बाल्यावस्था में सामाजिक विकास ‎(SOCIAL DEVELOPMENT DURING CHILDHOOD) Balyavastha Mein Samajik Vikas

बाल्यावस्था में सामाजिक विकास ‎(SOCIAL DEVELOPMENT DURING CHILDHOOD) Balyavastha Mein Samajik Vikas

बाल्यावस्था में सामाजिक विकास ‎(SOCIAL DEVELOPMENT DURING CHILDHOOD) Balyavastha Mein Samajik Vikas

बाल्यावस्था वह समय है जब सामाजिक विकास की प्रक्रिया तेज़ी से होती है। इस समय में बालक अपने परिवार और आस-पास के समाज से बाहर प्राथमिक विद्यालय में कदम रखता है, जिससे उसे नए वातावरण और नए साथियों का सामना करना पड़ता है। इस परिवर्तनशील माहौल में बालक को अनुकूलन और समायोजन की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, और यही समय होता है जब उसकी सामाजिक भावना का विकास होता है।

इस अवस्था में बालक धीरे-धीरे समाज के विभिन्न मानकों और आदर्शों को समझने लगता है। वह अपनी छोटी-छोटी समूह गतिविधियों के माध्यम से सहयोग, साझेदारी और समूह का हिस्सा बनना सीखता है। जब कोई बालक समाजविरोधी या व्यक्तिगत व्यवहार करता है, तो उसे उसके समूह के सदस्य उसे सुधारने की कोशिश करते हैं, जिससे वह समाज में स्वीकार्यता और अनुकूलता की प्रक्रिया को सीखता है।

मनोरंजन और खेल के माध्यम से बालक एक-दूसरे के साथ वस्तुओं का आदान-प्रदान, साझा निर्णय लेना और सामूहिक गतिविधियों में भाग लेना जैसे सामाजिक गुणों को ग्रहण करता है। हरलॉक और अन्य मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, बाल्यावस्था में समाजीकरण की प्रक्रिया इस तरह के सामाजिक संवाद और सामूहिक कार्यों के माध्यम से विकसित होती है, जो बालक के मानसिक और सामाजिक विकास के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। इस प्रक्रिया के दौरान, बालक अपनी व्यक्तिगत पहचान को भी समझने लगता है और समाज में अपने स्थान को पहचानता है।

हरलॉक तथा अन्य मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बाल्यावस्था में सामाजिक विकास निम्नवत् होता है-

1. बालक विद्यालय जाने लगता है

विद्यालय बालक के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ होता है, जहां वह समाजीकरण की प्रक्रिया में तेज़ी से शामिल होता है। जब बालक विद्यालय जाता है, तो वह नए वातावरण से परिचित होता है, जो उसकी सामाजिक विकास में सहायक होता है। विद्यालय में वह नए साथियों से मिलता है और उनसे संवाद करना, उनका सहयोग प्राप्त करना तथा सामूहिक गतिविधियों में भाग लेना सीखता है। यहाँ उसे अनुकूलन (adaptation) करने का अवसर मिलता है, जिससे वह धीरे-धीरे अपने सामाजिक कौशलों में वृद्धि करता है।

विद्यालय में बालक नई जिम्मेदारियाँ और सामाजिक कार्य करता है, जो उसे समूह में काम करने, साझेदारी और समाज के नियमों को समझने में मदद करते हैं। वह अपनी समाजिक भावना को प्रगति करता है और यह उसे आगे चलकर एक अच्छा सामाजिक व्यक्ति बनने में मदद करता है। इस तरह, विद्यालय बालक के सामाजिक विकास में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

2. माता-पिता और अन्य बड़ों से मुक्त होकर, आयु समूह के साथ खेलना

बाल्यावस्था के दौरान, एक समय ऐसा आता है जब बालक अपने माता-पिता और अन्य बड़ों से छत्रछाया प्राप्त करने के बाद स्वतंत्रता की ओर कदम बढ़ाता है। अब उसे अपनी आयु के अन्य बच्चों के साथ खेलने और समूह में जुड़ने का आनंद आने लगता है। उसे माता-पिता या अन्य बड़े रिश्तेदारों के साथ खेलने की तुलना में अपनी आयु के समान बच्चों के साथ ज्यादा मजा आता है।

