अधिगम का अर्थ एवं परिभाषा(Learning in hindi): विशेषताएं, प्रकार, विधि,
क्या आपको पता है अधिगम क्या होता है या अधिगम किसे कहते हैं अधिगम की अवधारणा क्या है, अधिगम का क्या अर्थ होता है, learning meaning in hindi नहीं तो आज हम इस पोस्ट के माध्यम से अधिगम का अर्थ एवं परिभाषा, Learning in Hindi, अधिगम की विशेषता क्या है, अधिगम के प्रकार का वर्णन करें,अधिगम के प्रकार कितने हैं, तथा अधिगम के नियम के बारे में पढ़ेंगे। यह पोस्ट अधिगम (सीखने) को समझने में आपकी मदद करेंगे।
Learning meaning in hindi |
learning meaning in hindi अधिगम का अर्थ
सीखना(adhigam) व्यवहार में परिवर्तन है मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक कुछ ना कुछ सीखता ही रहता है ये सीखने(अधिगम) की प्रक्रिया जन्म से ही शुरू हो जाती हैं। और फिर वह जीवन पर्यंत जाने अनजाने में कुछ ना कुछ सीखता ही रहता है जैसे एक बच्चा जलते हुए लौ को छूने से जल जाता है यह अनुभव उसके लिए प्रारंभिक या पहला अनुभव होता है लेकिन दूसरी बार वह कभी भी जलती हुई लौ को छूने का प्रयास नहीं करता है यहां जलने के बाद पीड़ा उत्पन्न होने से बालक ने यह सीखा कि जलते हुए लौ या गर्म चीज़ों पर हाथ नहीं लगाना चाहिए।
सीखना(adhigam) किसी भी स्थिति के प्रति सक्रिय प्रक्रिया है जैसे हम अपने हाथ में केला लेकर जाते हैं तो कहीं से एक भूखे बंदर की नजर उस पर पड़ती हैं वह अकेला को हमारे हाथ से छीन कर ले जाता है। या भूखे होने की स्थिति में केला के प्रति बंदर की स्वाभाविक प्रक्रिया है इसके विपरीत अगर कोई बालक हमारे हाथ में केला दिखता है तो वह उसे छीनता नहीं है बल्कि हाथ फैला कर मांगता है केले के प्रति बालक की यह प्रक्रिया स्वाभाविक नहीं है बल्कि सीखी हुई है।
अधिगम की परिभाषा
क्रो व क्रो के अनुसार: सीखना आदतों ज्ञान व अभिवृत्तिओं का अर्जन है।
उदय पारीक के अनुसार: अधिगम व प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्राणी किसी परिस्थिति में प्रक्रिया के कारण नए प्रकार के व्यवहार को ग्रहण करता है जो किसी सीमा तक प्राणी के व्यवहार में रूकावट एवं प्रभावित करता है।
मैकगोयक के अनुसार : अधिगम व्यवहार में सापेक्षिक स्थायी परिवर्तन है जो अभ्यास के परिणाम स्वरूप होता है। यह परिवर्तन दिशा विशेष में होता है। जिससे व्यक्ति की विद्यमान प्रेरक अवस्थाओं की संतुष्टि होती है।
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सीखने की विशेषताएं बताइए अधिगम की विशेषताएं (Specificity of Learning)
- सीखना परिवर्तन है
- सीखना विकास है
- सीखना जीवन पर्यंत चलता है
- सीखना अनुभवों का संगठन है
- सीखना उद्देश्य पूर्ण होता है
- सीखना मानव की एक प्रवृत्ति है
- सीखना एक सक्रिय प्रक्रिया है
- सीखना समस्या प्रावधान की प्रक्रिया है।
- सीखना खोज है।
सीखना परिवर्तन है
