महात्मा गांधी के शैक्षिक विचार, शिक्षा का उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शैक्षिक चिंतान एवं सिद्धांत, महात्मा गांधी के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिये, mahatma gandhi ka shaikshik yogdan, mahatma gandhi ke shaikshik vichar, gandhi ji ka shiksha darshan
गांधी जी का जीवन परिचय
हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात राज्य के पोरबंदर जिले के एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद गाँधी एवं माता का नाम पुतलीबाई था। 13 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह कस्तूरबा के साथ हुआ। सन् 1887 ईस्वी में मैट्रिक की परीक्षा पास की। श्यामल दास कॉलेज भावनगर में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए दाखिला लिये। कॉलेज शिक्षा में मन लगने के कारण उन्होंने बैरिएट्रिक की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए। 1891 बैरिस्ट्रि पास करके भारत लौटे। भारत लौटने के बाद उन्होंने वकालत शुरू किए। उन्हें इस काम में भी विशेष सफलता नहीं मिली फिर गांधीजी 1893 में दक्षिण अफ्रीका गये। वहां उसका वास्तविक जीवन प्रारंभ हुआ वह वहां भारतीयों की दशा सुधारने के लिए आंदोलन चलाये। वहां उन्होंने सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों को व्यवहारिक रूप प्रदान किये। वहां वे 1914 तक संघर्ष पूर्ण जीवन व्यतीत किते और उनको उसमें सफलता भी मिले फिर वे इंग्लैंड होते हुए 1914 में भारत लौट आए यहां आकर वे भारतीय राजनीति में प्रवेश किए और अपने जीवन के अंत तक उन्होंने भारतीय राष्ट्रीयता आंदोलन का नेतृत्व किया। इनके नेतृत्व के फल स्वरूप भारतीय राजनीति में सत्य एवं अहिंसा को महत्वपूर्ण स्थान मिला। गांधी के नेतृत्व में भारत में 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त की। इस महान दार्शनिक राजनीतिक समाज सुधारक एवं शिक्षा शास्त्री का 30 जनवरी 1948 को देहांत हो गया।
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महात्मा गांधी जी का जीवन दर्शन
गांधी जी की जीवन दर्शन में भारतीय समाज में क्रांति को जन्म दिया। रोमिया रोला का कहना है ” महात्मा गांधी वैसे महान पुरुष से जिन्होंने 30 करोड़ व्यक्तियों को विद्रोह करने के लिए उत्तेजित किये। और ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ें हिला कर रख दिया। गांधी जी के जीवन दर्शन के मुख्य चार तत्व हैं-
१. सत्य
२. अहिंसा
३. निर्भयता
४. सत्याग्रह
१. सत्य:
गांधीजी के लिए सत्य सर्वश्रेष्ठ सिद्धांत था। गांधी जी ने संपूर्ण जीवन को सत्य के लिए प्रयोग किया उनके लिए सत्य और ईश्वर एक समान था जिस वास्तविकता को गांधीजी जाना और अनुभव किया वह सत्य था। उनका मानना था कि सत्य के माध्यम से ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। उनके अनुसार सत्या का अर्थ है-”बोलने में सत्य, विचारों में सत्य, भाषा में सत्य और कार्य में भी सत्य होना चाहिए।”
२. अहिंसा:
डॉ महावीर प्रसाद का कथन है ”गांधी जी ने सच्चे के सिद्धांत से एक परिणाम निकले वह था सत्य और अहिंसा को एक दूसरे से अलग रखना असंभव है यह एक सिक्के के दो पहलू हैं।” उनका मानना था कि अहिंसा अच्छी भावना और शुद्ध प्रेम है ये हर व्यक्तियों के मन में होनी चाहिए।
३. निर्भयता
निर्भयता के विषय में गांधी जी को कहना है निर्भय का अर्थ है समस्त बढ़िया भय से मुक्त। जैसे बीमारी का भय, मृत्यु का भय, संपत्ति नष्ट का भय, अपने मित्रों से छूटने भय, प्रतिष्ठा खोने का भाव, अनुचित कार्य करने का भय।
४. सत्याग्रह
महात्मा गांधी का जीवन का चौथा आयाम सत्याग्रह है वास्तव में किसी भी बुराई का अहिंसात्मक ढंग से प्रतिशोध या प्रतिकार करना ही सत्याग्रह है। सत्याग्रह में प्रेम को आधार बनाकर शत्रु को सत्य के प्रति जागरूक किया जाता है उसे उनके कर्तव्य एवं कर्म का बोध कराया जाता है सत्याग्रह एक कठिन कार्य है इसके लिए सहानशीलता, आत्मानुशासन, विनय, एवं धैर्य का होना परम आवश्यक है।
गांधी जी के शैक्षिक चिंतान (mahatma gandhi ka shaikshik chintan)
युगपुरुष राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भारत को आजाद करने में ही अपना योगदान नहीं दिया बल्कि उन्होंने एक दूरदर्शी शिक्षा वृत्त के रूप में कर्तव्य एवं कर्म आधारित मूल्य वादी दृष्टिकोण से एक नई शिक्षा योजना की रूप रेखा प्रस्तुत किये उनके द्वारा चलाया गया शिक्षा योजना को बेसिक शिक्षा योजना वर्धा योजना आधारभूत योजना के नाम से जाना जाता है गांधी जी ने शिक्षा को एक व्यापक प्रक्रिया मानते थे वस्तुतः शिक्षा वह है जो व्यक्ति नीहित सभी पक्षों का बहुमुखी विकास करती हैं उनका मानना था कि शरीर मन, हृदय और आत्मा के योग से मानव का विकास होता है। उनका मानना था कि शिक्षा से मनुष्य के शरीर, मन और आत्मा का सर्वोत्तम विकास होता है।
महात्मा गांधी के अनुसार शिक्षा की परिभाषा
महात्मा गांधी ने शिक्षा की परिभाषा इन शब्दों में दी थी:
“By education, I mean an all-round drawing out of the best in child and man – body, mind and spirit.”
“शिक्षा का अर्थ है – बालक या मनुष्य में शरीर, मन और आत्मा में जो सर्वश्रेष्ठ है, उसका सर्वांगीण विकास।”
इस परिभाषा में गांधीजी ने शिक्षा को तीन प्रमुख स्तरों पर देखा:
शारीरिक विकास (Body)
मानसिक विकास (Mind)
आध्यात्मिक विकास (Spirit)
महात्मा गांधी के अनुसार शिक्षा का अर्थ
महात्मा गांधी के अनुसार शिक्षा का अर्थ केवल किताबी ज्ञान या डिग्री प्राप्त करना नहीं है, बल्कि व्यक्ति के शरीर, मन और आत्मा के सर्वांगीण विकास की प्रक्रिया है। वे शिक्षा को जीवन से जोड़कर देखते थे और मानते थे कि सच्ची शिक्षा वह है जो मनुष्य को आत्मनिर्भर, नैतिक, और सेवा-भावी बनाए।
महात्मा गांधी ने शिक्षा की स्पष्ट परिभाषा देते हुए कहा:
“शिक्षा का अर्थ है— शरीर, मन और आत्मा में जो सर्वोत्तम है उसका समन्वित विकास।”
(Education means the all-round drawing out of the best in child and man – body, mind and spirit.)
