अभिप्रेरणा की विधियाँ।। Abhiprerna Ki Vidhiyan ।। कक्षा में बच्चों को प्रेरित करने की विधियां।। कक्षा में बच्चों को अभिप्रेरित करने की विधियां।।अभिप्रेरणा के स्रोत ।। अभिप्रेरणा को प्रभावित करने वाले कारक

आज के बच्चे अपने कर्तव्य से पीछे हट रहे हैं तथा उन्हें पढ़ाई या अपने कर्तव्यों से कोई मतलब नहीं होता इन्हीं को ध्यान में रखकर कक्षा में बच्चों को प्रेरित या अभिप्रेरित(motivated) करने की आवश्यकता होती है ऐसा करने से बच्चों में एक प्रकार की उत्तेजना उत्पन्न होती है और यही उत्तेजना बच्चों के व्यवहार में परिवर्तन करने लगता है। जिससे बच्चे और अधिक अपने कामों में सक्रिय होने लगते हैं।इसलिए कक्षा में अभिप्रेरणा (motivation) का महत्वपूर्ण स्थान है। कक्षा में बच्चे दो प्रकार से अभिप्रेरित होते हैं पहला बाह्य अभिप्रेरणा से दूसरा आंतरिक अभिप्रेरणा से।

कक्षा में बच्चों को प्रेरित करने की विधियां (Techniques Of Motivation) या अभिप्रेरणा की विधियाँ या अभिप्रेरणा की तकनीक
- बाल केंद्रित दृष्टिकोण
- नहीं ज्ञान को पूर्व ज्ञान से संबंधित करना
- शिक्षण में प्रभावशाली तथा सहायक साधनों का प्रयोग
- उद्देश्य एवं लक्ष्य का निश्चित होना
- परिणाम एवं प्रोन्नति का ज्ञान
- शिक्षक का व्यवहार
- प्रशंसा एवं आलोचना
- पुरस्कार एवं दंड
- प्रतियोगिता एवं सहयोग
- कक्षा का वातावरण
- उचित दृष्टिकोण का विकास
- सीखने की उचित स्थिति और वातावरण
- असफलता का भय
- आकांक्षा का स्तर
- नयापन या नवीनता
1.बाल केंद्रित दृष्टिकोण:
कक्षा को शिक्षक केंद्रित नहीं बनाकर बाल केंद्रित बनाना चाहिए। ऐसा करने से बालक के मानसिकता पर प्रभाव पड़ता है। क्योंकि बालक की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर पढ़ाया जाए तो बालक उससे अभिप्रेरित होकर पूरी निष्ठा एवं लगन के साथ उसे सीखने/करने में एकजुट हो जाते हैं इसलिए कक्षा को बाल केंद्रित बनाना चाहिए ना कि शिक्षक केंद्रित। जहां शिक्षक आकर कुछ भी पढ़ा कर चला जाए और बच्चे को समझ में भी ना आए ऐसी शिक्षा से क्या मतलब।techniques of motivation
2.नयी ज्ञान को पूर्व ज्ञान से संबंधित करना:
कक्षा में पढ़ते समय शिक्षक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए की जो भी पढ़ाया जा रहा हैं उसका संबंध उसके पूर्व ज्ञान से होना चाहिए या पूर्व ज्ञान से जोड़ते हुए उसे पढ़ाना या समझाना चाहिए ताकि बालक उसे पूर्व ज्ञान से जोड़कर नये ज्ञान को भी समझ सके ऐसा करने से बालक उस विषय में रूचि लेता है और नई-नई सूचनाएं एकत्रित करने लगता है।अभिप्रेरणा की विधियाँ
3.शिक्षण में प्रभावशाली तथा सहायक साधनों का प्रयोग:
कक्षा में शिक्षक को कक्षा के स्तर से विभिन्न शिक्षण विधियों(techniques) का प्रयोग करते हुए प्रभावशाली ढंग से पढ़ाना चाहिए। किसी वर्ग विशेष के छात्रों के लिए शिक्षण विधि वह होती है जिसमें छात्रों की रुचि होती है और जिसके द्वारा वे जल्दी सीखने लगते हैं। इसके लिए शिक्षक को प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वह हर स्तर के लिए अलग-अलग शिक्षण विधियों का प्रयोग कर कक्षा को प्रभावशाली बना सकें।
4.उद्देश्य एवं लक्ष्य का निश्चित होना:
शिक्षक को बालक के उद्देश्य एवं उनके लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए उन्हें शिक्षा देना चाहिए तथा उन्हें बार-बार उन शिक्षा शास्त्रियों, बड़े विद्वानों, मनोवैज्ञानिकों, उन सफल व्यक्तियों का उदाहरण देते हुए उनके उद्देश्य एवं लक्ष्य का आभास कराना चाहिए। ऐसा करने से बालक अभिप्रेरित होते हैं तथा अपने उद्देश्य एवं लक्ष्यों से नहीं भटकते हैं। विद्यार्थी जब तक अपने सीखने के लक्ष्यों को नहीं जाने का तब तक वह कैसे अभिप्रेरित हो पाएगा। लक्ष्य विद्यार्थी को कार्य करने के लिए या सीखने के लिए दिशा प्रदान करता है और जब विद्यार्थी को दिशा मिल जाए तो वह लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बड़ी तीव्रता से अभिप्रेरित हो जाता है।
techniques of motivation
5.परिणाम एवं प्रोन्नति का ज्ञान:
कक्षा में हर प्रकार के विद्यार्थी होते हैं उनका मूल्यांकन करने के लिए शिक्षक एक तो कक्षा में किसी प्रकार का टेस्ट या परीक्षा लेता है ताकि उनसे उन बच्चों के स्थिति को जान सके। बच्चे भी अपने परिणामों को जाने के लिए उत्सुक होते हैं। शिक्षक ऐसा कर बच्चों की कमजोरी या परिणाम को उन्हें बता कर उन्हें पदोन्नति करने में सहायक होता है। ऐसा करने से बच्चों को डिमोटिवेट होने से बचाया जा सकता है। और उसे मोटिवेट कर उनके पढ़ाई में स्थिति अनुसार बदलाव करने का सुझाव दिया जाता है ताकि वे अपने जीवन में पदोन्नति कर सके।
6.शिक्षक का व्यवहार:
कक्षा में शिक्षक का व्यवहार भी बच्चों को मोटिवेट या डिमोटिवेट करता है। शिक्षक का जैसा व्यवहार होगा बच्चे भी वैसे ही शिक्षक की बातों पर ध्यान देंगे। चिड़चिड़ा या गुस्साइल प्रवृत्ति के शिक्षक को कोई पसंद नहीं करता। वहीं मधुर वाणी, सप्रेम, सहानुभूति जैसे शिक्षक को सभी महत्व देते हैं। शिक्षक अपने प्रेम, सहानुभूति, सहयोग पूर्ण व्यवहार से विद्यार्थियों की अभिप्रेरणा को सरलता से बढ़ा सकता है। यह कार्य छात्रों के भावनाओं का सम्मान करके उन्हें अभिव्यक्ति के स्वतंत्र अवसर प्रदान करके और उनकी समस्याओं का तुरंत हल करके किया जा सकता है।
7.प्रशंसा एवं आलोचना:
शिक्षक को कक्षा में इस बात का भी ध्यान देना पड़ता है कि उनके बातों एवं विचारों से किसी भी विद्यार्थी की भावना को ठेस ना पहुंचाएं। ऐसे में विद्यार्थी डिमोटिवेट होते हैं क्योंकि अगर ऐसा होता है तो वह विद्यार्थी उस शिक्षक के बातों या पढ़ाये जाने वाले विषय पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देगा। जिससे विद्यार्थी पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा। बालक की अच्छे कर्मों पर उनकी प्रशंसा करनी चाहिए और बुरे कर्मों पर आलोचना ना कर उन्हें समझाना चाहिए ताकि वे अपनी गलतियों को समझ कर उन्हें सुधार सकें तथा उससे अभिप्रेरित होकर अपने लक्ष्य को पा सके। प्रशंसा अभिप्रेरणा के लिए अधिक प्रभावशाली ढंग से कार्य कर सकती है। हर विद्यार्थी प्रशंसा का इच्छुक होता है अतः इस प्रशंसा को प्राप्त करने के लिए विद्यार्थी या व्यक्ति कार्य करने यह कार्य सीखने के लिए सदा ही अभिप्रेरित रहता है वही वे किसी भी प्रकार की आलोचना को बर्दाश्त नहीं करता है।अभिप्रेरणा की विधियाँ
8.पुरस्कार एवं दंड:
विद्यार्थी पुरस्कार का भूखा होता है। पुरस्कार और दण्ड अभिप्रेरणा के लिए एक महत्वपूर्ण प्रविधि है ये दोनों ही व्यक्ति के या विद्यार्थी के व्यवहार में अभिप्रेरणा का संचार करता है। पुरस्कार किसी भी रूप में हो सकता है किसी भी वस्तु से सम्मानित कर या विद्यार्थी या व्यक्ति की प्रशंसा करके। उसी प्रकार दंड भी शारीरिक या भय दिखा कर हो सकता है लेकिन विद्यार्थी जीवन में दंड का प्रयोग कम ही करना चाहिए अधिक दंड का प्रयोग करने से भी विद्यार्थी के व्यवहार में परिवर्तन होता है और वे डिमोटिवेट होने लगते हैं। पुरस्कार से विद्यार्थी में आत्म सम्मान आत्मविश्वास तथा योग्यताओं का विकास होता है। दंड व्यक्ति में अनुचित कार्य न करने के लिए भय का काम करता है पुरस्कार और डंका गलत अवसरों पर प्रयोग करने पर कई बार हानिकारक सिद्ध होता है अतः अध्यापक को इन प्रविधियों का प्रयोग करते समय अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए।
9.प्रतियोगिता एवं सहयोग:
विद्यार्थी या व्यक्ति के जीवन में प्रतियोगिता का महत्वपूर्ण स्थान है विद्यार्थी या व्यक्ति हर क्षण किसी ना किसी प्रतियोगिता से गुजरता है चाहे में अपने व्यक्तिगत परिस्थितियों से जीतना चाहता है या अपने लक्ष्यों को पाने के लिए। प्रतियोगिता द्वारा विद्यार्थी दूसरे विद्यार्थी से आगे निकलना चाहता है। प्रतियोगिता सामूहिक व व्यक्तिगत हो सकते हैं। सामूहिक प्रतियोगिता से विद्यार्थियों में सहयोग की भावना विकसित होती है। प्रतियोगिता का उचित प्रयोग कर अध्यापक विद्यार्थियों को अधिक मेहनत करने की प्रेरणा दे सकता है सहयोग से अभिप्रेरणा के विकसित होने की अधिक संभावनाएं होती है। सहयोग लोकतांत्रिक प्रवृत्तियों के विकास के लिए अभी प्रेरित करता है यदि प्रतियोगिता से आपसी मन-मुटाव या द्वेष भावना विकसित ना हो तो प्रतियोगिता अभिप्रेरणा के लिए एक प्रभावशाली विधि है।
10. कक्षा का वातावरण:
विद्यार्थियों के लिए अभिप्रेरित करने वाले प्रविधि (techniques) में कक्षा का वातावरण भी है। जिस कक्षा का वातावरण शांत, सुंदर, शुद्ध हवा, पर्याप्त प्रकाश इत्यादि का होगा तो शिक्षक एवं विद्यार्थी के बीच अच्छे संबंध होंगे। वहीं कोलाहल वातावरण, अंधेरा कक्ष एवं अशुद्ध हवा, बच्चों को प्रभावित करती हैं तथा इसका प्रभाव बच्चों के पढ़ाई पर भी पड़ता है। इसलिए कक्षा का वातावरण भी बच्चों को अभिप्रेरित करने का एक अच्छा माध्यम है जिस कक्षा में सीखने के लिए जितना अच्छा वातावरण होता है उस कक्षा के शिक्षार्थी या विद्यार्थी उतने ही अधिक अभी प्रेरित होते हैं।
11.उचित दृष्टिकोण का विकास:
विद्यार्थियों के परिवारों को अभिप्रेरित करने के लिए विद्यार्थियों की रुचियों और उनके दृष्टिकोण ओं को मान्यता देना भी अभिप्रेरणा की एक महत्वपूर्ण प्रविधि(techniques) है। विद्यार्थियों के दृष्टिकोण से उनकी रुचियों और ध्यान में गहरा संबंध होता है। अतः विद्यार्थियों में उचित दृष्टिकोणों को विकसित करने से और उनकी रूचि के अनुसार अधिगम स्थितियों के निर्माण से उनकी अभिप्रेरणा अधिक संभव होती है। दूसरे शब्दों में बाल केंद्रित दृष्टिकोण अभिप्रेरणा की महत्वपूर्ण प्रविधि है।
12.सीखने की उचित स्थिति और वातावरण
बालक को अभिप्रेरित करने के लिए या उसे सीखने के लिए उचित स्थिति और वातावरण की आवश्यकता होती है अतः शिक्षक को अपने कक्षा में ऐसी वातावरण या स्थिति का निर्माण करना चाहिए जिससे बालक अभिप्रेरित होकर अपनी कार्य में सक्रिय योगदान दे सकें।techniques of motivation
