रामनरेश त्रिपाठी का जीवन परिचय॥ Ramnaresh Tripathi Ka Jivan Parichay In Hindi
जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि
हिन्दी साहित्य के इतिहास में स्वच्छन्दतावादी युग के प्रतिनिधि कवि रामनरेश त्रिपाठी का जन्म संवत् 1646 वि० (1889 ई.) में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जनपद के कोइरीपुर ग्राम में हुआ। उनके पिता रामदत्त त्रिपाठी एक वैष्णव भक्त और धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। वे गीता, रामायण और अन्य धार्मिक ग्रंथों का प्रतिदिन पाठ करते थे। इन्हीं संस्कारों का प्रभाव बालक रामनरेश पर पड़ा और उनमें बचपन से ही भक्ति, सदाचार और उच्च विचारों का विकास हुआ।
त्रिपाठी जी सारस्वत ब्राह्मण परिवार से थे। उनके घर का वातावरण धार्मिक और सांस्कृतिक था। फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी को जन्म लेने वाले इस बालक को परिवार ने बड़ा स्नेह दिया और उसका नाम रामनरेश रखा।
शिक्षा और आत्म-अध्ययन
रामनरेश त्रिपाठी की पाठशाला की औपचारिक शिक्षा बहुत अधिक नहीं हो सकी। आर्थिक कठिनाइयों और पारिवारिक परिस्थितियों के कारण उन्हें व्यवस्थित शिक्षा का अवसर कम मिला। फिर भी वे प्रतिभाशाली थे और घर पर ही उन्होंने स्वाध्याय से संस्कृत, अंग्रेजी और उर्दू का अध्ययन किया।
जीवन के आरंभिक काल में वे रोजगार की तलाश में कलकत्ता चले गए। वहाँ एक मिल में नौकरी की और साथ ही बंगला भाषा का ज्ञान प्राप्त किया। इसके बाद वे राजस्थान (मारवाड़) गए, जहाँ उन्होंने गुजराती भाषा सीखी। इस प्रकार त्रिपाठी जी ने अपनी मेहनत और लगन से कई भाषाओं का गहन अध्ययन किया।
जीवन का संघर्ष और साहित्यिक यात्रा
पिता की मृत्यु के बाद सन् 1915 में वे जौनपुर लौट आए और फिर प्रयाग (इलाहाबाद) चले गए। प्रयाग में साहित्यिक गतिविधियों का केंद्र बनने वाली संस्था ‘साहित्य भवन’ की स्थापना में उनका बड़ा योगदान रहा। यहीं से उन्होंने हिन्दी साहित्य के प्रचार-प्रसार का कार्य शुरू किया।
उन्होंने केवल रचनाएँ ही नहीं लिखीं, बल्कि समय-समय पर दक्षिण भारत की यात्राएँ करके हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रचार का कार्य किया। वे राजनीतिक दृष्टि से भी राष्ट्रीय विचारधारा के व्यक्ति थे। असहयोग आंदोलन में सक्रिय भागीदारी, ‘तिलक स्वराज्य कोष’ के लिए धन-संग्रह और राष्ट्रवादी गतिविधियों में उनकी भूमिका उल्लेखनीय रही।
जीवन के उत्तरार्ध में वे सुलतानपुर (अवध) में रहने लगे। अंततः संवत् 2018 वि० (1959 ई.) में पौष शुक्ल एकादशी को प्रयाग में उनका निधन हो गया।
साहित्यिक योगदान
रामनरेश त्रिपाठी की प्रतिभा अत्यंत बहुमुखी थी। उन्होंने कविता, उपन्यास, नाटक, आलोचना, संस्मरण, संपादन, अनुवाद, बाल-साहित्य और ग्रामगीत संग्रह – लगभग सभी विधाओं में कार्य किया।
उनकी प्रमुख मौलिक कृतियाँ
त्रिपाठी जी की रचनाओं में नवीन आदर्श और नवयुग का संदेश स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। उनके द्वारा रचित खण्डकाव्य ‘पथिक’ और ‘मिलन’ अत्यन्त लोकप्रिय हुए और पाठकों के बीच गहरी छाप छोड़ने में सक्षम रहे। उनकी रचनाओं की विशेषता यह है कि इनमें राष्ट्र-प्रेम, मानव-सेवा और उच्च मानवीय भावनाएँ सुंदरतम ढंग से प्रकट होती हैं। इसके अतिरिक्त, भारत की प्राकृतिक सुषमा और पवित्र प्रेम की कोमल छवियाँ भी उनकी कविताओं में प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत हुई हैं।
प्रकृति-वर्णन के क्षेत्र में त्रिपाठी जी का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने प्रकृति को न केवल आलम्बन, बल्कि उद्दीपन के रूप में भी अपनाया। उनके प्रकृति-चित्रण की खासियत यह है कि जिन दृश्यों का वर्णन उन्होंने किया, वे उनके स्वयं देखे और अनुभूत दृश्य हैं, जिससे पाठक को दृश्य-चित्रण की वास्तविकता और अनुभव की गहराई का अनुभव होता है।
त्रिपाठी जी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं—
- खण्डकाव्य: ‘पथिक’, ‘मिलन’, ‘स्वप्न’
- स्फुट कविता संग्रह: ‘मानसी’
- सम्पादित काव्य: ‘कविता-कौमुदी’, ‘ग्रामीण गीत’
- आलोचना: ‘गोस्वामी तुलसीदास और उनकी कविता’
- काव्य-ग्रंथ
- मिलन (1917 ई.)
