किशोरावस्था में सामाजिक विकास (SOCIAL DEVELOPMENT IN ADOLESCENCE) Kishoravastha Mein Samajik Vikas
किशोरावस्था एक महत्वपूर्ण जीवन काल है, जिसमें शारीरिक, मानसिक और सामाजिक परिवर्तन एक साथ होते हैं। इस अवधि में बालक के शरीर में क्रांतिकारी बदलाव होते हैं, जो न केवल उसकी शारीरिक अवस्था को प्रभावित करते हैं, बल्कि उसके मानसिक और सामाजिक विकास को भी गहरे तरीके से प्रभावित करते हैं। किशोरावस्था में बालक का सामाजिक जीवन पहले से कहीं अधिक विस्तृत और जटिल हो जाता है, क्योंकि अब वह अपने और अन्य व्यक्तियों के बीच सामाजिक सम्बन्धों को समझने और समायोजित करने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेता है। इस समय के दौरान किशोर अपने समाज, परिवार और मित्रों के बीच अपनी पहचान बनाने की कोशिश करता है। उसकी स्वतंत्रता की भावना प्रबल होती है और वह अपने व्यक्तिगत विचारों और इच्छाओं को व्यक्त करने में सक्षम होता है। साथ ही, समाज की विभिन्न मान्यताओं और आदर्शों को लेकर वह अपनी सोच विकसित करता है और कभी-कभी उनका विरोध भी करता है। इस अवस्था में किशोर अपने सहकर्मी समूह में गहरी पहचान और संबंध स्थापित करता है, जिससे उसके आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास में वृद्धि होती है। इसके अलावा, किशोर अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को समझने और निभाने के लिए तैयार होता है, जिससे उसका सामाजिक विकास और अधिक सुदृढ़ होता है। कुल मिलाकर, किशोरावस्था में सामाजिक विकास के कई पहलू होते हैं, जो किशोर को एक जिम्मेदार और समझदार व्यक्तित्व बनाने में मदद करते हैं।
इस अवस्था में होने वाले सामाजिक विकास की मुख्य विशेषताओं को निम्न रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है-
1. लिंग सम्बन्धी चेतना (Sex Consciousness)
किशोरावस्था में लिंग सम्बन्धी चेतना एक महत्वपूर्ण और तीव्र परिवर्तन होती है, जो शारीरिक और मानसिक स्तर पर किशोरों के जीवन को प्रभावित करती है। इस समय, लड़कों और लड़कियों में एक-दूसरे के प्रति आकर्षण का अनुभव अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। किशोर अपनी शारीरिक रूपरेखा और व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को निखारने की कोशिश करते हैं, जैसे वेशभूषा, केश विन्यास, हाव-भाव आदि, ताकि वे विपरीत लिंग के सदस्य का ध्यान आकर्षित कर सकें। यह अवस्था केवल शारीरिक आकर्षण तक सीमित नहीं होती, बल्कि किशोरों के मन में एक दूसरे के निकट आने, मित्रता स्थापित करने और कभी-कभी यौन संबंधों की आकांक्षा भी उत्पन्न होने लगती है। इस समय किशोरों का सामाजिक व्यवहार प्रायः यौन सम्बन्धी इच्छाओं और आवश्यकताओं से प्रेरित होता है, जो उन्हें उनके सामाजिक और मानसिक विकास में नया दृष्टिकोण प्रदान करता है। इस प्रकार, किशोरावस्था में लिंग सम्बन्धी चेतना के विकास के साथ ही किशोरों का आत्म-संस्कार, आत्म-सम्मान और अंतरंग संबंधों की समझ भी विकसित होती है।
2.वय-समूह (Peer Group)
