वाइगोत्सकी के सिध्दांत,वाइगोत्सकी का संज्ञानात्मक सिद्धांत, जीवन परिचय, शैक्षिक महत्व, विशेषताएँ, अंतर

वाइगोत्सकी के सिध्दांत,वाइगोत्सकी का संज्ञानात्मक सिद्धांत, जीवन परिचय, शैक्षिक महत्व, विशेषताएँ, अंतर

वाइगोत्सकी के सिध्दांत,वाइगोत्सकी का संज्ञानात्मक सिद्धांत

वाइगोत्सकी का जीवन परिचय

लेव सिमनोविच वाइगोत्सकी (Lev Semyonovich Vygotsky) विकासात्मक मनोविज्ञान के क्षेत्र में एक अत्यंत प्रभावशाली और प्रतिभाशाली मनोवैज्ञानिक थे। उनका जन्म सन् 1896 में रूसी साम्राज्य के ओरशा (वर्तमान में बेलारूस) में हुआ था। मात्र 37 वर्ष की अल्पायु में, सन् 1934 में उनका निधन हो गया, किंतु इतने छोटे से जीवनकाल में उन्होंने मनोविज्ञान विशेषतः संज्ञानात्मक विकास के क्षेत्र में क्रांतिकारी योगदान दिए। वाइगोत्सकी ने बच्चों के मानसिक विकास को समझने के लिए एक विशिष्ट सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धांत (Socio-Cultural Theory) प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने यह स्पष्ट किया कि बच्चों का संज्ञानात्मक विकास अकेले नहीं होता, बल्कि यह समाज, संस्कृति और भाषा के प्रभाव से गहराई से जुड़ा होता है।

वाइगोत्सकी असाधारण रूप से मेधावी थे; उन्होंने मात्र 17 वर्ष की आयु में पीएचडी कर ली थी और जल्दी ही रूस की विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्यापन कार्य करने लगे। हालांकि शीत युद्ध के समय उनके विचारों को पश्चिमी दुनिया में उतना महत्व नहीं मिला, परंतु कालांतर में जब उनके कार्यों पर ध्यान गया, तो उन्हें व्यापक सराहना प्राप्त हुई और वे आधुनिक शैक्षिक मनोविज्ञान के स्तंभों में गिने जाने लगे।

वाइगोत्सकी संरचनावादी/निर्माणवादी (Constructivist) दृष्टिकोण के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने सामाजिक-सांस्कृतिक निर्माणवाद (Socio-Cultural Constructivism) की अवधारणा प्रस्तुत की, जो जीन पियाजे के संज्ञानात्मक निर्माणवाद (Cognitive Constructivism) के साथ मिलकर शिक्षा और बाल विकास की आधुनिक अवधारणाओं की नींव बनाती है। वाइगोत्सकी के सिद्धांत आज भी शिक्षाशास्त्र, बाल मनोविज्ञान और विकासात्मक अध्ययनों में अत्यंत प्रासंगिक और प्रेरणादायक माने जाते हैं।

वाइगोत्सकी के अनुसार अधिगम के सोपान

वाइगोत्सकी के अनुसार अधिगम (Learning) एक द्विस्तरीय प्रक्रिया है, जिसे वे दो प्रमुख सोपानों में विभाजित करते हैं।

१.अंतर-वैयक्तिक अधिगम (Interpersonal Learning)

२.अंतःवैयक्तिक अधिगम (Intrapersonal Learning)

वाइगोत्सकी के द्वारा बताए गए अधिगम के सोपान को विस्तार से जानते हैं –

१.अंतर-वैयक्तिक अधिगम (Interpersonal Learning)

वाइगोत्सकी के अनुसार यह अधिगम समाज में होता है (Within Society), जिसमें बालक सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों के माध्यम से ज्ञान अर्जित करता है। जब बालक को समाज में संवाद, सहयोग और सहभागिता के अवसर मिलते हैं, तो वह सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ में ज्ञान अर्जन (Acquisition of Knowledge within Social Context) करता है। इस प्रक्रिया में वह दूसरों के साथ अंतःक्रिया (Interaction) करता है और अनुभवों व सूचनाओं को आत्मसात करता है। वाइगोत्सकी इस प्रक्रिया को ही अंर्त-वैयक्तिक अधिगम कहते हैं। इस सोपान में सामाजिक संदर्भ (Social Context), अधिगम का आधार (Basic Learning) और भाषा (Language) — ये तीनों महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह चरण बालक के लिए बाहरी दुनिया से संवाद और सीखने का प्राथमिक मंच होता है, जहां से उसके अधिगम की यात्रा शुरू होती है।

