निर्देशन की अवधारणा क्या है- निर्देशन का अर्थ और परिभाषा,निर्देशन के प्रकार
निर्देशन की अवधारणा क्या है (nirdeshan kya hai, nirdeshan ki avdharna kya hai)
मनुष्य एक समाजिक बुद्धिमान और विवेकशील प्राणी है इसी के आधार पर वह संसार के अन्य प्राणियों से बिल्कुल भिन्न है। वह बुद्धि के बल पर ही समाज के पर्यावरण और अन्य प्राणियों के साथ सामंजस्य स्थापित करता है इसे स्थापित करने में उसे अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जिसके लिए उसे अपने से बड़ों का सहयोग लेना पड़ता है। इस सहयोग के आधार पर वह समस्याओं के संबंध में उचित निष्कर्ष निकालने में अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में उसे आसानी होती हैं। निर्देशन के आधार पर ही व्यक्ति अपनी योग्यताओं क्षमताओं और कौशलों के बारे में ज्ञान प्राप्त करता है और अपने में निहित ज्ञान क्षमताओं का उचित प्रयोग करके अपने कार्य क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।
इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि निर्देशन का उद्देश्य व्यक्ति की समस्याओं का समाधान करना नहीं है बल्कि इसके आधार पर व्यक्ति की क्षमताओं का उसे बौद्ध करा कर उसे इस योग्य बनाना होता है। जिस से वह अपनी समस्याओं का समाधान खोजने में सक्षम हो जाए।
निर्देशन की प्रक्रिया के अंतर्गत निर्देशन प्राप्त करने वाले व्यक्ति में निहित शैक्षिक व्यवसाय एवं व्यक्तिक विशेषताओं से संबंधित जानकारी का समन्वित विचार आवश्यक है इस जानकारी के बिना निर्देशन की प्रक्रिया का संपन्न होना असंभव है। व्यक्ति विशेष में निहित विशेषताओं के जानकारी प्राप्त करने के लिए उसकी रुचियों योग्यताओं आदि का मापन करना होगा। साथ ही व्यक्ति में निहित क्षमताओं की जानकारी हेतु बुद्धि परीक्षण रुचि परीक्षण अभिवृत्ति परीक्षण आदि के ज्ञान का विशेष महत्व है।
जिस प्रकार शिक्षा जीवन प्रयत्न चलने वाली प्रक्रिया है उसी प्रकार निर्देशन भी जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है। जन्म से लेकर मृत्यु तक जहां कहीं भी जिस रूप में भी व्यक्ति को जो सहायता मिलती है वह सहायता निर्देशन के अंतर्गत ही आती हैं।
इस प्रकार की सहायता देने वाले व्यक्ति को हम निर्देशक या निर्देशन के नाम से जानते हैं। विद्यालय में घर में समाज में शिक्षक प्राचार्य अभिभावक सहकर्मी परिवार के अन्य सदस्य मित्र सहयोगी आदि के सभी व्यक्ति जो किसी भी प्रकार के समस्या के समाधान में सहायता प्रदान करते हैं तो वे निर्देशन प्रदाता के रूप में ही मानी जाती है।
इस प्रक्रिया के माध्यम से बालकों के विभिन्न पक्षों के विकास हेतु उसी प्रकार सहायता की जाती है जिस प्रकार शिक्षक के द्वारा बालक के मानसिक शारीरिक भावात्मक विकास करने हेतु सहायता प्रदान की जाती है। यह एक व्यापक प्रक्रिया है और इसका क्षेत्र आज सीमित है।
निर्देशन का अर्थ क्या है (meaning of guidance in hindi)
वर्तमान युग के विवाद ग्रस्त प्रत्ययों में, यह एक ऐसा प्रत्यय है जिससे विभिन्न रूपों में परिभाषित किया गया है फिर भी सामान्यतः निर्देशन को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया जाता है, जिसके आधार पर किसी एक अथवा अनेक व्यक्तियों को किसी न किसी प्रकार की सहायता प्रदान की जाती हैं। इस संहिता के आधार पर, समस्याओं के समाधान में विवेक युक्त निष्कर्ष निकालने वांछित निर्णय लेने तथा अपने लक्ष्यों उद्देश्यों को प्राप्त करने में सुगमता होती है। निर्देशन के आधार पर ही व्यक्ति को अपनी योग्यताओं, अपनी क्षमताओं, अपनी कौशलों तथा अपने व्यक्तित्व से संबंधित विशेषताओं का ज्ञान हो पाता है तथा वह स्वयं में निहित विशेषताओं का समुचित उपयोग करने में सक्षम हो पाता है।
निर्देशन की परिभाषा (definition of guidance in hindi)
