निर्देशन और परामर्श में अंतर बताइए (Difference between Guidance and Counselling in Hindi)
परामर्श क्या है, परामर्श की अवधारणा (Concept of Counselling)
समाज में रहकर व्यक्ति के समक्ष किसी ना किसी प्रकार की समस्याओं का उत्पन्न होना स्वाभाविक है इन समस्याओं के स्वरूप एवं मात्र में विभिन्नता दृष्टिगोचर हो सकती हैं समस्याओं के समाधान की प्रक्रिया के उपरांत ही व्यक्ति आगे बढ़ सकता है इन्हीं समस्याओं के समाधान में सहायता प्रदान करने की दिशा में निर्देशन प्रक्रिया से संबंध हेतु विभिन्न प्रकार की सेवाओं को संगठित किया जाता है निर्देशन से संबंधित सेवाओं के अंतर्गत परामर्श सेवा सर्वाधिक महत्वपूर्ण सेवा है इसलिए परामर्श सेवाओं को निर्देशन सेवाओं का हृदय कहा जाता है। परामर्श के अभाव में निर्देशन का कार्य संभव नहीं हो सकता।
परामर्श (counselling) शब्द दो व्यक्तियों के संपर्क को व्यक्त करता है इन दो व्यक्तियों में एक व्यक्ति परामर्श देने वाला और दूसरा व्यक्ति परामर्श लेने वाला या परामर्श चाहने वाला होता है।
परामर्श का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning of Counselling And Definition)
परामर्श का अर्थ(Counselling Meaning in Hindi)
परामर्श शब्द अंग्रेजी भाषा के काउंसलिंग(counselling) शब्द का हिंदी रूपांतरण है। परामर्श का शाब्दिक अर्थ है सलाह, राय मशवरा या सुझाव आदि।
परामर्श की परिभाषाएं (Definition Of Counselling)
रूथ स्ट्रांग के अनुसार:
परामर्श में आमने सामने का संबंध होता है जिसमें परामर्शदाता तथा परामर्श लेने वाला दोनों ही उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं।
वैबस्टर के अनुसार:
परामर्श से अभिप्राय सलाह, विचार विनिमय तथा इच्छा पूर्वक साहचर्य से हैं।
स्ट्रैंग के अनुसार :
परामर्श परामर्शदाता तथा परामर्श ग्राहक के मध्य आमने सामने के संबंध है।
ट्रैक्सलर के अनुसार
परामर्श व्यक्ति की समस्याओं के विद्यालय अथवा संस्था स्रोतों से समाधान की प्रक्रिया है।
परामर्श की प्रकृति Nature of Counselling in Hindi
परामर्श (Counselling) एक ऐसी व्यापक और बहुआयामी प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य व्यक्ति को उसकी शैक्षिक, व्यावसायिक, सामाजिक एवं व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान हेतु मार्गदर्शन प्रदान करना है। यह केवल सुझाव देने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक संवादात्मक प्रक्रिया है जिसमें परामर्शदाता और परामर्श प्रार्थी दोनों की सहभागिता होती है।
परामर्श की प्रकृति को निम्नलिखित बिंदुओं से स्पष्ट किया जा सकता है:
1. परामर्श एक सतत और जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है
परामर्श की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह जीवन के हर चरण में आवश्यक होता है। मनुष्य के जीवन में समस्याएं केवल बाल्यावस्था, किशोरावस्था या युवा अवस्था तक सीमित नहीं होतीं, बल्कि वह पूरे जीवनकाल में विभिन्न प्रकार की मानसिक, सामाजिक एवं व्यावसायिक चुनौतियों का सामना करता है। अतः परामर्श की आवश्यकता हर अवस्था में बनी रहती है।
2. परामर्श एक समायोजन (Adjustment) की प्रक्रिया है
परामर्श व्यक्ति को उसके नए वातावरण में समायोजित होने में सहायता करता है। जब कोई छात्र नए विद्यालय, कॉलेज या कार्यस्थल पर जाता है, तो उसे नए वातावरण, लोगों, नियमों और कार्यप्रणाली के अनुसार अपने को ढालने में कठिनाई हो सकती है। परामर्श द्वारा उसे मार्गदर्शन और मनोवैज्ञानिक समर्थन मिल सकता है।