2. अंत: वैयक्तिक अधिगम (Intrapersonal Learning)

यह अधिगम प्रक्रिया बालक के अंदर (Within Child) होती है, जिसमें वह स्वयं से अंतःक्रिया (Interaction with Self) करता है। इस चरण में बालक अंतर-वैयक्तिक अधिगम (Interpersonal Learning) से प्राप्त ज्ञान या सूचनाओं को अपने पूर्व के विचारों (Thoughts), अनुभवों (Experiences) और संकल्पनाओं (Concepts) के साथ जोड़ते हुए ज्ञान का पुनर्निर्माण करता है। इस आंतरिक प्रक्रिया के माध्यम से बालक अपने संज्ञानात्मक विकास और चिंतन को गहराई देता है।

वाइगोत्सकी के अनुसार, संज्ञानात्मक विकास का आधार अंत: वैयक्तिक अधिगम (Intrapersonal Learning) है। छोटे बच्चे जब इस प्रक्रिया को बोल-बोलकर करते हैं, तो वाइगोत्सकी इसे निजी भाषण (Private Speech) कहते हैं, जो आगे चलकर आंतरिक संवाद में परिवर्तित हो जाता है। यही निजी भाषण, बालक के विचारों को स्पष्ट करने और समस्या समाधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

उनका मानना था कि बालक सबसे पहले अपने परिवेश में दूसरों के साथ संवाद और सहभागिता के माध्यम से ज्ञान अर्जित करता है, जिसे वे अंतर-वैयक्तिक अधिगम (Interpersonal Learning) कहते हैं। इस चरण में बालक सामाजिक वातावरण, शिक्षकों, माता-पिता या साथियों के साथ संवाद और सहभागिता के माध्यम से नया ज्ञान प्राप्त करता है। इसके पश्चात् बालक उसी ज्ञान को अपने भीतर आत्मसात करता है, यानी वह ज्ञान बालक के अंदर की मानसिक प्रक्रिया का हिस्सा बन जाता है, जिसे वाइगोत्सकी ने अंतःवैयक्तिक अधिगम (Intrapersonal Learning) कहा है। इस प्रकार, वाइगोत्सकी का अधिगम सिद्धांत यह स्पष्ट करता है कि शिक्षा की प्रक्रिया पहले सामाजिक होती है और बाद में व्यक्तिगत। यह सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि बालकों के अधिगम में समाज और संस्कृति की केंद्रीय भूमिका होती है, और उनका ज्ञान सामाजिक अंतःक्रिया से जन्म लेकर आत्मविकास की दिशा में आगे बढ़ता है।

उदाहरण (Example) – मान लीजिए एक शिक्षक कक्षा में बच्चों को “जलचक्र (Water Cycle)” पढ़ा रहा है। शिक्षक चित्रों, कहानियों और मॉडल के माध्यम से बच्चों को बताता है कि पानी कैसे वाष्पित होता है, बादल बनते हैं और फिर बारिश के रूप में धरती पर गिरता है। यह पूरी प्रक्रिया बच्चों के लिए एक सामाजिक संदर्भ में जानकारी प्राप्त करने का अवसर है, जिसे हम अंतर-वैयक्तिक अधिगम (Interpersonal Learning) कहते हैं।

अब जब बच्चा घर जाकर उसी जलचक्र के बारे में सोचता है—उसे याद करता है कि बारिश क्यों होती है, सोचता है कि उसने गर्मी में बाल्टी में पानी छोड़ दिया था और वह भाप बनकर उड़ गया—तो वह अपने पूर्व अनुभवों और नए ज्ञान के बीच अंतःक्रिया (Interaction) कर रहा होता है। यही है अंतः-वैयक्तिक अधिगम (Intrapersonal Learning), जिसमें बच्चा अपने मन में विश्लेषण करता है और ज्ञान का व्यक्तिगत निर्माण करता है।

बाद में, अगर कोई उससे जलचक्र के बारे में पूछे, तो वह केवल शिक्षक की बातों को नहीं दोहराएगा, बल्कि अपने विचारों, अनुभवों और कल्पना से जोड़कर अपने शब्दों में समझाएगा। यह संपूर्ण प्रक्रिया वाइगोत्सकी के दोनों अधिगम स्तरों का उत्कृष्ट उदाहरण है।

