प्रियतम कविता की व्याख्या क्लास 8 ।। प्रियतम कविता का भावार्थ क्लास 8 ।। priyatam kavita ka bhavarth class 8

प्रियतम कविता की व्याख्या क्लास 8 ।। प्रियतम कविता का भावार्थ क्लास 8 ।। priyatam kavita ka bhavarth class 8

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प्रियतम कविता की व्याख्या क्लास 8 ।। प्रियतम कविता का भावार्थ क्लास 8 ।। priyatam kavita ka bhavarth class 8

आप सभी का इस आर्टिकल में स्वागत है आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से प्रियतम कविता की व्याख्या क्लास 8 को पढ़ने जा रहे हैं। जो पश्चिम बंगाल के सरकारी विद्यालय के कक्षा 8 के पाठ 3 प्रियतम  से लिया गया है। तो चलिए प्रियतम कविता की व्याख्या क्लास 8 , प्रियतम कविता का भावार्थ क्लास 8, 
priyatam kavita ka bhavarth class  8 को देखें-

कवि परिचय: सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म सन् 1896 ई. में बंगाल के महिषादल राज्य में हुआ था। इनके पिता उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के रहने वाले थे, जो महिषादल रियासत में एक उच्च अधिकारी थे।

निराला जी की प्रारंभिक शिक्षा महिषादल में ही हुई। उन्होंने संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेज़ी की शिक्षा घर पर ही प्राप्त की थी।

इनका निधन सन् 1961 ई. में हुआ।

निरालाजी छायावाद युग के प्रमुख कवि माने जाते हैं। वे एक बहुत ही प्रतिभाशाली और बहुमुखी लेखक थे। उन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध और संस्मरण सभी विधाओं में उत्कृष्ट रचनाएँ दीं।

इनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं:
अनामिका, अपरा, परिमल, गीतिका, तुलसीदास, अर्चना, सरोज-स्मृति और आराधना

इनकी भाषा शुद्ध, परिमार्जित खड़ी बोली हिंदी है।

हिंदी साहित्य में निराला जी का गौरवपूर्ण और विशेष स्थान है। वे आज भी अपनी अनूठी शैली और सृजनात्मकता के लिए याद किए जाते हैं।

1. एक दिन विष्णुजी के पास गए नारदजी
पूछा, “मृत्युलोक में वह कौन है पुण्यश्लोक
भक्त तुम्हारा प्रधान ?”
विष्णुजी ने कहा, “एक सज्जन किसान है
प्राणों से प्रियतम।”
“उनकी परीक्षा लूँगा”,
हँसे विष्णु सुनकर यह,
कहा “ले सकते हो।”

शब्दार्थ:

मृत्युलोक = पृथ्वी। पुण्यशलोक =यशस्वी । सज्जन =भला आदमी । प्रियतम = सबसे प्रिय, सबसे प्यारा ।

 

 

संदर्भ:
उपरोक्त पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक साहित्य मेला की ‘प्रियतम’ नामक कविता से ली गई हैं। इस कविता के प्रसिद्ध कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।

प्रसंग:
इस कविता में कवि ने भगवान विष्णु और नारद जी से जुड़ी एक पुरानी कहानी के माध्यम से यह बताया है कि जो व्यक्ति अपने काम और जिम्मेदारी को ईमानदारी से निभाता है, वही सबसे अच्छा और भगवान का सच्चा भक्त होता है।

व्याख्या:
कवि कहते हैं कि एक दिन नारद जी भगवान विष्णु के पास आए और उनसे पूछा – “भगवान! धरती पर आपका सबसे प्रिय और अच्छा भक्त कौन है?”
भगवान विष्णु ने उत्तर दिया – “एक किसान है जो मुझे अपने प्राणों से भी प्यारा है। वही मेरा सबसे बड़ा भक्त है।”
नारद जी को यह बात थोड़ी अजीब लगी, इसलिए उन्होंने उस किसान की परीक्षा लेने की बात कही।
इस पर भगवान विष्णु मुस्कुराए और कहा – “हाँ, जरूर, तुम उसकी परीक्षा ले सकते हो।”