महात्मा गांधी के शैक्षिक विचार | Mahatma Gandhi’s Educational Philosophy in Hindi
महात्मा गांधी भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता होने के साथ-साथ एक प्रबुद्ध शिक्षाविद् भी थे। उन्होंने शिक्षा को केवल डिग्री प्राप्त करने का माध्यम नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण, आत्मनिर्भरता, और समाज सेवा का साधन माना। उनका शिक्षा दर्शन भारतीय संस्कृति, नैतिक मूल्यों और व्यावहारिक जीवन से गहराई से जुड़ा हुआ था।
इस लेख में हम गांधी जी के प्रमुख शैक्षिक विचारों को विस्तार से समझेंगे।
1. शिक्षा का उद्देश्य – चरित्र निर्माण
गांधी जी के अनुसार शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के चरित्र का निर्माण होना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक शिक्षित व्यक्ति वही है जो सत्य, अहिंसा, दया, करुणा और सेवा जैसे मानव मूल्यों को जीवन में उतार सके।
“शिक्षा वह है जो चरित्र निर्माण करे, मस्तिष्क को विकसित करे और आत्मा को मजबूत करे।” – महात्मा गांधी
2. बुनियादी शिक्षा (Nai Talim) की संकल्पना
1937 में गांधी जी ने “बेसिक एजुकेशन” या “नई तालीम” की परिकल्पना प्रस्तुत की। इसके अंतर्गत उन्होंने शिक्षा को श्रम आधारित, जीवनोपयोगी और व्यावसायिक बनाने पर बल दिया। नई तालीम में छात्र को पढ़ाई के साथ-साथ हुनर (जैसे बुनाई, लकड़ी का काम, कढ़ाई, कृषि आदि) भी सिखाया जाता था ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।
3. सर्वांगीण विकास की शिक्षा
महात्मा गांधी का मानना था कि सच्ची शिक्षा वही है जो व्यक्ति के शारीरिक, बौद्धिक, नैतिक और आत्मिक विकास को एक साथ आगे बढ़ाए। उन्होंने शिक्षा को केवल पाठ्यपुस्तकों तक सीमित न रखकर व्यक्तित्व के समग्र विकास से जोड़ा।
4. मातृभाषा में शिक्षा
गांधी जी शिक्षा का माध्यम मातृभाषा को मानते थे। उनका कहना था कि प्रारंभिक शिक्षा बालक को उसकी अपनी भाषा में ही दी जानी चाहिए ताकि वह विषयवस्तु को सही तरीके से समझ सके और उसकी रचनात्मकता विकसित हो सके।
“विद्यार्थी मातृभाषा में सबसे अच्छा सोच सकता है और सीख सकता है।”
5. शिक्षा से आत्मनिर्भरता
गांधी जी का कहना था कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो विद्यार्थी को रोज़गार के लिए दूसरों पर निर्भर न रखे। इसलिए उन्होंने शिक्षा में हस्तशिल्प और व्यावसायिक गतिविधियों को जोड़ा ताकि विद्यार्थी विद्यालय से निकलते ही कुछ कार्य करके आजीविका चला सके।
6. शिक्षा और समाज से संबंध
महात्मा गांधी का शिक्षा दर्शन समाज से गहराई से जुड़ा हुआ था। वे मानते थे कि शिक्षा को समाज की जरूरतों और समस्याओं से जोड़ा जाना चाहिए। बच्चों को सामाजिक सेवा, पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता और सहयोग जैसे विषयों से जोड़कर उन्हें एक जिम्मेदार नागरिक बनाना चाहिए।
7. अनिवार्य और नि:शुल्क शिक्षा
गांधी जी ने मांग की थी कि 6 से 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा दी जाए। उन्होंने शिक्षा को हर नागरिक का मौलिक अधिकार माना और यह भी कहा कि इसमें समानता होनी चाहिए – चाहे वह गरीब हो या अमीर।
निष्कर्ष (Conclusion)
महात्मा गांधी के शैक्षिक विचार आज के युग में भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे। उनका शिक्षा दर्शन हमें सिखाता है कि शिक्षा केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि मानवता, आत्मनिर्भरता और सामाजिक उत्तरदायित्व को विकसित करने का माध्यम है।