इन्हीं दोनों तरह के अधिगम के आधार पर वाइगोत्सकी अधिगम और विकास की रूपरेखा देते-

अधिगम और विकास की रूपरेखा (Framework of learning and development)-

१. बालक अपने ज्ञान का निर्माण स्वयं करता है 

बालक अपने ज्ञान का निर्माण स्वयं करता है, वह केवल सूचनाओं का निष्क्रिय ग्रहणकर्ता नहीं होता। वाइगोत्सकी के सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टिकोण के अनुसार, अधिगम तब प्रभावी होता है जब बालक को सामाजिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में सीखने के पर्याप्त अवसर मिलते हैं। इसलिए शिक्षक का कार्य केवल सूचना देना नहीं है, बल्कि उसे ऐसा समृद्ध अधिगम वातावरण निर्मित करना चाहिए जहाँ बालक अंर्त-वैयक्तिक अधिगम (Interpersonal Learning) के माध्यम से दूसरों के साथ संवाद और सहभागिता करते हुए ज्ञान अर्जित कर सके। इसके बाद बालक उस ज्ञान का अंतः-वैयक्तिक अधिगम (Intrapersonal Learning) के द्वारा आत्ममंथन करता है और अपने अनुभव, विचारों और पूर्व ज्ञान के साथ अंतः क्रिया करते हुए स्वयं के ज्ञान का निर्माण करता है। यह प्रक्रिया बालक के संज्ञानात्मक विकास को गति देती है और उसे एक स्वतंत्र, सोचने-विचारने वाला तथा रचनात्मक व्यक्तित्व बनाने की दिशा में अग्रसर करती है। अतः शिक्षक का प्रमुख दायित्व यह है कि वह बालक को सीखने की स्वतंत्रता, दिशा और अवसर प्रदान करे – न कि उस पर जबरन ज्ञान थोपे।

२. अधिगम विकास से पहले होता है (learning leads development)

वाइगोत्सकी का यह मत है कि अधिगम विकास से पहले होता है (Learning leads Development)। इस दृष्टिकोण में वे पियाजे के मत से भिन्न हैं। जहाँ पियाजे यह मानते हैं कि संज्ञानात्मक विकास पहले होता है और अधिगम बाद में, वहीं वाइगोत्सकी का मानना है कि बालक पहले सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ में सीखता है और वही अधिगम उसके मानसिक विकास को आगे बढ़ाता है। अर्थात्, अधिगम ही वह प्रेरक शक्ति है जो विकास को उत्प्रेरित करती है। जब बालक सामाजिक वातावरण में बातचीत करता है, समस्याओं को हल करता है और दूसरों के अनुभवों से सीखता है, तो वह केवल ज्ञान प्राप्त नहीं कर रहा होता, बल्कि उसी प्रक्रिया के माध्यम से उसका संज्ञानात्मक विकास भी हो रहा होता है। इस प्रकार, वाइगोत्सकी की दृष्टि में अधिगम विकास का मार्ग प्रशस्त करता है, न कि केवल उसका अनुसरण करता है।

‎३. अधिगम और विकास को सामाजिक -संस्कृतिक संदर्भों से अलग नहीं किया जा सकता। 

वाइगोत्सकी के अनुसार, अधिगम और विकास को सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों से अलग नहीं किया जा सकता। उनके सिद्धांत में अंर्त-वैयक्तिक अधिगम (Interpersonal learning) का महत्व अत्यधिक है, क्योंकि अधिगम का प्रारंभ समाज और संस्कृति से ही होता है। जब बालक समाज में सक्रिय रूप से सामूहिक गतिविधियों में भाग लेता है, तब वही अंर्त-वैयक्तिक अधिगम उसे नई सूचनाओं और ज्ञान का अर्जन करने का अवसर प्रदान करता है। वाइगोत्सकी का मानना है कि अगर सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ न हो, तो अधिगम की प्रक्रिया भी रुक जाएगी। इसलिए, शिक्षा को दैनिक जीवन से जोड़ा जाना चाहिए, ताकि बालक सामूहिक गतिविधियों के माध्यम से अपना ज्ञान प्राप्त कर सके और उसके संज्ञानात्मक विकास में तेजी आ सके। सामाजिक संदर्भ के बिना, अधिगम केवल एक अलगाव प्रक्रिया बन कर रह जाएगा, जो सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर प्रभावी नहीं हो पाएगा।

‎४. भाषा अधिगम और विकास में केंद्रीय भूमिका निभाती है (language play Central role in development) 