किशोरावस्था में वय-समूह का प्रभाव अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि किशोर और किशोरियाँ अपने समान आयु वर्ग के समूहों के सक्रिय सदस्य होते हैं। इस समय उनके अंदर अपने समूह के प्रति गहरी भक्ति और आस्था विकसित होती है। वे अपने समूह के विचार, व्यवहार के ढंग, आदतें और दृष्टिकोण को अपनाने का प्रयास करते हैं, क्योंकि यह उनके लिए पहचान और सामाजिक स्वीकृति का एक प्रमुख स्रोत बन जाता है। वय-समूह की पहचान और समूह के भीतर की स्थिति किशोरों के आत्मसम्मान और सामाजिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाती है। इसके कारण वे अपने परिवार के सदस्य, विशेषकर माता-पिता और अध्यापकों से संघर्ष करने लगते हैं, क्योंकि समूह की मान्यताएँ और विचार कभी-कभी पारिवारिक या पारंपरिक मूल्यों से भिन्न होती हैं। किशोर अपने समूह की खातिर किसी भी प्रकार का त्याग करने के लिए तैयार रहते हैं, और यह समूह के भीतर सामाजिक संबंधों और उनकी पहचान के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
3. सामाजिक रुचि (Social Interests)
किशोरावस्था में लड़के और लड़कियाँ सामाजिक समारोहो, पार्टियों और आयोजनों में बढ़-चढ़कर भाग लेने में रुचि दिखाते हैं। इस समय, उनके मन में समाजिक जीवन के प्रति गहरी रुचि विकसित होती है और वे विभिन्न सामाजिक समस्याओं पर चर्चा करना पसंद करते हैं। उन्हें विभिन्न सामाजिक मुद्दों, जैसे गरीबी, शिक्षा, पर्यावरण, और अन्य सामुदायिक विषयों पर विचार-विमर्श करना रुचिकर लगता है। यह समय उनके लिए एक महत्वपूर्ण संक्रमणकाल होता है, जिसमें वे खुद को समाज से जोड़ते हैं और अपने सामाजिक दायित्वों का अहसास करने लगते हैं। इसके माध्यम से वे अपने विचारों को साझा करने, दूसरों से सीखने और सामाजिक मुद्दों के प्रति अपनी संवेदनशीलता को बढ़ाने का प्रयास करते हैं।
4. सामाजिक जागरूकता (Social Awareness)
किशोरावस्था में सामाजिक जागरूकता का विकास तीव्र गति से होता है। इस अवस्था में किशोर अपने आस-पास के सामाजिक परिवेश, सांस्कृतिक मान्यताओं और समाजिक समस्याओं के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं। वे अपने माता-पिता और अन्य से प्रशंसा पाने की कोशिश करते हैं, और यदि उनकी आवश्यकताएँ पूरी नहीं होतीं या उनकी रुचियों में कोई बाधा उत्पन्न होती है, तो वे जल्दी चिड़चिड़े हो जाते हैं। इस समय उनका स्वार्थी व्यवहार भी सामने आता है, क्योंकि वे अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं को प्राथमिकता देने लगते हैं। किशोरों के लिए यह एक संवेदनशील समय होता है, जब वे अपनी पहचान, संबंधों और सामाजिक भूमिका को लेकर भ्रमित और चिंतित रहते हैं।
5. नेतृत्व (Leadership)
किशोरावस्था में नेतृत्व की प्रवृत्ति का विकास होने लगता है। इस अवस्था में किशोर अपने समूह में नेता बनने की चाहत रखते हैं और प्रायः समूह में कोई न कोई किशोर नेतृत्व की भूमिका में आ जाता है। इससे किशोरों में सहयोग, सहानुभूति, और स्पर्धा की भावना विकसित होती है। वे यह समझने लगते हैं कि प्रभावी नेतृत्व के लिए न केवल दूसरों को प्रेरित और मार्गदर्शन करने की क्षमता होनी चाहिए, बल्कि एक अच्छा नेता अपनी टीम के सदस्य के भावनाओं और आवश्यकताओं का सम्मान करता है। किशोरावस्था में यह नेतृत्व का अनुभव उन्हें भविष्य में समाज में जिम्मेदार और प्रभावी सदस्य बनने के लिए तैयार करता है।
6. विद्रोह की भावना (Feeling of Revolt)