सीखना(adhigam) एक परिवर्तन है व्यक्ति अपने जीवन में एक तो खुद ब खुद सीखता है यह दूसरों से संबंध स्थापित कर, दूसरों के अनुभव एवं व्यवहारों से भी सीखता है साथ ही दूसरों के विचारों, अपनी इच्छा, भावनाओं आदि के परिवर्तन से मानव हर पल कुछ ना कुछ सीखता ही रहता है।
सीखना विकास है
सीखना(अधिगम) मानव जीवन के लिए एक विकास है मानव अपने जीवन में जो कुछ भी सीखता है उससे मानव का विकास होता है व्यक्ति अपने दैनिक स्त्रियों और अनुभव द्वारा हर पल कुछ ना कुछ सीखता ही रहता है जिससे उसके मानसिक विकास तो होता ही है साथ ही उसके शारीरिक विकास भी होता है जन्म के बाद मानव का विकास तीव्र गति से होने लगता है।
सीखना जीवन पर्यंत चलता है
सीखने(अधिगम) की प्रक्रिया जीवन पर्यंत चलता ही रहता है। मनुष्य मां के पेट से ही सीखना आरंभ कर देता है और जन्म के बाद सीखने की प्रक्रिया तीव्र गति से होने लगता है। मानव की सीखने की गति कभी तीव्र तो कभी धीमी गति से निरंतर जन्म से लेकर मृत्यु तक चलता ही रहता है।
सीखना अनुभवों का संगठन है
सीखना(अधिगम) अनुभव का संगठन है सीखना(adhigam) न ही नये अनुभव की प्राप्ति है और न ही पुराने अनुभवों का योग ही है बल्कि दोनों ही अनुभव का संगठन है। एक व्यक्ति नये-नये अनुभवों द्वारा नयी-नयी बातें सीखता ही जाता है और अपनी आवश्यकतानुसार अपने अनुभवों को संगठित करते जाता है।
सीखना उद्देश्य पूर्ण होता है
वैसे तो मनुष्य हर समय कुछ ना कुछ सीखता ही रहता है लेकिन जब उसे किसी भी वस्तु कुछ सीखने में उद्देश्य पूर्ण लगती है तो उसे सीखने(अधिगम) में जी जान लगा देता है। मनुष्य का उद्देश्य जितना अधिक प्रबल होगा सीखने की क्रिया भी उतनी ही तीव्र गति से होगी। उद्देश्य के अभाव में सीखना असफल होता है।
सीखना मानव की एक प्रवृत्ति है
सीखना(अधिगम) मानव की एक प्रवृत्ति है मानव सोते, जागते, उठते, बैठते या राह चलते कुछ ना कुछ देखता और सीखते ही रहता है कभी वह अनुभव के द्वारा सीखता है तो कभी वह दूसरों के व्यवहार से सीखता है तो कभी दूसरों के व्यवहारों से प्रभावित होकर या विचारों से प्रभावित होकर सीखता है लेकिन उनकी जो सीखने की प्रवृत्ति होती है वह कभी खत्म नहीं होती। व्यक्ति व्यक्तिगत एवं सामाजिक दोनों की प्रवृत्ति से सीखता ही जाता है।
सीखना एक सक्रिय प्रक्रिया है
सक्रिय सीखना(adhigam) है वास्तविक सीखना है। बालक तभी कुछ सीखता है जब वह स्वयं सीखने की प्रक्रिया में भाग लेता है। यही कारण है कि डाल्टन प्लान प्रोजेक्ट मेथड आदि शिक्षण की प्रगतिशील विधियां बालक की क्रियाशीलता पर बल देती है।
सीखना समस्या प्रावधान की प्रक्रिया है।
सीखना(adhigam) समस्या प्रावधान की प्रक्रिया है जब मनुष्य के सामने कोई समस्या आ खड़ी होती है तो वह विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रिया एवं व्यवहार करने लगता है तथा उस समस्या के समाधान के लिए वह हर प्रकार से प्रयास करता है और इन प्रयासों में वे बहुत कुछ सीखता ही जाता है। बालक के सामने एक शिक्षक को कुछ समस्याएं उत्पन्न करनी होगी जिससे कि वे उस समस्याओं का सामना कर कुछ सीखें।
