मूल्यांकन की विधियों का वर्णन करें
राइटस्टोन के अनुसार :-
“मूल्यांकन सापेक्षिक रूप से नवीन प्रविधि है जिसका प्रयोग मापन की घटना को परंपरागत परीक्षणों और परीक्षाओं की अपेक्षा अधिकाधिक व्यापक रूप से व्यक्त करने के लिए किया जाता है।”
मूल्यांकन की प्रक्रिया पूर्ण रूप से मनोवैज्ञानिक होती हैं इसीलिए मूल्यांकन हेतु जो भी विधि अपना ही जाती है वह प्रत्येक प्रकार से स्पष्ट होनी चाहिए यह विधि स्थाई और वस्तुनिष्ठ भी होनी चाहिए इसका आधार मापन की क्रिया होनी चाहिए इसके अतिरिक्त या भी आवश्यक है कि मूल्यांकन की विधि बालकों के स्तर के अनुरूप होनी चाहिए इसका वैध होना भी आवश्यक है।
मूल्यांकन प्रविधि का अभिप्राय उस रीति से है जिसके द्वारा शिक्षक छात्र के ज्ञान और व्यवहार में हुए परिवर्तनों और छात्रों के व्यक्तिगत विशेषताओं का मूल्यांकन करता है यहां यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बालक के समस्त व्यवहारिक परिवर्तनों का किसी एक विधि के द्वारा परीक्षण नहीं कर सकते इसीलिए मूल्यांकन हेतु अनेक प्रवृत्तियों का प्रयोग किया जाता है मूल्यांकन की प्रविधियां निम्नलिखित है-
१. निरीक्षण विधि :-
इस विधि के द्वारा छात्रों के सामाजिक विकास, संवेगात्मक एवं बौद्धिक परिपक्वता के बारे में ज्ञात किया जाता है। निरीक्षण के द्वारा या ज्ञात हो जाता है कि बालकों में कौन-कौन सी आदतें विकसित हुई है।
२. साक्षात्कार विधि :-
साक्षात्कार के द्वारा छात्रों की रूचि में वृद्धि एवं मनोवृति में परिवर्तन का ज्ञान होता है साक्षात्कार छात्रों की विभिन्न व्यक्तिगत विशेषताओं की परीक्षण में विशेष सहायता पहुंचाता है। साक्षात्कार मूल्यांकन का एक महत्वपूर्ण साधन है।
३. प्रश्नवली विधि :-
प्रश्नवली का प्रयोग छात्रों से अनेक प्रकार की सूचनाएं प्राप्त करने के लिए किया जाता है। छात्र प्रश्नों को देखकर अपनी रुचि और योग्यता के अनुसार प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि “प्रश्न हम विशिष्ट उद्देश्य की प्राप्ति के लिए बनाते हैं ताकि हम प्रश्नवली विधि के द्वारा दूसरों की मूल्यांकन कर सके ऐसे ही क्रमिक प्रश्नवली को प्रश्नवली विधि कहते हैं।”
४. जांच प्रविधि:-
जांच सूची में चुने हुए शब्दों तथा अनुच्छेदों की एक सूची होती है। किंतु इनमें कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना होता है। जैसे उद्देश्य स्पष्ट एवं निश्चित होनी चाहिए, कथन सूची विश्लेषकों के द्वारा भली-भांति तैयार की जानी चाहिए कथन विशिष्ट तथा कार्य पूरक के रूप में दिया जाना चाहिए, कथा निश्चित कर्म में तर्क पर आधारित होना चाहिए।
५. छात्रों द्वारा निर्मित वस्तुएं:-
छात्रों द्वारा बनाई गई वस्तुएं भी छात्र के व्यवहार संबंधित सूचनाएं प्रदान करने में महत्वपूर्ण साधन है जैसे कागज लकड़ी या मिट्टी की बनाई हुई वस्तुएं छात्रों की कुशलता एवं रूचि में अच्छी जानकारी प्रदान करती है।
६. अभिलेख विधि :-
इसमें छात्रों द्वारा लिखी गई डायरिया अध्यापकों द्वारा तैयार किए घटना वृत तथा संचित अभिलेख पत्र इत्यादि आते हैं।
७. परीक्षा विधि :-
इसमें अनेक प्रकार की परीक्षाएं सम्मिलित होती है जैसे लिखित परीक्षा, मौखिक परीक्षा तथा प्रतियोगी परीक्षा।
८. व्यक्तिगत अध्ययन विधि:-
इस विधि में व्यक्ति से संबंधित सूचनाएं एकत्रित की जाती है और संबंधित समस्याओं को सुलझाने का प्रयास किया जाता है।
९. व्यक्ति इतिहास विधि :-
इसमें व्यक्ति स्वयं ही अपने विषय में लिखता है जिससे कि मूल्यांकन में बहुत सहायता मिलती है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मूल्यांकन की प्रविधियां कई प्रकार की होती है जिससे हम व्यक्ति के हर गतिविधियों का मूल्यांकन कर सकते हैं।