गुणाकर मुले का जीवन परिचय ॥ Gunakar Muley Ka Jeevan Parichay
गुणाकर मुले हिन्दी के महान विज्ञान लेखक, गणितज्ञ, अन्वेषक और भारतीय संस्कृति के अध्येता थे, जिन्होंने विज्ञान संचार को जीवन का लक्ष्य बना लिया था। उनका जीवन संघर्ष, समर्पण और ऋषितुल्य साधना की मिसाल है—वे न केवल अपने लेखन के लिए, अपितु निर्भीक सत्यवादिता, विनम्रता और सरलता के लिए भी जाने जाते थे।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
गुणाकर मुले का जन्म 3 जनवरी 1935 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले के सिंदी बुजुर्क गाँव में हुआ था। उनका परिवार मराठी भाषी था, लेकिन उन्होंने हिंदी में लेखन को अपने जीवन का उद्देश्य बनाया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के मराठी स्कूल में हुई, जहाँ से उनमें पाठ्य पुस्तकों के बाहर पढ़ने की प्रवृत्ति जागी। इसके बाद वे वर्धा गए, जहाँ कुछ वर्ष कार्य किया और साथ-साथ हिन्दी और अंग्रेज़ी भाषा का गहरा अध्ययन किया। आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय आए, जहाँ से गणित में स्नातक और फिर स्नातकोत्तर (एम.ए.) की उपाधि प्राप्त की।
स्वतंत्र लेखन और साहित्यिक जीवन
मुले जी ने जीवनभर आजीविका के लिए स्वतंत्र लेखन को ही चुना। इस दौरान उन्हें कई तरह की आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, परन्तु उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनका लेखन विज्ञान, गणित, पुरातत्त्व, पुरालिपिशास्त्र, मुद्राशास्त्र और भारतीय विज्ञान-इतिहास जैसे विषयों पर हुआ।
मुले जी ने लगभग 35 मौलिक पुस्तकें हिंदी में, 3,000 से अधिक लेख हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में और कुछ 250 लेख अंग्रेजी में लिखे। उनके लेखों और पुस्तकों के साथ प्रामाणिक सन्दर्भ होते थे, जिससे उनकी विद्वता का लोहा सबने माना। “संसार के महान गणितज्ञ”, “भारतीय विज्ञान की कहानी”, “आकाश दर्शन”, “भारतीय अंकपद्धति की कहानी”, “भारतीय लिपियों की कहानी”, “आर्यभट”, “महापण्डित राहुल सांकृत्यायन”, “महान वैज्ञानिक” जैसी किताबें अपने विषय की महत्वपूर्ण कृतियाँ मानी जाती हैं।
लेखन की विधा एवं योगदान
गुणाकर मुले के लेखन की सबसे बड़ी विशेषता थी—कठिन से कठिन वैज्ञानिक, गणितीय और ऐतिहासिक विषयों को दृढ़ अनुसंधान, सटीक साक्ष्य और सरल भाषा में आम जनता के लिए प्रस्तुत करना। उन्होंने न केवल भारतीय वैज्ञानिक विरासत की विश्वसनीय, प्रमाणिक जानकारी दी, अपितु महिला गणितज्ञों (हाइपेशिया, सोफिया कोवालेव्स्काया आदि) के बारे में भी पहली बार सुलभ परिचय कराए।
उनकी प्रामाणिकता इतनी प्रसिद्ध थी कि पाठक उनके बताए संदर्भों से स्वयं मूल स्रोत पढ़ सकते थे। गणित और विज्ञान में कई भ्रम और गलतियों को उन्होंने व्यापक रूप से सुधारा—सार्वजनिक पत्रिका “विज्ञान प्रगति” में उनकी श्रृंखला ‘संसार के महान गणितज्ञ’ ने सैकड़ों विद्यार्थियों में गणित के प्रति आकर्षण और आत्मविश्वास बढ़ाया।
संस्थागत भागीदारी और सम्मान