सीखना खोज है।
सीखना(adhigam) एक खोज है वास्तविक रुप से सीखना किसी बात की खोज करना या जानकारी इकट्ठा करना है इस प्रकार के सीखने में विभिन्न प्रकार के प्रयास करके स्वयं एक परिणाम तक पहुंचता है तथा उसे जो भी परिणाम उसे मिलता है उससे वह बहुत कुछ सीखता है। इसलिए एक शिक्षक को बालक के सामने एक ऐसी समस्या उत्पन्न करनी होगी जिससे कि वे उस समस्याओं के हल के लिए खोज पड़ताल करें।
अधिगम के प्रकार या सीखने के प्रकार (types of learning in hindi)
१. गत्यात्मक सीखना
२. प्रत्यक्षात्मक सीखना
३. हस्तकौशल सीखना
४. विचारात्मक सीखना
५. प्रशंसात्मक सीखना
६. सहचारी सीखना
७. अभिवृत्यात्मक सीखना
अधिगम की प्रमुख विधियां,अधिगम की प्रमुख विधियां कौन-कौन सी है,सीखने की विधि बताइए, adhigam ki pramukh vidhiyan
अधिगम की प्रमुख विधियां निम्नलिखित है:-
- संपूर्ण तथा अंश विधि
- सूझ द्वारा सीखना
- पड़ताल अथवा शब्दोचारण विधि
- अनुकरण विधि
- अवलोकन या निरीक्षण विधि
- मिश्रित अथवा मध्यस्थ विधि
- निषेधात्मक विधि
- संबंध प्रतिक्रिया द्वारा सीखना
संपूर्ण तथा अंश विधि
संपूर्ण विधि में बालक किसी भी क्रिया को पूर्ण रूप से सीखता है तथा बार-बार उसका अभ्यास करता है और अंत में वह उसमें दक्षता प्राप्त कर लेता है।
इस विधि में बालक संपूर्ण क्रिया को विभिन्न अंशों में बांट देता है और उसे थोड़े थोड़े या एक अंश करके याद करता है जब वह याद हो जाता है उसके बाद वह दूसरे अंश पर जाता है इस प्रकार वह अलग-अलग अंश करके उसे पड़ता है इसे ही अंश विधि कहा जाता है।
सूझ द्वारा सीखना
सूझ से तात्पर्य बुद्धि, क्षमता एवं कल्पना से होता है। यह विधि उच्च कोटि से सीखा जाता है। इस विधि में व्यक्ति अपने संपूर्ण वातावरण का अध्ययन कर उसके आधार पर ही सीखता है यह विधि उच्च कोटि का इसलिए है क्योंकि जिनका मानसिक स्तर ऊंचा होता है वही इस विधि का प्रयोग करता है क्योंकि यदि मनुष्य के सामने सबसे कठिन समस्या खड़ी हो जाती है तो वह अपनी सूझ का सीधा प्रयोग नहीं कर पाता है। वह पहले मूल प्रयास का प्रयोग करता है मूल प्रयास केवल कल्पना में ही हो सकता है व्यवहार में नहीं। बुद्धिमान व्यक्ति या उच्च स्तरीय मानसिक स्थिति वाले व्यक्ति ही इस प्रकार के कार्यों को तुरंत कर लेते हैं।
पड़ताल अथवा शब्दोचारण विधि
पड़ताल अथवा शब्दोचारण विधि संपूर्ण तथा अंश विधि की तरह ही होता है इस विधि में विद्यार्थी विषय वस्तु को कई बार पढ़कर दोहराते हैं फिर उसे बगैर देखे बोलने का प्रयास करते हैं या लिखने का प्रयास करते हैं बालक अपने साथ ऐसा पड़ताल इसलिए करते हैं कि उसे याद हुआ भी है या नहीं। इस में बालक अपनी जांच स्वयं से करता है।
अनुकरण विधि
अनुकरण विधि महत्वपूर्ण विधि होती है हर व्यक्ति किसी ना किसी का अनुकरण करके ही सीखते हैं बालक पर अनुकरण विधि का विशेष प्रभाव पड़ता है। इस विधि की सफलता के लिए आवश्यक है कि बालक के सामने अनुकरण के लिए अच्छा मॉडल हो। जैसे किसी फेमस अभिनेता या अभिनेत्री का मिमिक्री कर उसके जैसे बोलने का प्रयास करता है या किसी पसंदीदा टीचर का आवाज़ निकल कर उसके जैसे बनने का प्रयास करता है। ऐसा समझा जाता है कि जिस व्यक्ति में अनुकरण की योग्यता जितनी अधिक होगी वह उतनी ही तीव्रता से सीखेगा।