13.असफलता का भय:
स्किनर ने अपने प्रयोगों में पाया कि यदि सीखने वाली को अपनी सफलता क्या ज्ञान तुरंत करा दिया जाए तो वह उसके लिए अभी प्रेरक का कार्य करता है वह उससे आगे के कार्य को और अधिक उत्साह से करता है। सफलता का प्रभाव विद्यार्थियों में अभिप्रेरणा को जगाता है। सामान्य या कम बुद्धि के बच्चों में सफलता बहुत ही शक्तिशाली अभिप्रेरक का कार्य करती है लेकिन दूसरी ओर, असफलता से विद्यार्थी निराश हो जाते हैं। सामान्य बुद्धि के विद्यार्थी असफलता से निरुत्साहित हो जाते हैं लेकिन यही असफलता प्रतिभाशाली छात्रों के लिए एक चुनौती बनकर अभिप्रेरक के रूप में सामने आती है इस प्रकार की अभिप्रेरणा आंतरिक अभिप्रेरणा में शामिल होती है अतः असफलता के भय से विद्यार्थियों को अभी प्रेरित किया जा सकता है।
14.आकांक्षा का स्तर:
आकांक्षा स्तर विद्यार्थियों की योग्यताओं और उनके वातावरण से संबंधित होता है। जिस वस्तु की विद्यार्थी इच्छा करता है और उनका संबंध जीवन के लक्ष्यों से होता है उसे हम आकांक्षा स्तर कहते हैं। विद्यार्थी अगर अपने व्यक्तित्व या योग्यताओं को ध्यान में रखकर अपना आकांक्षा स्तर निर्धारित करता है तो वह उस स्तर को प्राप्त करने के लिए अधिक अभिप्रेरित रहेगा और सफल भी होगा। अध्यापक विद्यार्थियों को उनकी वास्तविकताओं से परिचित करवा कर उनको उनके आकांक्षा स्तर को ऊंचा उठाने के लिए उन्हें अभिप्रेरित करने में सहायक सिद्ध हो सकता है।
१५. नयापन या नवीनता:
विद्यार्थी हमेशा कुछ ना कुछ नया सीखने की इच्छुक रखते हैं बार-बार एक ही प्रकार से सिखाई गई विधि से वे होने लगते हैं तथा उन कार्यों से वे दूर हटने लगते हैं इसलिए शिक्षक को अपने पढ़ाने के तरीकों में हमेशा नयापन या नवीनता लाने की आवश्यकता होती है। ऐसा करने से विद्यार्थी नवीन कार्यों में अधिक रूचि लेते हैं इसी प्रकार अध्यापक की नवीन शिक्षण विधियों (techniques) से भी विद्यार्थी में नई-नई रुचियां उत्पन्न होती है नयापन से परिवर्तन भी होता है और कार्यों में विभिनता भी दिखाई देती हैं जो कि अभिप्रेरित व्यवहार के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष:
निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि बालक को अभिप्रेरित करने के लिए शिक्षक कई प्रकार के प्रविधियों (techniques) का प्रयोग कर सकता है ऊपर दिए गए विधियां उसके अलावा भी बच्चों को अभी प्रेरित करने के और भी अनेक को प्रविधियां(techniques) है जिनका उपयोग कर शिक्षक बालक या विद्यार्थियों के व्यवहार को प्रभावित कर सकते हैं या उन्हें अभिप्रेरित कर सकते हैं इन सभी प्रविधियां अभिप्रेरणा के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अभिप्रेरणा के स्रोत
अभिप्रेरणा के स्रोत (Sources of Motivation) वे कारक या माध्यम होते हैं जिनसे व्यक्ति को किसी कार्य को करने की प्रेरणा मिलती है। ये स्रोत आंतरिक भी हो सकते हैं और बाह्य भी, और ये किसी व्यक्ति की सोच, भावना, अनुभव, सामाजिक स्थिति या भौतिक साधनों से संबंधित हो सकते हैं।
नीचे अभिप्रेरणा के प्रमुख स्रोतों को विस्तारपूर्वक और सरल भाषा में समझाया गया है:
1. आंतरिक स्रोत (Intrinsic Sources)
ये स्रोत व्यक्ति के भीतर से उत्पन्न होते हैं। इन्हें आंतरिक प्रेरणा भी कहा जाता है। इसमें व्यक्ति अपने सुख, रुचि, जिज्ञासा, आत्मसंतोष या व्यक्तिगत लक्ष्य के कारण प्रेरित होता है।
