जरूरतों के नाम पर कविता का उद्देश्य और संदेश लिखिए
कविता साहित्य की वह विधा है, जो भावनाओं, विचारों और यथार्थ को शब्दों में पिरोकर पाठकों के हृदय में उतर जाती है। जब कोई कवि समाज की विसंगतियों, मानवीय दुर्बलताओं और नैतिक पतन को अपने शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त करता है, तो वह न केवल एक रचना करता है, बल्कि समाज को आईना दिखाने का कार्य भी करता है। प्रस्तुत कविता ‘जरूरतों के नाम पर’ एक ऐसी ही रचना है, जिसमें कवि ने मानवीय स्वार्थ, मिथ्याचार, असत्य और असहिष्णुता को उजागर करते हुए एक गहरा सामाजिक संदेश दिया है।
जरूरतों के नाम पर कविता का उद्देश्य
कविता की अंतिम दो पंक्तियाँ कविता के मूल उद्देश्य को स्पष्ट रूप से सामने लाती हैं। कवि का कहना है कि जब मिथ्याचारी, दंगाई, असत्यभाषी और असहिष्णु प्रवृत्ति के लोग अपने कर्मों का दंड भोगने लगते हैं, तब उन्हें अपने द्वारा किए गए कृत्यों का पश्चाताप होता है। वे सत्य की कीमत को तब समझते हैं, जब उनका जीवन विपरीत परिस्थितियों में घिर जाता है। लेकिन उस समय तक देर हो चुकी होती है, और पछतावे के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं बचता।
कविता इस सच्चाई को उजागर करती है कि मनुष्य जब केवल अपनी ‘जरूरतों’ की पूर्ति के लिए नैतिकता और सच्चाई को त्याग देता है, तो वह स्वयं अपने भविष्य के लिए संकट का बीज बोता है। कवि यह दर्शाना चाहते हैं कि सत्य, ईमानदारी और नैतिक मूल्यों को त्यागकर प्राप्त की गई सफलता क्षणिक होती है।
इस कविता का उद्देश्य समाज को यह समझाना है कि आज के युग में जब व्यक्ति केवल तात्कालिक लाभ, भौतिक सुख-सुविधा और निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए दूसरों के साथ अन्याय करता है, तो वह अपने लिए विनाश का मार्ग ही चुनता है। कवि ने कविता के माध्यम से एक चेतावनी दी है — कि आवश्यकता है हम आत्मचिंतन करें, सत्य को अपनाएं और समाज में एक नैतिक मूल्यों से युक्त वातावरण का निर्माण करें।
जरूरतों के नाम पर का संदेश
इस कविता के माध्यम से कवि कुँवर नारायण पाठकों को एक स्पष्ट और प्रभावशाली संदेश देना चाहते हैं। वे कहते हैं कि मनुष्य प्रायः तत्कालिक लाभ, भौतिक सुख या तात्कालिक सफलता के लिए गलत निर्णय ले लेता है। वह सत्य से विमुख होकर झूठ, हिंसा या भ्रष्ट साधनों की ओर अग्रसर हो जाता है। उस समय उसे लगता है कि वह सफल हो गया है, लेकिन जब उसके इन निर्णयों के दूरगामी परिणाम सामने आते हैं, तब पछताने के अलावा उसके पास कोई रास्ता नहीं बचता।
कविता यह बताने का प्रयास करती है कि क्षणिक लाभ में जो सुख दिखाई देता है, वह वास्तव में दीर्घकालीन दुख की नींव बनता है। इसीलिए कवि बार-बार सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। वे चाहते हैं कि व्यक्ति समाज के लिए एक आदर्श बने, सत्य, अहिंसा, और सहिष्णुता के मूल्यों को अपनाए तथा अपने कार्यों से दूसरों को भी प्रेरित करे।
कविता का सामाजिक सन्दर्भ
‘जरूरतों के नाम पर’ कविता आज के समाज की कड़वी सच्चाई को उजागर करती है। आज का मनुष्य अधिकतर स्वार्थ के वशीभूत होकर सही-गलत की परवाह किए बिना कार्य करता है। चाहे वह रिश्वत लेना हो, झूठ बोलना हो, या फिर किसी को धोखा देना हो — हर कार्य को वह अपने ‘जरूरत’ की पूर्ति के नाम पर उचित ठहराने की कोशिश करता है। इस प्रवृत्ति के कारण ही समाज में असत्य, अन्याय, भ्रष्टाचार और हिंसा जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं।
कवि का उद्देश्य केवल आलोचना करना नहीं है, बल्कि वह चेतावनी भी देना चाहते हैं कि यदि समय रहते इन प्रवृत्तियों पर रोक नहीं लगाई गई, तो व्यक्ति, समाज और राष्ट्र तीनों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगेगा। कविता हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारी ‘जरूरतें’ इतनी बड़ी हैं कि उनके नाम पर हम अपने नैतिक मूल्यों को भी गिरवी रख दें?
कवि की दृष्टि और लेखन शैली
कुँवर नारायण की लेखन शैली सूक्ष्म, विचारपूर्ण और यथार्थपरक है। वे अपनी कविताओं के माध्यम से समाज के उस हिस्से को उजागर करते हैं, जो सामान्यतः अनदेखा रह जाता है। उनके शब्दों में केवल भावनाएँ ही नहीं होतीं, बल्कि एक विचारधारा, एक दर्शन और एक मार्गदर्शन छिपा होता है।
‘जरूरतों के नाम पर’ कविता में उन्होंने बड़े ही सहज और स्पष्ट शब्दों का प्रयोग करते हुए गहन सामाजिक संदेश प्रस्तुत किया है। वे किसी पर आरोप लगाने की बजाय पाठक को आत्ममंथन की प्रेरणा देते हैं। यही कारण है कि उनकी कविता न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से समृद्ध है, बल्कि नैतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
आज के संदर्भ में कविता की प्रासंगिकता
आज जब समाज में नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है, व्यक्ति अपने लाभ के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है, तब इस कविता की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है। यह कविता आज के प्रत्येक व्यक्ति को यह सोचने पर विवश करती है कि क्या उसके निर्णय केवल उसकी ‘जरूरतों’ की पूर्ति के लिए हो रहे हैं, या वे समाज और मानवता के प्रति भी उत्तरदायित्व का पालन कर रहे हैं?
इस कविता के माध्यम से हमें यह शिक्षा मिलती है कि चाहे कितनी भी कठिन परिस्थिति क्यों न हो, हमें सत्य और नैतिकता का मार्ग नहीं छोड़ना चाहिए।
निष्कर्ष
‘जरूरतों के नाम पर’ कविता केवल एक साहित्यिक रचना नहीं है, बल्कि यह एक चेतावनी है, एक संदेश है, और एक मार्गदर्शन है। कवि ने अत्यंत सूक्ष्मता से बताया है कि जब व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए नैतिक मूल्यों से समझौता करता है, तो वह केवल समाज को ही नहीं, स्वयं को भी धोखा दे रहा होता है।
यह कविता पाठकों को आत्मावलोकन के लिए प्रेरित करती है और यह सिखाती है कि सत्य का मार्ग कठिन हो सकता है, लेकिन अंततः वही स्थायी सुख और संतोष प्रदान करता है। कुँवर नारायण की यह कविता न केवल आज के संदर्भ में, बल्कि आने वाले समय में भी सदैव प्रासंगिक बनी रहेगी।
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