- पथिक (1920 ई.)
- मानसी (1927 ई.)
- स्वप्न (1929 ई.)
- उपन्यास
- थोरांगना (1911 ई.)
- वीरबाला (1911 ई.)
- लक्ष्मी (1924 ई.)
- नाटक
- सुभद्रा (1924 ई.)
- जयन्त (1934 ई.)
- प्रेमलोक (1934 ई.)
- आलोचना और इतिहास
- तुलसी और उनकी कविता
- हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास
- संस्मरण
- तीस दिन मालवीय जी के साथ
- संपादन कार्य
- कविता कौमुदी (सात खंडों में)
- बानर
- रहीम, घाघ-भड्डरी, सोहर, रामचरितमानस, सुदामा चरित, पर्वती मंगल आदि के संपादन
इन रचनाओं ने उन्हें हिंदी साहित्य में नवयुग के कवि के रूप में प्रतिष्ठित किया।
विशेष कार्य
- उन्होंने हिन्दी के ग्रामगीतों का संग्रह कर एक बड़ी कमी पूरी की।
- बाल-साहित्य की रचना कर उन्होंने हिन्दी को नई दिशा दी।
- अनुवाद के क्षेत्र में भी उन्होंने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
काव्य-विशेषताएँ
रामनरेश त्रिपाठी की कविताओं और काव्य-ग्रंथों में कुछ विशेष विशेषताएँ देखने को मिलती हैं—
- देशभक्ति और राष्ट्रीय चेतना
– उनकी रचनाओं में देश के प्रति गहरा प्रेम और बलिदान की भावना है। मिलन, पथिक और स्वप्न में देशभक्ति की तीव्र गूंज सुनाई देती है। - प्रकृति-चित्रण
– उन्होंने प्रकृति का स्वतंत्र और व्यापक चित्रण किया। उनके काव्य में प्राकृतिक सौंदर्य जीवंत हो उठता है। - मानवीय संवेदना
– उनकी कविताएँ केवल सौंदर्य की नहीं, बल्कि समाज और मनुष्य की पीड़ा को भी स्वर देती हैं। - स्वच्छन्दतावादी भावधारा
– वे हिन्दी साहित्य के स्वच्छन्दतावादी कवियों में गिने जाते हैं। उनकी कविताओं में भावों की स्वतन्त्रता, कल्पना की उड़ान और सौंदर्य-चेतना स्पष्ट है। - सामाजिक चेतना
– उन्होंने ग्रामगीतों के माध्यम से ग्रामीण जीवन और लोक-संस्कृति को साहित्य में स्थान दिया।
भाषा और शैली
त्रिपाठी जी की भाषा मुख्यतः खड़ी बोली है, जिसमें सहज प्रवाह, मधुरता और ओज का अद्भुत संगम मिलता है। उनकी भाषा में जहाँ एक ओर भावनात्मक कोमलता और सरसता है, वहीं दूसरी ओर प्रभावशाली अभिव्यक्ति और दृढ़ता का भी परिचय मिलता है। उन्होंने समय-समय पर उर्दू के प्रचलित शब्दों का भी प्रयोग किया है, जिससे उनकी भाषा और अधिक सजीव, सरल तथा जनसामान्य के निकट प्रतीत होती है।
उनकी शैली सरस, स्वाभाविक और प्रवाहपूर्ण है, जो पाठक को बाँधने में समर्थ है। शैलीगत दृष्टि से उनके लेखन में दो रूप विशेष रूप से दिखाई देते हैं—वर्णनात्मक शैली, जिसमें वे भावों और घटनाओं का मार्मिक चित्रण करते हैं, तथा उपदेशात्मक शैली, जिसके माध्यम से वे जीवन-मूल्यों, आदर्शों और नैतिक शिक्षा को प्रस्तुत करते हैं।
इस प्रकार, त्रिपाठी जी की भाषा-शैली में सरलता और माधुर्य के साथ-साथ गम्भीरता और शिक्षाप्रदता का सुंदर सामंजस्य मिलता है।
हिंदी साहित्य में स्थान
त्रिपाठी जी हिंदी साहित्य के एक समर्थ कवि, कुशल संपादक और प्रखर पत्रकार के रूप में सदैव स्मरणीय रहेंगे। उनके काव्य में राष्ट्रीय भावनाओं और मानवीय संवेदनाओं की प्रगाढ़ अभिव्यक्ति मिलती है, जो पाठकों के हृदय को गहराई से स्पर्श करती है। इसके साथ ही उनके निबंध भी हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि के रूप में प्रतिष्ठित हैं, जिनमें स्पष्ट विचार, मार्मिक प्रस्तुति और साहित्यिक सौंदर्य का अद्भुत मेल दिखाई देता है।