2. नारदजी चल दिये
पहुँचे भक्त के यहाँ
देखा, हल जोत कर आया वह दोपहर को,
दरवाजे पहुँचकर रामजी का नाम लिया,
स्नान-भोजन करके
फिर चला गया काम पर।

शाम को आया दरवाजे पर
फिर नाम लिया राम का,
प्रातःकाल चलते समय
एक बार फिर उसने
मधुर नाम-स्मरण किया।

शब्दार्थ: 

भक्त = सेवक, उपासक । स्नान = नहाना । प्रातःकाल = सुबह, भोर ।  स्मरण = याद ।

संदर्भ:

उपरोक्त पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक साहित्य मेला की ‘प्रियतम’ नामक कविता से ली गई हैं। इस कविता के प्रसिद्ध कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।

प्रसंग:

इस कविता में कवि ने भगवान विष्णु और नारद जी से जुड़ी एक पुरानी कहानी के माध्यम से यह बताया है कि जो व्यक्ति अपने काम और जिम्मेदारी को ईमानदारी से निभाता है, वही सबसे अच्छा और भगवान का सच्चा भक्त होता है।

व्याख्या:
नारद जी भगवान विष्णु के कहने पर धरती पर उस किसान के घर पहुँचे। वहाँ जाकर उन्होंने देखा कि वह किसान सादा और मेहनती जीवन जीता है।

वह सुबह खेतों में हल चलाने के लिए चला जाता है। दोपहर में जब घर लौटता है, तो दरवाजे पर खड़े होकर “रामजी” का नाम लेता है। फिर नहाकर और खाना खाकर दोबारा काम पर चला जाता है।

शाम को लौटते समय भी वह दरवाजे पर रुककर भगवान राम का नाम लेता है। सुबह खेत पर जाते समय भी वह प्रेम से राम का मधुर नाम लेता है।

इस तरह वह किसान दिन में तीन बार भगवान का नाम लेता है, लेकिन पूरा दिन मेहनत और ईमानदारी से अपना काम करता है

 

3. “बस केवल तीन बार।”
नारद चकरा गए
किन्तु भगवान को किसान ही क्यों याद आया ?
गये विष्णुलोक, बोले भगवान से
“देखा किसान को
दिन-भर में तीन बार
नाम उसने लिया है राम का!”

शब्दार्थ:

चकरा गए = हैरान होना ।

संदर्भ:

उपरोक्त पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक साहित्य मेला की ‘प्रियतम’ नामक कविता से ली गई हैं। इस कविता के प्रसिद्ध कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।

प्रसंग:

इस कविता में कवि ने भगवान विष्णु और नारद जी से जुड़ी एक पुरानी कहानी के माध्यम से यह बताया है कि जो व्यक्ति अपने काम और जिम्मेदारी को ईमानदारी से निभाता है, वही सबसे अच्छा और भगवान का सच्चा भक्त होता है।

व्याख्या:
जब नारद जी ने उस किसान को देखा कि वह सिर्फ तीन बार ही भगवान राम का नाम लेता है, तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ।
उन्होंने सोचा – “एक आदमी जो दिन भर में सिर्फ तीन बार भगवान का नाम लेता है, वह भगवान का सबसे प्यारा भक्त कैसे हो सकता है?”
नारद जी को यह बात समझ में नहीं आई।

फिर नारद जी वापस विष्णु लोक गए और भगवान विष्णु से कहा
“भगवान! मैंने उस किसान को देखा। वह तो सिर्फ सुबह, दोपहर और शाम को एक-एक बार राम का नाम लेता है। फिर भी आप कहते हैं कि वह आपका प्रिय भक्त है?”

