यों को भी आत्मसात करते हैं। अतः कहा जा सकता है कि शिक्षण प्रक्रिया की सफलता का आधार एक योग्य, सृजनशील और संवेदनशील शिक्षक है, जो अपने ज्ञान, व्यवहार और दृष्टिकोण से विद्यार्थियों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने की क्षमता रखता है।

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