निर्देशन की अवधारणा क्या है- निर्देशन का अर्थ और परिभाषा,निर्देशन के प्रकार

निर्देशन की अवधारणा क्या है- निर्देशन का अर्थ और परिभाषा,निर्देशन के प्रकार

निर्देशन की अवधारणा क्या है (nirdeshan kya hai, nirdeshan ki avdharna kya hai)

मनुष्य एक समाजिक बुद्धिमान और विवेकशील प्राणी है इसी के आधार पर वह संसार के अन्य प्राणियों से बिल्कुल भिन्न है। वह बुद्धि के बल पर ही समाज के पर्यावरण और अन्य प्राणियों के साथ सामंजस्य स्थापित करता है इसे स्थापित करने में उसे अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जिसके लिए उसे अपने से बड़ों का सहयोग लेना पड़ता है। इस सहयोग के आधार पर वह समस्याओं के संबंध में उचित निष्कर्ष निकालने में अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में उसे आसानी होती हैं। निर्देशन के आधार पर ही व्यक्ति अपनी योग्यताओं क्षमताओं और कौशलों के बारे में ज्ञान प्राप्त करता है और अपने में निहित ज्ञान क्षमताओं का उचित प्रयोग करके अपने कार्य क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।
इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि निर्देशन का उद्देश्य व्यक्ति की समस्याओं का समाधान करना नहीं है बल्कि इसके आधार पर व्यक्ति की क्षमताओं का उसे बौद्ध करा कर उसे इस योग्य बनाना होता है। जिस से वह अपनी समस्याओं का समाधान खोजने में सक्षम हो जाए।
निर्देशन की प्रक्रिया के अंतर्गत निर्देशन प्राप्त करने वाले व्यक्ति में निहित शैक्षिक व्यवसाय एवं व्यक्तिक विशेषताओं से संबंधित जानकारी का समन्वित विचार आवश्यक है इस जानकारी के बिना निर्देशन की प्रक्रिया का संपन्न होना असंभव है। व्यक्ति विशेष में निहित विशेषताओं के जानकारी प्राप्त करने के लिए उसकी रुचियों योग्यताओं आदि का मापन करना होगा। साथ ही व्यक्ति में निहित क्षमताओं की जानकारी हेतु बुद्धि परीक्षण रुचि परीक्षण अभिवृत्ति परीक्षण आदि के ज्ञान का विशेष महत्व है।
जिस प्रकार शिक्षा जीवन प्रयत्न चलने वाली प्रक्रिया है उसी प्रकार निर्देशन भी जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है। जन्म से लेकर मृत्यु तक जहां कहीं भी जिस रूप में भी व्यक्ति को जो सहायता मिलती है वह सहायता निर्देशन के अंतर्गत ही आती हैं।
इस प्रकार की सहायता देने वाले व्यक्ति को हम निर्देशक या निर्देशन के नाम से जानते हैं। विद्यालय में घर में समाज में शिक्षक प्राचार्य अभिभावक सहकर्मी परिवार के अन्य सदस्य मित्र सहयोगी आदि के सभी व्यक्ति जो किसी भी प्रकार के समस्या के समाधान में सहायता प्रदान करते हैं तो वे निर्देशन प्रदाता के रूप में ही मानी जाती है।
इस प्रक्रिया के माध्यम से बालकों के विभिन्न पक्षों के विकास हेतु उसी प्रकार सहायता की जाती है जिस प्रकार शिक्षक के द्वारा बालक के मानसिक शारीरिक भावात्मक विकास करने हेतु सहायता प्रदान की जाती है। यह एक व्यापक प्रक्रिया है और इसका क्षेत्र आज सीमित है।

निर्देशन का अर्थ क्या है (meaning of guidance in hindi)

वर्तमान युग के विवाद ग्रस्त प्रत्ययों में, यह एक ऐसा प्रत्यय है जिससे विभिन्न रूपों में परिभाषित किया गया है फिर भी सामान्यतः निर्देशन को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया जाता है, जिसके आधार पर किसी एक अथवा अनेक व्यक्तियों को किसी न किसी प्रकार की सहायता प्रदान की जाती हैं। इस संहिता के आधार पर, समस्याओं के समाधान में विवेक युक्त निष्कर्ष निकालने वांछित निर्णय लेने तथा अपने लक्ष्यों उद्देश्यों को प्राप्त करने में सुगमता होती है। निर्देशन के आधार पर ही व्यक्ति को अपनी योग्यताओं, अपनी क्षमताओं, अपनी कौशलों तथा अपने व्यक्तित्व से संबंधित विशेषताओं का ज्ञान हो पाता है तथा वह स्वयं में निहित विशेषताओं का समुचित उपयोग करने में सक्षम हो पाता है।

