प्रदर्शन कौशल (pradarshan kaushal)क्या है
प्रदर्शन कौशल का तात्पर्य किसी कार्य को करके दिखाने की कुशलता से होता है। कोई कार्य करके दिखाने से शिक्षण प्रक्रिया प्रभावपूर्ण हो जाती है। इसमें शिक्षक स्वयं कार्य करता है। और छात्रा उसे देखता है। छात्र इस निरीक्षण के आधार पर निष्कर्ष पर पहुंचते हैं तथा विषय से संबंधित सिद्धांतों को वह भली-भांति समझ जाते हैं।
प्रदर्शन एक दक्ष अध्यापक के लिए सहायक अनुदेशक उपप्रकरण का करता है। अध्यापक मौखिक रूप से जो भी बताता है उसका प्रभाव छात्रों पर अपेक्षाकृत कम पड़ता है लेकिन जब वह उसी को स्वर्ग करके दिखाता है तो उसका प्रभाव छात्रों पर अधिक पड़ता है।
प्रदर्शन कौशल के घटक :-
१. शिक्षक को प्रदर्शन से पूर्व प्रदर्शन के लिए प्रयुक्त हो जाने वाली सामग्रियों को एकत्र कर लेनी चाहिए। तथा एकत्रित सामग्रियों की जानकारी छात्रों को भली भांति दे दी जानी चाहिए।
२. शिक्षक को प्रदर्शन के पूर्व प्रदर्शन का अभ्यास भली-भांति कर लेनी चाहिए अन्यथा छात्रों के बीच उपहास का सामना करना पड़ सकता है।
३. शिक्षक द्वारा प्रदर्शन सामग्री इतने बड़े आकार प्रकार से होनी चाहिए ताकि सभी विद्यार्थी उसको भली-भांति आराम से बैठकर उसका अवलोकन कर सकें।
४. प्रदर्शन करने का स्थान छात्रों के बैठने के स्थान से ऊंचा होनी चाहिए ताकि विद्यार्थी अपने-अपने सीटों पर बैठकर आराम से प्रर्दशित सामग्रियों का अवलोकन कर सकें।
५. प्रदर्शन के दौरान शिक्षक को छात्रों का सहयोग लेते रहना चाहिए। प्रदर्शन के दौरान बीच-बीच में प्रश्न करते रहना चाहिए।
६. प्रदर्शन के दौरान शिक्षक का कथन स्पष्ट सरल रोचक एवं प्रभावशाली होना चाहिए।
७. जैसे ही प्रदर्शन समाप्त हो हो प्रदर्शन के मुख्य बिंदुओं का पुनः अभ्यास करना चाहिए।
८. जब प्रदर्शन कार्य पूरा हो जाए तो प्रदर्शन सामग्री को एकत्रित कर लेना चाहिए और उसे यथा स्थान रख देना चाहिए ताकि छात्र प्रदर्शन कार्य समाप्त होने के बाद भी उसे ना देखें।
प्रदर्शन के दौरान सावधानियां
१. प्रदर्शन अनावश्यक रूप से लंबा या विस्तृत नहीं होनी चाहिए।
२. प्रदर्शन के दौरान लंबे व्याख्यानों एवं कथनों से प्राय: बचना चाहिए तथा कथन उत्पन्न ही लंबा हो जितना आवश्यक है।
३. प्रदर्शन कार्य अभ्यास करने के उपरांत ही किया जाना चाहिए।