वर्तमान शिक्षा प्रणाली को यदि गांधी जी के सिद्धांतों के अनुरूप रूपांतरित किया जाए, तो यह न केवल रोजगार योग्य युवाओं को तैयार करेगी, बल्कि सशक्त और नैतिक समाज की नींव भी रखेगी।
गांधीजी के शिक्षा का उद्देश्य, गांधी जी के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य
गांधी जी का उद्देश्य शिक्षा के क्षेत्र में आदर्शवादी और प्रयोगवाद था आदर्शवादी के दृष्टिकोण के अनुरूप गांधी सर्वोच्च उद्देश्य के रूप में आत्मबोध कराना शिक्षा का प्रधान उद्देश्य मानते थे उनका मानना था कि आत्मा का प्रक्षेपण अपने आप में महत्व रखता है। गांधी जी ने शिक्षा के द्वारा आत्मा चरित्र निर्माण और ईश्वरीय ज्ञान की ओर बढ़ने की आस्था रखते थे। आत्मबोध के उद्देश्य से जीवन में चरम लक्ष्य मॉल की प्राप्ति कर सकता है। प्रयोगवादी विचारधारा के अनुकूल गांधीजी शिक्षा के तत्कालीन उद्देश्य वाह है जो किसी भी देशकाल परिस्थिति में महत्व रखता है उद्देश्यों के अंतर्गत महात्मा गांधी के निम्न उद्देश्य हैं।
१. चरित्र निर्माण:
शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य चरित्र का निर्माण होना चाहिए। जिस बच्चे में चरित्र का निर्माण न हो सके वहां शिक्षा का उद्देश्य असफल हो जाता है। शिक्षा एक बोझ नहीं है बल्कि इसके द्वारा हम अपने जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं। अपने अंदर के आत्मबल को बढ़ा सकते हैं अपने आप में आत्मा विश्वास जगा सकते हैं।
२. जीविकोपार्जन की क्षमता:
शिक्षा केवल चरित्र निर्माण के लिए ही नहीं बल्कि अपने जीविकोपार्जन की क्षमता को बढ़ाने में भी मदद करती हैं। शिक्षा के बिना हम जीविकोपार्जन का सही दिशा ढूंढने में असफल होते हैं। शिक्षा ही एक ऐसा धन है जो हमारे जीवन को हर प्रकार की कठिनाइयों से बचाता है और अपने जीवन को एक बेहतर जीवन बनाने में मदद करता है।
३. सांस्कृतिक विकास:
प्राचीन काल के सांस्कृतिक या रीति रिवाज आज के आधुनिक युग में देखने को नहीं मिलते हैं शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जो हम अपने सांस्कृतिक को बनाए रख सकते हैं और इसका विकास कर सकते हैं।
४. संगति पूर्ण विकास :
शिक्षा का एक उद्देश्य यहां पर होना चाहिए कि बालक में संगति का विकास हो सके। उनमें ऐसी भावना घर ना बनाएं जो दूसरों को कष्ट दे बल्कि उनमें संगति की ऐसी भावना हो कि वे देश एवं अपने आस पड़ोस के महलों को समझ सके।
५. व्यक्तिगत और सामाजिक उद्देश्य:
शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बालक को एक बेहतर जीवन प्रदान करना है ताकि वे अपने व्यक्तिगत तथा सामाजिक मामलों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले सकें और अपने तथा समाज के बेहतर भविष्य के लिए आगे बढ़ सके। अगर ऐसा ना हो तो शिक्षा का का उद्देश्य पूर्ण नहीं होता।
गांधी जी ने शिक्षा के उद्देश्य को दो भागों में विभाजित किए हैं-
A. तत्कालीन उद्देश्य
B. अंतिम उद्देश्य
A. तत्कालीन उद्देश्य
- बालकों को बड़े होने पर जीविकोपार्जन करने में योग्य बनाना।
- बालकों को अपने व्यवहार में अपने संस्कृति को व्यक्त करने का प्रशिक्षण देना।
- बालक की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों का विकास करना।
- बच्चों का चरित्र निर्माण करना।
- बच्चों में सभी प्रकार के ज्ञान देते हुए उनकी आत्मा को उच्चतर जीवन के लिए तैयार करना।
