बाल्यावस्था में शारीरिक,मानसिक विकास,संवेगात्मक विकास
विद्वानों ने बाल्यावस्था को 6 से 12 वर्ष तक माना है। इस काल में बालक का शारीरिक विकास होता रहता है। शारीरिक विकास के साथ साथ उसका सामाजिक, सांस्कृतिक एवं संवेगात्मक विकास भी होता है। बालक के विकास की विभिन्न अवस्थाएं हैं। इन विभिन्न अवस्थाओं में बालक का व्यक्ति अनेक प्रकार से विकसित होता है। बालक के विकास के स्वरूप इस प्रकार है-
१. शारीरिक विकास (physical growth)
२. मानसिक विकास (mental growth)
३. संवेगात्मक विकास (emotional growth)
४. सामाजिक विकास(social growth)
५. गति विकास(motor development)
६. भाषा विकास(language development)
बाल्यावस्था में शारीरिक विकास का वर्णन कीजिए (physical development in childhood in hindi)
(1) कद (Hight) –
(2) भार (Weight) –
(3) मस्तिष्क एवं सिर(Brain and Head)
(4) धड़ (Trunk)
(5) भुजायें तथा टाँगें (Arms and Legs)-
(6) हड्डियों (Bones) –
7) माँसपेशियाँ तथा वसा (Muscles and fat)-
(8) दाँत (Teeth)-
बाल्यावस्था में मानसिक विकास mental development of child
बाल्यावस्था में मानसिक विकास की स्थिति तीव्र होती हैं इस अवस्था में बालक में सहज प्रवृत्तियों तथा मूल प्रवृत्तियों का विकास हो जाता है। वह अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए अनेक प्रकार के प्रश्न अपने अभिभावकों से करता है। उसकी रूचि विस्तार पाने लगता है। छोटी-छोटी रोचक कहानियां पढ़ने में उसकी रुचि बढ़ जाती है। यात्रा करने तथा इतिहास पढ़ने में समय लगाता है। सूक्ष्म चिंतन का आरंभ हो जाता है। समस्या पर चिंतन कर के कारण तथा निदान खोजने का प्रयत्न करता है। स्मरण शक्ति बढ़ जाती है तथा रटने की योग्यता का विकास हो जाता है।
१. छठवां वर्ष:-
छठवें वर्ष में बालक की बुद्धि एवं उनकी मानसिक शक्तियों का पर्याप्त विकास हो जाता है। बालक को दाएं-बाएं का ज्ञान हो जाता है तथा 13-14 वस्तुओं को गिनना, समस्याओं का समाधान करने की प्रवृत्ति उन में विकसित हो जाती हैं। वे सार्थक प्रश्नों का सही-सही उत्तर देने लगता है उसमें स्मरण शक्ति एवं कल्पना शक्ति का भी विकास होने लगता है साथ ही भाषा का कुशलतापूर्वक प्रयोग भी वह करने लगता है।
२. सातवां वर्ष:-
सातवां वर्ष का बालक में इतनी मानसिकता आ जाती है कि वह दो वस्तुओं में समानताएं और अंतर करने लगता है। वह छोटी-छोटी घटनाओं का वर्णन कर लेता है। वह संदेशों को ला तथा ले जा सकता है।
३. आठवां वर्ष:-
8 वर्ष की आयु में वह 16 17 शब्दों के वाक्यों को दोहरा सकता है तथा छोटी-छोटी सामान्य समस्याओं का हल करने की क्षमता विकसित कर लेता है साथ ही कहानियां एवं कविताएं को भी याद की छमता रखते हैं।
४. नवां वर्ष:-
9 वर्ष की आयु में वह दिन, समय, तारीख, वर्ष बता सकता है, तथा उसे सिक्कों का भी ज्ञान हो जाता है। बालक को रूपए-पैसे, गिनना,जोड़ना-घटाना आदि का ज्ञान हो जाता है साथ ही 5-6 तुकांत शब्दों को बताने में भी सफलता प्राप्त कर लेता है।
५. दसवां वर्ष:-