निर्देशन की परिभाषा (definition of guidance in hindi)

शर्ले हैमरिन के अनुसार:-

 व्यक्ति के स्वयं के पहिचाने में इस प्रकार सहायता प्रदान करना जिसे वह अपने जीवन में आगे बढ़ सके निर्देशन कहलाता है।

रूथ स्ट्रांग के अनुसार

निर्देशन का उद्देश्य बालक में विद्यमान संभावनाओं के रूप में अधिकतम विकास को बढ़ाना है।

स्कीनर के अनुसार

निर्देशन वह प्रक्रिया है जो नव युवकों को अपने प्रति दूसरों के प्रति तथा प्रति स्थितियों के प्रति समायोजन में सहायता करती हैं।

निर्देशन के कितने प्रकार होते हैं ( Types of guidance in hindi)

निर्देशन के तीन प्रकार है:-
१. शैक्षिक निर्देशन
२. व्यवसायिक निर्देशन
३. वैयक्तिक निर्देशन

A. वैयक्तिक निर्देशन क्या है (personal guidance in hindi)

 आज के वैज्ञानिक और भौतिकवादी युग में मनुष्य का जीवन बहुत जटिल हो गया है। बदलता हुआ परिवेश उसके सामने अनेक समस्याएं पैदा कर रहा है। ये समस्याएं व्यक्ति के जीवन के हर पक्ष से संबंधित होती हैं। इन समस्याओं को सही ढंग से ना सुलझा पाने के कारण वह निराश हताश चिंतित और कुंठित होता है। उन समस्याओं को सुलझाने में, उसके जीवन में आशा विश्वास और उत्साह पैदा करने में उसके व्यक्तिक और समाजिक जीवन में समायोजन स्थापित करने में और समस्याओं के समाधान में स्वयं निर्णय लेने की योग्यता विकसित करने में जो सहायता प्रदान की जाती है शैक्षिक और व्यावसायिक निर्देशन के अतिरिक्त जो भी समस्याएं व्यक्ति के सामने आती है उन सबको व्यक्तिक निर्देशन के अंतर्गत रखा जाता है व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन का उसके सामाजिक जीवन से घनिष्ठ संबंध होता है। इसलिए व्यक्तिक निर्देशन का संबंध सामाजिक एवं व्यक्तिक दोनों पक्षों को सम्मिलित किया जाता है। अर्थात् व्यक्तिक निर्देशन का संबंध व्यक्ति के शारीरिक संवेगात्मक नैतिक आर्थिक राजनीतिक पारिवारिक आदि समस्याओं से होता है।
       सामान्य व्यक्तिक समस्याएं:
१. स्वास्थ्य एवं शारीरिक विकास संबंधी समस्याएं।
२. संवेगात्मक व्यवहार से संबंधित समस्याएं।
३. यौन प्रेम विवाह संबंधित समस्याएं।
४. पारिवारिक जीवन एवं पारिवारिक संबंधों से संबंधित समस्याएं।
५. सामाजिक संबंधों से जुड़ी हुई समस्याएं।
६. आर्थिक समस्याएं।
७. धर्म चरित्र आदर्श और मूल्यों से संबंधित समस्याएं।

वैयक्तिक निर्देशन के उद्देश्य (objectives of personal guidance in hindi)