वाइगोत्सकी के अनुसार, भाषा अधिगम और विकास में केंद्रीय भूमिका निभाती है। बालक जब अंर्त-वैयक्तिक अधिगम (Interpersonal learning) के माध्यम से सूचनाओं का अर्जन करता है, तो वह भाषा के माध्यम से ही जानकारी प्राप्त करता है। इसके बाद, वह अंत: वैयक्तिक अधिगम (Intrapersonal learning) में इन सूचनाओं पर चिंतन करता है, और यह चिंतन भी भाषा के माध्यम से ही होता है। इस प्रकार, वाइगोत्सकी के अनुसार, सभी अधिगम की प्रक्रियाएं और विकास केवल भाषा के माध्यम से होते हैं। इसलिए, भाषा न केवल ज्ञान अर्जन का एक उपकरण है, बल्कि यह विकास और चिंतन की प्रक्रिया को भी संचालित करती है।

वाइगोत्सकी के सिध्दांत, शिक्षण अधिगम प्रतिमान (Teaching Learning Model)- Vygotsky

(1) समूह क्रियाविधियां (Group Activities)

सभी प्रकार की शिक्षण अधिगम प्रक्रियाएं समूह क्रियाविधियों (Group Activities) में क्रियान्वित होनी चाहिए, क्योंकि समूह क्रियाविधियां हमें तीन महत्वपूर्ण चीजें प्रदान करती हैं:

  1. अंर्त-वैयक्तिक अर्जन के अवसर – समूह क्रियाविधियों में, बच्चों को एक-दूसरे के साथ बातचीत करने और विचारों का आदान-प्रदान करने का अवसर मिलता है, जिससे वे नए ज्ञान और सूचनाएं प्राप्त करते हैं।
  2. अत: वैयक्तिक ज्ञान निर्माण के लिए स्थान – समूह में, हर बालक की एक भूमिका और दायित्व होती है, जो उसे अंत: वैयक्तिक अधिगम (Intrapersonal learning) में संलग्न करता है। इसका अर्थ है कि बच्चों को अपने विचारों पर चिंतन करने का अवसर मिलता है और वे अपने ज्ञान का निर्माण करते हैं।
  3. समाजीकरण (Socialisation) – समूह क्रियाविधियां बच्चों में सहकार (Cooperation), जिम्मेदारियां (Responsibility), परानुभूति (Empathy) और सहयोग (Collaboration) जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक गुणों का विकास करती हैं। इस प्रकार, समूह गतिविधियाँ बच्चों के समाजीकरण की प्रक्रिया को भी बढ़ावा देती हैं।
(2) सहकारी / सहयोगात्मक अधिगम (Collaborative Learning)

यह एक ऐसी अधिगम प्रक्रिया है जिसमें दो या दो से अधिक विद्यार्थी समूह गतिविधियों (Group Activities) के माध्यम से एक दूसरे का सहयोग करते हुए अपने ज्ञान और कौशलों को साझा करते हैं। इस प्रक्रिया में विद्यार्थी एक-दूसरे का आकलन करते हुए सीखते हैं और एक दूसरे से सीखने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हैं।

शिक्षक (Teacher) – सहकारी / सहयोगी अधिगमकर्ता (Cooperative Learner) होता है।

यानी शिक्षक ग्रुप का एक अन्य सदस्य होता है, जो साथी (Friend) के रूप में रहता है और सहकारी अधिगम को संपन्न कराता है। ऐसे शिक्षक को वाइगोत्सकी MKO (More Knowledgeable Other) नाम से संबोधित करते हैं, क्योंकि शिक्षक इस प्रक्रिया में विद्यार्थियों के मार्गदर्शक और सहायक होते हैं।

(3) MKO – More Knowledgeable Other (अधिक संज्ञान वाला साथी)

सहकारी अधिगम की समूह गतिविधियों में हर सदस्य की दो भूमिकाएं होती हैं: Leading (नेतृत्व देना) और Following (अनुसरण करना)। ग्रुप का जो सदस्य जिस क्षेत्र में अधिक ज्ञान (Knowledge) रखता है, उस क्षेत्र से संबंधित गतिविधि में वह नेतृत्व कर रहा होता है, और बाकी सदस्य उसका अनुसरण करते हैं। इसी नेतृत्वकर्ता को MKO (More Knowledgeable Other) कहा जाता है।

  • MKO वह व्यक्ति होता है जो समूह में बालक से अधिक ज्ञान (Knowledge), बोध (Understanding), और कौशल (Skills) रखता हो।
  • सामान्यतः MKO एक शिक्षक, कोच, या वयस्क होता है, लेकिन साथी, उम्र से छोटे व्यक्ति, यहां तक कि किताबें, कंप्यूटर, रेडियो, टीवी आदि भी MKO की भूमिका निभा सकते हैं।