3. परामर्श व्यक्ति की रुचियों, योग्यताओं और क्षमताओं को जानने में सहायता करता है
परामर्श का उद्देश्य केवल समस्या समाधान नहीं होता, बल्कि यह व्यक्ति को स्वयं को पहचानने और समझने में भी मदद करता है। जब छात्र या व्यक्ति यह जान लेता है कि उसकी रुचियाँ क्या हैं, कौन-से कार्य उसे संतुष्टि देते हैं, और वह किन क्षेत्रों में योग्य है, तो वह अपने लिए उपयुक्त निर्णय ले सकता है।
4. परामर्श एक समस्या-केंद्रित प्रक्रिया है
यह प्रक्रिया समस्याओं के समाधान पर केंद्रित होती है। चाहे वह शैक्षिक, व्यक्तिगत, सामाजिक, व्यावसायिक या भावनात्मक समस्या हो – परामर्श द्वारा उस समस्या की जड़ तक पहुंचा जाता है और उस आधार पर समाधान सुझाया जाता है।
5. परामर्श सहयोग एवं समन्वय पर आधारित प्रक्रिया है
परामर्श केवल परामर्शदाता की ओर से दी गई सलाह नहीं होती, बल्कि यह एक सहयोगात्मक और संवादात्मक प्रक्रिया होती है। इसमें परामर्शदाता और परामर्श प्रार्थी के बीच विश्वास, सम्मान और पारस्परिक सहभागिता का संबंध होता है। दोनों मिलकर समस्या को समझते हैं और समाधान की दिशा में कार्य करते हैं।
परामर्श की विशेषताएं | Features of Counselling in Hindi
परामर्श केवल समस्या का समाधान करने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह एक गंभीर, गोपनीय और संवादात्मक प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाना और उसकी निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाना होता है। इसकी अनेक विशेषताएं हैं जो इसे अन्य सामान्य सलाह देने की प्रक्रिया से अलग बनाती हैं।
आइए विस्तार से जानते हैं परामर्श की प्रमुख विशेषताएं:
1. परामर्श समस्या-केंद्रित होता है
परामर्श की शुरुआत हमेशा किसी समस्या से होती है। जब तक व्यक्ति को कोई शैक्षिक, व्यावसायिक, सामाजिक या मानसिक समस्या न हो, तब तक वह परामर्श की आवश्यकता महसूस नहीं करता।
2. परामर्श एक व्यक्तिगत प्रक्रिया होती है
परामर्श सामूहिक नहीं बल्कि व्यक्तिगत प्रकृति की प्रक्रिया है। इसमें एक समय में केवल दो व्यक्ति होते हैं – एक परामर्शदाता और दूसरा परामर्श प्रार्थी। यह गोपनीय और आत्मीय वातावरण में होता है, जिससे व्यक्ति अपनी समस्या खुलकर साझा कर सके।
3. परामर्श में दो व्यक्तियों की सहभागिता होती है
यह प्रक्रिया परस्पर संवाद (Two-way Communication) पर आधारित होती है। इसमें:
- परामर्शदाता (Counsellor): वह व्यक्ति जो मार्गदर्शन देता है।
- परामर्श प्रार्थी (Client/Student): वह व्यक्ति जो समस्या लेकर आता है।
4. परामर्श अधिगम-केंद्रित प्रक्रिया है
परामर्श केवल समाधान नहीं, बल्कि अधिगम का माध्यम भी है। इसमें व्यक्ति अपनी समस्याओं से सीखता है, अपने व्यवहार को समझता है और भविष्य में बेहतर निर्णय लेना सीखता है।
5. परामर्श आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है
परामर्श का उद्देश्य समस्या को खुद हल करना नहीं है, बल्कि परामर्श प्रार्थी को समस्या के समाधान की दिशा दिखाना और उसे निर्णय लेने में सक्षम बनाना है।
परामर्श के उद्देश्य | Objectives of Counselling in Hindi
परामर्श का मुख्य उद्देश्य केवल समस्या का समाधान करना नहीं है, बल्कि व्यक्ति के समग्र विकास, आत्मनिर्भरता, और सकारात्मक दृष्टिकोण को विकसित करना है। यह व्यक्ति को अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं में संतुलन और दिशा प्राप्त करने में सहायता करता है।
आइए विस्तार से जानते हैं – परामर्श के प्रमुख उद्देश्य क्या होते हैं?