B. अंतिम उद्देश्य
गांधीजी ने अंतिम उद्देश्य के रूप में निम्नलिखित विषयों को प्रस्तुत किया
- बालक के चरित्र निर्माण के साथ-साथ उनमें सामाजिक विकास भी होना चाहिए जिससे देश का विकास हो सके।
- बालक को इतना मनोबल बना दिया जाना चाहिए कि वे अपना जीविकोपार्जन खुद से कर सके न कि अपने माता पिता पर निर्भर रहे।
- शिक्षा का संबंध संस्कार या नैतिक शिक्षा से भी होनी चाहिए इसके बिना शिक्षा अधूरा है।
गांधी जी की शिक्षा का पाठ्यक्रम, गांधी जी के अनुसार पाठ्यक्रम कैसा होना चाहिए
गांधी जी के पाठ्यक्रम को जीविकोपार्जन बनाने पर बल दिए हैं। उनके अनुसार शिक्षा सिर्फ सैद्धांतिक, पुस्तकीय तथा साहित्यिक नहीं बल्कि जीवन केंद्रित तथा शिल्प केंद्रित होनी चाहिए उनके शिक्षा में निम्न विषयों को स्थान दिया गया है-
१. हस्तशिल्प: कटाई-बुनाई, चमड़े का काम, कृषि, मिट्टी का काम, बागवानी आदि।
२. भाषा: मातृभाषा, राष्ट्रभाषा, प्रादेशिक भाषा आदि।
३. गणित: अंकगणित बीजगणित और रेखा गणित।
४. सामाजिक विज्ञान: इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्र, सामाजिक शास्त्र।
५. विज्ञान संबंधी शिक्षा: भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, प्राणी विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान आदि।
६. कला: संगीत, चित्रकला, नृत्य कला आदि।
७. शारीरिक शिक्षा: खेलकूद, व्यायाम, कुश्ती, ड्रिल आदि।
८. आचरण संबंधी शिक्षा: नैतिक शिक्षा, समाज सेवा, प्रार्थना एवं अन्य क्रियाओं का ज्ञान।
महात्मा गांधी के अनुसार पाठ्यक्रम
महात्मा गांधी के अनुसार पाठ्यक्रम (Curriculum) केवल किताबी ज्ञान या परीक्षा पास करने का माध्यम नहीं होना चाहिए, बल्कि वह ऐसा होना चाहिए जो व्यावहारिक जीवन, नैतिक मूल्यों और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दे। गांधीजी का शिक्षा-दर्शन “नई तालीम” (Basic Education) पर आधारित था, जिसमें पाठ्यक्रम को जीवन, श्रम और सेवा से जोड़ा गया।
महात्मा गांधी के अनुसार पाठ्यक्रम की विशेषताएं
1. श्रम पर आधारित पाठ्यक्रम (Work-Centric Curriculum)
गांधीजी का मानना था कि शिक्षा को उत्पादक कार्यों से जोड़ा जाना चाहिए। उनके अनुसार, कोई न कोई हस्तकला या शारीरिक श्रम (जैसे – बुनाई, सिलाई, खेती, बढ़ईगिरी) को पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाया जाना चाहिए।
- इससे विद्यार्थी आत्मनिर्भर बनते हैं।
श्रम के प्रति सम्मान की भावना विकसित होती है।
सृजनशीलता और व्यावसायिक कुशलता बढ़ती है।
2. मातृभाषा आधारित पाठ्यक्रम
गांधीजी चाहते थे कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो और पाठ्यक्रम भी उसी के अनुरूप तैयार किया जाए। इससे विद्यार्थी विषयों को बेहतर समझ पाते हैं और सोचने-समझने की क्षमता विकसित होती है।
3. नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा
गांधीजी के अनुसार पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा, सत्य, अहिंसा, सेवा, संयम, और आत्म-अनुशासन को विशेष स्थान मिलना चाहिए।
इससे विद्यार्थी चरित्रवान और जिम्मेदार नागरिक बनते हैं।
4. व्यावहारिक और जीवनोपयोगी विषय
पाठ्यक्रम में ऐसे विषयों को शामिल किया जाना चाहिए जो जीवन में काम आएं, जैसे:
- कृषि और कुटीर उद्योग
- स्वास्थ्य और स्वच्छता
- पर्यावरण और प्रकृति का ज्ञान
- सामाजिक सेवा
- आर्थिक समझ और स्थानीय संसाधनों का उपयोग