अवलोकन या निरीक्षण विधि
निरीक्षण विधि या अवलोकन विधि बच्चों के सामने ऐसी समस्याएं उत्पन्न होती है जिससे वह देखकर या निरीक्षण कर सीखता है कभी कभी शिक्षक बालकों के सामने ऐसी समस्या उत्पन्न कर देते हैं कि उन्हें देखकर या उनकी निरीक्षण करके ही उन्हें सीखा जा सकता है जैसे किसी गांव का सर्वे करना। या विधि ज्यादातर विज्ञान के प्रयोगों को सीखने के लिए किया जाता है तथा किसी भी तकनीकी विषयों में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
मिश्रित अथवा मध्यस्थ विधि
इस विधि में बालक पहले संपूर्ण विधि से शुरू होता है वह पहले सारी सामग्री का अवलोकन करता है फिर उसमें से कठिन भाग चुनता है। इसके बाद सारी सामग्री एक सी हो जाती है तो वह फिर संपूर्ण विधि से शुरू करता है। यह एक अच्छी विधि है क्योंकि इसमें अंश विधि तथा संपूर्ण विधि दोनों ही गुण हैं।
निषेधात्मक विधि
निषेधात्मक विधि वह विधि होता है जिसमें बालक के विपरीत उत्तेजना के कारण प्रतिक्रिया उत्पन्न होती हैं। बालक कुछ समय के लिए उत्तेजित हो जाता है फिर उसे कुछ भी प्राप्त ना होने पर उसे छोड़ देता है या निषेध कर देता है और वह सीख जाता है कि उनके द्वारा प्रतिक्रिया का कोई भी फल उन्हें प्राप्त नहीं होगा। जैसे बालक की ज़िद को यदि पूरा किया जाए तो समय बाद वह जिद करना छोड़ देगा।
संबंध प्रतिक्रिया द्वारा सीखना
मनुष्य संसर्ग या आचार्य से ही सीखता है। संसर्ग द्वारा सीखने में उद्दीपन और प्रतिक्रिया से उत्पन्न स्थिति पर निर्भर करता है। यदि स्वाभाविक उद्दीपन का संबंध किसी अन्य उद्दीपन से जोड़ दिया जाए तो उसके फलस्वरूप भी वही प्रतिक्रिया होगी जोकि स्वभाविक उद्दीपन द्वारा होती है।
निष्कर्ष:
निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि सीखनाा(adhigam) मानव जीवन का एक अहम हिस्सा है जो जीवन पर्यंत चलते ही रहता है एक और केवल मनुष्य में ही नहीं होता बल्कि छोटे से छोटे जीव जंतु पशु पक्षी एवं कीड़े मकोड़े सभी में पाया जाता है पर मनुष्य के लिए सीखना किसी ने समस्याओं का समाधान करने में सहायक सिद्ध होता है मानव हर एक समस्या से कुछ ना कुछ सीखता है तो अनुभव करता है सीखना अनुभवों का ही संगठन है उन्हीं संगठनों से मानव के व्यवहार में परिवर्तन एवं उनका विकास होता है मानव के सामने कोई लक्ष्य रख दिया जाए तो उनके लिए उद्देश्य हो जाता है और उसे पाने के लिए वह दिन रात मेहनत करता है इन महीना तो उसे अपने जीवन में बहुत कुछ सीखते ही जाता है।
प्रिय पाठक आप सभी को यह पोस्ट सीखने की विशेषताएं या अधिगम की विशेषता, characteristic of learning in hindi कैसा लगा यह हमें कमेंट पोस्ट पर बताएं।
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