राम भक्ति काव्य की प्रमुख विशेषताएं ram bhakti kavya ki visheshtayen

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भक्तिकाल की काव्य धारा को दो भागों में बांटा गया है निर्गुण काव्यधारा और सगुण काव्यधारा। सगुण काव्यधारा में रामकाव्य धारा है, जिसमें राम के अवतारी तथा सगुण रूप की भक्ति करते हुए कविताएं रची गई है वैसे तो इस काल में अनेकों कवि हुए पर जो तुलसीदास ने राम काव्य का अद्भुत वर्णन किया वैसे अन्य कवियों में देखने को नहीं मिलता है। इनके अलावा इस काव्यधारा में नाभादास, केशवदास, विष्णुदास, अग्रदास, ईश्वरदास,तुलसीदास आदि कवि हुए जिनमें सबसे महत्वपूर्ण तुलसीदास हैं।

राम भक्ति काव्य की प्रमुख विशेषताएं ram bhakti kavya ki visheshtayen

राम भक्ति काव्य भारतीय भक्ति आंदोलन का एक महत्वपूर्ण भाग है, जिसमें प्रभु श्रीराम के प्रति अनन्य भक्ति और प्रेम का अद्भुत वर्णन मिलता है। यह काव्य न केवल आध्यात्मिक चेतना से परिपूर्ण है, बल्कि इसमें समाज सुधार, नीति, धर्म, और आदर्श जीवन के उच्चतम मानदंड भी प्रस्तुत किए गए हैं। यह काव्य भारतीय संस्कृति, धर्म और परंपराओं का परिचायक है, जिसमें श्रीराम के आदर्श चरित्र को स्थापित कर लोकमंगल की भावना को व्यक्त किया गया है।

इस काव्य धारा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें राम भक्ति को मोक्ष प्राप्ति का साधन माना गया है और भक्तों ने इसे सरल भाषा, सुंदर छंदों और प्रेरणादायक प्रसंगों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाया है। आइए इस काव्य की प्रमुख विशेषताओं का विस्तृत अध्ययन करें।

1.पुरुषोत्तम राम को आधार बनाकर:

राम काव्यधारा के जितने भी कवि थे वे सभी विष्णु के अवतारी रूप मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के बारे में उसके सौन्दर्य रूप, शक्ति, गुण तथा चरित्र के बारे में कविता, दोहा, पद आदि के माध्यम से श्रीराम के गुणगान गाये।

राम सो बड़ौ है कौन, मोसो कौन छोटो।

राम सो खरो है कौन, मोसो कौन खोटो ॥

 

2. दास्य भाव की भक्ति

इस काव्यधारा के कवियों की भक्ति भावना दास्य भाव की है। वे राम को साकार रूप में पाकर स्वयं को भगवान राम का सेवक माना है तथा उसी की सेवा करते हुए राम को अपना स्वामी माना है इस प्रकार की भक्ति के कारण ही इस धारा के काव्य में लघुता, दैन्य, उदारता, आदर्शवादिता, आदि भावों की प्रधानता दिखाई देती है।

ब्रह्म तू हौं जीव, तू ठाकुर हौं चेरो।

तात, मात, गुरु, सखा, तू सब विधि हितू मेरो,

तोहि मोहि नावे अनेक मानिए जो भावै,

ज्यों-ज्यों तुलसी कृपालु चर सरन पावै ॥

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३.लोकमंगल की कामना

लोकमंगल की कामना करना रामभक्ति काव्य की एक प्रमुख विशेषता है इस काव्य धारा के कवियों का लोकमंगल की कामना करना मुख्य भाव है। वे अपने कविताओं में राजा, महाराजा या सामंतों की प्रशंसा के लिए कविताएँ न लिख कर लोगो की भलाई के लिए कविता लिखा करते थे इसमें अधिकांश कवियों ने स्वांत: सुखाय काव्यों की रचनाएँ की हैं। उन्होंने किसी राजा-महाराज या विशिष्ट व्यक्ति के ऊपर कविताएं नहीं लिखा।