 

4.  बोले विष्णु, “नारदजी,
आवश्यक दूसरा
एक काम आया है
तुम्हें छोड़कर कोई
और नहीं कर सकता
साधारण विषय यह।

बाद को विवाद होगा।
तब तक यह आवश्यक कार्य पूरा कीजिए।”
“तेल-पूर्ण पात्र यह
लेकर प्रदक्षिणा कर आइए भूमंडल की
ध्यान रहे सविशेष
एक बूँद भी इससे
तेल न गिरने पाए।”

लेकर चले नारद जी
आज्ञा पर घृत-लक्ष्य
एक बूँद तेल उस पात्र से गिरे नहीं।

शब्दार्थ:

आवश्यक = जरूरी, अनिवार्य । साधारण = मामूली। विवाद = बहस । कार्य = काम । तेल पूर्ण पात्र = तेल से भरा बर्तन । प्रदक्षिणा = परिक्रमा । भूमंडल = पृथ्वी, धरती । सविशेष = विशेष प्रकार से । धृत = रखकर । लक्ष्य = उद्देश्य ।  घृत-लक्ष्य = एकाग्र । पत्रा = बर्तन ।

संदर्भ:

उपरोक्त पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक साहित्य मेला की ‘प्रियतम’ नामक कविता से ली गई हैं। इस कविता के प्रसिद्ध कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।

प्रसंग:

इस कविता में कवि ने भगवान विष्णु और नारद जी से जुड़ी एक पुरानी कहानी के माध्यम से यह बताया है कि जो व्यक्ति अपने काम और जिम्मेदारी को ईमानदारी से निभाता है, वही सबसे अच्छा और भगवान का सच्चा भक्त होता है।

व्याख्या:
जब नारद जी ने भगवान विष्णु से उस किसान के बारे में अपनी बात कही, तो भगवान विष्णु मुस्कुराए और बोले –
“नारद जी, अभी मुझे एक जरूरी काम करना है। यह काम आपके अलावा कोई और नहीं कर सकता। किसान की बात बाद में करेंगे।”

इसके बाद भगवान विष्णु ने नारद जी को तेल से भरा एक बर्तन दिया और कहा –
“इस बर्तन को लेकर पूरी पृथ्वी की परिक्रमा (यात्रा) कर आइए, लेकिन ध्यान रहे – इस बर्तन में से एक भी बूँद तेल गिरनी नहीं चाहिए।

नारद जी ने भगवान की आज्ञा को मानते हुए बहुत सावधानी से बर्तन को लेकर यात्रा शुरू की।
पूरे समय उन्होंने इस बात का ध्यान रखा कि तेल की एक बूँद भी नीचे न गिरे।

 

5. योगिराज जल्द ही
विश्व-पर्यटन करके
लौटे बैकुंठ को
तेल एक बूँद भी उस पात्र से गिरा नहीं
उल्लास मन में भरा था।
यह सोचकर तेल का रहस्य एक
अवगत होगा नया ।

शब्दार्थ:

योगिराज = नरदजी । विश्व = संसार, दुनिया । पर्यटन = भ्रमण, सैर । बैकुंठ =  विष्णुलोक । उल्लास = खुशी । रहस्य = भेद । अवगत = मालूम ।

संदर्भ:

उपरोक्त पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक साहित्य मेला की ‘प्रियतम’ नामक कविता से ली गई हैं। इस कविता के प्रसिद्ध कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।

प्रसंग:

इस कविता में कवि ने भगवान विष्णु और नारद जी से जुड़ी एक पुरानी कहानी के माध्यम से यह बताया है कि जो व्यक्ति अपने काम और जिम्मेदारी को ईमानदारी से निभाता है, वही सबसे अच्छा और भगवान का सच्चा भक्त होता है।

व्याख्या:
नारद जी, जो एक महान योगी और भक्त हैं, बहुत जल्दी पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस भगवान विष्णु के पास लौट आए।

उनके मन में खुशी थी, क्योंकि उन्होंने बहुत सावधानी से बर्तन को संभाला और तेल की एक भी बूँद नहीं गिरने दी
अब उनके मन में उत्साह और जिज्ञासा थी कि भगवान विष्णु उन्हें इस काम का रहस्य बताएँगे – यानी यह काम उन्होंने क्यों करवाया था और उस किसान से इसका क्या संबंध है।

 

6. नारद को देखकर विष्णु भगवान ने
बैठाया स्नेह से
कहा, “यह उत्तर तुम्हारा यहीं आ गया
बतलाओ, पात्र लेकर जाते समय कितनी बार
नाम इष्ट का लिया ?”
“एक बार भी नहीं,”
शंकित हृदय से कहा नारद ने विष्णु से-

“काम तुम्हारा ही था
ध्यान उसी में लगा रहा
नाम फिर क्या लेता और ?”