मुख्य आंतरिक स्रोत:
- आत्मसंतोष की इच्छा
- सीखने की रुचि
- आत्मविकास की भावना
- नैतिक मूल्यों की समझ
- लक्ष्य की प्राप्ति का आत्मिक आनंद
उदाहरण: कोई छात्र सिर्फ ज्ञान प्राप्ति की खुशी के लिए पढ़ाई करता है, न कि पुरस्कार के लिए।
2. बाह्य स्रोत (Extrinsic Sources)
ये स्रोत व्यक्ति के बाहर स्थित होते हैं। इन्हें बाह्य प्रेरणा कहा जाता है। इसमें व्यक्ति को पुरस्कार, प्रशंसा, प्रतिस्पर्धा, या दंड से प्रेरणा मिलती है।
मुख्य बाह्य स्रोत:
- पुरस्कार (इनाम, स्कॉलरशिप)
- सामाजिक मान-सम्मान
- प्रशंसा या आलोचना
- धन या आर्थिक लाभ
- नौकरी या पदोन्नति की संभावना
उदाहरण: कर्मचारी बेहतर काम इसलिए करता है क्योंकि उसे प्रमोशन या बोनस मिल सकता है।
3. सामाजिक स्रोत (Social Sources)
सामाजिक संबंध भी प्रेरणा के प्रमुख स्रोत होते हैं। परिवार, शिक्षक, मित्र, समाज या समूह व्यक्ति को प्रेरित कर सकते हैं।
मुख्य सामाजिक स्रोत:
- माता-पिता की प्रेरणा
- शिक्षक की प्रशंसा
- साथियों की प्रतिस्पर्धा
- समाज की अपेक्षाएं
उदाहरण: छात्र अपने माता-पिता को खुश करने के लिए मेहनत करता है।
4. शैक्षिक स्रोत (Educational Sources)
शिक्षा प्रणाली में प्रयुक्त विभिन्न विधियाँ, पाठ्यक्रम, गतिविधियाँ और शिक्षक का व्यवहार प्रेरणा उत्पन्न करने में सहायक होते हैं।
मुख्य शैक्षिक स्रोत:
- प्रभावशाली शिक्षण विधियाँ
- प्रेरणादायक शिक्षक
- रचनात्मक पाठ्यक्रम
- शैक्षिक प्रतियोगिताएँ
- सकारात्मक कक्षा वातावरण
5. व्यावसायिक स्रोत (Occupational Sources)
कार्यस्थल पर मिलने वाले अवसर, सम्मान, वेतन, और कार्य की प्रकृति भी प्रेरणा के बड़े स्रोत होते हैं।
मुख्य व्यावसायिक स्रोत:
- पदोन्नति की संभावना
- अच्छा वेतन या बोनस
- कार्य में स्वतंत्रता
- नेतृत्व के अवसर
- सहयोगी वातावरण
6. धार्मिक और आध्यात्मिक स्रोत (Religious and Spiritual Sources)
धार्मिक विश्वास, आध्यात्मिक साधना और नैतिक मूल्यों से भी व्यक्ति को प्रेरणा मिलती है, विशेषकर सेवा, त्याग, और सदाचार के लिए।
उदाहरण: कोई व्यक्ति समाजसेवा के लिए प्रेरित होता है क्योंकि वह उसे धार्मिक कर्तव्य मानता है।
निष्कर्ष (Conclusion):
अभिप्रेरणा के स्रोत अनेक और विविध होते हैं। कभी प्रेरणा हमारे भीतर से आती है, तो कभी हमारे आसपास के लोग या परिस्थितियाँ हमें प्रेरित करती हैं। इन स्रोतों की पहचान कर यदि हम उनका सही उपयोग करें, तो किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
अभिप्रेरणा को प्रभावित करने वाले कारक
अभिप्रेरणा को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Motivation) वे तत्व होते हैं जो किसी व्यक्ति की प्रेरणा को बढ़ा सकते हैं या घटा सकते हैं। ये कारक व्यक्ति की मानसिक स्थिति, सामाजिक परिवेश, शारीरिक स्थिति, अनुभव और लक्ष्य से जुड़े होते हैं। इनका प्रभाव व्यक्ति के व्यवहार, प्रदर्शन और सीखने की क्षमता पर भी पड़ता है।
नीचे अभिप्रेरणा को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों को सरल और विस्तारपूर्ण भाषा में बताया गया है:
1. व्यक्ति की आवश्यकताएँ (Needs of the Individual)