1. छात्र को आत्म-निर्देशन के लिए समर्थन करना
परामर्श का पहला उद्देश्य यह है कि छात्र अपनी सोच, समझ और निर्णय लेने की क्षमता को विकसित करे। परामर्शदाता छात्र को यह सिखाता है कि वह अपने निर्णय स्वयं ले सके, न कि हर बार दूसरों पर निर्भर रहे।
2. छात्र को भावी जीवन के लिए तैयार करना
परामर्श से छात्र को शिक्षा, करियर और व्यक्तिगत जीवन में आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार किया जाता है। यह उन्हें जीवन के विभिन्न पहलुओं के लिए मानसिक, शैक्षिक और सामाजिक रूप से तैयार करता है।
3. छात्र को उसकी समस्या समाधान के लिए सहायता प्रदान करना
छात्र कई बार मानसिक तनाव, शिक्षा सम्बन्धी कठिनाइयों या सामाजिक दबाव का सामना करते हैं। परामर्शदाता उन्हें इन समस्याओं को पहचानने और सुलझाने के तरीके सुझाता है।
4. छात्र को सामाजिक समायोजन में सहायता करना
हर छात्र अलग-अलग सामाजिक पृष्ठभूमि से आता है और उसे नए वातावरण में सामंजस्य बैठाना मुश्किल हो सकता है। परामर्श के माध्यम से छात्र को दूसरों के साथ मिलकर रहना, संवाद करना और सह-अस्तित्व सीखने में मदद मिलती है।
5. छात्र को अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रेरित करना
परामर्शदाता का कार्य होता है कि वह छात्र को उसके लक्ष्य की ओर केंद्रित रखे और समय-समय पर उसे प्रेरणा देता रहे। इससे छात्र भटकाव से बचता है और अपने जीवन के उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से समझ पाता है।
परामर्श के उद्देश्य केवल शिक्षा या करियर तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकास को लक्षित करता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति को खुद को समझने, अपने लक्ष्यों को पाने और समाज में समायोजन करने में सहायता प्रदान करती है।
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निर्देशन |
परामर्श |
१. निर्देशन की प्रक्रिया २. निर्देशन की प्रक्रिया ३. निर्देशन व्यक्तिगत ४. निर्देशन का संबंध ५. निर्देशन किसी भी ६. निर्देशन किसी व्यक्ति |
१. परामर्श निर्देशन २. परामर्श की प्रक्रिया ३. परामर्श एक समय ४. परामर्श का संबंध ५. परामर्श दाता के ६. परामर्श में व्यक्ति |
परामर्श के क्षेत्र | Areas of Counselling in Hindi
परामर्श केवल शिक्षा या करियर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के जीवन के हर पहलू में उपयोगी होता है। बदलते समाज, तकनीक, और जीवनशैली के कारण आज परामर्श की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है।
नीचे परामर्श के मुख्य पाँच क्षेत्रों को विस्तृत रूप में समझाया गया है:
1. शैक्षिक परामर्श (Educational Counselling)
शैक्षिक परामर्श (Educational Counselling) एक ऐसी प्रक्रिया है जो छात्रों को उनकी शिक्षा से जुड़ी समस्याओं के समाधान में मार्गदर्शन प्रदान करती है। यह परामर्श विशेष रूप से उन छात्रों के लिए उपयोगी होता है जो विषय चयन को लेकर भ्रमित होते हैं, पढ़ाई में एकाग्रता की कमी महसूस करते हैं, परीक्षा की तैयारी को लेकर तनावग्रस्त रहते हैं या जिनकी पढ़ाई में रुचि घट गई होती है। शैक्षिक परामर्श का मुख्य उद्देश्य छात्रों को विषय चयन में सहायता प्रदान करना, पढ़ाई की प्रभावशाली रणनीति बनाना, समय का उचित प्रबंधन सिखाना और परीक्षा के तनाव को कम करना होता है। यह परामर्श छात्रों को आत्मविश्वास के साथ अपनी शैक्षिक यात्रा को सफलतापूर्वक तय करने में सहायक बनता है।
2. व्यावसायिक परामर्श (Vocational Counselling)