शर्ले हैमरिन के अनुसार:-
व्यक्ति के स्वयं के पहिचानने में इस प्रकार सहायता प्रदान करना जिसे वह अपने जीवन में आगे बढ़ सके निर्देशन कहलाता है।
रूथ स्ट्रांग के अनुसार
निर्देशन का उद्देश्य बालक में विद्यमान संभावनाओं के रूप में अधिकतम विकास को बढ़ाना है।
स्कीनर के अनुसार
निर्देशन वह प्रक्रिया है जो नव युवकों को अपने प्रति दूसरों के प्रति तथा प्रति स्थितियों के प्रति समायोजन में सहायता करती हैं।
निर्देशन के कितने प्रकार होते हैं ( Types of guidance in hindi)
A. वैयक्तिक निर्देशन क्या है (personal guidance in hindi)
वैयक्तिक निर्देशन के उद्देश्य (objectives of personal guidance in hindi)
वैयक्तिक निर्देशन की आवश्यकता (needs for personal guidance in hindi):
१. स्वस्थ शरीर तथा स्वस्थ मन के विकास के लिए:
२. सुखी परिवारिक जीवन के लिए:
३. आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए:
४. व्यक्तिक समस्याओं के समाधान में सही निर्णय लेने की क्षमता का विकास करने के लिए:
५. समायोजन की क्षमता का विकास करने के लिए:
६. विवाह संबंधी समस्या के समाधान के लिए:
७. व्यक्ति के कौशलों का विकास करने के लिए:
८. व्यक्तिक जीवन में सुख शांति एवं संतोष प्राप्त करने के लिए:
B.शैक्षिक निर्देशन क्या है (Educational Guidance in hindi)
शैक्षिक निर्देशन विद्यार्थी जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण है प्रत्येक छात्र को अपनी अपनी अलग समस्याएं होती है उन समस्याओं के कारण विद्यालयी वातावरण में अपने को समायोजित करने में हर छात्र सक्षम नहीं होता है। इसलिए छात्र के विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियां उत्पन्न करने के लिए तथा विकास के अवसर पैदा करने के लिए तथा विद्यालयी वातावरण से सामंजस्य स्थापित करने हेतु छात्र में योग्यता विकसित करने के लिए जागरूकता व संवेदनशीलता पैदा करने के लिए शैक्षिक निर्देशन आवश्यक है। इसी के द्वारा वह अधिगम के उचित उच्च लक्ष्यों परिस्थितियों व उपकरणों का चयन स्वयं कर सकने में सक्षम हो सकता है।
शैक्षिक निर्देशन की परिभाषा (definition of Educational Guidance in hindi)
जॉन्स के अनुसार:
“शैक्षिक निर्देशन विद्यार्थियों को प्रदान की जाने वाली वह सहायता है जो उनको विद्यालय पाठ्यक्रम पाठ्य विषय और विद्यालय के जीवन से संबंधित क्रियाओं के चयन और समायोजन के लिए दी जाती है।”
रूथस्ट्रांग के अनुसार
शैक्षिक निर्देशन का उद्देश्य व्यक्ति को उचित कार्यक्रमों को चुनने और उसमें प्रगति करने में सहायता प्राप्त करना है।
शैक्षिक निर्देशन के उद्देश्य(objectives of Educational Guidance in hindi):
शैक्षिक निर्देशन का उद्देश्य विद्यार्थियों की शिक्षा की प्राप्ति में सहायता करना है जिससे वे अपनी योग्यता और रूचियों के अनुसार शिक्षा प्राप्त कर सके और जीवन में सफलता प्राप्त कर सके। जॉन्स ने शैक्षिक निर्देशन के निम्नलिखित उद्देश्य बताएं हैं:
१. शिक्षा संबंधी सूचनाएं प्राप्त करने में विद्यार्थी का मार्गदर्शन करना।
२.विद्यार्थियों को रुचियां और योग्यताओं का ज्ञान प्राप्त करने में मार्गदर्शन करना।
३.अपनी रुचि के अनुकूल विद्यालय में प्रवेश प्राप्त करने की शर्तों को जानने में विद्यार्थियों का मार्गनिर्देशन करना।
४. विद्यालय के सामाजिक जीवन के साथ समायोजित करने में विद्यार्थियों की सहायता करना।
५. विषयों के चयन में उपयोगी पुस्तक के चयन में पाठ्य सहगामी क्रियाओं के चयन में और अध्ययन के लिए अच्छी आदतों के चयन में विद्यार्थियों का मार्ग निर्देशन करना।
६. विभिन्न प्रतियोगिता की परीक्षाओं की सूचनाएं उपलब्ध कराने में विद्यार्थियों का मार्ग-निर्देशन करना।
७. भावी शिक्षा से संबंधित विभिन्न प्रकार के विद्यालयों उद्देश्य तथा कार्यों से परिचित कराने में मार्गदर्शन करना।