5. समाजोपयोगी शिक्षा
गांधीजी का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत विकास नहीं, बल्कि समाज की सेवा होना चाहिए। इसलिए पाठ्यक्रम में ऐसे कार्यों को शामिल किया जाना चाहिए जो विद्यार्थियों को समाज से जोड़ें, जैसे – ग्राम सेवा, सफाई अभियान, सहकारिता इत्यादि।
6. मौलिक विषयों के साथ संतुलन
हालांकि गांधीजी श्रम आधारित शिक्षा के पक्षधर थे, पर उन्होंने यह भी माना कि पाठ्यक्रम में गणित, भाषा, विज्ञान, इतिहास, भूगोल आदि विषयों को भी शामिल किया जाना चाहिए — परंतु इन्हें जीवन और श्रम से जोड़कर पढ़ाना चाहिए।
महात्मा गांधी के अनुसार पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए जो न केवल बौद्धिक विकास करे, बल्कि व्यावहारिक दक्षता, नैतिकता, आत्मनिर्भरता और सामाजिक जिम्मेदारी भी विकसित करे। उनका पाठ्यक्रम-दर्शन आज की नई शिक्षा नीति (NEP) के कई पहलुओं से मेल खाता है और शिक्षा को फिर से जीवन-केंद्रित बनाने की प्रेरणा देता है।
गांधी जी के शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धांत
महात्मा गांधी केवल एक राजनीतिक नेता नहीं थे, बल्कि वे एक दूरदर्शी शिक्षाविद् भी थे। उनका शिक्षा दर्शन भारतीय संस्कृति, नैतिकता और आत्मनिर्भरता पर आधारित था। गांधी जी का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञानार्जन नहीं बल्कि व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास होना चाहिए। उनके शिक्षा संबंधी विचार आज भी प्रासंगिक हैं और वर्तमान शिक्षा व्यवस्था को दिशा देने में सहायक हो सकते हैं।
नीचे गांधी जी के शिक्षा दर्शन के मुख्य सिद्धांतों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया है:
1. मूल्य-आधारित शिक्षा (Value-based Education)
गांधी जी का प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत था कि शिक्षा के माध्यम से छात्रों में मानव मूल्य विकसित किए जाएं। उनके अनुसार शिक्षा को बालक के आचरण, व्यवहार और सोच को परिष्कृत करने का माध्यम होना चाहिए। सत्य (Truth), अहिंसा (Non-violence), प्रेम (Love), करुणा (Compassion), सेवा (Service), संयम (Discipline), और आत्मनियंत्रण (Self-control) जैसे मूल्यों को शिक्षा में स्थान दिया जाना चाहिए।
गांधी जी ने कहा था:
“शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य चरित्र निर्माण है।”
2. सर्वांगीण विकास की शिक्षा (Holistic Development)
गांधी जी शिक्षा को केवल मस्तिष्क तक सीमित नहीं मानते थे। उनका मानना था कि एक सच्ची शिक्षा वह है जो व्यक्ति के शरीर (Body), ह्रदय (Heart), मस्तिष्क (Mind) और आत्मा (Soul) — इन सभी का संतुलित विकास करे। इसके लिए उन्होंने बुनियादी शिक्षा (Nai Talim) का प्रस्ताव दिया था जिसमें शारीरिक श्रम, नैतिकता, और आध्यात्मिकता का समावेश था।
उन्होंने कहा था:
“सच्ची शिक्षा वह है जो शरीर, मन और आत्मा — तीनों का विकास करे।”
3. शिक्षा और आत्मनिर्भरता (Education for Self-reliance)
गांधी जी का मानना था कि शिक्षा केवल नौकरी पाने का साधन नहीं होनी चाहिए, बल्कि ऐसी होनी चाहिए जो व्यक्ति को स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बना सके। उन्होंने विद्यार्थियों को हुनर (Skill-based learning) सिखाने पर जोर दिया ताकि वे अपने जीवन यापन के लिए किसी पर निर्भर न रहें।
