अधिगम असमर्थता क्या है/अधिगम अक्षमता क्या है
बच्चों के अधिगम या सीखने की समस्या को समझने के लिए हमें बच्चे किस सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारकों को जानना होगा या उनका आकलन करना चाहिए।
अधिगम को प्रभावशाली बनाने के लिए मजबूत अभिप्रेरणा तथा उचित अध्ययन की आवश्यकता होती है। औपचारिक शब्दों में अधिगम असमर्थता को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल विभिन्न क्रियाकलापों या सिखाने की कमी या अयोग्यता को मानी जा सकती हैं।
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अधिगम असमर्थता का अर्थ/अधिगम अक्षमता का अर्थ
ये अयोग्यताएं प्राथमिक ग्रुप से दृष्टि बाधिता, श्रवण बाधिता और मानसिक मंदता आदि दोषों के कारण नहीं होती बल्कि ये दोष भाषा के प्रयोग करने व समझने में मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया के कारण होते हैं।
इस प्रकार से अधिगम की दृष्टि से अक्षमता बालकों द्वारा अधिगम के क्षेत्र में उसी प्रकार की कमियों और सुविधाओं का सामना करना पड़ता है। जैसे कि एक शारीरिक रूप से विकलांग शारीरिक व मानसिक क्रियाओं के संचालन में होता है।
अधिगम अक्षमता की परिभाषा/अधिगम असमर्थता की परिभाषा
“अधिगम असमर्थता बालक वे बालक होते हैं जो भाषा को लिखने या बोलने में मनोवैज्ञानिक ढंग से एक या एक से अधिक सुचारू रूप से प्रणाली का कार्य नहीं कर पाता है। इस प्रकार की कमियों का मुख्य आधार सुनने, बोलने, समझने विचार करने पढ़ने लिखने गिनती करने तथा शब्दों के विभिन्न वर्तनी दोस्त के करने में का कमजोरी का पाया जाना होता है इस प्रकार की असमर्थता में शारीरिक बाधिता जैसे
डिस्लेक्सिया (dyslexia), अफेसिया (aphasia) की विकसित होने की दशा से भी तात्पर्य है जिसे इसमें सम्मिलित किया गया है।
इसमें अधिगम संबंधी समस्याएं सम्मिलित नहीं है जो मुख्यत: दृष्टि अधिगम हाथ पैर, मानसिक मंदता, भावात्मक विमोक्ष, अथवा वातावरण का समुचित ना होने के कारण होती है।”
अधिगम असमर्थता सहित लोग उसी तरीके से या अपनी दक्षता से नहीं सीखते जितना अधिगम समर्थी लोग सीख लेते हैं। चाहे उनके पास सामान्य बुद्धि क्यों ना हो फिर भी उनका शैक्षिक निष्पादन अपने अन्य कक्षा साथियों से बहुत पीछे होता है। कुछ गणित सीखने में बहुत कठिनाई का सामना करते हैं तथा लिखने और पढ़ने में मास्टरी करना उनके लिए कठिन चुनौती होती हैं।
अधिगम असमर्थता के प्रकार (adhigam asamarth ke prakar)
बौद्धिक क्रिया कलाप में इस वर्ग के बालक अन्य बालकों के समान ही होते हैं। इनमें किसी भी प्रकार का मानसिक पिछड़ापन नहीं होता। साथ ही इनमें किसी भी प्रकार का दृष्टि दोष एवं श्रवण दोष भी नहीं पाया जाता लेकिन उनको पठन, लेखन वर्तनी की शुद्धता तथा गणित के प्रश्न हल करने आदि की समस्याएं होती हैं।
यह सभी समस्याएं मनोवैज्ञानिक कारणों का परिणाम होता है। सीखने, बोलने, समझने तथा गणित के प्रश्न आदि हल करने में अधिक कठिनाइयां होती है।
यह सभी कठिनाईयां इनमें कोई कमी अथवा व्यवहार विषयक कमी के कारण होती हैं। एक कठिनाइयां केवल मानसिक कमी के कारण बिल्कुल नहीं होती।
यह अधिगम अक्षमता दो प्रकार के हो सकते हैं
१. सामान्य अधिगम अक्षमता
२. जटिल अधिगम अक्षमता
१. सामान्य अधिगम अक्षमता बालक :-
प्रारंभिक काल में इन बालकों को आधारभूत अधिगम संबंधी कौशल सीखने में अनेक समस्याओं से जूझना पड़ता है।
यदि शुरुआत में ज्ञात हो जाए तो बालक की सहायता की जा सकती है। यह काम उसे उचित प्रशिक्षण देकर और अभ्यास के द्वारा संपन्न किया जा सकता है। क्योंकि उनकी समस्या सामान्य तरह की होती है।
अतः उनको सामान्य विद्यालयों की ऊंची कक्षाओं में भी एकीकृत किया जा सकता है।
इसके लिए पाठ्यक्रम में सामान्य प्रकार के परिवर्तन करना होता है।
२. जटिल अधिगम अक्षमता बालक :-
इस श्रेणी में उन बालकों की गिनती की जाती है जिनको आधारभूत एकेडमी कौशल प्राप्त करने में कठिनाई होती हैं। जैसे लेखन, वाचन एवं पठन आदि। समस्या उनके मस्तिष्क के किसी भी विकार के कारण हो सकते हैं। इन बालकों को विद्यालय में एकीकृत करने में बहुत अधिक समस्या का सामना करना पड़ता है।
जिन बालकों में अधिगम संबंधी दोष होता है उनकी व्यवहार संबंधी विशेषताएं अलग-अलग होती हैं। लेकिन उन सभी की उपलब्धियां तथा बौधिक क्षमता के बीच बहुत अधिक अंतर होता है।
इन समस्याओं का वर्णन कुछ रूप से किया जा सकता है जैसे पठन संबंधी डिस्लेक्सिया (dyslexia), लेखन संबंधी समस्या डिसग्राफिया, संप्रेषण संबंधी समस्या संख्या संबंधी समस्या डिस्केल्कूलिया।
क) पठन संबंधी डिस्लेक्सिया (dyslexia) :
इस समस्या के अंतर्गत अधिगम अक्षमता बालक को पढ़ने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। में किसी भी शब्द का उच्चारण सही तरीके से नहीं समझ पाने की वजह से नहीं कर पाते हैं जिससे उन्हें पढ़ने में कठिनाई होती है।
ख) लेखन संबंधी समस्या डिस्ग्राफिया :-
इस समस्या के अंतर्गत बालक को लिखने में कठिनाई होती है। इसमें बालक अक्षर को नहीं पहचान पाता है जैसे वह ‘M’ को ‘W’ तथा ‘b’ को ‘d’ लिखता है।
ग) संप्रेषण संबंधी समस्या :-
इसके अंतर्गत बालक में बोलने की क्षमता कम होती है। वह किसी दूसरे व्यक्ति के सक्षम बोल नहीं पाता है। वह सही तरीके से अपनी बातों को दूसरे के सामने नहीं रख पाता है और ऐसे बालक एकांत में रहना पसंद करते हैं उन्हें एक दूसरे से मिलना पसंद नहीं होता।
घ) संख्या संबंधी समस्या डिस्कैल्कूलिया :-
इस समस्या के अंतर्गत बालक संख्या से संबंधी प्रश्नों का हल नहीं कर पाता है। उसे जोड़ घटाव संख्याओं को गिनने आदि की समस्या होती है और वह गणित में रुचि नहीं ले पाता है। उन्हें संख्याओं को पहचानने में दिक्कत होती है।