यह परिवर्तन बालक के स्वतंत्रता की भावना और समाज में अपनी पहचान बनाने की आवश्यकता को दर्शाता है। वह धीरे-धीरे बड़ों की छत्रछाया से बाहर निकलकर अपनी जिम्मेदारी और स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम होता है। इस प्रक्रिया में बालक की सामाजिक स्वायत्तता का विकास होता है, जिससे वह अपने साथियों के साथ सामूहिक गतिविधियों, खेलों और सामाजिक आदान-प्रदान में बढ़-चढ़ कर भाग लेने लगता है।

3. समूह विशेष के प्रति बालकों की गहरी आस्था और टकराव की स्थिति

बाल्यावस्था के दौरान, बालकों में अपने समूह विशेष के प्रति गहरी आस्था या भक्ति-भाव देखने को मिलता है। वह अपने साथियों के साथ अधिक जुड़ाव महसूस करते हैं और उनके विचारों, आदर्शों और मान्यताओं के प्रति एक प्रकार का समर्पण विकसित करते हैं। इस अवस्था में, बालक की समूह पहचान उसकी व्यक्तिगत पहचान से अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है, और वह अपने साथियों के साथ घनिष्ठ संबंधों में रहना पसंद करता है।

हालांकि, माता-पिता और अध्यक्षों के विचार और मान्यताएँ अक्सर उस समूह के मान्यताओं और आदर्शों से भिन्न हो सकती हैं, जिसे बालक अपनाता है। यह अंतर बालक के लिए समायोजन की समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है। वह कभी-कभी परिवार या विद्यालय के नियमों और अपेक्षाओं के मुकाबले अपने समूह के दबाव और विचारों से टकराता है। यह स्थिति बालक के लिए मनोवैज्ञानिक संघर्ष उत्पन्न कर सकती है, क्योंकि उसे दोनों पक्षों के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता होती है। इस प्रकार की समस्याएँ बालक के सामाजिक और मानसिक विकास में नवीन समस्याएँ उत्पन्न करती हैं, जिन्हें वह धीरे-धीरे समाधान ढूँढ़ने की प्रक्रिया में अनुभव करता है।

4. समूह के सदस्य के रूप में सामाजिक गुणों का विकास

बाल्यावस्था में, जब बालक एक समूह के सदस्य के रूप में अपने साथियों के साथ समय बिताता है, तो उसके अंदर कई महत्वपूर्ण सामाजिक गुणों का विकास होने लगता है। समूह के साथ संवेदनशीलता और समझदारी विकसित होती है, जो उसे उत्तरदायित्व का एहसास कराती है। बालक इस अवस्था में सहयोग की भावना को समझता है, क्योंकि वह जानता है कि यदि उसे सफलता प्राप्त करनी है तो उसे अपने साथियों के साथ मिलकर काम करना होगा।

इसी तरह, साहस और सहनशीलता जैसे गुण भी समय के साथ बढ़ते हैं, क्योंकि समूह में होने के कारण उसे कभी-कभी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। उसे अपनी भावनाओं और इच्छाओं को आत्मनियंत्रण के साथ नियंत्रित करना सीखना पड़ता है, ताकि वह दूसरों के साथ अच्छे संबंध बनाए रख सके।

इसके अलावा, न्यायप्रियता जैसे गुण भी बालक में इस समय विकसित होते हैं, क्योंकि समूह में रहते हुए उसे दूसरों के साथ समान व्यवहार करना और किसी भी प्रकार के भेदभाव से बचना सिखाया जाता है। इस प्रकार, समूह में रहते हुए बालक में ये सभी सामाजिक गुण विकसित होते हैं, जो उसे एक सकारात्मक और उत्तरदायी व्यक्ति बनाने में मदद करते हैं।