शब्दार्थ:

स्नेह = प्यार । पात्र = बर्तन । इष्ट = ईश्वर, भगवान ।  शंकित = डरा हुआ , शंकायुक्त । हृदय = मन ।

संदर्भ:

उपरोक्त पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक साहित्य मेला की ‘प्रियतम’ नामक कविता से ली गई हैं। इस कविता के प्रसिद्ध कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।

प्रसंग:

इस कविता में कवि ने भगवान विष्णु और नारद जी से जुड़ी एक पुरानी कहानी के माध्यम से यह बताया है कि जो व्यक्ति अपने काम और जिम्मेदारी को ईमानदारी से निभाता है, वही सबसे अच्छा और भगवान का सच्चा भक्त होता है।

व्याख्या:
जब नारद जी पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करके भगवान विष्णु के पास लौटे, तो भगवान ने उन्हें प्रेम और आदर से बैठाया।

भगवान विष्णु ने मुस्कराते हुए कहा –
“नारद जी, आपके प्रश्न का उत्तर अब मिल गया है।
आप खुद ही बताइए – जब आप तेल से भरा हुआ बर्तन लेकर यात्रा कर रहे थे, तो आपने कितनी बार अपने इष्ट देव (भगवान) का नाम लिया?”

यह सुनकर नारद जी थोड़े परेशान और सोच में पड़ गए। उन्होंने शर्मीले और सोचते हुए उत्तर दिया –
“मैंने तो एक बार भी नाम नहीं लिया, क्योंकि मेरा पूरा ध्यान उस काम पर था जो आपने मुझे दिया था।
मैं यह देख रहा था कि तेल की एक भी बूँद नीचे न गिरे, इसलिए नाम लेने का समय ही नहीं मिला।”

 

7. विष्णु ने कहा, “नारद !
उस किसान का भी काम
मेरा दिया हुआ है
उत्तरदायित्व भी लादे हैं,
एक साथ सबको निभाता और
काम करता हुआ
नाम भी वह लेता है,

इसी से है प्रियतम।”
नारद लज्जित हुए
कहा, “यह सत्य है।”

शब्दार्थ:

उत्तरदायित्व = = जिम्मेदारी । लादे = बोझ। प्रियतम = सबसे प्रिय । लज्जित = शर्मिंदा होना ।

 

संदर्भ:

उपरोक्त पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक साहित्य मेला की ‘प्रियतम’ नामक कविता से ली गई हैं। इस कविता के प्रसिद्ध कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।

प्रसंग:

इस कविता में कवि ने भगवान विष्णु और नारद जी से जुड़ी एक पुरानी कहानी के माध्यम से यह बताया है कि जो व्यक्ति अपने काम और जिम्मेदारी को ईमानदारी से निभाता है, वही सबसे अच्छा और भगवान का सच्चा भक्त होता है।

व्याख्या:
भगवान विष्णु ने नारद जी से शांत भाव से कहा –
“जिस तरह मैंने तुम्हें तेल से भरे बर्तन के साथ यात्रा का काम दिया था, उसी तरह उस किसान को भी मैंने उसका काम दिया है
वह किसान अपने खेतों और घर-परिवार की बहुत सारी जिम्मेदारियाँ निभाता है।

इतनी जिम्मेदारियों के बीच भी वह दिन में तीन बार राम का नाम लेता है
इसलिए वह किसान ही मेरा सबसे प्रिय और सच्चा भक्त है, क्योंकि वह कर्तव्य निभाते हुए भी भगवान को नहीं भूलता।”

यह सुनकर नारद जी को अपनी गलती का एहसास हुआ
वे शर्मिंदा हो गए और बोले –
“भगवान, यह बात बिलकुल सत्य है।”
इस तरह नारद जी ने सच्चाई को स्वीकार कर लिया

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