10 वर्ष की अवस्था में वह छोटे-छोटे वाक्यों की त्रुटियों को दोहराने लगता है। 3 मिनट में वह 770 शब्दों को दोहरा सकता है बालक में तीव्र गति से बोलने किस शक्ति आ जाती है तथा वे दैनिक जीवन के नियमित कार्यों को स्वयं करने लगता है वह सही ढंग से निरीक्षण और तार्किक चिंतन भी करने लगता है।
बच्चों का मानसिक विकास
६. ग्यारहवां वर्ष:-
11 वर्ष में बालक लगभग 6 अंक आगे तथा 4 अंक पीछे की उल्टी गिनती बड़ी आसानी से कर सकता है। तथा साधारण या सामान्य गद्यांश को पढ़कर उसका सारांश भी बता सकता है साथ ही छोटी-छोटी वस्तुओं तथा घटनाओं की तुलना विवाह कर सकता है किसी भी घटना का कारण वह बता सकता है।
७. बारहवां वर्ष:-
12 वर्ष की अवस्था में वह किसी बात का कारण बता सकता है तथा अपनी और व्याख्या कर सकता है इन वर्ष में बालक में इतनी मानसिकता आ जाती है कि वह बड़ी ही आसानी से तर्क और समस्या को हल करने की योग्यता का विकास कर लेता है। वह विभिन्न परिस्थितियों की वास्तविकता जानने क कोशिश करता है तथा कठिन शब्दों की व्याख्या और छोटी-छोटी बातों का कारण बताने का प्रयास करता है उनकी स्मरण शक्ति चिंता शक्ति एवं बुद्धि में वृद्धि होती हैं जिससे वह दूसरे बालकों को सलामी देने लगता है वह किसी भी वस्तु या किसी भी घटना को देखकर कम से कम 75% उनका विवरण दे सकता है। बाल्यावस्था में बालक एवं बालिकाओं की ज्ञान इंद्रियों में तीव्रता से विकसित हो जाती हैं उनमें परिपक्वता आ जाती हैं।
balyavastha mein mansik vikas
बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास (emotional growth in childhood in hindi)
शैशवावस्था में विकसित संवेगों की अभिव्यक्त ही बाल्यकाल में होती है। दमन की प्रवृत्ति भी बालक में आ जाती है। माता-पिता जिस कार्य के लिए उसे मना करते हैं वह उनके सामने न तो कहता है और न करता है। पकड़े जाने पर वह झूठ बोलने लगता है। बालक को स्वयं भी अपने कार्य के प्रति संतोष या दुःख होने लगता है। बालक को अपने कार्य में आनन्द आने लगता है। बालक में सामूहिकता का विकास हो जाता है और वह अपने साथियों से प्रेम, घृणा, द्वेष तथा प्रतिस्पर्धा की भावना अभिव्यक्त करने लगता है।बाल्यावस्था में संवेगों में स्थायित्व आ जाता है। बालक भय तथा क्रोध पर नियन्त्रण करने लगता है। वह अपने संवेगों को माता-पिता तथा शिक्षक के समक्ष प्रकट करते संकुचाता भी है और प्रकट करके लाभ भी उठाता है।
बालकों के संवेगों का स्थिर-काल अस्थायी होता है। उनके संवेगों में उग्रता होती है, उनका रूप परिवर्तित होता रहता है एवं वैयक्तिक भिन्नता पाई जाती है। बालकों के संवेगों में आरोपण होता है एवं उनमें उनकी अभिव्यक्ति में अन्तर आता है।
बाल्यावस्था में होने वाले संवेगात्मक परिवर्तनों की कुछ प्रमुख विशेषताओं का निम्नवत् उल्लेख किया जा सकता है
१. संवेगों की उग्रता में कमी:
बाल्यावस्था में संवेगों की उग्रता शैशवावस्था की भांति उग्र रूप से अभिव्यक्त नहीं होते हैं। इस अवस्था में बालक संवेगों का दमन करने का प्रयास करता है। उनको शिष्ट ढंग से अभिव्यक्त करता है। वे अपने माता पिता अध्यापक तथा किसी भी बड़े व्यक्तियों के सामने ऐसे संवेग को प्रकट नहीं करता जिससे कि उन्हें शर्मिंदा महसूस हो।