5. बालक-बालिकाओं की रुचियों में अंतर

बाल्यावस्था में लड़कों और लड़कियों की रुचियाँ अक्सर अलग-अलग होती हैं, और यह अंतर शारीरिक, मानसिक, और सामाजिक विकास के विभिन्न पहलुओं से जुड़ा होता है। लड़कों में आमतौर पर दौड़ने, भागने, खेलकूद, और मारधाड़ जैसे शारीरिक खेलों में अधिक रुचि पाई जाती है। वे बाहरी गतिविधियों में भाग लेने के लिए उत्साहित रहते हैं और यह उनकी ऊर्जा और शारीरिक विकास को बढ़ावा देता है।

वहीं, लड़कियाँ नाच-गाना, कढ़ाई-बुनाई, और घरेलू कार्यों में अधिक रुचि दिखाती हैं। यह उनके सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश से जुड़ा होता है, जहाँ पारंपरिक रूप से उन्हें घरेलू कामों में शिक्षा दी जाती है। हालांकि, इस समय के साथ, लड़कियाँ भी बाहरी खेलों में भाग ले रही हैं, लेकिन अभी भी पारंपरिक रुचियाँ अधिक देखी जाती हैं।

इस प्रकार, लड़कों और लड़कियों की रुचियों में अंतर का यह कारण उनके जैविक भेद, सामाजिक संरचना, और संस्कारों से जुड़ा हुआ है, जो उनके विकास और भविष्य की आदतों को प्रभावित करता है।

6. स्वत्वाधिकार और सार्वजनिक सम्मान का भाव

बाल्यावस्था में स्वत्वाधिकार का भाव अपेक्षाकृत कम होता है, क्योंकि इस आयु में बालक अपने परिवार और समाज के प्रति जिम्मेदारियों और अधिकारों के बारे में पूरी तरह से जागरूक नहीं होते। वे दूसरों के विचारों और दृष्टिकोणों को अधिक महत्व देते हैं और सामूहिक कार्यों में भाग लेने के प्रति अधिक इच्छुक होते हैं। इस समय में सार्वजनिक सम्मान की भावना विशेष रूप से विकसित होती है, और बालक अपने समूह के प्रति सम्मान, सहयोग और मदद करने की भावना को महसूस करता है।

साथ ही, बाल्यावस्था में ही नेतृत्व के गुणों का विकास शुरू हो जाता है। बालक अपनी सामाजिक परिस्थितियों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं, दूसरों के विचारों का पालन करते हैं और सामूहिक निर्णयों में हिस्सा लेते हैं। यह समूह में उनका सामाजिक स्थान और भूमिका सुनिश्चित करता है, जिससे उनका सामाजिक विकास और नेतृत्व क्षमता प्रगति करती है।

7. क्रो एवं क्रो के अनुसार छः से दस वर्ष तक का बालक

क्रो और क्रो के अनुसार, छः से दस वर्ष तक के बालक अपने वांछनीय और अवाछनीय व्यवहार में निरंतर प्रगति करते हैं। इस अवधि में बालक अपने कार्यों को समझने और उनके पीछे के कारणों को जानने की कोशिश करता है। वह उन कार्यों को प्राथमिकता देता है जिनके लिए कोई स्पष्ट कारण या उद्देश्य होता है।

यह आयु सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि बालक सामाजिक अनुकूलता को समझने लगता है और अपनी बुद्धि का उपयोग कर समाज में समायोजित कार्यों को करने की प्रवृत्ति दिखाता है। वह यह जानने लगता है कि कौन से कार्य समाज के नियमों और मूल्यों के अनुसार उचित हैं, और किन्हें अवांछनीय माना जाता है। इस प्रकार, छः से दस वर्ष के बीच बालक अपनी सामाजिक भूमिका को पहचानने और समझने में सक्षम होता है, जिससे उसका सामाजिक विकास और समान्यता के प्रति दृष्टिकोण और सशक्त होता है।

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8. परिवार और साथियों में प्रशंसा और सम्मान का अभाव