१. व्यक्ति में समायोजन की योग्यता का विकास करना।
२. व्यक्तिक जीवन से संबंधित समस्याओं की जानकारी प्राप्त करने, उनके कारणों एवं प्रभावों को खोजने और उनका समाधान करने में सहायता प्रदान करना।
३. व्यक्तिक जीवन से संबंधित समस्याओं के विषय में स्वयं निर्णय लेने की क्षमता का विकास करना।
४. पारिवारिक संबंधों को बनाए रखने से संबंधित कौशल का विकास करने में सहायता प्रदान करना।
५. परिवार और समाज से संबंधित सदस्यों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की योग्यता का विकास करने में सहायता प्रदान करना।
६. अपनी योग्यताओं और क्षमताओं की सही उपयोग करने की योग्यता का विकास करना।
७. व्यक्तिक जीवन से संबंधित विभिन्न विभिन्न परिस्थितियों में विवेकपूर्ण और सुझ बुझ युक्त व्यवहार का विकास में सहायता करना।
८. संवेगात्मक संतुलन बनाए रखने में सहायता करना।

वैयक्तिक निर्देशन की आवश्यकता (needs for personal guidance in hindi):

१. स्वस्थ शरीर तथा स्वस्थ मन के विकास के लिए।
२. सुखी परिवारिक जीवन के लिए।
३. आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए।
४. व्यक्तिक समस्याओं के समाधान में सही निर्णय लेने की क्षमता का विकास करने के लिए।
५. समायोजन की क्षमता का विकास करने के लिए।
६. विवाह संबंधी समस्या के समाधान के लिए।
७. व्यक्ति के कौशलों का विकास करने के लिए।
८. व्यक्तिक जीवन में सुख शांति एवं संतोष प्राप्त करने के लिए।

१. स्वस्थ शरीर तथा स्वस्थ मन के विकास के लिए:

व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन का होना बहुत आवश्यक है व्यक्तिक निर्देशन के माध्यम से व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए हर प्रकार की सहायता प्रदान की जाती है।

२. सुखी परिवारिक जीवन के लिए:

परिवार व्यक्ति के जीवन को बहुत प्रभावी करता है आज संयुक्त परिवारों के स्थान पर एकल परिवारों का बाहुल्य है एकल परिवारों की अपनी समस्याएं हैं जो कभी-कभी व्यक्ति के सामने असंतुष्टि निराशा तनाव और कुंठा पैदा करती है इन सब को दूर करने के लिए व्यक्तिक निर्देशन की आवश्यकता है।

३. आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए:

आर्थिक समस्याओं के रहते हुए कोई भी व्यक्ति सुखी नहीं रह सकता धनाभाव में व्यक्ति की व्यक्तिक और पारिवारिक आवश्यकताएं पूरी नहीं हो सकती और आवश्यकताओं के पूरा न होने पर व्यक्ति निराश और कुंठित रहता है दुखी रहता है। व्यक्तिक निर्देशन के द्वारा व्यक्ति की आर्थिक समस्याओं का समाधान करने के उपाय बताएं जाते हैं।

४. व्यक्तिक समस्याओं के समाधान में सही निर्णय लेने की क्षमता का विकास करने के लिए:

निर्णय लेने की क्षमता का व्यक्ति के जीवन में विशेष महत्व है जो व्यक्ति अपने जीवन में आने वाले समस्याओं का समाधान करने में सही समय पर सही निर्णय लेने में सक्षम होता है वह अपने जीवन में सफल होता है। व्यक्तिक निर्देशन इस दिशा में व्यक्ति की बहुत सहायता करता है।

५. समायोजन की क्षमता का विकास करने के लिए:

परिवार का विद्यालय का समाज का और राष्ट्र का सफल सदस्य बनने के लिए आवश्यक है कि परिवार में विद्यालय में समाज में और राष्ट्र में उसका समायोजन हो। अच्छे समायोजन से ही सब जगह शांति रहती है सहयोग रहता है और सभी प्रेम पूर्ण वातावरण में अपनी उन्नति और विकास करते हैं। व्यक्तिक निर्देशन व्यक्ति में समायोजन करने की क्षमता का विकास करने में बहुत सहायता करता है।

६. विवाह संबंधी समस्या के समाधान के लिए:

आज के भौतिकवादी युग में व्यक्ति के लिए विवाह एक जटिल समस्या बन गई है विवाह संबंधी पुरानी मान्यताएं बदल गई है शिक्षा ने टेलीविजन ने पत्र-पत्रिकाओं ने व्यक्ति की सोच में बहुत बदलाव पैदा किया है। पश्चिमी देशों में आए दिन होने वाले ताला को व्यक्तियों को प्रभावित किया है नारी सशक्तिकरण और पुरुष के अहम ने भी समस्याएं पैदा की है व्यक्तिक निर्देशन के द्वारा ही इन समस्याओं का समाधान किया जाना संभव है।