बुनियादी शिक्षा के अंतर्गत उन्होंने सुझाव दिया कि विद्यार्थी विद्यालय में रहते हुए कुटीर उद्योग जैसे कताई-बुनाई, बढ़ईगिरी, दस्तकारी आदि का अभ्यास करें और उसे जीवन से जोड़ें।
4. व्यावहारिक और जीवनोपयोगी शिक्षा (Practical and Life-oriented Education)
गांधी जी शिक्षा को जीवन की वास्तविक परिस्थितियों से जोड़कर देखना चाहते थे। उनका मानना था कि विद्यालयों में दी जाने वाली शिक्षा का उपयोग जीवन में प्रत्यक्ष रूप से होना चाहिए। इसलिए उन्होंने पाठ्यक्रम को कृषि, उद्योग, स्वास्थ्य, स्वच्छता, और समाज सेवा जैसे विषयों से जोड़ने पर बल दिया।
उनका मानना था कि शिक्षा को सामाजिक और आर्थिक संदर्भों के साथ जोड़ा जाना चाहिए ताकि विद्यार्थी केवल किताबी ज्ञान न प्राप्त करें, बल्कि समाज की समस्याओं को भी समझें और उनका समाधान खोज सकें।
5. नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा (Free and Compulsory Education)
महात्मा गांधी का यह स्पष्ट विचार था कि हर बालक और बालिका को 6 से 14 वर्ष की आयु में अनिवार्य और नि:शुल्क शिक्षा दी जानी चाहिए। वे मानते थे कि यह हर नागरिक का मूल अधिकार होना चाहिए और राज्य का कर्तव्य कि वह सभी बच्चों को समान रूप से शिक्षा उपलब्ध कराए।
गांधी जी का यह दृष्टिकोण आगे चलकर भारत के संविधान के अनुच्छेद 21(A) में भी शामिल किया गया, जिसके तहत प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य और मुफ्त बनाया गया।
6. मातृभाषा में शिक्षा (Education in Mother Tongue)
गांधी जी शिक्षा का माध्यम मातृभाषा को मानते थे। उनका मानना था कि विद्यार्थी जब अपनी भाषा में शिक्षा प्राप्त करता है तो वह विषयों को अधिक गहराई से समझ सकता है। विदेशी भाषा में शिक्षा देना बालकों पर मानसिक बोझ डालता है और उनकी रचनात्मकता को बाधित करता है।
उन्होंने कहा था:
“मातृभाषा में शिक्षा देना ही सच्ची शिक्षा है, अन्यथा वह रटंत ज्ञान बनकर रह जाती है।”
नीचे गांधी जी के शिक्षा दर्शन के सिद्धांतों का संक्षेप विवरण प्रस्तुत किया गया है:
१. शिक्षा बालक एवं बालिकाओं में सभी मानव मूल्यों का विकास करती है।
२. शिक्षा को व्यक्ति के शरीर, ह्रदय, मस्तिष्क और आत्मा का सामंजस्य पूर्ण विकास करती है।
३. शिक्षा बालकों को बेरोजगारी में सुरक्षा प्रदान करती हैं।
४. शिक्षा जीवन की वास्तविक परिस्थितियों में किया जाना चाहिए और इसका संबंध सामाजिक और भौतिक वातावरण से होना चाहिए।
५. संपूर्ण राष्ट्र में प्रत्येक बालक को 6 से 14 वर्ष की नि:शुल्क पर अनिवार्य शिक्षा दी जानी चाहिए।
६. शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए और सभी भाषाओं में इसका स्थान प्रथम होना चाहिए।
महात्मा गांधी के दार्शनिक विचार | Philosophical Thoughts of Mahatma Gandhi in Hindi
महात्मा गांधी केवल स्वतंत्रता संग्राम के महानायक ही नहीं थे, बल्कि एक गहरे दार्शनिक चिंतक भी थे। उनका जीवन और उनके विचार पूरी तरह से सत्य, अहिंसा, आत्मशुद्धि, सेवा और सादगी जैसे मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित थे। उन्होंने अपने विचारों को केवल भाषणों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्हें व्यवहारिक जीवन में उतारा, जिससे वे एक जीवंत दर्शन बन गए।
इस लेख में हम गांधी जी के प्रमुख दार्शनिक विचारों को विस्तार से समझेंगे, जो आज भी सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में मार्गदर्शन करते हैं।
1. सत्य (Truth)