इस प्रकार, त्रिपाठी जी का साहित्यिक योगदान केवल काव्य तक सीमित नहीं है, बल्कि संपादन, आलोचना और पत्रकारिता में भी उनकी विशिष्ट छवि बनी। उनकी बहुआयामी प्रतिभा ने उन्हें हिंदी साहित्य में एक सशक्त, प्रेरणादायक और कालजयी व्यक्तित्व बना दिया है। कवि, निबंधकार और संपादक के रूप में उनका स्थान हिंदी साहित्य में स्थायी और अमर है।
स्वच्छन्दतावादी कवि
रामनरेश त्रिपाठी हिंदी कविता के क्षेत्र में स्वच्छन्दतावादी भावधारा के प्रतिष्ठित कवि के रूप में जाने जाते हैं। उनसे पूर्व श्रीधर पाठक ने हिंदी कविता में स्वच्छन्दतावाद (Romanticism) की नींव रखी थी, परंतु त्रिपाठी जी ने अपनी रचनाओं द्वारा इस परंपरा को विकसित और पूर्ण रूप से सम्पन्न किया।
उनकी कविताओं का मुख्य विषय देश-प्रेम और राष्ट्रीयता रहा, जिसके कारण वे हिंदी कविता के मंच पर राष्ट्रीय भावनाओं के सशक्त गायक के रूप में अत्यंत लोकप्रिय हुए। इसके साथ ही, प्रकृति-चित्रण में भी त्रिपाठी जी ने अद्वितीय सफलता प्राप्त की। उन्होंने प्रकृति को न केवल दृश्यात्मक सौंदर्य के रूप में प्रस्तुत किया, बल्कि उसमें मानवीय भावनाओं और संवेदनाओं की गहनता भी समाहित की।
इस प्रकार, रामनरेश त्रिपाठी की कविता में स्वच्छन्दतावाद का मधुर संगम, राष्ट्रीय चेतना और प्रकृति की कोमल अभिव्यक्ति दृष्टिगोचर होती है, जो उन्हें हिंदी साहित्य में एक विशेष और कालजयी स्थान प्रदान करती है।
प्रभाव और योगदान
- त्रिपाठी जी ने हिन्दी साहित्य में स्वच्छन्दतावाद को नई ऊँचाई दी।
- बाल-साहित्य और ग्रामगीतों के क्षेत्र में उन्होंने जो योगदान दिया, वह आज भी अप्रतिम है।
- उन्होंने सम्पादन और अनुवाद के माध्यम से हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया।
- हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में उनका कार्य ऐतिहासिक महत्व रखता है।
मृत्यु
रामनरेश त्रिपाठी ने 16 जनवरी 1962 को अपने कर्मस्थल प्रयाग में ही अंतिम सांस ली। उनके निधन से हिंदी साहित्य का एक युग समाप्त हो गया। पंडित त्रिपाठी का जीवन और साहित्य आज भी प्रेरणा का स्रोत है। उनके सम्मान और स्मृति के लिए उनके गृहनगर सुलतानपुर में एक मात्र सभागार स्थापित किया गया है, जो उनकी साहित्यिक उपलब्धियों और व्यक्तित्व की स्मृतियों को जीवंत बनाए रखता है। इस सभागार के माध्यम से आने वाली पीढ़ियाँ त्रिपाठी जी के काव्य, निबंध और संपादन के महत्व को समझ सकती हैं और उनके अद्भुत योगदान को स्मरण कर सकती हैं।
निष्कर्ष
रामनरेश त्रिपाठी हिन्दी साहित्य के ऐसे कवि, लेखक और संपादक थे जिन्होंने साहित्य की लगभग सभी विधाओं को स्पर्श किया। उनका जीवन संघर्षपूर्ण रहा, किन्तु साहित्य के प्रति उनकी निष्ठा अडिग थी। वे केवल कवि नहीं, बल्कि समाज-सुधारक और राष्ट्रीय चेतना के प्रबल प्रतिनिधि थे।
उनकी रचनाओं में देशभक्ति, ग्राम्य जीवन, प्रकृति-सौंदर्य और मानवीय संवेदनाएँ झलकती हैं। उन्होंने हिन्दी साहित्य को एक नई दिशा दी और स्वच्छन्दतावादी भावधारा के कवि के रूप में अमिट छाप छोड़ी।
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