प्रत्येक व्यक्ति की अपनी आवश्यकताएँ होती हैं – जैसे भोजन, सुरक्षा, सम्मान, आत्मविकास आदि। जिस आवश्यकता की पूर्ति जरूरी होती है, वही प्रेरणा का मूल स्रोत बनती है।
उदाहरण: भूखा व्यक्ति सबसे पहले भोजन पाने के लिए प्रेरित होगा, न कि अध्ययन करने के लिए।
2. लक्ष्य की स्पष्टता (Clarity of Goals)
यदि किसी व्यक्ति को यह स्पष्ट रूप से पता हो कि उसे क्या प्राप्त करना है, तो वह अधिक प्रेरित होता है। अस्पष्ट या असंगत लक्ष्य प्रेरणा को कमजोर करते हैं।
उदाहरण: विद्यार्थी अगर जानता है कि वह परीक्षा में टॉप करना चाहता है, तो वह गंभीरता से पढ़ाई करेगा।
3. प्रोत्साहन और प्रशंसा (Encouragement and Praise)
जब किसी व्यक्ति के प्रयासों की सराहना की जाती है, तो वह अधिक प्रेरित होता है। सकारात्मक प्रतिक्रिया आत्मविश्वास और प्रेरणा को बढ़ाती है।
उदाहरण: शिक्षक द्वारा “बहुत अच्छा किया” कहना छात्र को और अच्छा करने के लिए प्रेरित करता है।
4. पारिवारिक एवं सामाजिक वातावरण (Family and Social Environment)
व्यक्ति का सामाजिक और पारिवारिक परिवेश प्रेरणा पर गहरा प्रभाव डालता है। सहयोगी, सकारात्मक और प्रेरणादायक वातावरण प्रेरणा को बढ़ाता है।
उदाहरण: जिन बच्चों के माता-पिता उन्हें पढ़ाई के लिए प्रेरित करते हैं, वे आमतौर पर बेहतर प्रदर्शन करते हैं।
5. शिक्षक और नेतृत्वकर्ता (Teacher or Leader Influence)
शिक्षक या नेता का व्यवहार, कार्यशैली और सोच व्यक्ति की प्रेरणा को प्रभावित करते हैं। यदि वे प्रेरणादायक हों, तो छात्र या कर्मचारी अधिक प्रेरित होते हैं।
6. व्यक्ति की रुचि और अभिरुचि (Interest and Aptitude)
किसी विषय या कार्य में व्यक्ति की रुचि जितनी अधिक होगी, उतनी ही उसकी प्रेरणा भी अधिक होगी। अरुचिकर कार्यों में प्रेरणा कम होती है।
7. सफलता या असफलता का अनुभव (Past Experiences)
पिछले अनुभव, विशेषकर सफलता, व्यक्ति की प्रेरणा को प्रबल करते हैं। बार-बार की असफलता व्यक्ति की प्रेरणा को कमजोर कर सकती है।
उदाहरण: यदि छात्र को पहले मेहनत का अच्छा परिणाम मिला है, तो वह आगे भी मेहनत करेगा।
8. स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति (Health and Mental Condition)
शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति अधिक प्रेरित होता है। रोग, थकान, अवसाद या तनाव प्रेरणा को बाधित कर सकते हैं।
9. पुरस्कार और दंड प्रणाली (Reward and Punishment System)
जहाँ पुरस्कार की संभावना होती है, वहाँ प्रेरणा स्वाभाविक रूप से बढ़ती है। दंड भी प्रेरणा का एक माध्यम हो सकता है, परंतु यह दीर्घकालिक नहीं होता।
10. शैक्षिक सामग्री और विधियाँ (Educational Materials and Methods)
अध्यापन की विधियाँ, दृश्य-सहायक सामग्री, रोचक प्रस्तुतिकरण आदि भी अभिप्रेरणा को प्रभावित करते हैं। रूचिकर तरीके छात्रों की सीखने की प्रेरणा बढ़ाते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion):
अभिप्रेरणा केवल किसी कार्य को शुरू करने की शक्ति नहीं, बल्कि उसे पूरी लगन और उत्साह से करने का आधार भी है। ऊपर बताए गए सभी कारक व्यक्ति की प्रेरणा को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। यदि इन कारकों का सही उपयोग किया जाए, तो किसी भी व्यक्ति को अधिक प्रेरित और उत्पादक बनाया जा सकता है।
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