MKO का मुख्य कार्य ज्ञान के हस्तांतरण और समूह के अन्य सदस्यों को सही दिशा में मार्गदर्शन करना होता है।

(4) समीपस्थ विकास का क्षेत्र (ZPD – Zone of Proximal Development)

अधिगम का पूर्व स्तर (Pre level of learning)

  • हमें बच्चे के इस स्तर की पहचान होनी चाहिए क्योंकि बच्चे की जितनी भी लर्निंग होगी वह इसी स्तर से प्रारंभ होगी।
  • यह अधिगम का वह स्तर है जिस स्तर की गतिविधि या समस्या बालकों को देने पर वह आसानी से इसे हल कर लेते हैं बिना किसी की सहायता के।
  • बच्चा अधिगम के किस स्तर को प्राप्त कर चुका है, इसकी पहचान के लिए हम स्थापना आकलन (Placement Assessment) करते हैं।

अधिगम का उत्तर स्तर (Post level of learning) / संभावित स्तर (Expected level)

  • अधिगम का वह स्तर जिस तक हमें बालक को ले जाना है।
  • MKO की सहायता से ZPD में संपन्न हुई शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के बाद बालक जिस स्तर को प्राप्त करेगा वह अधिगम का उत्तर स्तर (Post level of learning) होगा।

पाठ्यक्रम के संदर्भ में ZPD

  • पूर्व अधिगम स्तर और उत्तर अधिगम स्तर के मध्य का अधिगम क्षेत्र जहां समूह गतिविधि के दौरान वास्तविक अधिगम संपन्न होता है, उसे ZPD कहते हैं।

अधिगमकर्ता के संदर्भ में ZPD

  • ZPD अधिगम का वह क्षेत्र है जहां अधिगमकर्ता MKO की सहायता से समूह क्रियाविधियों या प्रदत्त कार्य को करते हुए अधिगम को प्राप्त करता है।

शिक्षक के संदर्भ में ZPD

  • ZPD अधिगम का वह क्षेत्र है जहां शिक्षक अधिगम प्रक्रियाओं के लिए योजना बनाता है, गतिविधियों को डिजाइन करता है और बालकों को सहायक संरचनाएं (Scaffolding) प्रदान करता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का नियोजन ZPD पर निर्भर करता है।

एक शिक्षक कक्षा में गया तो उसका सबसे पहला काम होगा

  • अधिगम के पूर्व स्तर का पता लगाना (स्थापना आकलन) और उसे समझना।
  • वह अधिगम के पूर्व स्तर का पता लगाएगा, फिर लर्निंग आउटकम्स और पाठ्यक्रम को देखकर अधिगम के उत्तर स्तर को चुनेगा जहां तक उसे बालक को ले जाना है।
  • अधिगम के उत्तर स्तर को प्राप्त करने के लिए शिक्षक और छात्र जो कुछ भी करेंगे वह सब ZPD का हिस्सा होगा।

जैसे–

  • शिक्षक: योजना बनाना, गतिविधियों को डिजाइन करना, गतिविधियों को क्रियान्वित करवाना, सहायक संरचनाएं (Scaffolding) प्रदान करना, रुपात्मक आकलन (Formative Assessment) करना।
  • विद्यार्थी: गतिविधियों में भाग लेना, प्रश्न पूछना, उत्तर देना, साथियों की सहायता करना आदि।

5) सहायक संरचना/पाढ़/ढांचा/मचान (Scaffolding)

बालक के अधिगम को सहायता पहुंचाने के लिए वयस्कों/MKO के द्वारा दिए जाने वाले Temporary Support या Guidance या Helping Structures (सहायक संरचनाओं) को वाइगोत्सकी Scaffolding कहते हैं।

  • दी जाने वाली मदद को Scaffolding कहा जाता है और जो मदद देता है, उसे MKO (More Knowledgeable Other) कहा जाता है।

Scaffolding का उद्देश्य यह होता है कि यह बालक को अधिगम की प्रक्रिया में सहारा देता है, ताकि वह अपनी स्वतंत्रता और संज्ञानात्मक क्षमताओं को विकसित कर सके। यह सहायक संरचनाएं तब हटाई जाती हैं जब बालक अपनी क्षमता को समझने और कार्य को स्वयं पूरा करने में सक्षम हो जाता है।

(6) Reciprocal Teaching (पारस्परिक शिक्षण/व्युत्क्रमणात्मक शिक्षण)