व्यावसायिक परामर्श (Vocational Counselling) एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो छात्रों और युवाओं को उनके भविष्य के करियर की दिशा तय करने में मदद करती है। इस परामर्श के माध्यम से व्यक्ति की रुचियों, क्षमताओं, योग्यता और उपलब्ध अवसरों का विश्लेषण कर उन्हें सबसे उपयुक्त करियर विकल्प चुनने में सहयोग किया जाता है। यह परामर्श न केवल करियर चयन में मार्गदर्शन करता है, बल्कि विभिन्न नौकरियों और व्यवसायों के विकल्पों की जानकारी भी देता है। साथ ही, यह भविष्य की संभावनाओं का मूल्यांकन कर व्यक्ति को प्रोफेशनल स्किल्स की पहचान कराने में सहायक होता है। व्यावसायिक परामर्श से युवा आत्मविश्वास के साथ अपने करियर की योजना बना पाते हैं।
3. व्यक्तिगत परामर्श (Personal Counselling)
व्यक्तिगत परामर्श (Personal Counselling) उस प्रक्रिया को कहा जाता है, जिसमें किसी व्यक्ति को उसकी निजी, भावनात्मक या मानसिक समस्याओं से उबरने में सहायता दी जाती है। यह परामर्श आत्मविश्वास की कमी, चिंता, तनाव, अकेलापन, आत्म-संघर्ष, या आत्म-अनुशासन जैसी समस्याओं के समाधान में मदद करता है। परामर्शदाता व्यक्ति की बातों को सहानुभूतिपूर्वक सुनकर उसे आत्म-निरीक्षण करने, सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने और अपनी क्षमताओं को पहचानने में मार्गदर्शन देता है।
4. वैवाहिक परामर्श (Marital Counselling)
वैवाहिक परामर्श (Marital Counselling) एक ऐसी परामर्श प्रक्रिया है जो पति-पत्नी के बीच उत्पन्न होने वाले मतभेदों, संवाद की कमी, विश्वास की समस्याओं और पारिवारिक तनाव जैसे मुद्दों को सुलझाने में सहायक होती है। यह परामर्श पति-पत्नी को एक-दूसरे की भावनाओं को समझने, खुले दिल से संवाद करने और रिश्ते में विश्वास व सम्मान बनाए रखने में मदद करता है। वैवाहिक परामर्श का मुख्य उद्देश्य दांपत्य जीवन में संतुलन और सामंजस्य स्थापित करना होता है जिससे पारिवारिक जीवन सुखमय और तनावमुक्त बन सके।
5. मनोचिकित्सकीय परामर्श (Psychotherapeutic Counselling)
मनोचिकित्सकीय परामर्श (Psychotherapeutic Counselling) उन व्यक्तियों के लिए प्रदान किया जाता है जो गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं जैसे डिप्रेशन, एंग्जायटी, बायपोलर डिसऑर्डर आदि से जूझ रहे होते हैं। यह परामर्श पेशेवर मनोवैज्ञानिकों द्वारा दिया जाता है, जो मानसिक विकारों के निदान और उपचार में विशेषज्ञ होते हैं। मनोचिकित्सकीय परामर्श में थैरेपी का उपयोग किया जाता है, जिससे मानसिक स्थिति में सुधार और सकारात्मक व्यवहार परिवर्तन लाने में मदद मिलती है। यह परामर्श दवाओं और सलाह का संतुलित उपयोग करते हुए व्यक्ति को मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त करने में सहायक होता है।
परामर्श की आवश्यकता
परामर्श एक समस्या केंद्रित प्रक्रिया है, जिसका मुख्य उद्देश्य व्यक्ति की व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान करना होता है। परामर्श की आवश्यकता विभिन्न पहलुओं में महसूस होती है, जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समृद्धि और संतुलन बनाए रखने में सहायक होते हैं। इसके कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
- अच्छा सामाजिक जीवन जीने के लिए परामर्श की आवश्यकता पड़ना:
सामाजिक संबंधों को सुधारने और जीवन में संतुलन बनाए रखने के लिए परामर्श आवश्यक होता है। यह व्यक्ति को बेहतर सामाजिक संपर्क और संबंधों की समझ देता है। - छात्र में व्यावसायिक कुशलता के लिए परामर्श की आवश्यकता पड़ना:
छात्रों को उनकी करियर की दिशा तय करने और व्यावसायिक कौशल प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। यह उन्हें सही पेशेवर निर्णय लेने में सहायता करता है। - छात्र में तकनीकी निपुणता बनाए रखने के लिए परामर्श की आवश्यकता पड़ना:
शिक्षा और तकनीकी विकास के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा को ध्यान में रखते हुए छात्रों को लगातार अपनी तकनीकी क्षमताओं को उन्नत करने के लिए परामर्श की आवश्यकता होती है। - सुरक्षित जीवन जीने के लिए परामर्श की आवश्यकता पड़ना:
जीवन में सुरक्षा और मानसिक शांति बनाए रखने के लिए किसी भी प्रकार की मानसिक समस्या या तनाव का समाधान परामर्श द्वारा किया जा सकता है। - मनोरंजन संबंधी समस्याओं को सुलझाने के लिए परामर्श की आवश्यकता पड़ना:
मानसिक तनाव और जीवन के दबाव को संतुलित करने के लिए मनोरंजन और स्वस्थ मनोरंजन विकल्पों की दिशा में परामर्श महत्वपूर्ण होता है। - छात्र के अंतर्निहित शक्तियों की जानकारी के लिए परामर्श की आवश्यकता पड़ना:
छात्रों के भीतर छिपी हुई शक्तियों और क्षमताओं की पहचान करने और उन्हें सही दिशा में उपयोग करने के लिए परामर्श का सहारा लिया जाता है।
परामर्श का सिद्धांत
परामर्श की प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए कई सिद्धांतों का पालन किया जाता है। ये सिद्धांत परामर्शदाता और परामर्श प्राप्तकर्ता के बीच के संबंधों को मार्गदर्शन देते हैं, ताकि व्यक्ति की समस्याओं का सही और समुचित समाधान हो सके। ये सिद्धांत निम्नलिखित हैं:
- आत्मज्ञान का सिद्धांत:
इस सिद्धांत के अनुसार, परामर्श की प्रक्रिया का उद्देश्य व्यक्ति को अपनी समस्याओं और स्वयं के बारे में गहरी समझ प्रदान करना है। व्यक्ति को अपनी भावनाओं, विचारों और आस्थाओं के बारे में स्पष्ट ज्ञान प्राप्त करने में मदद करना इस सिद्धांत का मुख्य उद्देश्य है। - व्यक्ति के सम्मान का सिद्धांत:
इस सिद्धांत के अनुसार, परामर्शदाता को हमेशा परामर्श प्राप्तकर्ता का सम्मान करना चाहिए और उसे पूरी तरह से स्वीकार करना चाहिए। यह सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि हर व्यक्ति की आंतरिक गुणवत्ता और स्वतंत्रता का सम्मान किया जाना चाहिए, ताकि वे अपनी समस्याओं का हल ढूंढ सकें। - परस्पर सहयोग का सिद्धांत:
परामर्श एक द्विपक्षीय प्रक्रिया है, जिसमें परामर्शदाता और परामर्श प्राप्तकर्ता के बीच एक मजबूत सहयोग होना चाहिए। इस सिद्धांत के अनुसार, दोनों के बीच एक सामंजस्यपूर्ण संबंध और समझ होनी चाहिए, ताकि समाधान की दिशा में दोनों मिलकर कार्य कर सकें। - आत्म स्वीकृति का सिद्धांत:
इस सिद्धांत का कहना है कि व्यक्ति को अपनी समस्याओं और खुद को स्वीकार करना चाहिए। आत्म स्वीकृति पर जोर दिया जाता है, ताकि व्यक्ति अपनी समस्याओं का सामना आत्मविश्वास और सकारात्मकता के साथ कर सके। यह सिद्धांत आत्म-सम्मान और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है। - आत्म निर्देशन का सिद्धांत:
परामर्श के दौरान व्यक्ति को अपनी समस्याओं का समाधान ढूंढने के लिए स्वतंत्रता दी जाती है। इस सिद्धांत के अनुसार, परामर्शदाता का कार्य व्यक्ति को दिशा देने का होता है, लेकिन निर्णय लेने की क्षमता व्यक्ति को खुद विकसित करनी चाहिए। आत्मनिर्भरता और आत्मनिर्णय को बढ़ावा देना इस सिद्धांत का मुख्य उद्देश्य है। - सामाजिक समायोजन का सिद्धांत:
यह सिद्धांत व्यक्ति को अपने सामाजिक परिवेश में समायोजित करने के लिए मार्गदर्शन करता है। इसका उद्देश्य यह है कि व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत और सामाजिक समस्याओं को संतुलित तरीके से हल कर सके, ताकि वह बेहतर सामाजिक समायोजन और सामंजस्य बना सके।