उन्हें हिन्दी अकादमी के साहित्यकार सम्मान, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान का आत्माराम पुरस्कार, बिहार सरकार का कर्पूरी ठाकुर स्मृति सम्मान, उत्तर प्रदेश हिन्दी समिति, विज्ञान परिषद (इलाहाबाद), संस्कृति संगम (दिल्ली) जैसे बड़े सम्मान प्राप्त हुए[। वे एनसीईआरटी की पुस्तक निर्माण योजना और ‘हिन्दी पाठ्य-पुस्तक संपादक मंडल’ के सक्रिय सदस्य रहे। ‘भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद’, ‘विज्ञान प्रसार’ (विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार) जैसे संस्थानों की शोध/फेलोशिप योजनाओं से जुड़े रहे और कई बार शिक्षकों के प्रशिक्षण शिविरों में वैज्ञानिक व्याख्यान दिए।
दैनिक जीवन, स्वभाव और सामाजिक भूमिका
व्यक्तिगत जीवन में गुणाकर मुले अत्यंत विनम्र, सरल और सहयोगी प्रवृत्ति के थे। वे विनम्रता से अपनी अज्ञानता स्वीकार कर लेते और सच्चाई की तलाश को लेखन का मूल समझते थे। गणित, विज्ञान, पुरातत्त्व, मुद्राशास्त्र, लिपिशास्त्र, भारतीय संस्कृति जैसे विषयों में उनका योगदान कालजयी है। उन्होंने दूरदर्शन के ‘विज्ञान भारती’ कार्यक्रम के लिए दो वर्षों तक स्क्रिप्ट भी लिखी। बच्चों और युवाओं में विज्ञान के प्रति जिज्ञासा और अभिवृद्धि में भी वे अग्रणी रहे।
प्रेरणा, विचार और साहित्यिक धरोहर
गुणाकर मुले को लिखना, पढ़ना और सच्चाई की तलाश जीवन का ध्येय बन गया था। उनकी किताबें और लेख न केवल वैज्ञानिक जानकारी देते हैं, बल्कि पढ़ने वालों में तार्किक सोच और विश्लेषण क्षमता भी विकसित करते हैं। उनकी प्रेरणा और अनुसन्धान की लगन राहुल सांकृत्यायन, भदन्त आनन्द कौसल्यायन, दामोदर धर्मानन्द कौशाम्बी जैसे आराध्य अध्येताओं के समकक्ष रखी जाती है।
निधन और विरासत
16 अक्टूबर 2009 को गुणाकर मुले का निधन हुआ। उनका जाना हिन्दी विज्ञान लेखन, गणित और संस्कृति अध्ययन के क्षेत्र में अपूरणीय क्षति थी[। आज भी उनकी पुस्तकें और लेखन नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं, और विज्ञान लेखन में संलग्न हजारों लोगों के लिए माँसरोवर के पर्वत की तरह दृष्टि और आदर्श हैं।
गुणाकर मूले के रचनाओं और उपलब्धियों के नाम
गुणाकर मूले एक प्रसिद्ध हिन्दी विज्ञान लेखक, गणितज्ञ और अन्वेषक रहे हैं जिन्होंने विज्ञान, गणित, इतिहास, पुरातत्त्व, पुरालिपिशास्त्र और संस्कृति पर सरल और प्रमाणिक लेखन किया था।
प्रमुख रचनाएँ
– संसार के महान गणितज्ञ
– भारतीय विज्ञान की कहानी
– आकाश दर्शन
– भारतीय अंकपद्धति की कहानी
– भारतीय लिपियों की कहानी
– आर्यभट[
– महापंडित राहुल सांकृत्यायन
– नक्षत्रलोक
– आपेक्षिकता का सिद्धांत
– अंतरिक्ष यात्रा
– ब्रह्मांड परिचय
– गणित की पहेलियाँ
– सूर्य, केप्लर, आर्किमीडीज़, पास्कल, मेंडेलीफ आदि पर जीवनीपरक पुस्तकें
– कंप्यूटर क्या है
– अंकों की कहानी, अक्षरों की कहानी, ज्यामिति की कहानी
उपलब्धियाँ
– लगभग 35 से अधिक मौलिक पुस्तकें और 3000 से भी अधिक लेख प्रकाशित हुए
– हिन्दी में विज्ञान लेखन को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका
– विज्ञान परिषद, इलाहाबाद द्वारा सम्मानित
– केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा का आत्माराम पुरस्कार
– बिहार सरकार का कर्पूरी ठाकुर स्मृति सम्मान, हिन्दी अकादमी का साहित्यकार सम्मान आदि
– एन.सी.ई.आर.टी की पुस्तक निर्माण और सम्पादन समिति तथा विज्ञान संवाद, संस्थान द्वारा प्रकाशित पुस्तकें
गुणाकर मूले की लेखन शैली अत्यंत सरल, प्रमाणिक और शोधपूर्ण रही, जिससे विज्ञान जैसे विषय भी आमजन की भाषा में सुलभ हो सके।
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