Reciprocal Teaching शिक्षण की एक प्रभावी विधि है जो वाइगोत्सकी के सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धांत पर आधारित है। इसका उद्देश्य छात्रों के पाठवोध (Reading Comprehension) को बेहतर बनाना है और उन्हें पठन सामग्री से अधिकतम अधिगम प्राप्त करने की क्षमता प्रदान करना है। इस विधि में शिक्षक और छात्र आपस में सहयोग (Collaboration) करते हैं ताकि पाठ को बेहतर ढंग से समझा जा सके।

इस प्रक्रिया में चार प्रमुख पठन रणनीतियाँ (Reading Strategies) अपनाई जाती हैं:

  1. सार करना (Summarizing) – छात्र पढ़ी गई सामग्री का सार अपने शब्दों में प्रस्तुत करते हैं, जिससे मुख्य बिंदुओं की पहचान और समझ विकसित होती है।
  2. प्रश्न पूछना (Questioning) – छात्र पाठ के आधार पर प्रश्न बनाते हैं और समूह में चर्चा करते हैं, जिससे विश्लेषणात्मक क्षमता बढ़ती है।
  3. स्पष्टीकरण (Clarifying) – छात्र पाठ के जटिल या भ्रमित करने वाले भागों को स्पष्ट करने की कोशिश करते हैं, जैसे कठिन शब्द, अवधारणाएं या कथन।
  4. पूर्वानुमान करना (Predicting) – छात्र अनुमान लगाते हैं कि आगे पाठ में क्या हो सकता है, जिससे उनकी कल्पनाशीलता और समझ विकसित होती है।

इस विधि में शिक्षक एक छोटा समूह (3-6 छात्रों का) बनाता है और स्वयं भी उसमें शामिल होता है। हर छात्र बारी-बारी से Summariser, Questioner, Clarifier, Predictor की भूमिका निभाता है। शिक्षक इस पूरी प्रक्रिया का मार्गदर्शन करता है और जैसे-जैसे छात्रों की समझ व कौशल विकसित होते हैं, शिक्षक की भूमिका कम होती जाती है, जिससे छात्र स्वतंत्र अधिगम की ओर बढ़ते हैं।

Reciprocal Teaching न केवल पाठवोध को सुदृढ़ करता है बल्कि छात्रों के समूह में कार्य करने, प्रभावी संवाद, और आत्मनिरीक्षण जैसे कौशलों को भी प्रोत्साहित करता है।

वाइगोत्सकी के सिद्धांत का शैक्षिक महत्व (Educational Importance of Vygotsky’s Theory in Hindi)

वाइगोत्सकी का सामाजिक-सांस्कृतिक अधिगम सिद्धांत शिक्षा क्षेत्र में अत्यंत प्रभावशाली एवं व्यावहारिक सिद्ध हुआ है। इस सिद्धांत का शैक्षिक महत्व निम्नलिखित बिंदुओं में स्पष्ट किया जा सकता है:

1. शिक्षा में सामाजिक सहभागिता का महत्त्व

वाइगोत्सकी के अनुसार अधिगम एक सामाजिक प्रक्रिया है। कक्षा में शिक्षक और सहपाठियों के साथ की गई अन्तःक्रिया (Interaction) से विद्यार्थियों का ज्ञान अधिक गहराई से विकसित होता है। यह सिद्धांत सहयोगात्मक अधिगम (Collaborative Learning) को बढ़ावा देता है।

2. ZPD (Zone of Proximal Development) की अवधारणा

वाइगोत्सकी की ZPD की संकल्पना यह बताती है कि शिक्षक को छात्र की वर्तमान योग्यता और संभावित विकास के मध्य की खाई को भरने के लिए शिक्षण देना चाहिए। यह शिक्षण “स्कैफोल्डिंग” (Scaffolding) द्वारा किया जाता है, जिसमें शिक्षक धीरे-धीरे मार्गदर्शन कम करता है और छात्र आत्मनिर्भर बनता है।

3. व्यक्तिगत नहीं, सामाजिक मूल्यांकन पर बल

वाइगोत्सकी मानते हैं कि छात्र के ज्ञान का मूल्यांकन केवल उसकी व्यक्तिगत क्षमताओं के आधार पर नहीं, बल्कि उसके सामाजिक व्यवहार और सहभागिता को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।

4. अनुकरण के माध्यम से अधिगम

वाइगोत्सकी के अनुसार बच्चे शिक्षक, माता-पिता या साथियों का अनुकरण करके सीखते हैं। अतः शिक्षक को एक आदर्श मॉडल के रूप में प्रस्तुत होना चाहिए ताकि छात्र उसके व्यवहार और ज्ञान से प्रेरणा ले सकें।

5. सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की भूमिका

हर छात्र की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि अलग होती है, और यह अधिगम को प्रभावित करती है। शिक्षक को विद्यार्थियों की सांस्कृतिक विविधता को समझते हुए शिक्षण योजनाएं बनानी चाहिए।

6. सक्रिय अधिगम को प्रोत्साहन

वाइगोत्सकी का सिद्धांत छात्रों को क्रियाशील, जिज्ञासु और संवादात्मक बनाता है। वह केवल श्रोता नहीं रहते, बल्कि विचारों का आदान-प्रदान करके अधिगम में भागीदारी करते हैं।

निष्कर्ष

वाइगोत्सकी का अधिगम सिद्धांत शैक्षिक क्षेत्र में एक क्रांतिकारी विचार प्रदान करता है। यह शिक्षक और छात्र के बीच सहयोग, सामाजिक सहभागिता और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को केंद्र में रखता है, जिससे अधिगम अधिक प्रभावी और गहन हो जाता है। ZPD और स्कैफोल्डिंग जैसी अवधारणाएं आज के आधुनिक शिक्षण में अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हो रही हैं।

वाइगोत्सकी के अधिगम सिद्धांत की प्रमुख विशेषताएँ

(Characteristics of Vygotsky’s Learning Theory in Hindi)

विगोत्सकी, एक रूसी मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने समाज-सांस्कृतिक सन्दर्भ में अधिगम (learning) की प्रक्रिया को समझाने का प्रयास किया। उनका यह सिद्धान्त आधुनिक शिक्षाशास्त्र में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। उनके सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

1. सीखना एक निरंतर प्रक्रिया है

वाइगोत्सकी के अनुसार सीखना कोई एकबार की घटना नहीं है, बल्कि यह जीवनभर चलने वाली सतत प्रक्रिया है। मनुष्य जन्म से मृत्यु तक सामाजिक वातावरण से सीखता रहता है।

2. सांस्कृतिक और सामाजिक कारकों की भूमिका

सीखने में सांस्कृतिक संगठन, सामाजिक संस्थान, विद्यालय, परिवार और समुदाय की अहम भूमिका होती है। ये सभी बच्चे के अधिगम के दिशा-निर्देशक होते हैं।

3. संस्कृति और इतिहास का प्रभाव

व्यक्ति का व्यवहार और सीखने का तरीका उसकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से प्रभावित होता है। ये कारक अधिगम को दिशा देते हैं।

4. व्यक्तिगत विकास की प्रक्रिया

व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं और अनुभवों के आधार पर सीखने के साधनों में बदलाव करता है और अपने व्यावहारिक विकास की दिशा स्वयं निर्धारित करता है।

5. विद्यालय की भूमिका

विद्यालय का कार्य केवल सूचना देना नहीं, बल्कि छात्रों को निर्देशित अधिगम का वातावरण उपलब्ध कराना होता है, जिससे वे गहराई से समझ सकें।

6. अन्तःक्रिया द्वारा प्रेरणा

सीखने की प्रक्रिया में शिक्षक और छात्र के बीच की अन्तःक्रिया ही मुख्य प्रेरणा स्रोत होती है।

7. सामाजिक गत्यात्मकता पर आधारित मूल्यांकन

सीखने का मूल्यांकन केवल छात्र की व्यक्तिगत क्षमताओं के आधार पर नहीं होना चाहिए, बल्कि उसकी सामाजिक सहभागिता और व्यवहारिकता को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।

8. अनुकरण की महत्ता

अधिगम में अनुकरण (imitation) एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। बच्चे अपने माता-पिता, शिक्षक या समाज के अन्य सदस्यों को देखकर सीखते हैं।

9. सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग

सीखने की प्रक्रिया में भाषा, प्रतीक, गणितीय चिन्ह जैसे सांस्कृतिक साधनों का प्रयोग अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है। ये उपकरण सोचने और समझने की क्षमता को बढ़ाते हैं।

10. विकास का रिक्त स्थान (Zone of Proximal Development – ZPD)

ZPD वह क्षेत्र है जहाँ बच्चा अकेले नहीं सीख सकता लेकिन किसी कुशल व्यक्ति की सहायता से वह कार्य कर सकता है। यही क्षेत्र अधिगम की दृष्टि से सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है।

11. अधिगम से विकास की ओर

वाइगोत्सकी का मानना था कि अधिगम विकास से पहले आता है। अर्थात, अधिगम विकास को दिशा देता है, न कि विकास अधिगम को।

12. समस्या समाधान क्षमता का विकास

अधिगम प्रक्रिया का एक मुख्य उद्देश्य समस्या समाधान (problem-solving) की योग्यता का विकास करना होता है, जो बच्चे को स्वतंत्र रूप से सोचने और निर्णय लेने में मदद करता है।