८. व्यवसाय के चयन में विद्यार्थियों का मार्ग निर्देशन करना।
शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकताएं(needs of Educational Guidance in hindi):
१. शैक्षिक निर्देशन विद्यार्थियों के लिए है।
२. शैक्षिक निर्देशन शैक्षिक चुनावों के लिए है।
३. शैक्षिक निर्देशन अपव्यय अवरोध न की समस्या के निराकरण के लिए हैं।
४. शैक्षिक निर्देशन व्यक्तिगत विभिन्नता के लिए है।
५. शैक्षिक निर्देशन शैक्षिक समायोजन के लिए हैं।
६. शैक्षिक निर्देशन शैक्षिक उपलब्धियों के स्तर को बनाए रखने के लिए है।
७. शैक्षिक निर्देशन अनुशासनहीनता की समस्या के निराकरण के लिए है।
१. शैक्षिक निर्देशन विद्यार्थियों के लिए है:
विद्यार्थियों के सामने अनेक ऐसी समस्याएं होती है जिनको वह स्वयं नहीं सुलझा पाता और नवीन समस्याओं को शिक्षक या उसके माता-पिता सुलझा पाते हैं इन समस्याओं को सुलझाने में सहायता देने के लिए निर्देशन सेवा के प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की आवश्यकता पड़ती है।
२. शैक्षिक निर्देशन शैक्षिक चुनावों के लिए है:
विद्यार्थियों को अनेक प्रकार के चुनाव करने पड़ते हैं उनके सामने विद्यालय, पाठ्यक्रम, पाठ्य विषय आदि के चुनाव की समस्या होती है। सबसे पहले उन्हें यह चुनना होता है कि वे किस विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करें। फिर उन्हें यह चुनना होता है कि वह कौन सा पाठ्यक्रम ले और किन विषयों को ले। विद्यार्थी स्वयं इन चुनावों को करने में सक्षम नहीं होते हैं। तब इस विषय में उनको शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता होती है।
३. शैक्षिक निर्देशन अपव्यय अवरोध न की समस्या के निराकरण के लिए हैं:
हमारे देश में अपव्यय अवरोधन की समस्याएं ने विकराल रूप धारण किया है इस समाधान हेतु भारत सरकार भी प्रयत्नशील है जिसके लिए अनेक आयोगों का गठन किया गया है परंतु अपेक्षित सफलता हाथ नहीं लग सकी है। इस समस्या में छात्रा बिना पूरी पढ़ाई किए बीच में ही पढ़ना बंद कर देते हैं। शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर यह समस्या विकराल रूप लिए हुए हैं इसके भी अनेक रूप है-
a. असंतोष विद्यालय व्यवस्था
b. अयोग्य अध्यापक
c. व्यक्तिगत विभिन्नता एवं अनुपयुक्त और कठिन पाठ्यक्रम।
अतः छात्र अपव्यय व अवरोधन की समस्याओं से निपट सके इसके लिए उन्हें उचित निर्देशन की आवश्यकता है।
४. शैक्षिक निर्देशन व्यक्तिगत विभिन्नता के लिए है:
मनोविज्ञान के अनुसार हर व्यक्ति एक दूसरे से भिन्न होता है जनसंख्या वृद्धि के कारण विभिन्नताओं प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। इसे शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न समस्याओं ने जन्म लिया है। जैसे छात्र असंतोष प्रशिक्षित अध्यापकों का अभाव अनुशासन हीनता आदि इसलिए शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तिगत विभिन्नताओं का विशेष महत्व है सभी व्यक्ति सभी प्रकार के शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते हैं उनकी योग्यताएं क्षमताएं व रुचियां अलग-अलग होती है इसलिए विषयों का चयन उनकी व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुरूप ही करना चाहिए। इसके लिए निर्देशन की आवश्यकता महसूस होती है।
५. शैक्षिक निर्देशन शैक्षिक समायोजन के लिए हैं:
६. शैक्षिक निर्देशन शैक्षिक उपलब्धियों के स्तर को बनाए रखने के लिए है:
७. शैक्षिक निर्देशन अनुशासनहीनता की समस्या के निराकरण के लिए है:
व्यवसायिक निर्देशन क्या है
व्यवसायिक निर्देशन की आवश्यकता
१. व्यवसाय में विभिन्नतायें:
२. व्यक्तिक विभिन्नतायें:
३. व्यक्तित्व का विकास:
४. समाज और राष्ट्र की प्रगति:
५. अनुशासन की समस्या:
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