परहित सरिस धर्म नहि भाई
पर पीड़ा सम नहि अधभाई

४. समन्वय की भावना

भारतीय समाज में विभिन्न सांस्कृतिक, रीति रिवाज से भरा है। इस रामभक्ति काव्यधारा के कवियों ने अपने समय के विभिन्न संस्कृति, रीति-रिवाज विचारों को सम्मिलित करके जनता की भलाई के लिए भागे लाये । इस काव्यधारा में समन्वय की भावना प्रमुख रूप से दिखाई देती है इस धारा के कवियों ने ज्ञान, भक्ति और कर्म में सुंदर, समन्वय स्थापित कर कविताएँ रची हैं। भारत के सामाजिक संस्कृति के निर्माण में रामभक्ति, काव्य धारा का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। तुलसीदास जी ने समन्वय की भावना को इस प्रकार व्यक्त किया है

अगुनहि सगुनहि नहिं कुछ भेदा

गाँवहि श्रुति पुरान बुध वेदा ।

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 ५. रामभक्ति काव्य धारा में रसों का सुंदर चित्रण:

रामभक्ति काव्य धारा में सभी रसों का चित्रण हुआ है। श्रृंगार रस के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का बड़ा सहज, स्वाभाविक किंतु मर्यादित चित्रण तुलसीदास के काव्य में हुआ है।शांत और करूण रस इस काव्य धारा के प्राण है। वीर, रौद्र और वीभत्स रसों की भी अभिव्यक्ति खुब हुई है। इस काव्यधारा में ऐसा कोई रस नहीं है जिसका सुंदर निदर्शन न हुआ हो और न ही किसी भाव की व्यंजना न हुई हो।

६.अलंकार :-

रामभक्ति काव्य धारा का अलंकार प्रयोग भाषा और भाव के अनुकूल है। अवसरानुकूल उपमा, रूपक, सन्देह, श्लेष, उत्प्रेक्षा, असंगति, तद्गुण, अतद्गुण आदि सभी अलंकारों का कहीं न कहीं प्रयोग अवश्य हुआ है, पर अधिकता रूपक, उपमा और उत्प्रेक्षा की है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का कथन है कि अलंकारों की योजना उन्होंने ऐसे मार्मिक ढंग से की है कि वे सर्वत्र भावों को, तथ्यों की योजना को प्रस्फुटित करते हुए पाये जाते हैं, अपनी अलग चमक-दमक दिखाते हुए नहीं।

७.भाषा-शैली :-

 इस काव्य धारा में दो भाषाओं अवधी और ब्रज में काव्यों की रचनाएं की गई। ‘रामचरितमानस’ अवधी भाषा काव्य रत्न है, तो ‘विनय पत्रिका’, ‘कवितावली’, ‘गीतावली’ आदि में ब्रजभाषा की सुषमा बिखरी हुई है । कहीं-कहीं लोक प्रचलित अरबी-फारसी के शब्द प्रयुक्त हुए हैं।

८. श्रीराम के प्रति अनन्य भक्ति

राम भक्ति काव्य का मूल आधार श्रीराम के प्रति प्रेम, श्रद्धा और समर्पण है। भक्त कवियों ने भगवान राम को ईश्वर का अवतार मानकर उनकी निर्विशेष और निष्काम भक्ति की। इस काव्य में यह दर्शाया गया है कि भगवान राम केवल एक राजा नहीं, बल्कि समस्त सृष्टि के पालक हैं।

रामहि केवल प्रेमु पिआरा। जान लेउ जो जाननिहारा॥

राम बिना जग जड़ अंधियारा। ज्यों नवल नीर बिनु मतवारा॥

तुलसीदास जी ने बताया कि भगवान राम केवल प्रेम के भूखे हैं, जो भी सच्चे हृदय से उनका स्मरण करता है, वही उनका सान्निध्य प्राप्त करता है।

९. मर्यादा और आदर्श का चित्रण

राम भक्ति काव्य में भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में चित्रित किया गया है। उनके जीवन का हर प्रसंग त्याग, कर्तव्य, धर्म और निष्ठा का परिचायक है। चाहे वे पिता की आज्ञा मानकर वनवास जाना हो, भ्रातृप्रेम में लक्ष्मण को गले लगाना हो, या रावण का वध करके अधर्म का नाश करना हो—हर स्थिति में राम मर्यादा का पालन करते हैं।