इन सिद्धांतों के माध्यम से परामर्शदाता व्यक्ति की समस्याओं के समाधान में सहायता करता है और उसे मानसिक और सामाजिक समृद्धि की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करता है।
परामर्श के प्रकार (Types of Counselling):
हर व्यक्ति की समस्या और परिस्थिति अलग होती है, इसलिए परामर्श भी विभिन्न प्रकारों में दिया जाता है। परामर्श को तीन मुख्य प्रकारों में विभाजित किया गया है, जो नीचे विस्तार से बताए गए हैं:
१. निर्देशात्मक परामर्श (Directive Counselling):
निर्देशात्मक परामर्श को केंद्रित परामर्श भी कहा जाता है, जिसमें परामर्शदाता (Counsellor) की भूमिका प्रमुख होती है। इस प्रकार के परामर्श में परामर्शदाता समस्या का विश्लेषण करता है, विभिन्न संभावनाओं पर विचार करता है और फिर उपयुक्त समाधान प्रस्तुत करता है। यह विधि समय की दृष्टि से प्रभावी होती है क्योंकि इसमें परामर्शदाता अधिक सक्रिय रहता है और निर्णय में उसकी अहम भूमिका होती है। इसमें परामर्श प्राप्तकर्ता को दिशा दी जाती है, जिससे वह त्वरित और सटीक निर्णय ले सके।
उदाहरण के लिए, जब कोई छात्र विषय चयन को लेकर असमंजस में होता है, तब परामर्शदाता उसके अंक, रुचि और भविष्य की संभावनाओं को ध्यान में रखकर एक विशेष विषय चुनने की सलाह देता है।
२. अनिर्देशात्मक परामर्श (Non-Directive Counselling):
अनिर्देशात्मक परामर्श को स्वायत्त परामर्श भी कहा जाता है। इस प्रकार के परामर्श में परामर्शदाता केवल एक मार्गदर्शक और सहायक की भूमिका निभाता है, जबकि निर्णय लेने की संपूर्ण जिम्मेदारी परामर्श प्राप्तकर्ता की होती है। इसमें व्यक्ति को अपनी समस्याओं का आत्म-विश्लेषण करने और उनके समाधान के लिए स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की छूट होती है। यह प्रक्रिया अपेक्षाकृत अधिक समय लेने वाली होती है क्योंकि इसका केंद्र बिंदु व्यक्ति की स्वयं की सोच और अनुभव होता है। परामर्शदाता निष्पक्ष रूप से श्रोता की भूमिका निभाता है और केवल दिशा देने का प्रयास करता है।
उदाहरण के लिए, जब कोई छात्र अपनी समस्या को विस्तार से बताता है और परामर्शदाता केवल उसकी बातें ध्यान से सुनते हुए उसे इस प्रकार से प्रश्न करता है या प्रेरित करता है कि वह स्वयं अपनी समस्या का समाधान ढूंढ सके।
३. सर्वग्राही परामर्श (Eclectic Counselling):
सर्वग्राही परामर्श वह प्रक्रिया है जिसमें निर्देशात्मक और अनिर्देशात्मक दोनों प्रकार की परामर्श विधियों के उपयोग को सम्मिलित किया जाता है। इस पद्धति में परामर्शदाता परिस्थिति और व्यक्ति की मानसिक स्थिति के अनुसार लचीलापन अपनाता है। कभी वह सक्रिय होकर समाधान सुझाता है (निर्देशात्मक दृष्टिकोण) और कभी वह केवल श्रोता बनकर व्यक्ति को आत्मविश्लेषण के लिए प्रेरित करता है (अनिर्देशात्मक दृष्टिकोण)। इसका मुख्य उद्देश्य समस्या के सर्वोत्तम समाधान तक पहुंचना होता है, चाहे वह किसी भी पद्धति के माध्यम से हो।
उदाहरण के तौर पर, जब कोई छात्र परीक्षा के तनाव से जूझ रहा होता है, तो परामर्शदाता पहले उसके मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक पक्ष को समझता है (अनिर्देशात्मक रूप में) और फिर उसे पढ़ाई की रणनीति, समय प्रबंधन आदि से जुड़ी व्यावहारिक सलाह देता है (निर्देशात्मक रूप में)। यही इस परामर्श की विशेषता है – लचीलापन और परिस्थिति अनुसार कार्य करना।
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