यदि फूल नहीं बो सकते तो कविता का व्याख्या क्लास 8 ।। Yadi Phool Nahi Bo Sakte To Kavita Ka vyakhya Class 8 

यदि फूल नहीं बो सकते तो कविता का व्याख्या क्लास 8 ।। Yadi Phool Nahi Bo Sakte To Kavita Ka vyakhya Class 8 

यदि फूल नहीं बो सकते तो कविता का व्याख्या क्लास 8 ।। Yadi Phool Nahi Bo Sakte To Kavita Ka vyakhya Class 8 

आप सभी का इस आर्टिकल में स्वागत है आज हम इस आर्टिकल के माध्यम यदि फूल नहीं बो सकते तो कविता का व्याख्या क्लास 8 को पढ़ने जा रहे हैं। जो पश्चिम बंगाल के सरकारी विद्यालय के कक्षा 8 के पाठ 5 यदि फूल नहीं बो सकते तो  से लिया गया है। तो चलिए यदि फूल नहीं बो सकते तो कविता का व्याख्या क्लास 8, Yadi Phool Nahi Bo Sakte To Kavita Ka vyakhya Class 8 को देखें-

रामेश्वर शुक्ल अंचल का जीवन परिचय

कवि परिचय – रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’

रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ का जन्म 1 मई 1915 को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के किशनपुर गाँव में हुआ था। उनके पिता पंडित मातादीन शुक्ल थे, जो ‘छात्र-सहोदर’ पत्रिका के संपादक थे।

अंचल जी ने पढ़ाई पूरी कर जबलपुर विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया और साथ ही कविता, कहानी और उपन्यास लेखन में भी लगे रहे। वे छायावाद युग के अंतिम दौर के कवि थे, लेकिन बाद में उन्होंने प्रगतिशील और मार्क्सवादी विचारधारा से जुड़ी रचनाएँ भी लिखीं।

उनकी भाषा में नई उपमाएँ और विशेषणों का सुंदर प्रयोग देखने को मिलता है।

प्रमुख काव्य-संग्रह:

  • मधुलिका
  • अपराजिता
  • किरणबाला
  • करील
  • लाल चुनर
  • वर्षांत के बादल
  • विराम-चिह्न

कहानी-संग्रह:

  • तारे
  • यह वह बहुतेरे

उपन्यास:

  • चढ़ती धूप
  • नई इमारत
  • उल्का
  • मारु प्रदीप

उनकी रचनाओं को ‘रामेश्वर शुक्ल अंचल समग्र’ में संकलित किया गया है।

उन्हें कई सम्मानों से नवाज़ा गया, जैसे:

  • जबलपुर विश्वविद्यालय से डी.लिट् की मानद उपाधि,
  • उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से पुरस्कार,
  • हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा साहित्य वाचस्पति सम्मान,
  • और राष्ट्रपति द्वारा विशेष सम्मान

यदि फूल नहीं बो सकते तो कविता का व्याख्या

1. यदि फूल नहीं बो सकते, तो काँटे कम से कम मत बोओ।
है अगम चेतना की घाटी, कमजोर बड़ा मानव का मन,
ममता की शीतल छाया में होता कटुता का स्वयं शमन।
ज्वालाएँ जब धुल जाती हैं, खुल-खुल जाते हैं मुँदे नयन,
होकर निर्मलता में प्रशांत बहता प्राणों का क्षुब्ध पवन।
संकट में यदि मुसका न सको, भय से कातर हो मत रोओ।
यदि फूल नहीं बो सकते, तो काँटे कम से कम मत बोओ।
शब्दार्थ :
  • अगम – कठिन, पहुँच से बाहर
  • कटुता – कड़वाहट, अप्रियता
  • चेतना – आत्मा, ज्ञान शक्ति, समझ
  • शमन – निवारण, शांत करना
  • घाटी – नीचे या भीतर का स्थान
  • ज्वालाएँ – जलन, क्रोध या ताप की लपटें
  • ममता – प्रेम, अपनापन
  • प्रशांत – शांत, ठंडा
  • क्षुब्ध – बेचैन, व्याकुल
  • कातर – भयभीत, दुखी
संदर्भ –

यह पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘साहित्य मेला’ के ‘यदि फूल नहीं बो सकते तो’ नामक पाठ से ली गई हैं। इस कविता के रचनाकार श्री रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ हैं।

प्रसंग –

इन पंक्तियों में कवि यह संदेश दे रहे हैं कि यदि हम किसी की भलाई नहीं कर सकते तो कम से कम किसी का नुकसान या बुरा तो न करें।

व्याख्या –

इस कविता में कवि ने मनुष्य को एक बहुत जरूरी और काम की बात बताई है। वे कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति दूसरों का अच्छा नहीं कर सकता, तो उसे किसी का नुकसान भी नहीं करना चाहिए।

मनुष्य की चेतना यानी उसकी समझ और सोच की गहराई बहुत कठिन और गूढ़ होती है, लेकिन उसका मन कमजोर होता है। जब हम एक-दूसरे के प्रति ममता और प्रेम का भाव रखते हैं, तो आपसी कटुता और नफरत खुद-ब-खुद दूर हो जाती है।

जब मन की ज्वालाएं यानी कठोरता और क्रोध शांत हो जाते हैं, तब हमें चीजें साफ-साफ दिखाई देने लगती हैं और हमारा मन भी शुद्ध और शांत हो जाता है।

