balak ke vikas mein vanshanukram ka prabhav (बालक के विकास में वंशानुक्रम का प्रभाव)


बालक के विकास पर वंशानुक्रम का प्रभाव या बालक के विकास में वंशानुक्रम का महत्व:-

१. मूल शक्तियों पर प्रभाव:-

थार्नडाइक का मत है कि बालक के मूल शक्तियों का प्रधान कारण उसका वंशानुक्रम है वंशानुक्रम के कारण जन्मजात क्षमताओं में अंतर होता है। शिक्षक इस बात को ध्यान में रखकर कम प्रगति करने वाले बालकों को अधिक प्रगति करने में सहयोग दे सकते हैं।

२. शारीरिक लक्षणों (गुणों) पर प्रभाव:-

वंशानुक्रम के कारण बालकों में शारीरिक विभिन्नताएं होती है जैसे बच्चों की लंबाई, हड्डियां, दांत, रंग चेहरा, बालों का स्वरूप तथा आंखों का रंग।
शिक्षक इस ज्ञान को जानकर उनके शारीरिक विकास में सहयोग दे सकते हैं।

३. बुद्धि पर प्रभाव:-

मनोवैज्ञानिकों का मत है कि बुद्धि के सृष्टिता का कारण प्रजाति है। यही कारण है कि अमेरिका के श्वेत प्रजाति अफ्रीका के नीग्रो प्रजाति से श्रेष्ठ हैं इसी प्रकार भारतीय समाज में भी ब्राह्मण प्रजाति में अध्ययन शीलता क्षत्रियों में युद्ध प्रियता का गुण अधिक दिखाई देता है। वंशक्रम पूर्वजों के बुद्धि तत्व का हस्तांतरण भी बालक में करता है। प्रतिभा संपन्न साधारण एवं निम्न तथा हीन बुद्धि के लोग जन्मजात होते हैं। ऐसे बालको में वातावरण कम ही संशोधन करता है।
शिक्षा वंशक्रम के ज्ञान से अवगत होकर बालक के विकास में योगदान दे सकता है।

४. व्यवसायिक योग्यता पर प्रभाव:-

कैटल का मत है की वंशानुक्रम के कारण बालक में विशेष प्रकार की योग्यताओं का विकास होता है जिसके कारण विभिन्न विषयों में उसकी योग्यता कम क्या अधिक दिखाई देती है। जैसे ब्राह्मण पूजा पाठ करने में निपुण होते हैं मड़वाड़ी व्यवसाई में निपुर्ण होते हैं।
अतः वंश क्रम के ज्ञान से शिक्षक बालकों की विभिन्न व्यवस्थाओं में रुचि का अध्ययन करके इन के अनुरूप शिक्षा व्यवस्था कर इनके विकास में सहयोग कर सकता है।

५. व्यक्तिगत विभिन्नता पर प्रभाव:-

वंशानुक्रम व्यक्तिगत विभिन्नता का सबसे महत्वपूर्ण कारण है रूसो पीयरसन एवं डाल्टन ऐसा मानना है कि व्यक्तियों की शारीरिक मानसिक एवं चारित्रिक विभिन्नता का एकमात्र कारण उसका वंशानुक्रम है।
शिक्षक इन विभिन्नताओं का अध्ययन करके इन के अनुरूप शिक्षा का आयोजन कर सकता है।

६. सामाजिक विकास पर प्रभाव:-

विनशिप का मत है कि गुणवान प्रतिष्ठित माता-पिता की संतान प्रतिष्ठा प्राप्त करती है उदाहरण के रूप में हम देख सकते हैं नेता, अभिनेता ऐसे माता-पिता की संतान भी नेताएवं अभिनेता बनकर मन प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं जैसे पृथ्वीराज कपूर के वंशज स्वर्गीय राजीव गांधी एवं सोनिया गांधी के पुत्र राहुल गांधी।
शिक्षक बालक के वंशानुक्रम के ज्ञान से उसके विशिष्ट योग्यताओं एवं क्षमताओं को पहचान कर उनके विकास में योगदान दे सकता है।

७. चरित्र पर प्रभाव:-

डगडेल का मत है कि चरित्रहीन माता पिता की संतान चरित्रहीन होती हैं शिक्षक अपने छात्रों की सही जानकारी रखकर बुरी प्रवृत्तियों को सुधारने या बदलने में सहयोग कर सकता है और उसकी अच्छी प्रवृत्तियों को उभार कर उसे आगे बढ़ा सकता है जैसे चोर पिता के बालक को सही शिक्षा एवं उचित मार्गदर्शन द्वारा चोर बनने से रोका जा सकता है।

८. सीखने की क्षमता पर प्रभाव:-

वंशानुक्रम के कारण बालक के सीखने की योगिता में अंतर होता है। गोडार्ड ने कालीकट नामक एक सैनिक के वंशजों का अध्ययन करके यह सिद्ध किया कि मंदबुद्धि वाले माता-पिता की संतान मंदबुद्धि और तीव्र बुद्धि माता पिता की संतान तीव्र बुद्धि वाली होती है।
शिक्षक इस जान से अवगत होकर मंद एवं तीव्र बुद्धि वाली बालकों की क्षमता अनुसार शिक्षण विधियां पद्धतियों का प्रयोग करके बालक के विकास में अपना सहयोग दे सकता है।

९. विशिष्ट योग्यता पर प्रभाव:-

बालकों को वंशानुक्रम से कुछ प्रवृतियां प्राप्त होती है जो वांछनीय और अवांछनीय जो प्रकार की होती है बालक के शारीरिक, मानसिक लक्षण उनके खेलकूद संबंधी योग्यता गणित संबंधी कुशलता नेतृत्व का गुण यह सभी बातें उसके वंशानुक्रम पर निर्भर करती है। शिक्षक बालकों में वांछनीय प्रवृत्तियों का वामन या रूपांतरण कर सकता है। वह बालक को उसके मानसिक स्तर के अनुरूप आगे बढ़ा सकता है।

१०.स्वभाव पर प्रभाव:- 

माता पिता के स्वभाव संतान में वंश ग्राम के कारण होते हैं। आन्तरिक प्रेरक तत्व तथा संवेगों का निर्धारण वंशक्रम के द्वारा होता है। इनसे बालक के व्यवहार का निश्चित स्वरूप होता है।

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