धरम धुरंधर राम सिया के, पालन हर मन भावै।

रघुकुल रीति सदा चलि आई, प्राण जाए पर वचन न जाई॥

१०. भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का समन्वय

राम भक्ति काव्य केवल भक्ति का संदेश नहीं देता, बल्कि उसमें ज्ञान और वैराग्य के तत्व भी समाहित हैं। इसमें बताया गया है कि राम के सच्चे भक्त को सांसारिक मोह-माया से दूर रहना चाहिए और केवल प्रभु की भक्ति में लीन रहना चाहिए।

राम नाम मन राखिए, संत चरन की आस।

माया मोहम तजि चले, होय भवसिंधु पार॥

जो व्यक्ति राम नाम का स्मरण करता है और संतों के चरणों में श्रद्धा रखता है, वह संसार के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है।

११. संकीर्तन और कथा परंपरा का विकास

राम भक्ति काव्य ने संकीर्तन और रामलीला परंपरा को जन्म दिया। रामचरितमानस के दोहे और चौपाइयों का संकीर्तन मंदिरों में किया जाता है, जिससे लोगों में भक्ति भाव जागृत होता है।

कलियुग केवल नाम अधारा।

सुमिरि सुमिरि नर उतरहि पारा॥

१२. नैतिकता और धार्मिकता का संदेश

राम भक्ति काव्य में भक्तों को यह सिखाया गया है कि वे धर्म के मार्ग पर चलें, बुराइयों से दूर रहें, और जीवन में सत्य और न्याय का पालन करें।

राम नाम सुखदाई रे, मिटे सकल संताप।

भज ले मन तू सीयाराम, मिले भक्ति का जाप॥

१३. राम नाम महिमा

राम भक्ति काव्य में “राम नाम” की शक्ति का विशेष रूप से वर्णन किया गया है। कहा जाता है कि मात्र “राम” का नाम लेने से ही जीवन के समस्त पाप कट जाते हैं और मोक्ष प्राप्ति संभव हो जाती है।

राम सुमिर मन राखिए, भव सागर तर जाइ।

राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट॥

राम भक्ति शाखा के कवि और उनकी रचनाएँ

क्रम संख्या कवि का नाम काल प्रमुख रचनाएँ विशेषता
1. गोस्वामी तुलसीदास 1532-1623 ई. रामचरितमानस, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा, दोहावली, कवितावली सरल अवधी भाषा में राम कथा का विस्तार।
2. महर्षि वाल्मीकि प्राचीन काल रामायण संस्कृत में रचित आदि महाकाव्य।
3. कबीरदास 1440-1518 ई. बीजक, साखी, रमैनी, पद निर्गुण भक्ति में राम को निराकार ब्रह्म रूप में देखा।
4. सूरदास 1478-1583 ई. सूरसागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी मुख्यतः कृष्ण भक्त, लेकिन राम भक्ति पर भी रचनाएँ।
5. संत एकनाथ 1533-1599 ई. भावार्थ रामायण मराठी में राम कथा का वर्णन।
6. स्वामी रामदास 1608-1681 ई. दासबोध, मनाचे श्लोक शिवाजी के गुरु, रामराज्य की अवधारणा के समर्थक।
7. केशवदास 1555-1617 ई. रामचंद्रिका अलंकार और रसों से समृद्ध राम भक्ति काव्य।
8. नरहरि दास 16वीं शताब्दी राम रसो ब्रज भाषा में राम भक्ति काव्य लिखा।
9. मंदाक्रांता प्राचीन काल रामकथा संबद्ध स्तोत्र संस्कृत में राम भक्ति स्तोत्र लिखने वाली प्रमुख कवयित्री।

🔹 निष्कर्ष:
इन कवियों ने राम भक्ति को विभिन्न भाषाओं और शैलियों में अभिव्यक्त किया, जिससे राम कथा जन-जन तक पहुँची और भारतीय साहित्य में अमर हो गई।

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