किशोरावस्था में लड़के-लड़कियाँ अक्सर अपने माता-पिता या परिवार के अन्य सदस्य के विचारों और नियमों से विद्रोह करते हैं। इस अवस्था में उन्हें अपनी स्वतंत्रता का अभाव महसूस होता है, खासकर तब जब माता-पिता या संरक्षक द्वारा बनाए गए अनुशासन और नियंत्रण के नियमों का पालन करना पड़ता है। किशोरों को लगता है कि ये नियम उनके व्यक्तिगत विकास और स्वतंत्रता में बाधा डालते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वे उद्दण्ड और आक्रामक हो सकते हैं। वे अपनी सीमाओं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर संघर्ष करते हैं, और अक्सर परिवार के नियमों और माता-पिता के आदेशों का विरोध करते हैं। यह विद्रोह किशोरों के आत्मनिर्भरता और पहचान की खोज का हिस्सा होता है, जो उनके सामाजिक और मानसिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
7. राजनैतिक दलों का प्रभाव (Influence of Political Parties)
किशोरावस्था में किशोर-किशोरियाँ राजनीति में भी रुचि लेने लगते हैं और वे विभिन्न राजनीतिक दलों और उनके विचारधाराओं से प्रभावित होते हैं। इस उम्र में उनके अंदर सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता का विकास होने लगता है, जिसके कारण वे विभिन्न दलों के आदर्शों, नीतियों और अभियानों के प्रति आकर्षित हो सकते हैं। किशोरों का यह राजनीतिक उत्साह प्रायः उनके समूहों में चर्चा, बहस और विचार विमर्श के रूप में प्रकट होता है। वे किसी एक राजनीतिक दल या विचारधारा को अपना आदर्श मान सकते हैं और उसी के अनुरूप कार्य करने का प्रयास करते हैं। यह राजनीति में उनकी शुरुआती रुचि होती है, जो समय के साथ और परिपक्व होती है, और वे अपनी सामाजिक पहचान और जिम्मेदारियों को बेहतर तरीके से समझने की दिशा में कदम बढ़ाते हैं।
8. व्यवसाय चयन में रुचि (Interest in Selection of Vocation)
किशोरावस्था में किशोर अपने भविष्य के बारे में गंभीर विचार करना शुरू करते हैं और यह समय उनके लिए व्यवसाय या करियर चयन के बारे में सोचने का होता है। इस अवस्था में वे अपने पसंदीदा क्षेत्रों और क्षेत्रों में कार्य करने की दिशा में योजनाएँ बनाने लगते हैं। वे यह जानने की कोशिश करते हैं कि किस प्रकार का कार्य उन्हें सबसे अधिक रुचिकर लगता है और उनके पास कौन सी योग्यताएँ हैं जो उन्हें उस क्षेत्र में सफल बना सकती हैं। इस दौरान वे अपने साथियों, माता-पिता और शिक्षकों से मार्गदर्शन लेते हैं और विभिन्न करियर विकल्पों पर चर्चा करते हैं। साथ ही, वे समाज में विभिन्न व्यवसायों की भूमिका, उनकी आवश्यकताएँ और अपने खुद के लक्ष्य को समझने की कोशिश करते हैं, जिससे वे अपने भविष्य के लिए सही निर्णय ले सकें।
9. वीरपूजा (Ideal Worship)
किशोरावस्था में बालकों में किसी महान नेता, वैज्ञानिक, कलाकार या आदर्श शिक्षक को आदर्श मानने की प्रवृत्ति विकसित होती है। इस अवस्था में वे ऐसे व्यक्तित्वों के विचारों, कार्यों और जीवनशैली को अपने जीवन में अपनाने की कोशिश करते हैं। कई बार वे सिनेमा के नायकों या प्रसिद्ध हस्तियों को भी अपना आदर्श मानने लगते हैं। इस प्रक्रिया से किशोरों में वीर पूजा की भावना उत्पन्न होती है, जिसके तहत वे उन व्यक्तियों की पूजा करते हैं और उनके द्वारा किए गए कार्यों को अपने लिए प्रेरणा का स्रोत मानते हैं। यह प्रवृत्ति किशोरों में समाज और राष्ट्र के प्रति त्याग, समर्पण और जिम्मेदारी की भावना विकसित करने में मदद करती है, क्योंकि वे इन आदर्श व्यक्तियों के मार्गदर्शन में अपने व्यक्तिगत और सामाजिक कार्यों को आकार देने की कोशिश करते हैं।