13. क्रियाशीलता की आवश्यकता

छात्रों को अधिगम प्रक्रिया में सक्रिय रखना आवश्यक है। क्रियाशीलता (active participation) अधिगम को प्रभावी बनाती है।

14. सांस्कृतिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक समन्वय

वाइगोत्सकी का सिद्धांत मानता है कि अधिगम केवल मानसिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह सामाजिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक तत्वों के समन्वय से उत्पन्न होता है।

निष्कर्ष:

वाइगोत्सकी के अधिगम सिद्धान्त में सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण को अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना गया है। यह सिद्धांत यह मानता है कि अधिगम का मूल स्रोत समाज है और अधिगम की प्रक्रिया में दूसरों के साथ बातचीत और सहयोग प्रमुख भूमिका निभाते हैं। वाइगोत्सकी का ज़ोन ऑफ प्रॉक्सिमल डेवलपमेंट (ZPD) और सामाजिक सहभागिता पर बल उनके सिद्धांत को अन्य अधिगम सिद्धांतों से अलग बनाता है।

पियाजे और वाइगोत्स्की के सिद्धांतों में अंतर 

(Comparison between Piaget’s and Vygotsky’s Theories in Hindi)

पियाजे और वाइगोत्स्की दोनों ही मनोवैज्ञानिकों ने संज्ञानात्मक (Cognitive) विकास को लेकर महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रस्तुत किए हैं। दोनों के दृष्टिकोण में कई समानताएँ और भिन्नताएँ हैं, जिन्हें नीचे की तालिका में स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है:

आधार वाइगोत्स्की का सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धांत पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत
1. संज्ञानात्मक विकास का आधार विकास सांस्कृतिक और सामाजिक परिवेश की अन्तःक्रिया का परिणाम है। विकास बच्चों के आत्म-निर्देशित क्रियाकलापों पर आधारित है।
2. विकास की प्रकृति सामाजिक-सांस्कृतिक असमानता के कारण व्यक्तियों में भिन्नता देखी जाती है। संज्ञानात्मक विकास सार्वभौमिक होता है, सभी बच्चे समान चरणों से गुजरते हैं।
3. सामाजिक सहभागिता की भूमिका सामाजिक सहभागिता आवश्यक है, अन्य व्यक्तियों के सहयोग से सीखना होता है। सामाजिक सहभागिता की सीमित भूमिका है, बालक अधिकतर स्वयं खोज करके सीखता है।
4. अनुकरण (Imitation) की भूमिका बालक समाज में जो देखता है, उसे दोहराता है। व्यवहार अनुकरण द्वारा आत्मसात करता है। बालक आत्मकेंद्रित होता है, स्वयं के अनुभवों से सीखता है।
5. परिवर्तन अभिकर्ता (Change Agent) वयस्क (माता-पिता, शिक्षक) बालक के विकास के लिए मार्गदर्शक होते हैं। सहपाठी और समान आयु वर्ग के मित्र विकास में मुख्य भूमिका निभाते हैं।
6. भाषा की भूमिका भाषा संज्ञानात्मक विकास का माध्यम है, यह सीखने का प्राथमिक साधन है। भाषा संज्ञानात्मक विकास के बाद आती है, यह केवल संज्ञानात्मक गतिविधियों की अभिव्यक्ति है।
7. ज़ोन ऑफ प्रॉक्सिमल डेवलपमेंट (ZPD) ZPD अधिगम का प्रमुख भाग है – जो बच्चा अकेले नहीं कर सकता, वह सहायता से कर सकता है। ZPD की संकल्पना पियाजे के सिद्धांत में नहीं पाई जाती।
8. अधिगम और विकास का सम्बन्ध अधिगम विकास से पहले होता है और उसे प्रभावित करता है। विकास पहले होता है और अधिगम उसके बाद होता है।

निष्कर्ष:

  • वाइगोत्स्की का सिद्धांत समाज, संस्कृति और भाषा को अधिगम में केन्द्र में रखता है। वह यह मानते हैं कि बच्चे सामाजिक सहभागिता और भाषा के माध्यम से संज्ञानात्मक विकास करते हैं।
  • वहीं, पियाजे का सिद्धांत बच्चे के आत्म-निर्भर व्यवहार, खोज और अनुभव पर आधारित है। वह यह मानते हैं कि बच्चे अपने वातावरण से स्वयं सीखते हैं, और विकास एक प्राकृतिक क्रम में होता है।

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