७. व्यक्ति के कौशलों का विकास करने के लिए:

सफल जीवन व्यतीत करने के लिए अनेक कौशलों की आवश्यकता होती है इन कौशलों का विकास करके व्यक्ति की उपलब्धियों की गति में वृद्धि की जा शक्ति है व्यक्तिक निर्देशन के द्वारा व्यक्तियों में कौशलों का विकास किया जा सकता है।

८. व्यक्तिक जीवन में सुख शांति एवं संतोष प्राप्त करने के लिए:

व्यक्ति के जीवन में सुख शांति और जीवन की बहुत आवश्यकता होती है और इनको प्राप्त करने के लिए वह हर संभव प्रयत्न करता है। लेकिन उसकी इच्छाएं असीमित होती है और उन सब की पूर्ति नहीं हो पाती जिससे वह दुखी रहता है, तनाव में रहता है इस तनाव को दूर करने के लिए व्यक्तिक निर्देशन की आवश्यकता होती है।

B.शैक्षिक निर्देशन क्या है (Educational Guidance in hindi)

शैक्षिक निर्देशन विद्यार्थी जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण है प्रत्येक छात्र को अपनी अपनी अलग समस्याएं होती है उन समस्याओं के कारण विद्यालयी वातावरण में अपने को समायोजित करने में हर छात्र सक्षम नहीं होता है। इसलिए छात्र के विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियां उत्पन्न करने के लिए तथा विकास के अवसर पैदा करने के लिए तथा विद्यालयी वातावरण से सामंजस्य स्थापित करने हेतु छात्र में योग्यता विकसित करने के लिए जागरूकता व संवेदनशीलता पैदा करने के लिए शैक्षिक निर्देशन आवश्यक है। इसी के द्वारा वह अधिगम के उचित उच्च लक्ष्यों परिस्थितियों व उपकरणों का चयन स्वयं कर सकने में सक्षम हो सकता है।

शैक्षिक निर्देशन की परिभाषा (definition of Educational Guidance in hindi)

जॉन्स के अनुसार:
“शैक्षिक निर्देशन विद्यार्थियों को प्रदान की जाने वाली वह सहायता है जो उनको विद्यालय पाठ्यक्रम पाठ्य विषय और विद्यालय के जीवन से संबंधित क्रियाओं के चयन और समायोजन के लिए दी जाती है।”

रूथस्ट्रांग के अनुसार
शैक्षिक निर्देशन का उद्देश्य व्यक्ति को उचित कार्यक्रमों को चुनने और उसमें प्रगति करने में सहायता प्राप्त करना है।

शैक्षिक निर्देशन के उद्देश्य(objectives of Educational Guidance in hindi):

शैक्षिक निर्देशन का उद्देश्य विद्यार्थियों की शिक्षा की प्राप्ति में सहायता करना है जिससे वे अपनी योग्यता और रूचियों के अनुसार शिक्षा प्राप्त कर सके और जीवन में सफलता प्राप्त कर सके। जॉन्स ने शैक्षिक निर्देशन के निम्नलिखित उद्देश्य बताएं हैं:

१. शिक्षा संबंधी सूचनाएं प्राप्त करने में विद्यार्थी का मार्गदर्शन करना।
२.विद्यार्थियों को रुचियां और योग्यताओं का ज्ञान प्राप्त करने में मार्गदर्शन करना।
३.अपनी रुचि के अनुकूल विद्यालय में प्रवेश प्राप्त करने की शर्तों को जानने में विद्यार्थियों का मार्गनिर्देशन करना।
४. विद्यालय के सामाजिक जीवन के साथ समायोजित करने में विद्यार्थियों की सहायता करना।
५. विषयों के चयन में उपयोगी पुस्तक के चयन में पाठ्य सहगामी क्रियाओं के चयन में और अध्ययन के लिए अच्छी आदतों के चयन में विद्यार्थियों का मार्ग निर्देशन करना।
६. विभिन्न प्रतियोगिता की परीक्षाओं की सूचनाएं उपलब्ध कराने में विद्यार्थियों का  मार्ग-निर्देशन करना।
७. भावी शिक्षा से संबंधित विभिन्न प्रकार के विद्यालयों उद्देश्य तथा कार्यों से परिचित कराने में मार्गदर्शन करना।
८. व्यवसाय के चयन में विद्यार्थियों का मार्ग निर्देशन करना।

शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकताएं(needs of Educational Guidance in hindi):

१. शैक्षिक निर्देशन विद्यार्थियों के लिए है।
२. शैक्षिक निर्देशन शैक्षिक चुनावों के लिए है।
३. शैक्षिक निर्देशन अपव्यय अवरोध न की समस्या के निराकरण के लिए हैं।
४. शैक्षिक निर्देशन व्यक्तिगत विभिन्नता के लिए है।
५. शैक्षिक निर्देशन शैक्षिक समायोजन के लिए हैं।
६. शैक्षिक निर्देशन शैक्षिक उपलब्धियों के स्तर को बनाए रखने के लिए है।
७. शैक्षिक निर्देशन अनुशासनहीनता की समस्या के निराकरण के लिए है।

१. शैक्षिक निर्देशन विद्यार्थियों के लिए है:

विद्यार्थियों के सामने अनेक ऐसी समस्याएं होती है जिनको वह स्वयं नहीं सुलझा पाता और नवीन समस्याओं को शिक्षक या उसके माता-पिता सुलझा पाते हैं इन समस्याओं को सुलझाने में सहायता देने के लिए निर्देशन सेवा के प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की आवश्यकता पड़ती है।

२. शैक्षिक निर्देशन शैक्षिक चुनावों के लिए है:

विद्यार्थियों को अनेक प्रकार के चुनाव करने पड़ते हैं उनके सामने विद्यालय, पाठ्यक्रम, पाठ्य विषय आदि के चुनाव की समस्या होती है। सबसे पहले उन्हें यह चुनना होता है कि वे किस विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करें। फिर उन्हें यह चुनना होता है कि वह कौन सा पाठ्यक्रम ले और किन विषयों को ले। विद्यार्थी स्वयं इन चुनावों को करने में सक्षम नहीं होते हैं। तब इस विषय में उनको शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता होती है।

३. शैक्षिक निर्देशन अपव्यय अवरोध न की समस्या के निराकरण के लिए हैं:

हमारे देश में अपव्यय अवरोधन की समस्याएं ने विकराल रूप धारण किया है इस समाधान हेतु भारत सरकार भी प्रयत्नशील है जिसके लिए अनेक आयोगों का गठन किया गया है परंतु अपेक्षित सफलता हाथ नहीं लग सकी है। इस समस्या में छात्रा बिना पूरी पढ़ाई किए बीच में ही पढ़ना बंद कर देते हैं। शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर यह समस्या विकराल रूप लिए हुए हैं इसके भी अनेक रूप है-
a. असंतोष विद्यालय व्यवस्था
b. अयोग्य अध्यापक
c. व्यक्तिगत विभिन्नता एवं अनुपयुक्त और कठिन पाठ्यक्रम।
अतः छात्र अपव्यय व अवरोधन की समस्याओं से निपट सके इसके लिए उन्हें उचित निर्देशन की आवश्यकता है।

४. शैक्षिक निर्देशन व्यक्तिगत विभिन्नता के लिए है:

मनोविज्ञान के अनुसार हर व्यक्ति एक दूसरे से भिन्न होता है जनसंख्या वृद्धि के कारण विभिन्नताओं प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। इसे शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न समस्याओं ने जन्म लिया है। जैसे छात्र असंतोष प्रशिक्षित अध्यापकों का अभाव अनुशासन हीनता आदि इसलिए शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तिगत विभिन्नताओं का विशेष महत्व है सभी व्यक्ति सभी प्रकार के शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते हैं उनकी योग्यताएं क्षमताएं व रुचियां अलग-अलग होती है इसलिए विषयों का चयन उनकी व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुरूप ही करना चाहिए। इसके लिए निर्देशन की आवश्यकता महसूस होती है।

५. शैक्षिक निर्देशन शैक्षिक समायोजन के लिए हैं:

जब विद्यार्थी विद्यालय में प्रवेश लेता है तो उसे एक नया पर्यावरण मिलता है। यह पर्यावरण शिक्षक, संगी साथी पाठ्यक्रम शिक्षण विधि पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं आदि से बनता है। चूंकी विद्यार्थियों में व्यक्तिक विभिन्नताओं पायी जाती है। इसीलिए सभी विद्यार्थी इस पर्यावरण में अपना समायोजन नहीं कर पाते उनके सामने अनेक प्रकार की समस्याएं पैदा होती है जिनको हल करने के लिए शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता होती है।

६. शैक्षिक निर्देशन शैक्षिक उपलब्धियों के स्तर को बनाए रखने के लिए है:

आज शिक्षा के क्षेत्र में हम यह देखते हैं कि उसका स्तर दिन पर दिन गिरता जा रहा है। इसके अनेक कारण है शिक्षा देने वाले अध्यापक व शिक्षा लेने वाले छात्र दोनों के अंदर दोष हैं। आज का सामाजिक वातावरण अध्यापकों की योग्यता अध्यापकों की उत्तरदायित्व हीनता आदि इसके प्रमुख कारण है। इन कारणों को निर्देशन सेवाओं द्वारा ही दूर किया जा सकता है। शैक्षिक उपलब्धियों के स्तर में जो गिरावट आ रही है उसकी असफलताओं के कारणों का पता करके उन्हें निर्देशन सेवाओं द्वारा दूर किया जा सकता है तथा छात्रों को अधिगम की नवीन तकनीकों से परिचित करा कर शिक्षा के स्तर को उच्च बनाया जा सकता है।

७. शैक्षिक निर्देशन अनुशासनहीनता की समस्या के निराकरण के लिए है:

शिक्षा के क्षेत्र में अनुशासनहीनता एक ज्वलंत समस्या के रूप में उभर कर आयी है। शिक्षा के क्षेत्र में आये दिन हड़ताल तोड़फोड़ लूटमार आदि की घटनाएं देखने को मिलती है। इसके पीछे प्रमुख कारण है छात्रों को उचित व्यवसाय का ना मिलना छात्रों के समस्या के समाधान हेतु कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया जाना। ऐसी स्थिति में आज की शिक्षा छात्र को समाज में समायोजित होने से रोकती हैं अतः ऐसी स्थिति में निर्देशन सेवा द्वारा अनुशासनहीनता द्वारा समाधान निकाला जा सकता है।

व्यवसायिक निर्देशन क्या है

व्यवसायिक निर्देशन व्यक्ति को अपनी योग्यता और रूचि के अनुसार उपयुक्त व्यवसाय के चुनाव, तैयारी प्रवेश और प्रगति में सहायता करता है। व्यवसायिक निर्देशन का कार्य केवल व्यवसाय के चयन तक ही सीमित नहीं है। अपितु किसके द्वारा व्यक्ति की अपने व्यवसाय में प्रगति भी निर्धारित की जाती हैं। इस प्रकार व्यवसायिक निर्देशन का कार्य व्यवसायिक चुनाव से लेकर व्यवसायिक सफलता तक फैला हुआ है। अंतरराष्ट्रीय संघ संगठन के अनुसार व्यवसायिक निर्देशन वह सहायता है जो एक व्यक्ति को उसकी जीविका के संबंध में निर्णय लेने तथा जीविका में उन्नति करने संबंधी समस्याओं का समाधान करने के लिए उसकी व्यक्तिगत विशेषताओं के साथ उसके जीविका में उन्नति करने संबंधी समस्याओं का समाधान करने के लिए उसकी व्यक्तिगत विशेषताओं के साथ व्यक्ति के जीविका संबंधी अवसरों के संबंध को ध्यान में रखते हुए व्यवसायिक निर्देशन दी जाती है।

व्यवसायिक निर्देशन की आवश्यकता

१. व्यवसाय में विभिन्नतायें।
२. व्यक्तिक विभिन्नतायें।
३. व्यक्तित्व का विकास
४. समाज और राष्ट्र की प्रगति।
५. अनुशासन की समस्या।

१. व्यवसाय में विभिन्नतायें:

सबसे पहले जनता कृषि व्यवसाय के माध्यम से ही अपने जीवन व्यतीत करते थे लेकिन जैसे-जैसे जनसंख्या में वृद्धि हुई, मानव विकसित होती गई उनकी जरूरतें बढ़ती चली गई और अनेक प्रकार के उद्योग व्यवसाय आने लगे। इसलिए विद्यालय स्तर पर ही या आवश्यक समझा गया कि शिक्षार्थियों को उनकी अभिरुचि के अनुसार विषयों के चयन में सहायता प्रदान की जाए जिससे शिक्षा और व्यवसाय अथवा शैक्षिक उपलब्धि एवं जीविकोपार्जन से संबंधित अपेक्षाओं में समन्वय स्थापित किया जा सके। व्यवसायिक निर्देशन द्वारा विद्यार्थियों को उनकी रुचियां उनकी कौशलों योग्यताओं अभिरुचि हो आदि के संबंध में जानकारी प्रदान की जा सकती हैं। जानकारी के आधार पर ही या अपनी योग्यता के अनुरूप विषयों का चयन करने भावी व्यवसाय के लिए आवश्यक योग्यताओं क्षमता एवं कौशलों का विकास करनी तथा उस व्यवसाय में आगे बढ़ने का अवसर प्राप्त कर सके।

२. व्यक्तिक विभिन्नतायें:

हर व्यक्ति में कार्य करने की क्षमता, रुचि, अभिरुचि, भिन्न-भिन्न होती है। किसी ना किसी रूप में प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से भिन्न होता ही है। इस विभिन्नता की समुचित जानकारी प्राप्त किए बिना यह संभव नहीं है कि किसी व्यक्ति की अभिरुचि भावी प्रगति अथवा व्यवसायिक अनुकूलता के संबंध में निश्चित कथन दिया जा सके। किसी भी व्यवसाय के लिए अनुकूल व्यक्तियों का चयन करने से पूर्व व्यक्तिक विभिन्नताओं के स्तर एवं स्वरूप की जानकारी आवश्यक होती है क्योंकि प्रतिक व्यवसाय के लिए कुछ विशेष योग्यताओं वाले व्यक्ति के आवश्यकता होती है। निर्देशन के द्वारा इस संदर्भ में विभिन्न माध्यमों से प्राप्त सूचनाएं एकत्र की जा सकती है।

३. व्यक्तित्व का विकास:

व्यवसायिक निर्देशन के द्वारा व्यक्ति अपने आपको विकसित कर सकता है व्यक्ति अपने योग्यता क्षमता एवं रूची के आधार पर किसी एक व्यवसाय को चुनता है और उसे पूरा करने में भरपूर प्रयास करता है जिससे उसके व्यक्तित्व का विकास हो सके।

४. समाज और राष्ट्र की प्रगति:

व्यवसायिक निर्देशन के द्वारा व्यक्ति समाज और राष्ट्र की प्रगति का एक माध्यम सिद्ध होता है जैसे कि किसी भी समाज की पारिवारिक, आर्थिक, धार्मिक विभिन्न दशाओं में पर्याप्त अंतर हो चुका है। व्यक्ति के स्तर धन भौतिक साधनों को अधिक महत्व दिया जाता है। अपने पड़ोस संबंधियों एवं परिचितगणों से सम्मान प्राप्त करने के लिए आज यह आवश्यक है कि व्यक्ति के रहन-सहन का स्तर अच्छा हो। व्यक्ति के सम्मान, उनके मान मर्यादा तथा उन्हें सामाजिक महत्व मिले। इसके बावजूद भी जनसंख्या वृद्धि एवं सीमित अवसरों की उपलब्धता के लिए एक अच्छा अवसर मिल सके। ताकि वे समाज तथा राष्ट्र की प्रगति कर सके। इन सभी के लिए व्यवसायिक निर्देशन की आवश्यकता होती है।

५. अनुशासन की समस्या:

व्यवसायिक निर्देशन के द्वारा अनुशासन की समस्या दूर हो जाती हैं जब हम किसी व्यवसायिक में पूर्ण रूप से निर्भर हो जाते हैं तो हम अनुशासन में बांध जाते हैं जिससे हम एक सीमित सीमा या दायरे में रहकर उस व्यवसाय के प्रति अपनी पूरी लगन या क्षमता के द्वारा उस काम को करने लगते हैं। ताकि हमें भविष्य में इनसे कुछ फायदा हो सके।

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