10. स्वतंत्रता की इच्छा:
किशोरावस्था में बालक अपने माता-पिता और परिवार से अलग होकर स्वयं के निर्णय लेने की इच्छा व्यक्त करता है। वह अपनी पसंद, नापसंद और प्राथमिकताओं के बारे में अधिक जागरूक और स्पष्ट होता है। इस समय में सामाजिक सम्बन्धों में स्वतंत्रता की भावना महत्वपूर्ण होती है।
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11. समूह में पहचान बनाना:
किशोर अधिकतर समय अपने साथियों और मित्रों के साथ व्यतीत करते हैं। वह समूह में एक स्थान बनाने के लिए सक्रिय रूप से कार्य करते हैं। समूह के साथ सामाजिक जुड़ाव, मान्यता, और पहचान की आवश्यकता किशोरावस्था के महत्वपूर्ण पहलू हैं। यह उसे आत्मविश्वास और आत्म-प्रतिष्ठा की भावना प्रदान करता है।
12. सामाजिक मानदंडों की समझ:
किशोरावस्था में बच्चों को समाज की अपेक्षाएँ, आदर्श और मानदंडों का बेहतर ज्ञान होता है। वह समाज के नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों को समझने और उनका पालन करने की कोशिश करते हैं। यह समय किशोरों के लिए अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों और दायित्वों को पहचानने का होता है।
13. मूल्य और सिद्धांतों का विकास:
किशोर अपने जीवन के मूल्यों और सिद्धांतों के बारे में गंभीरता से सोचते हैं। वे विभिन्न सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपने विचार बनाते हैं। इस प्रक्रिया में, वे समाज की परंपराओं और विचारधाराओं को चुनौती देने का भी प्रयास कर सकते हैं।
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14. विरोधाभास और आत्मसंघर्ष:
किशोरावस्था में अक्सर अपने आत्म-संस्कार और पहचान को लेकर अंदरूनी संघर्ष होता है। वह खुद को समझने और अपनी पहचान बनाने की कोशिश करते हैं, जो कभी-कभी परिवार और समाज से मतभेद उत्पन्न करता है। यह संघर्ष किशोर के सामाजिक विकास का एक हिस्सा है।
15. लैंगिक पहचान और संबंध:
किशोरावस्था में लड़कों और लड़कियों के बीच लैंगिक पहचान का विकास होता है। वे अपनी शारीरिक और मानसिक स्थिति के अनुसार अपने लिंग और संबंधों को समझने की कोशिश करते हैं। इस अवस्था में रिश्तों की ओर आकर्षण बढ़ता है, और किशोर अपने समाज में प्रेम, दोस्ती और संबंधों के बारे में विचार करते हैं।
16. समाज में भूमिका और जिम्मेदारी:
किशोर धीरे-धीरे समाज में अपनी भूमिका और जिम्मेदारियों को पहचानने लगता है। वे अपने परिवार, दोस्तों, और समाज के प्रति अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं और इसके साथ ही अपनी शिक्षा, करियर और भविष्य के लिए भी गंभीरता से सोचने लगते हैं।
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निष्कर्ष:
इस प्रकार, किशोरावस्था में सामाजिक विकास एक जटिल और निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जिसमें किशोर शारीरिक, मानसिक और सामाजिक बदलावों से गुजरता है और अपनी सामाजिक पहचान बनाने के लिए लगातार प्रयत्नशील रहता है। यह समय उसे अपने आत्मविश्वास को बढ़ाने, रिश्तों को समझने और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को पहचानने का अवसर प्रदान करता है।
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