२. भय की उग्रता में कमी:
इस अवस्था में भय की कमी देखने को मिलती है। जिस प्रकार का भय शैशवावस्था में देखने को मिलती थी ठीक उसके विपरीत इस अवस्था में देखने को मिलती है। वे बस कुछ ही चीजों से भय रखते हैं। बालकों में भय का संबंध अधिकतर भावी कार्यों से होता है जैसे कि अपने कार्य को पूर्ण रूप से पुराना करने पर, गृह कार्य या पढ़ने लिखने में लापरवाही बरतने पर अपने अध्यापक तथा माता-पिता से भय, परीक्षा में सफल होने की चिंता एवं असफल होने का भाव। इसके अलावा कोई दुर्घटना जैसे भयानक घटना बीमारी आदि होने का भाव इत्यादि।
३. सख्त नियमों से निराशा उत्पन्न होना:
बाल्यावस्था में परिवार, समाज, विद्यालय या किसी भी संस्था के सख्त नियमों से बालक में निराशा की भाव बहुत ही तेजी से उत्पन्न होती है। जिसके कारण से उन्हें अकेलापन महसूस होता है तथा जब बालकों की इच्छाएं पूरी नहीं होती है तो उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि उनसे कोई प्यार नहीं करता और वे निराश हो जाते हैं। बालक में अपने कार्य में सुख दुख की अनुभूति होती है। बालक के कार्य में सफलता एवं असफलता से उनमें संतोष तथा असंतोष की भावना देखने को मिलती है।
४. ईर्ष्या द्वेष और घृणा की भावना उत्पन्न होना:
बाला किसी ना किसी समूह का सदस्य होता है तथा उन्हीं समूह में रहकर वे अपने कार्यों को पूर्ण करता है। इस अवस्था में बालक किसी न किसी कारण से वह समूह के दूसरे सदस्यों से ईर्ष्या द्वेष घृणा की भावना उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण वे दूसरी बालकों के प्रति अपने व्यवहारों में इन सवालों को व्यक्त करने लगता है जैसे व्यंग्य करना ,चिढ़ाना झूठे आरोप लगाना, निंदा करना, तिरस्कार करना इत्यादि।
५. जिज्ञासु की भावना उत्पन्न होना:
बाल्यावस्था एक ही अवस्था है जिसमें बालक हर चीजों को बारीकी से जानने की इच्छुक होता है वह किसी भी वस्तु को देखकर तरह तरह से प्रश्न कर उनके बारे में जानने का प्रयास करता है जैसे कि अपनी किसी खिलौने को खोल कर वह किस-किस वस्तुओं से मिलकर बना है उसे देखने का प्रयास करता है इस प्रकार उनमें जिज्ञासु की भावना उत्पन्न होती है।
६. स्नेह भाव की अभिव्यक्ति:
उत्तर बाल्यावस्था में स्नेह भाव की अभिव्यक्ति प्रारंभिक बाल्यावस्था की तुलना में कम होती है वे अपने स्नेह भाव की अभिव्यक्ति बस उन्हीं लोगों से करता है जो उसके मित्र होते हैं या उसके साथ रहना चाहते हैं और उनकी सहायता करते हैं वे भावना को अप्रत्यक्ष रूप से अपने उन साथियों के साथ व्यक्त करता है।
७. प्रसन्नता की भावना उत्पन्न होना:
उत्तर बाल्यावस्था में प्रफुलता की अभिव्यक्ति प्रारंभिक बाल्यावस्था के समान ही होती है इस अवस्था में बालक विनोद प्रिय होता है। वह किसी असाधारण घटना को देखकर अर्थात किसी को लड़ते झगड़ते मारपीट करते या गिरते हुए देखकर बहुत प्रसन्न होता है।
इस प्रकार बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास होता है जो कभी कम तो कभी ज्यादा होने लगता है।