गांधी जी के जीवन का मूलमंत्र था – “सत्य ही ईश्वर है”। वे मानते थे कि सत्य की खोज ही जीवन का परम उद्देश्य है।
उनका दर्शन यह नहीं कहता कि सत्य केवल बोलने में हो, बल्कि वह विचारों, आचरण, और व्यवहार में भी प्रकट होना चाहिए।
“सत्य वह है जिसे आत्मा जानती है, अनुभव करती है और महसूस करती है।”
2. अहिंसा (Non-violence)
गांधी जी ने अहिंसा को केवल शारीरिक हिंसा से दूर रहने तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे विचार, वाणी और व्यवहार की पवित्रता से जोड़ा। उनके अनुसार अहिंसा केवल नकारात्मक शक्ति नहीं, बल्कि एक सक्रिय और रचनात्मक शक्ति है, जो समाज में प्रेम, सहिष्णुता और समरसता को बढ़ावा देती है।
“अहिंसा सबसे बड़ी शक्ति है जो मानवता के पास है।”
3. आत्मबल और आत्मशुद्धि (Self-discipline and Purification)
गांधी जी का मानना था कि कोई भी व्यक्ति जब तक आत्मनियंत्रण और आत्मशुद्धि नहीं करता, तब तक वह सच्ची स्वतंत्रता और शांति प्राप्त नहीं कर सकता। उन्होंने उपवास, प्रार्थना, सादगी और ब्रह्मचर्य को आत्मशुद्धि के साधन के रूप में अपनाया।
4. स्वदेशी और आत्मनिर्भरता (Swadeshi & Self-reliance)
गांधी जी का “स्वदेशी” विचार केवल विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार तक सीमित नहीं था, बल्कि वह एक दार्शनिक सोच थी — जो व्यक्ति को अपने संसाधनों पर निर्भर रहने, अपने श्रम का सम्मान करने, और स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहन देने का मार्ग दिखाता है।
“जो देश अपने हाथों से अपने लिए उत्पादन नहीं करता, वह कभी स्वतंत्र नहीं रह सकता।”
5. सादगी और संयम (Simplicity & Restraint)
महात्मा गांधी का जीवन सादगी का प्रतीक था। उनका रहन-सहन, पहनावा और भोजन अत्यंत सामान्य था। वे मानते थे कि भौतिक सुख-सुविधाओं की अधिकता मनुष्य को कमजोर और आत्मकेंद्रित बना देती है, इसलिए आत्म-संयम और संतुलन आवश्यक है।
6. सार्वभौमिक भाईचारा (Universal Brotherhood)
गांधी जी का दर्शन सम्पूर्ण मानवता को एक परिवार मानता था। वे किसी भी प्रकार के भेदभाव, जातिवाद, छुआछूत, या नस्लवाद के विरोधी थे। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में नस्लभेद के विरुद्ध संघर्ष किया और भारत में हरिजन उद्धार के लिए जीवनभर प्रयासरत रहे।
7. धर्म और धर्मनिरपेक्षता
गांधी जी धार्मिक थे, परंतु सांप्रदायिक नहीं। वे सभी धर्मों में एकता, प्रेम और समानता के तत्वों को देखते थे। उनका मानना था कि धर्म का सच्चा उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और सेवा भावना है।
“सच्चा धर्म वह है जो हमें दूसरों की सेवा करना सिखाए।”
8. सत्याग्रह – नैतिक संघर्ष का मार्ग
गांधी जी ने राजनीतिक और सामाजिक अन्याय के विरुद्ध सत्याग्रह का सिद्धांत दिया, जो अहिंसक संघर्ष का एक क्रांतिकारी दर्शन था। यह केवल विरोध का तरीका नहीं था, बल्कि आत्मबल, नैतिकता और संयम का प्रदर्शन भी था।
निष्कर्ष (Conclusion)
महात्मा गांधी के दार्शनिक विचार केवल ग्रंथों या भाषणों में नहीं हैं, बल्कि उनके जीवन के हर क्षण में परिलक्षित होते हैं। उनका दर्शन आज के सामाजिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन के लिए एक प्रकाश स्तंभ की तरह है। अगर हम उनके सिद्धांतों को अपनाएं, तो हम एक सत्य, अहिंसा और करुणा पर आधारित समाज की स्थापना कर सकते हैं।
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