अगर कठिन समय में हम मुस्कराना नहीं जानते, तो कम से कम डर के कारण रोएं भी नहीं।
हमें हर परिस्थिति में धैर्य रखना चाहिए।
यदि हम दूसरों के जीवन में खुशियाँ नहीं भर सकते, तो कम से कम उनके जीवन में दुख और तकलीफें भी न बढ़ाएँ।

2. हर सपने पर विश्वास करो, लो लगा चाँदनी का चंदन,
मत याद करो, मत सोचो – ज्वाला में कैसे बीता जीवन,
इस दुनिया की है रीति यही – सहता है तन, बहता है मन,
सुख की अभिमानी मदिरा में जो जाग सका, वह है चेतन,
इसमें तुम जाग नहीं सकते, तो सेज बिछाकर मत सोओ।
यदि फूल नहीं बो सकते, तो काँटे कम से कम मत बोओ।
शब्दार्थ :
  • सपना – कल्पना, भावना
  • अभिमानी – घमंडी, गर्व करने वाला
  • ज्वाला – आग, दुख-दर्द भरे दिन
  • चेतन – सजग, बुद्धिमान
  • रीति – परंपरा, तरीका
  • मदिरा – शराब (यहाँ सुख का प्रतीक)
संदर्भ –

इस कविता की पंक्तियाँ श्री रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ द्वारा रचित पाठ ‘यदि फूल नहीं बो सकते तो’ से ली गई हैं।

प्रसंग :

इसमें कवि ने यह संदेश दिया है कि हमेशा अपने सपनों और उम्मीदों पर विश्वास करें, और पुराने दुःखों को भुलाकर आगे बढ़ें

व्याख्या :

इन पंक्तियों में कवि मनुष्य को यह सलाह देते हैं कि वह अपने सपनों और कल्पनाओं पर विश्वास करे। जीवन में आशा और विश्वास का होना जरूरी है। कवि कहते हैं कि जो बीत गया है — यानी अतीत की दुखभरी बातें — उन्हें बार-बार याद करने से कोई लाभ नहीं।

दुनिया की यही रीति (परंपरा) है कि शरीर दुःख सहता है और मन अंदर ही अंदर बेचैन रहता है
जब लोग सुख में होते हैं, तो वे अक्सर घमंड में आकर अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं, लेकिन जो व्यक्ति उस समय भी जागरूक और सजग रहता है, वही वास्तव में चेतन यानी समझदार होता है।

यदि कोई व्यक्ति सुख में चेतना और कर्तव्यबोध नहीं रख सकता, तो उसे आराम से जीने का कोई हक नहीं
अर्थात, यदि आप अच्छे कार्य (फूल) नहीं कर सकते, तो बुरे कार्य (काँटे) भी मत कीजिए

3. पग-पग पर शोर मचाने से मन में संकल्प नहीं जमता,
अनसुना-अचीन्हा करने से संकट का वेग नहीं कमता,
संशय के सूक्ष्म कुहासों में विश्वास नहीं क्षण-भर रमता,
बादल के घेरों में भी तो जय-घोष न मारुत का थमता,
यदि बढ़ न सको विश्वासों पर, साँसों के मुरदे मत ढोओ,
यदि फूल नहीं बो सकते, तो काँटे कम से कम मत बोओ।
शब्दार्थ :
  • सूक्ष्म – बहुत बारीक या हल्का
  • कुहासा – कोहरा, धुंध
  • संकल्प – पक्का निश्चय या दृढ़ इच्छा
  • वेग – गति या तेजी
  • संशय – संदेह, शंका
  • मारुत – वायु, तेज हवा
संदर्भ –

इस कविता की पंक्तियाँ श्री रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ द्वारा रचित पाठ ‘यदि फूल नहीं बो सकते तो’ से ली गई हैं।

प्रसंग :

इसमें कवि ने मनुष्य को दृढ़ इच्छाशक्ति, स्पष्ट सोच, और सकारात्मक विश्वास बनाए रखने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या :

इन पंक्तियों में कवि यह बताते हैं कि जो व्यक्ति हर कदम पर हल्ला मचाता है, शिकायत करता है, उसके मन में कभी दृढ़ निश्चय नहीं बन पाता।
अगर हम किसी संकट को अनदेखा या अनसुना कर देते हैं, तो उसका प्रभाव या खतरा कम नहीं होता, बल्कि उसे सामने आकर साहस से सामना करना चाहिए।

कवि आगे कहते हैं कि मन में यदि संदेह भरा हो, तो उसमें विश्वास नहीं टिकता। जिस मन में शंका या भ्रम होता है, वह कभी ठहर नहीं सकता।

फिर वे एक सुंदर तुलना करते हैं – जैसे तेज हवा (मारुत) बादलों से घिरी होने पर भी रुकती नहीं, वैसे ही जो व्यक्ति साहसी और संकल्पबद्ध होता है, उसकी विजय की आवाज कोई संकट या बाधा नहीं रोक सकती।

अंत में कवि कहते हैं कि अगर आप विश्वास और आत्मबल से आगे नहीं बढ़ सकते, तो व्यर्थ की साँसें लेकर जीवन मत घसीटिए
यदि आप अच्छे कार्य (फूल) नहीं कर सकते, तो कृपया बुरे कार्य (काँटे) भी मत कीजिए

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