प्रायः ऐसे बालक, जिन्हें परिवार और साथियों में प्रशंसा, सम्मान और मान्यता नहीं मिलती, वे उद्दण्ड और समस्यात्मक व्यवहार अपनाने लगते हैं। ऐसे बालक सामाजिक परिप्रेक्ष्य में चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते हैं। जब बालकों को उनके प्रयासों और कार्यों की सराहना नहीं मिलती, तो उनका आत्मविश्वास गिरता है और वे अपने आसपास के लोगों से सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए विवाद या नकारात्मक तरीके अपनाते हैं।

इन बालकों का व्यवहार चिंताजनक हो सकता है, क्योंकि उनके विरोधी और सामाजिक अस्वीकार्य व्यवहारों से वे अपने रिश्तों को नुकसान पहुँचाते हैं और भविष्य में समस्या बालक (Problem Child) के रूप में उभरते हैं। इससे उनके सामाजिक और मानसिक विकास में रुकावटें आती हैं, और उन्हें उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है ताकि वे अपने व्यवहार को सुधार सकें और सकारात्मक दिशा में अपने विकास को आगे बढ़ा सकें।

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9. खेलों के माध्यम से सामाजिक संपर्क और विकास
इस अवस्था में बालक कई प्रकार के खेल खेलते हैं, जिनके माध्यम से वह सामाजिक संपर्क स्थापित करता है। खेल केवल मनोरंजन का एक तरीका नहीं होते, बल्कि ये बालकों में सामाजिकता का विकास करने का एक प्रभावी तरीका होते हैं। इस समय बालक की संगठित रूप से खेल खेलने की प्रवृत्ति बढ़ती है, जिससे उसे सहयोग और सामाजिक नियमों का पालन करना सीखने का अवसर मिलता है।

खेल के दौरान बालक को अपनी भूमिका समझने, दूसरों के साथ काम करने, और टीम के सदस्य के रूप में कार्य करने की महत्वपूर्ण शिक्षा मिलती है। यह सामाजिक जीवन के लिए आवश्यक मूल्यों और गुणों को विकसित करने में मदद करता है, जैसे कि सहिष्णुता, संयम, सहयोग, और समानता। इस प्रकार, खेल बालक के सामाजिक जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन जाता है, जो उसके मानसिक और शारीरिक विकास में सहायक होता है।

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निष्कर्ष: 

बाल्यावस्था वह महत्वपूर्ण चरण है जब एक बालक अपनी सामाजिक पहचान और व्यवहार विकसित करना शुरू करता है। इस अवधि में बालकों का सामाजिक विकास तेज़ी से होता है, क्योंकि वे नए वातावरण और साथियों के साथ सामंजस्य बिठाना सीखते हैं। विद्यालय, परिवार, और मित्रों के साथ उनके रिश्ते और संपर्क उनके व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक होते हैं। इस अवस्था में बालक सहयोग, उत्तरदायित्व, समूह में काम करने की क्षमता, और समाज के नियमों का पालन करना सीखता है।

बाल्यावस्था में बालक के खेल और अन्य सामाजिक गतिविधियाँ उनके सामूहिक और व्यक्तिगत विकास को प्रोत्साहित करती हैं। इस समय में वह सामाजिक मूल्य जैसे सम्मान, सहानुभूति, न्यायप्रियता, और सहिष्णुता का अभ्यास करता है। इसके अलावा, बालकों में नेतृत्व गुण और समस्या समाधान की क्षमता का भी विकास होता है।

हालाँकि, यदि परिवार और समाज में उपेक्षा होती है, तो बालकों में समस्या व्यवहार उत्पन्न हो सकता है। इसलिए, समाज और परिवार की भूमिका इस अवधि में अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाती है ताकि बालकों को एक सकारात्मक और सहायक वातावरण प्राप्त हो, जो उनके स्वस्थ सामाजिक विकास को सुनिश्चित कर सके।

इस प्रकार, बाल्यावस्था में सामाजिक विकास एक निरंतर प्रक्रिया है, जो बालकों को समाज में एक सक्रिय, सहायक और जिम्मेदार सदस्य बनने की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करती है।

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